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Daily-current-affairs / 13 Dec 2023

फार्मास्युटिकल नवाचार में पेटेंट बहिष्करण (Patent Exclusions) तथा मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय का विश्लेषण - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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Date : 14/12/2023

प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - सामाजिक न्याय - स्वास्थ्य

कीवर्ड्स: फार्मास्युटिकल पेटेंट, नोवार्टिस फैसला, भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970

संदर्भ:

फार्मास्युटिकल पेटेंट के संदर्भ में नवाचार और पहुंच के बीच संतुलन स्थापित करना महत्वपूर्ण है। इस परिप्रेक्ष्य में मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में दो महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं जो फार्मास्युटिकल क्षेत्र में पेटेंट पात्रता की सीमाओं को स्पष्ट करते हैं।


पृष्ठभूमि:

  • भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 की धारा 3, पेटेंट बहिष्करण (Patent Exclusions) के मानदंडों को रेखांकित करती है। यह आविष्कारों की पेटेंट योग्यता का निर्धारण करने के लिए एक मानक का निर्धारण करती है।
  • सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक नोवार्टिस निर्णय में भारतीय पेटेंट अधिनियम,1970 की धारा 3(d) के तहत आवश्यक चिकित्सीय प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया था। हालांकि भारतीय न्यायालयों द्वारा इस अधिनियम के अन्य पेटेंट बहिष्करण (Patent Exclusions) की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई थी।
  • फार्मास्युटिकल उद्योग में सम्मिलित सभी हितधारकों के लिए पेटेंट संरक्षण के विषय में स्पष्टता आवश्यक है।क्योंकि यह महत्वपूर्ण है कि नवप्रवर्तक (Innovators), शोधकर्ता और यहां तक कि नागरिक समाज भी पेटेंट कानून के तहत सीमाओं और संभावनाओं से अवगत हो ।

भारतीय पेटेंट अधिनियम के तहत हाल के मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णयों का विश्लेषण

पहला निर्णय: नोवोज़ाइम्स बनाम पेटेंट और डिज़ाइन के सहायक नियंत्रक (धारा 3(e)):

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने भारतीय पेटेंट अधिनियम,1970 की धारा 3(e) का विश्लेषण किया है, यह धारा अपने घटकों के समुच्चय के रूप में नवाचारों का बहिष्कृत करता है। यह निर्णय पेटेंट पात्रता पर स्पष्टता प्रदान करता है।
  • न्यायालय यह स्पष्ट करता है कि ज्ञात समुच्चय पेटेंट वहिष्करण के अंतर्गत नहीं आते हैं।
  • न्यायालय इस बात पर भी स्पष्टता प्रदान करता है कि यदि व्यक्तिगत सामग्री स्वतंत्र रूप से पेटेंट आवश्यकताओं को पूरा करती है, तो किसी रचना/संघटन में उनका समावेश इसे पेटेंट संरक्षण से अयोग्य नहीं सिद्ध करता ।
  • न्यायालय इस बात पर भी जोर देता है कि यदि व्यक्तिगत घटक स्वतंत्र रूप से पेटेंट आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, तो उन्हें एक संरचना में सम्मिलित करने से वह पेटेंट संरक्षण के लिए अयोग्य नहीं हो जाते हैं ।
  • न्यायालय भारतीय पेटेंट अधिनियम,1970 की धारा 3(e) को अधिक स्पष्टता प्रदान करने के लिए पेटेंट धारकों से यह प्रमाणित करने का साक्ष्य मांगती है कि पेटेंट की संरचना में प्रयुक्त तत्वों का योग पेटेंट के सकल योग से अधिक है कि नहीं।

दूसरा निर्णय: हांगकांग और शंघाई विश्वविद्यालय बनाम सहायक पेटेंट नियंत्रक (धारा 3(i)):

  • यह निर्णय मनुष्यों या जंतुओं के उपचार हेतु प्रक्रियाओं से संबंधित आविष्कारों के अतिरिक्त, भारतीय पेटेंट अधिनियम,1970 की धारा 3(i) का विश्लेषण करता है।
  • न्यायालय की सूक्ष्म व्याख्या इन विवो/इनवेसिव निदान और गैर-इनवेसिव नैदानिक परीक्षणों (Vivo/Invasive Diagnoses And Non-invasive Diagnostic tests) के बीच विभेद करती है।
  • यह पूर्ण विनिर्देश के संदर्भ में दावों के मूल्यांकन का प्रस्ताव करता है जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि क्या कोई प्रक्रिया नैदानिक परीक्षण को अपेक्षित बनाती है।
  • यह निर्णय एक गैर-इनवेसिव प्रसवपूर्व रोग परीक्षण का एक बेहतर उद्धरण प्रस्तुत करता है । यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई परीक्षण किसी बीमारी का निदान कर सकता है अपनी सभी अनिश्चितताओं के साथ पेटेंट से अयोग्य हो जाता है।

मद्रास उच्च न्यायालय के सुझाव :

  1. स्पष्ट नियमों की आवश्यकता: फार्मास्युटिकल अनुसंधान और विकास में अत्यधिक निवेश की आवश्यकता होती है इसलिए स्पष्ट और सुसंगत नियम स्थापित करना आवश्यक है।
    • स्पष्ट नियमों से भारतीय पेटेंट कार्यालय में निर्णय लेने की प्रक्रिया सुव्यवस्थित होगी जिससे निश्चितता आएगी और तंत्र पर दबाव कम होगा ।
    • ये नियम पेटेंट उल्लंघन के मुकदमों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे आविष्कारकर्ताओं और फार्मास्युटिकल कंपनियों को संरक्षण के दायरे को समझने के साथ चुनौतियों का सामना करने में सहजता रहेगी ।
  2. विरोधी हितों का संतुलन: मद्रास उच्च न्यायालय का सक्रिय दृष्टिकोण अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधानों के साथ इन विट्रो प्रक्रियाओं के लिए विधायी विचारों का भी सुझाव देता है।
    • मद्रास उच्च न्यायालय फार्मास्युटिकल और मेडिकल पेटेंट में आवश्यक संतुलन को स्वीकार करते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव देता है जो राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं और पेटेंट सुरक्षा में संतुलन स्थापित कर सके।
    • न्यायपालिका के सुझाव उन स्थितियों में महत्वपूर्ण हो जाते हैं जहां विधायी और कार्यकारी प्रक्रियाओं का अभाव है ।
  3. न्यायिक व्याख्या के अवसर: चूंकि भारत का पेटेंट कानून न्यायशास्त्र अभी भी विकास की अवस्था में है इसलिए न्यायालय के पास पेटेंट अधिनियम, 1970 की व्याख्या को आकार देने का एक अनूठा अवसर है।
    • न्यायालय को देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने निर्णयों में विशेष रूप से फार्मास्युटिकल और मेडिकल पेटेंट के क्षेत्र में दूरगामी परिणामों को पहचानना चाहिए।

निर्णय के लाभ:

  • पेटेंट योग्यता के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश: यह निर्णय फार्मास्युटिकल रचनाओं के क्षेत्र में पेटेंट के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश (नोवोजाइम्स मामला) और नैदानिक प्रक्रियाएं (हांगकांग और शंघाई विश्वविद्यालय मामला ) स्थापित करते हैं ।
  • कानूनी अस्पष्टता को दूर करना : इस निर्णय में भारतीय पेटेंट अधिनियम,1970 की धारा 3(ई) और 3(i) की सटीक व्याख्या प्रदान की गई है जो इन विधियों की अस्पष्टता को कम करता है। इससे पेटेंट आवेदनों से संबंधित अधिक सरल विधिक निर्णयों की सुविधा मिलती है।
  • हितधारकों के लिए लाभकारी: न्यायालय के निर्णयों से प्राप्त स्पष्टता विभिन्न हितधारकों जैसे आविष्कारक, फार्मास्युटिकल कंपनियां और नागरिक समाज के लिए भी लाभकारी है ।

निष्कर्ष:

मद्रास उच्च न्यायलय के निर्णय ने भारत में फार्मास्युटिकल पेटेंट कानून को स्पष्टता प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। साक्ष्य-समर्थित निर्णयों पर जोर, बहिष्करणों की सूक्ष्म व्याख्या और विधायी विचार के आह्वान से नवप्रवर्तकों, जनता और उद्योग के हितों को संतुलित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया है।

भारत दवाओं तक पहुंच प्रदान करने के साथ ही नवाचार को बढ़ावा देने की चुनौतियों से निरंतर ग्रस्त है, अतः यह निर्णय एक मजबूत और न्यायसंगत पेटेंट ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

  1. नोवोज़ाइम्स मामला धारा 3(e) के तहत फार्मास्युटिकल रचनाओं में पेटेंट संरक्षण के लिए पात्रता को कैसे स्पष्ट करता है और मद्रास उच्च न्यायालय किस प्रमुख साक्ष्य पर जोर देता है? 10 अंक, 150 शब्द)
  2. हांगकांग और शंघाई विश्वविद्यालय के मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय धारा 3(i) के तहत इन विवो/इनवेसिव निदान और गैर-इनवेसिव नैदानिक परीक्षणों के बीच अंतर कैसे करता है तथा फार्मास्युटिकल पेटेंट संरक्षण के लिए एक नैदानिक परीक्षण की पात्रता के संबंध में न्यायालय क्या उद्धरण प्रस्तुत करती है ? 15 अंक, 250 शब्द)

Source- The Hindu


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