सन्दर्भ:
भारत ने जल जीवन मिशन के तहत एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। अब 81% से अधिक ग्रामीण परिवारों को सुरक्षित जल आपूर्ति नल से उपलब्ध है। अक्टूबर 2025 तक, 15.72 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों को सीधे घरेलू नलों के माध्यम से स्वच्छ पेयजल मिल रहा है जो 2019 के केवल 3.23 करोड़ परिवारों से एक उल्लेखनीय वृद्धि है। यह परिवर्तन स्वतंत्र भारत के इतिहास में बुनियादी अवसंरचना के सबसे तेज़ विस्तारों में से एक है और सार्वभौमिक जल सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
जल जीवन मिशन के बारे में:
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- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त 2019 को शुरू किया गया जल जीवन मिशन “हर घर जल” के दृष्टिकोण को मूर्त रूप देता है जिसका उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान करना। जब यह मिशन प्रारंभ हुआ था, तब केवल 16.71% ग्रामीण घरों में नल से पानी उपलब्ध था। आज यह संख्या 81% से अधिक हो गई है, जो मात्र छह वर्षों में 12.48 करोड़ नए कनेक्शनों को दर्शाती है।
- यह मिशन जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत संचालित होता है, जिसकी कुल केंद्रीय व्यय राशि ₹2.08 लाख करोड़ है, जिसका अधिकांश हिस्सा ग्रामीण जल अवसंरचना निर्माण में उपयोग किया गया है। लेकिन जल जीवन मिशन केवल पाइपों और नलों तक सीमित नहीं है, यह महिलाओं के सशक्तिकरण, स्वास्थ्य सुधार और जल प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी की व्यापक दृष्टि का प्रतीक है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त 2019 को शुरू किया गया जल जीवन मिशन “हर घर जल” के दृष्टिकोण को मूर्त रूप देता है जिसका उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान करना। जब यह मिशन प्रारंभ हुआ था, तब केवल 16.71% ग्रामीण घरों में नल से पानी उपलब्ध था। आज यह संख्या 81% से अधिक हो गई है, जो मात्र छह वर्षों में 12.48 करोड़ नए कनेक्शनों को दर्शाती है।
मिशन का महत्व:
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- दशकों से ग्रामीण महिलाओं और बालिकाओं को दूरस्थ स्रोतों से पानी लाने की जिम्मेदारी उठानी पड़ती थी। जल जीवन मिशन इस लैंगिक श्रम असमानता को सीधे संबोधित करता है, जिससे प्रतिदिन लगभग 5.5 करोड़ घंटे बचते हैं जिनमें से तीन-चौथाई महिलाओं का समय है (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार)। यह मिशन स्वच्छ जल तक पहुंच सुनिश्चित कर स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाता है और जलजनित बीमारियों के प्रसार को कम करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भारत में सुरक्षित पेयजल की सार्वभौमिक उपलब्धता से प्रति वर्ष 4 लाख दस्त (डायरिया) से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है और 1.4 करोड़ विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) बचाए जा सकते हैं।
- दशकों से ग्रामीण महिलाओं और बालिकाओं को दूरस्थ स्रोतों से पानी लाने की जिम्मेदारी उठानी पड़ती थी। जल जीवन मिशन इस लैंगिक श्रम असमानता को सीधे संबोधित करता है, जिससे प्रतिदिन लगभग 5.5 करोड़ घंटे बचते हैं जिनमें से तीन-चौथाई महिलाओं का समय है (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार)। यह मिशन स्वच्छ जल तक पहुंच सुनिश्चित कर स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाता है और जलजनित बीमारियों के प्रसार को कम करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भारत में सुरक्षित पेयजल की सार्वभौमिक उपलब्धता से प्रति वर्ष 4 लाख दस्त (डायरिया) से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है और 1.4 करोड़ विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) बचाए जा सकते हैं।
भारत की जल चुनौती:
भारत विश्व की 18% जनसंख्या का पोषण करता है, लेकिन इसके पास केवल 4% वैश्विक ताजे जल संसाधन हैं। 1951 से प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में 70% से अधिक की गिरावट आई है, जिससे मांग–आपूर्ति अंतर बढ़ गया है। नीति आयोग के अनुसार, लगभग 60 करोड़ भारतीय उच्च से अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं।
यह समस्या भूजल क्षरण, शहरी प्रदूषण और अपशिष्ट जल प्रबंधन की कमी से और बढ़ जाती है। 2030 तक दिल्ली और चेन्नई जैसे शहरों में भूजल का गंभीर संकट आने की संभावना है। मार्च 2024 में, भारत के जलाशयों में भंडारण स्तर केवल 40% था जो पिछले पांच वर्षों में सबसे कम था जिससे सतत जल प्रबंधन की तात्कालिक आवश्यकता स्पष्ट होती है।
अपशिष्ट जल और प्रदूषण: एक संकट
भारत प्रतिदिन 72,000 मिलियन लीटर से अधिक अपशिष्ट जल उत्पन्न करता है, जिसमें से केवल 28% का उपचार किया जाता है। बिना उपचारित यह जल उद्योगों, शहरों और कृषि से लगभग 70% सतही जल स्रोतों को प्रदूषित करता है।
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- औद्योगिक उत्सर्जन: लगभग 3,500 उद्योग गंगा जैसी प्रमुख नदी घाटियों को प्रदूषित करते हैं।
- कृषि अपवाह: अत्यधिक उर्वरक और कीटनाशक झीलों को घुटन (यूट्रोफिकेशन) की स्थिति में ला देते हैं और मछलियों की आबादी घटा देते हैं।
- शहरी सीवेज: यमुना नदी में प्रतिदिन 640 MLD से अधिक बिना उपचार वाला अपशिष्ट जल प्रवाहित होता है।
अपशिष्ट जल उपचार की भूमिका
उपचारित अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग भारत के जल संकट के सबसे कम उपयोग किए गए समाधानों में से एक है। नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) के अनुसार, भारत 80% तक अपशिष्ट जल का उपचार और पुनः उपयोग कर सकता है।
उचित उपचार से कई लाभ होते हैं:
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- जल आपूर्ति में वृद्धि — सिंचाई और उद्योग में उपचारित जल का पुनः उपयोग।
- प्रदूषण की रोकथाम — नदियों और जलभृतों में विषाक्त अपशिष्ट के प्रवाह को रोकना।
- भूजल पुनर्भरण में सहायता — जैसे कोलार (कर्नाटक) में उपचारित जल से सूखे कुओं का पुनर्जीवन हुआ।
- संसाधन पुनर्प्राप्ति में सक्षम — आधुनिक संयंत्र उर्वरक हेतु पोषक तत्व निकाल सकते हैं और ऊर्जा हेतु बायोगैस उत्पन्न कर सकते हैं।
सरकारी नीतियां और पहलें:
1. जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 – केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की स्थापना की गई।
2. राष्ट्रीय जल नीति (2012) – जल पुनः उपयोग और संरक्षण को बढ़ावा दिया।
3. प्रमुख मिशन – नमामि गंगे, AMRUT, स्वच्छ भारत मिशन 2.0 और स्मार्ट सिटीज़ मिशन जैसी पहलें सीवेज प्रबंधन और शहरी जल गुणवत्ता में सुधार ला रही हैं।
4. ड्राफ्ट वेस्टवॉटर रीयूज़ नियम, 2024 – थोक उपभोक्ताओं को 2031 तक 50% अपशिष्ट जल पुनः उपयोग अनिवार्य करने का प्रस्ताव।
5. हाउसिंग जनादेश (2027–28) – बड़ी हाउसिंग सोसाइटियों को 20% अपशिष्ट जल पुनः उपयोग करने की आवश्यकता।
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जल जीवन मिशन के तहत प्रगति (अक्टूबर 2025 तक)
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गुणवत्ता आश्वासन और सामुदायिक निगरानी:
जल गुणवत्ता आश्वासन जल जीवन मिशन की सफलता का प्रमुख तत्व है। 2025–26 में भारत भर में 2,843 प्रयोगशालाओं ने 38.78 लाख जल नमूनों का परीक्षण किया। साथ ही, 5 लाख से अधिक गांवों में 24.8 लाख ग्रामीण महिलाओं को फील्ड टेस्टिंग किट्स (FTKs) से जल परीक्षण का प्रशिक्षण दिया गया।
डिजिटल गवर्नेंस:
JJM अब भौतिक विस्तार से आगे बढ़कर डिजिटल जल शासन की दिशा में अग्रसर है।
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- ग्रामीण पाइप जल आपूर्ति योजना (RPWSS) मॉड्यूल सभी जल परियोजनाओं का एक डिजिटल रजिस्टर बनेगा, जो प्रत्येक को एक अद्वितीय RPWSS ID प्रदान करेगा ताकि वास्तविक समय में ट्रैकिंग और निगरानी हो सके।
- यह GIS मैपिंग और प्रधानमंत्री गति शक्ति प्लेटफॉर्म से एकीकृत है, जिससे रखरखाव के लिए पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण संभव होता है
- पश्चिम बंगाल का “जल मित्र ऐप” पहले ही डिजिटल प्रणालियों की क्षमता प्रदर्शित कर चुका है, जिसने 13 करोड़ से अधिक गतिविधियों को ट्रैक किया है, नल कनेक्शन की निगरानी की है, और समुदायों को पारदर्शी रिपोर्टिंग के माध्यम से सशक्त किया है।
महिलाएं मिशन के केंद्र में:
जल जीवन मिशन जल के साथ-साथ लैंगिक न्याय का भी मिशन है। घर पर जल की उपलब्धता ने 9 करोड़ से अधिक महिलाओं को रोज़ाना जल लाने के श्रम से मुक्त किया है (SBI रिसर्च)। बचा हुआ समय अब कृषि और सहायक गतिविधियों में महिलाओं की अधिक भागीदारी में परिवर्तित हो रहा है, जिससे घरेलू आय और ग्रामीण उत्पादकता दोनों में वृद्धि हुई है।
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- महाराष्ट्र के मापण गांव जैसे स्थानों में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह स्थानीय जल आपूर्ति प्रणालियों का प्रबंधन करते हैं, बिलिंग से लेकर रखरखाव तक, जिससे योजनाएं आत्मनिर्भर बन गई हैं। इस समूह ने ₹1.7 लाख का अधिशेष राजस्व भी उत्पन्न किया, जिससे सिद्ध होता है कि महिला-नेतृत्व वाला जल शासन कारगर है।
- महाराष्ट्र के मापण गांव जैसे स्थानों में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह स्थानीय जल आपूर्ति प्रणालियों का प्रबंधन करते हैं, बिलिंग से लेकर रखरखाव तक, जिससे योजनाएं आत्मनिर्भर बन गई हैं। इस समूह ने ₹1.7 लाख का अधिशेष राजस्व भी उत्पन्न किया, जिससे सिद्ध होता है कि महिला-नेतृत्व वाला जल शासन कारगर है।
सततता और जलवायु लचीलापन:
मिशन, स्रोत स्थिरता को ग्रे वाटर प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण के माध्यम से प्रोत्साहित करता है। नागालैंड के वोक्हा में समुदायों ने क्षरित ढलानों का पुनर्वास किया और जलभृतों को पुनर्भरण के लिए परक्यूलेशन टैंक बनाए। राजस्थान के बोथारा में, चेक डैम ने स्थानीय जल स्तर को 70 फीट तक बढ़ा दिया, जिससे सालभर जल उपलब्धता सुनिश्चित हुई और अत्यधिक दोहन कम हुआ।
रोज़गार और आर्थिक प्रभाव:
आईआईएम बेंगलुरु और विश्व श्रम संगठन (ILO) के संयुक्त अध्ययन के अनुसार, जल जीवन मिशन में 3 करोड़ व्यक्ति-वर्ष तक रोजगार सृजन की क्षमता है, जिसमें कुशल और अकुशल दोनों श्रमिकों को अवसर मिलते हैं। महिलाओं की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिसमें लगभग 25 लाख महिलाओं को जल परीक्षण किटों के उपयोग और जल शासन में प्रशिक्षण दिया गया है।
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- आर्थिक रूप से, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि सुरक्षित पेयजल तक पहुंच से भारत में स्वास्थ्य लागत में ₹8.2 लाख करोड़ की बचत हो सकती है जो जल, स्वास्थ्य और उत्पादकता के प्रत्यक्ष संबंध को दर्शाता है।
- आर्थिक रूप से, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि सुरक्षित पेयजल तक पहुंच से भारत में स्वास्थ्य लागत में ₹8.2 लाख करोड़ की बचत हो सकती है जो जल, स्वास्थ्य और उत्पादकता के प्रत्यक्ष संबंध को दर्शाता है।
चुनौतियाँ:
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- असमान प्रगति: कुछ राज्य कवरेज और गुणवत्ता निगरानी में पिछड़े हैं।
- अवसंरचना की कमी: भारत के लगभग आधे घरों में सीवरेज प्रणाली का अभाव है, जिससे अपशिष्ट जल संग्रह कठिन होता है।
- संचालन संबंधी अंतर: केवल 36% उपचार संयंत्र पूरी तरह से कार्यशील हैं।
- व्यवहारगत बाधाएँ: किसान उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के प्रति अनिच्छुक हैं।
- जलवायु अस्थिरता: अनियमित वर्षा पैटर्न स्रोत स्थिरता को खतरे में डालते हैं।
निष्कर्ष:
जल जीवन मिशन, भारत की विकास यात्रा में एक मील का पत्थर है, जो अवसंरचना, सामाजिक सशक्तिकरण और पर्यावरणीय स्थिरता को जोड़ता है। 15.7 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों तक नल जल पहुंचाकर, इसने देशभर में जीवन और आजीविका को रूपांतरित किया है। डिजिटल उपकरणों, सामुदायिक नेतृत्व और नीतिगत समरसता के साथ, जल जीवन मिशन केवल जल नहीं दे रहा, बल्कि भारत में सशक्त और समावेशी ग्रामीण विकास की नींव रख रहा है।
| UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: सुरक्षित पेयजल तक पहुंच केवल एक अवसंरचनात्मक लक्ष्य नहीं, बल्कि एक सामाजिक रूपांतरण है। जल जीवन मिशन के संदर्भ में विवेचना कीजिए। |
