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Daily-current-affairs / 27 Apr 2024

पूर्वोत्तर में विद्रोह और नार्को-ट्रैफिकिंग के बीच संबंध - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र लंबे समय से अलगाववादी विद्रोहों से त्रस्त रहा है। यहाँ स्थित राज्यों में से मणिपुर एक महत्वपूर्ण सीमावर्ती राज्य है, जो स्वर्णिम त्रिभुज से उत्पन्न अवैध नशीली दवाओं के व्यापार के लिए विशेष रूप से असुरक्षित है। स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र, जिसमें म्यांमार, लाओस और थाईलैंड के कुछ हिस्से शामिल हैं, नशीले पदार्थों के उत्पादन और तस्करी का पर्याय बन गया है। यह क्षेत्र भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है। मणिपुर में विद्रोही संगठनों और अंतरराष्ट्रीय ड्रग सिंडिकेट्स के बीच सांठगांठ के गहरे निहितार्थ हैं, जो वहाँ के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को आकार दे रहे हैं, और मौजूदा सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा रहे हैं।
स्वर्णिम त्रिभुज: अवैध मादक पदार्थ उत्पादन का एक केंद्र
ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक कारकों ने स्वर्ण त्रिभुज को अफीम की खेती और कृत्रिम दवा उत्पादन के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया है। इस क्षेत्र के ऊबड़-खाबड़ इलाकों और विच्छेदित सीमाओं ने अवैध गतिविधियों को यहाँ सुगम बनाया है, परिणामतः कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए नशीली दवाओं की तस्करी को प्रभावी ढंग से रोकना मुश्किल हो गया है। इसके अलावा, गरीबी और कमजोर प्रशासन ने नशीले पदार्थों के व्यापार को और बढ़ावा दिया, यहाँ के कई किसानों ने अपनी आजीविका के साधन के रूप में अफीम की खेती की ओर रुख किया। ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) ने सिंथेटिक दवा उत्पादन, विशेष रूप से गोल्डन ट्राइएंगल से उत्पन्न होने वाले मेथामफेटामाइन में चिंताजनक वृद्धि की सूचना दी है, अतः स्पष्ट है कि इससे क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियाँ बढ़ गई है। 

मणिपुर में विद्रोह और नार्को-तस्करी के बीच संबंध
मणिपुर का इतिहास जातीय संघर्षों, अलगाववादी आंदोलनों और मादक पदार्थों की तस्करी से प्रभावित रहा है। ध्यातव्य है कि इस क्षेत्र में कई विद्रोही समूह सक्रिय हैं। कुछ विद्रोहियों को मुख्यधारा के समाज में एकीकृत करने के प्रयासों के बावजूद, कई लोग अलगाववादी एजेंडे को जारी रखे हुए हैं, यह संगठन धन की उगाही के लिए अवैध गतिविधियों का सहारा लेते हैं। म्यांमार में अफीम उत्पादक क्षेत्रों से मणिपुर की निकटता ने इसे भारत में नशीली दवाओं की तस्करी के लिए एक रणनीतिक पारगमन बिंदु बना दिया है। यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यू. एन. एल. एफ.) और कुकी-ज़ो जैसे विद्रोही समूह झरझरी सीमाओं और कमजोर प्रशासन संरचनाओं का लाभ उठा कर नार्को-ट्रैफिकिंग के माध्यम से धन की उगाही का रास्ता अपनाते है।

मणिपुर में तस्करी के मार्ग
म्यांमार में अफीम उत्पादक क्षेत्रों से मणिपुर की भौगोलिक निकटता भारत में नशीले पदार्थों की तस्करी को सुविधाजनक बनाती है। बेहियांग और मोरेह जैसे प्रवेश बिंदु मादक पदार्थों की तस्करी के लिए माध्यम के रूप में कार्य करते हैं, इसके आगे मादक पदार्थ स्थापित मार्गों के माध्यम से पूरे भारत में वितरित किए जाते हैं। औपचारिक आर्थिक अवसरों की कमी ने अवैध गतिविधियों पर इस क्षेत्र की निर्भरता को कायम रखा है, जिससे विद्रोह और मादक पदार्थों की तस्करी के बीच सांठगांठ अधिक मजबूत हुई है।


विद्रोह और मादक पदार्थों की तस्करी के बीच संबंध
म्यांमार के साथ मणिपुर की सीमा अंतरराष्ट्रीय आपराधिक संगठनों को स्थानीय विद्रोही समूहों के साथ सहयोग करने के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान करती है, इससे "नार्को-विद्रोह" के रूप में जानी जाने वाली घटना को बढ़ावा मिलता है। विद्रोहियों को अपने अभियानों को बनाए रखने के लिए वित्तीय जरूरतों ने नशीली दवाओं के तस्करों के साथ गठबंधन का मार्ग प्रशस्त किया है।  म्यांमार में अस्थिरता भी इन समूह की अवैध गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए अवसर पैदा करती है। हाल के आंकड़े म्यांमार में नशीली दवाओं के बढ़ते उत्पादन और मणिपुर में नशीली दवाओं की बढ़ती बरामदगी के बीच एक संबंध का संकेत देते हैं, जो विद्रोह और मादक पदार्थों की तस्करी के बीच परस्पर निर्भरता को रेखांकित करता है।
आगे की चुनौतियां
जातीय संघर्ष और विद्रोह के साथ नशीली दवा तस्करों के समूह के बीच संबंध में वृद्धि ने मणिपुर के युवाओं में नशीली दवाओं के दुरुपयोग को बढ़ावा दिया है, जिससे एचआईवी/एड्स जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पैदा हो रहे हैं। द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत-म्यांमार सीमा पर मुक्त आवागमन व्यवस्था (एफ. एम. आर.) का विद्रोही समूहों द्वारा अवैध तस्करी गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, विद्रोह और मादक पदार्थों की तस्करी के बीच सांठगांठ ने एक अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को जन्म दिया है, जो औपचारिक व्यापार में बाधा डालता है और क्षेत्र में आर्थिक विकास को बाधित करता है।
निष्कर्ष
मणिपुर में उग्रवाद और मादक पदार्थों की तस्करी के बीच की सांठगांठ भारत की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। कमजोर प्रशासन और विच्छेदित सीमाओं के कारण अवैध नशीली दवाओं के व्यापार की व्यापकता, इस बहुआयामी मुद्दे को हल करने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करती है। "ड्रग्स के खिलाफ युद्ध" और भारत-म्यांमार सीमा पर "स्मार्ट बाड़" के कार्यान्वयन जैसी पहल सही दिशा में उठाए गए कदम हैं, लेकिन नार्को-विद्रोह के व्यापक प्रभाव को कम करने के लिए निरंतर क्षेत्रीय सहयोग और ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। चूंकि भारत की एक्ट ईस्ट नीति आसियान देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने का बेहतरीन प्रयास है, इसलिए मणिपुर में उग्रवाद और नार्को-ट्रैफिकिंग के बीच की सांठगांठ को संबोधित करना क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए सर्वोपरि है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    मणिपुर पर विशेष ध्यान देते हुए भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में विद्रोह और मादक पदार्थों की तस्करी के बीच सांठगांठ पर चर्चा करें। इस सांठगांठ में योगदान देने वाले कारकों और भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए इसके प्रभावों का विश्लेषण करें। (10 Marks, 150 words)

2.     स्वर्ण त्रिभुज अवैध नशीली दवाओं के उत्पादन के लिए एक केंद्र के रूप में उभरा है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है। स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी को सुविधाजनक बनाने में कमजोर शासन, छिद्रपूर्ण सीमाओं और गरीबी की भूमिका का मूल्यांकन करें। यह घटना पूर्वोत्तर में भारत की सुरक्षा चिंताओं को कैसे प्रभावित करती है? (15 marks, 250 words)

Source- VIF

 

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