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Daily-current-affairs / 11 Sep 2023

भारत की परमाणु नीति - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 12-09-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3- आंतरिक सुरक्षा- परमाणु नीति

कीवर्ड: जी-20 शिखर सम्मेलन, चंद्रयान-3, और आदित्य एल-1 मिशन, नो फर्स्ट यूज़ सिद्धांत

सन्दर्भ:

भारत की परमाणु नीति राष्ट्रीय सुरक्षा और निरस्त्रीकरण के सिद्धांतों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यहां, हम भारत की परमाणु नीति, इसके ऐतिहासिक विकास और इसकी उपलब्धियों का विश्लेषण करेंगे। साथ ही वैश्विक संदर्भ में देश की वर्तमान सेना, वायु सेना और नौसेना की क्षमता का गहन अवलोकन भी करेंगे । इसके अतिरिक्त, हम विश्व राजनीती में भारत की भूमिका, वैश्विक शांति और सुरक्षा में इसके योगदान को देंखेंगे जिसमें 2023 में जी -20 शिखर सम्मेलन, चंद्रयान -3 और आदित्य एल -1 मिशन जैसे हालिया विकास शामिल हैं।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

भारत की परमाणु यात्रा 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद शुरू हुई। उस समय, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व की वकालत करते हुए, निरस्त्रीकरण पर एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण व्यक्त किया था । इसके बाद भारत ने कई बार परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार पर वैश्विक चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है।

यद्यपि, 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण सहित तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य ने भारत को अपने परमाणु रुख पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया। परिणामत: प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसका कोडनेम "स्माइलिंग बुद्धा" था। यह घटना भारत की परमाणु नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव थी, क्योंकि इसने परमाणु हथियार विकसित करने की भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया था ।

भारत ने अपनी परमाणु नीति को 1998 में "नो फर्स्ट यूज़" (एनएफयू) नीति की घोषणा के साथ स्पष्ट किया था, जिसमें कहा गया था कि भारत किसी संघर्ष में परमाणु हथियारों का उपयोग करने वाला पहला देश नहीं होगा। इस नीति का उद्देश्य परमाणु वृद्धि के जोखिम को कम करते हुए एक विश्वसनीय न्यूनतम निवारक बनाए रखने की भारत की प्रतिबद्धता पर बल देना है।

‘नो फर्स्ट यूज’ पॉलिसी क्या है?

  • भारत की परमाणु नीति का मूल सिद्धांत- पहले उपयोग नहीं है, (No First Use) जो भारत को विश्व के अन्य देशों से अलग बनाता है। इस नीति के अनुसार भारत किसी भी देश पर परमाणु हमला तब तक नहीं करेगा जब तक कि शत्रु देश भारत के ऊपर हमला नहीं कर देता है।
  • भारत अपनी परमाणु नीति को इतना सशक्त रखेगा कि दुश्मन के मन में भय बना रहे।
  • दुश्मन देश के खिलाफ परमाणु हमले की कार्यवाही करने का अधिकार सिर्फ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों अर्थात देश के राजनीतिक नेतृत्व को ही होगा जबकि नाभिकीय कमांड प्राधिकरण का सहयोग जरूरी होगा।
  • जिन देशों के पास परमाणु हथियार नही हैं उन देशों के खिलाफ भारत अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा।
  • यदि भारत के खिलाफ या भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई रासायनिक या जैविक हमला होता है तो भारत इसके जबाब में परमाणु हमले का विकल्प खुला रखेगा।
  • भारत परमाणु मुक्त विश्व बनाने की वैश्विक पहल का समर्थन करता रहेगा तथा भेदभाव मुक्त परमाणु निःशस्त्रीकरण के विचार को आगे बढ़ाएगा।

परमाणु क्षमता में उपलब्धियां:

विगत वर्षों में, भारत ने अपनी परमाणु क्षमता में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 1998 के "ऑपरेशन शक्ति" नामक सफल परीक्षणों ने परमाणु हथियारों के डिजाइन और निर्माण की भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया। भारत के परमाणु शस्त्रागार में अग्नि, पृथ्वी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलों और K-15 और K-4 जैसी पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइलों (एसएलबीएम) सहित विभिन्न प्रकार की प्रक्षेपण प्रणालियाँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, भारत ने अपने परमाणु शस्त्रागार के सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत कमान और नियंत्रण अवसंरचना विकसित की है।

अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बियों के विकास ने भारत की परमाणु क्षमता में एक ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की । ये पनडुब्बियां भारत की प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाते हुए दूसरी बार हमला करने का सामर्थ्य प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त भारत ने अपने परमाणु प्रतिरोध को और मजबूत करते हुए भूमि, समुद्र और वायु-आधारित परमाणु वितरण प्रणालियों की एक विश्वसनीय त्रयी क्षमता विकसित की है।

वैश्विक शांति और सुरक्षा में योगदानः

भारत की परमाणु नीति राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा देती है क्योंकि भारत वैश्विक शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेता है। यद्यपि भारत ने परमाणु हथियारों के अप्रसार संधि (नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी-एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं परन्तु निरस्त्रीकरण और अप्रसार के सिद्धांतों के लिए प्रतिबद्ध है। भारत ने परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और वर्तमान परमाणु हथियारों को कम करने के प्रयासों का लगातार समर्थन किया है।

भारत ने दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2005 में इंडो-U.S. नागरिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करना वैश्विक परमाणु व्यवस्था में भारत के एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस समझौते ने भारत को एक उत्तरदायी परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता प्रदान की और अन्य देशों के साथ नागरिक परमाणु सहयोग की अनुमति दी।

इसके अलावा, भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन(सार्क) जैसी पहलों के माध्यम से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और विश्वास-निर्माण के उपायों को बढ़ावा देने के लिए काम किया है । ये प्रयास क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के व्यापक लक्ष्य के लिए अपनी परमाणु क्षमताओं का उपयोग करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

हाल के घटनाक्रमः

2023 में, भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन कीअध्यक्षता की। जी-20 वैश्विक आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का समूह है । जी-20 शिखर सम्मेलन ने भारत को विश्व मंच पर अपना प्रभाव दिखाने , आर्थिक स्थिरता और सहयोग पर महत्वपूर्ण चर्चाओं में भागीदारी का अवसर प्रदान किया।

साथ ही भारत के अंतरिक्ष प्रयासों को भी अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली है। चंद्रयान-2 का अनुसरण करते हुए चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण , अंतरिक्ष अन्वेषण और अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, सूर्य के अध्ययन पर केंद्रित आदित्य एल-1 मिशन, अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की बढ़ती उपस्थिति पर प्रकाश डालता है।

वर्तमान थल सेना, वायु सेना और नौसेना की शक्तिः

अपनी व्यापक सैन्य शक्ति के संदर्भ में भारत की परमाणु नीति को समझने के लिए, अपनी थलसेना , वायुसेना और नौसेना में देश की वर्तमान क्षमताओं का आकलन करना आवश्यक है।

थल सेना:

भारत के पास लगभग 1.3 मिलियन सक्रिय सैनिक हैं जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी स्थायी सेनाओं में से एक बनाते हैं। इसके जमीनी बल आधुनिक टैंकों, तोपखाने और पैदल सेना के उपकरणों से सुसज्जित हैं। इसके अतिरिक्त, भारत स्वदेशी अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी सैन्य प्रौद्योगिकी के उन्नयन में सक्रिय रूप से प्रयासरत है।

वायु सेना:

भारतीय वायु सेना (आईएएफ) भारत की रक्षा का एक दुर्जेय घटक है। इसमें सुखोई एसयू-30 एमकेआई जैसे लड़ाकू विमानों और हाल ही में शामिल किए गए राफेल विमानों सहित विमानों का एक विशाल व विविध बेड़ा है। भारत उन्नत स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान भी विकसित कर रहा है, जो उसकी वायु सेना की क्षमताओं को बढ़ाता है। वायु सेना किसी भी संघर्ष के परिदृश्य में वायु श्रेष्ठता बनाए रखने और जमीनी बलों का समर्थन करने के लिए महत्वपूर्ण होती है।

नौसेना :

भारतीय नौसेना एक “ब्लू वाटर” नौसेना के रूप में विकसित हो गई है जो अपने क्षेत्रीय जल सीमा से कहीं आगे तक कार्यवाही करने में सक्षम है। यह विमान वाहक, विध्वंसक पोतों, फ्रिगेट पोतों और पनडुब्बियों सहित विभिन्न प्रकार के जहाजों का संचालन करती है। आईएनएस विक्रमादित्य का नौसेना में शामिल होना और आईएनएस विक्रांत का निर्माण नौसैनिक शक्ति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, भारत ने परमाणु-संचालित पनडुब्बियों में निवेश किया है, जिससे उसकी पानी के भीतर प्रतिरोध क्षमताएं मजबूत हुई हैं।

निष्कर्ष:

वर्षों से, भारत की परमाणु नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और जिम्मेदार परमाणु व्यवहार के प्रति इसकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। "नो फर्स्ट यूज़ सिद्धांत", जी-20 शिखर सम्मेलन, चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 मिशन जैसे हालिया घटनाक्रम और इसकी मजबूत सेना, वायु सेना और नौसेना अंतरराष्ट्रीय संबंधों के भविष्य को आकार देने में एवं वैश्विक स्थिरता की स्थापना में भारत की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाते हैं।

चूँकि भारत उभरती सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी परमाणु नीति पर स्थिर है, यह निरस्त्रीकरण, अप्रसार और वैश्विक सहयोग के सिद्धांतों के प्रति समर्पित है। वैश्विक शांति और सुरक्षा में अपने बहुमुखी योगदान के माध्यम से, भारत वैश्विक मंच पर एक प्रमुख देश के रूप में खड़ा है, जो एक सुरक्षित और अधिक स्थिर विश्व की दिशा में प्रयास कर रहा है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. भारत की परमाणु नीति के ऐतिहासिक विकास के प्रमुख घटक क्या हैं, और यह निरस्त्रीकरण की प्रारंभिक प्रतिबद्धता से लेकर "पहले उपयोग नहीं"(नो फर्स्ट यूज) सिद्धांत की घोषणा तक कैसे विकसित हुई है? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. पिछले कुछ वर्षों में भारत की परमाणु क्षमता कैसे उन्नत हुई है, जिसमें इसके परमाणु शस्त्रागार, कमांड और नियंत्रण बुनियादी ढांचे का विकास तथा इसकी निवारक मुद्रा को बढ़ाने में अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बियों की भूमिका शामिल है? (15 अंक, 250 शब्द)

Source - The Indian Express

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