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Daily-current-affairs / 19 Feb 2024

लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने हेतु चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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संदर्भ

चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने का उच्चतम न्यायालय का हालिया निर्णय भारतीय चुनावी वित्तपोषण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण निर्णय है। अनाम राजनीतिक योगदान को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से इस योजना को लाया गया था लेकिन इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर करने की क्षमता के लिए गहन जांच का सामना करना पड़ा। पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए सर्वसम्मत निर्णय ने केवल चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित किया, बल्कि दाता की गोपनीयता, सूचना के अधिकार और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के व्यापक सिद्धांतों से संबंधित विभिन्न प्रमुख पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है।

 

सूचना के अधिकार का उल्लंघनः        
उच्चतम न्यायालय के अपने फैसले ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) () में निहित सूचना के अधिकार के उल्लंघन को रेखांकित किया। बेनामी राजनीतिक दान की अनुमति देकर, इस योजना ने मतदाताओं की सूचित निर्णय लेने की क्षमता को बाधित किया है, और सरकार की जवाबदेहिता को कम किया है। न्यायालय ने सूचना के अधिकार के आंतरिक मूल्य पर जोर देते हुए कहा है, कि यह केवल जबाबदेहिता के साधन के रूप में, बल्कि सहभागी लोकतंत्र के एक अनिवार्य घटक के रूप में कार्य करता है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक असमानता और राजनीतिक जुड़ाव के बीच गहरे सहसंबंध का भी उल्लेख किया है, जो राजनीतिक दलों को वित्तीय योगदान से उत्पन्न होने वाली क्विड प्रो क्वो व्यवस्थाओं की क्षमता पर प्रकाश डालता है।  

चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती:     
अदालत ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चुनावी वित्तपोषण में काले धन पर अंकुश लगाने के लिए यह योजना आवश्यक थी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता को प्राप्त करने के लिए कम से कम प्रतिबंधात्मक तरीकों को अपनाने में सरकार की विफलता पर जोर देते हुए एक आनुपातिकता परीक्षण लागू किया। राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, अदालत ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में चुनावी बांड योजना की प्रभावकारिता पर सवाल उठाया। इसने मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हुए पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अधिक आनुपातिक उपायों के रूप में अज्ञात दान पर सीमा और चुनावी ट्रस्ट की अवधारणा जैसे वैकल्पिक तंत्र की ओर इशारा भी किया है।

दानदाता की निजता का अधिकारः 
कार्यवाही के दौरान, अदालत ने राजनीतिक योगदान के दायरे में दाता गोपनीयता की सीमा पर विचार-विमर्श किया। सूचनात्मक गोपनीयता के हिस्से के रूप में राजनीतिक संबद्धता की रक्षा के महत्व को पहचानते हुए, अदालत ने राजनीतिक समर्थन की वास्तविक अभिव्यक्तियों और क्विड प्रो क्वो उपायों के रूप में किए गए योगदान के बीच अंतर किया। इसने इस बात पर जोर दिया है ,कि निजता का अधिकार नीतियों को प्रभावित करने के उद्देश्य से चुनावी योगदान तक नहीं फैला है, क्योंकि इससे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहती है। अदालत के सूक्ष्म दृष्टिकोण ने निजता के अधिकार को लोकतांत्रिक शासन के व्यापक सिद्धांतों के साथ संतुलित किया।

असीमित कॉरपोरेट दानः        
अदालत ने कंपनी अधिनियम, 2013 में संशोधन की जांच की, जिसमें कंपनियों द्वारा असीमित राजनीतिक योगदान की अनुमति दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने इस प्रावधान को स्पष्ट रूप से मनमाना माना, जो चुनावी प्रक्रिया में निगमों द्वारा डाले गए असमान प्रभाव को उजागर करता है। व्यक्तियों और कंपनियों के राजनीतिक योगदान को समान रूप से मानते हुए, संशोधन ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के सिद्धांतों को कमजोर किया है। अदालत के फैसले ने लोकतांत्रिक संस्थानों की अखंडता को बनाए रखने के लिए राजनीतिक वित्तपोषण में कॉर्पोरेट प्रभाव को विनियमित करने की आवश्यकता की पुष्टि की है।          

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधनों को रद्द करनाः     
अदालत ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधनों को खारिज कर दिया है , जिसमें चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान को प्रकटीकरण आवश्यकताओं से छूट दी गई थी। इसने राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता के महत्व पर जोर दिया, विशेष रूप से उन योगदानों के संबंध में जो संभावित रूप से राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। राजनीतिक दान के लिए प्रकटीकरण सीमा को बहाल करके, अदालत ने सूचना के अधिकार और दाताओं की गोपनीयता के बीच संतुलन बनाने की मांग की है। इस निर्णय ने चुनावी प्रक्रियाओं की अखंडता को बनाए रखने के लिए न्यायपालिका की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि की है।

निष्कर्ष:
अंत में, चुनावी बॉन्ड योजना पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भारतीय चुनावों में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है। योजना और संबंधित संशोधनों को निरस्त करके, अदालत ने सूचना के अधिकार की प्रधानता और राजनीतिक वित्तपोषण में अनुचित प्रभाव पर अंकुश लगाने की आवश्यकता की पुष्टि की। यह निर्णय केवल लोकतांत्रिक संस्थानों की अखंडता की रक्षा करता है, बल्कि मतदाताओं को सूचित विकल्प चुनने का अधिकार भी देता है। नीति निर्माताओं के लिए यह अनिवार्य है कि वे अदालत के निर्देशों का पालन करें और ऐसे सुधार लागू करें जो राष्ट्र के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत करते हों।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
1.
सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने के अपने फैसले को कैसे उचित ठहराया, विशेष रूप से सूचना के अधिकार के उल्लंघन के संबंध में स्पष्ट करें।  (10 marks, 150 words)
2.
अदालत ने काले धन पर अंकुश लगाने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना की आवश्यकता के बारे में सरकार की दलीलों को किन तरीकों से चुनौती दी और राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए किन वैकल्पिक उपायों का सुझाव दिया?(15 marks, 250 words)

Source – The Hindu

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