सन्दर्भ-
हाल में 28 अक्टूबर 2025 को माओवादी संगठन में अहम आर्थिक भूमिका निभाने वाले माओवादी लीडर बंदी प्रकाश ने तेलंगाना में आत्मसमर्पण किया। इस घटना के ठीक पहले 15 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में 258 नक्सलियों ने भी आत्मसमर्पण किया। केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर जो कभी नक्सली आतंक का गढ़ माना जाता था, को नक्सली प्रभाव से मुक्त घोषित कर दिया। यह घटनाक्रम नक्सल समूहों की कमज़ोर होती पकड़ और भारत के संविधान में बढ़ते विश्वास को दर्शाता है। भारत सरकार 31 मार्च, 2026 तक नक्सलवाद का पूरी तरह से उन्मूलन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
पृष्ठभूमि
दशकों से नक्सलवाद या वामपंथी उग्रवाद (LWE) भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बना रहा है। यह आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में शोषण के खिलाफ एक किसान विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था। समय के साथ यह मध्य और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में फैले एक माओवादी विद्रोह में बदल गया, जिसे आमतौर पर ‘रेड कॉरिडोर’ के नाम से जाना जाता है।
इस आंदोलन की जड़ें गहरी सामाजिक-आर्थिक असमानता, भूमि अधिकारों की कमी और जनजातीय एवं ग्रामीण समुदायों की उपेक्षा में निहित हैं। सशस्त्र समूहों ने इस असंतोष का लाभ उठाकर छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों जैसे राज्यों के वनों वाले क्षेत्रों में समानांतर शासन स्थापित कर लिया।
रणनीति में बदलाव
पहले की प्रतिक्रियाएँ मुख्यतः पुलिस अभियानों पर केंद्रित थीं। नया मॉडल अधिक व्यापक है इसमें संवाद, प्रौद्योगिकी, क्षमता निर्माण और सामाजिक एकीकरण को जोड़ा गया है। केंद्र सरकार राज्यों के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि सुरक्षा उपायों के साथ-साथ सड़कों, स्कूलों, बैंकों और नौकरियों की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जा सके।
यह एक स्पष्ट बदलाव का संकेत है हमले के बाद प्रतिक्रिया देने से लेकर उन परिस्थितियों को सक्रिय रूप से समाप्त करने तक, जिनसे उग्रवाद पनपता है।
हिंसा में स्पष्ट गिरावट
2014 से 2024 के बीच नक्सली हिंसा की घटनाएँ आधे से भी अधिक घट गईं, लगभग 16,400 से घटकर 7,700 के आसपास।
• सुरक्षा कर्मियों की मौतें 1,851 से घटकर 509 रह गईं।
• नागरिकों की मौतें 4,766 से घटकर 1,495 रह गईं।
सिर्फ 2025 में ही सुरक्षा एजेंसियों ने 270 नक्सलियों को मार गिराया, 680 को गिरफ्तार किया और 1,200 से अधिक आत्मसमर्पण सुनिश्चित किए। छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में ब्लैक फॉरेस्ट जैसे अभियान और बड़े आत्मसमर्पण अभियान दर्शाते हैं कि विद्रोही तेजी से मुख्यधारा में लौटने को तैयार हैं।
सुरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाना
सुरक्षा तंत्र अब पहले से अधिक मज़बूत और स्मार्ट है। पिछले दशक में बलों ने 570 से अधिक सुदृढ़ पुलिस थाने और 336 नए कैंप बनाए हैं, जिससे उन क्षेत्रों में उपस्थिति संभव हुई है जो पहले दुर्गम थे। 2014 में जहां 126 जिले प्रभावित थे, वहीं अब केवल 18 जिले ही प्रभावित हैं और केवल 6 ही “गंभीर” श्रेणी में हैं।
68 नाइट-लैंडिंग हेलीपैड्स से गतिशीलता और प्रतिक्रिया समय बेहतर हुआ है, जबकि ड्रोन निगरानी, उपग्रह इमेजिंग और एआई आधारित डेटा एनालिटिक्स जैसे उन्नत उपकरण अब अभियानों को दिशा देते हैं। एजेंसियों के बीच वास्तविक समय में खुफिया जानकारी साझा करने से अब यादृच्छिक खोज अभियानों की जगह सटीक ऑपरेशन हो रहे हैं।
धन प्रवाह पर अंकुश
नक्सली समूहों को जीवित रखने वाले वित्तीय नेटवर्क को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया है। एनआईए और प्रवर्तन निदेशालय ने ₹50 करोड़ से अधिक की संपत्ति जब्त की है, जबकि राज्यों ने भी समान मूल्य की संपत्तियाँ फ्रीज़ की हैं। जबरन वसूली श्रृंखलाओं और फंडिंग चैनलों पर प्रहार कर सरकार ने न केवल उनकी भौतिक बल्कि मनोवैज्ञानिक ताकत भी कमजोर की है।
शहरी सहानुभूति रखने वाले जो कभी आंदोलन के वैचारिक और वित्तीय अंग थे, पर भी सख्त कार्रवाई हुई है, जिससे उनकी प्रचार फैलाने की क्षमता घट गई है।
राज्यों और बलों को सशक्त बनाना
चूंकि सुरक्षा मुख्यतः राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र ने स्थानीय पुलिस को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है।
• सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर (SRE) योजना के तहत राज्यों को ₹3,300 करोड़ से अधिक मिले हैं जो पिछले दशक की तुलना में 155% की वृद्धि है।
• स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम (SIS) के तहत खुफिया इकाइयों और विशेष बलों को ₹991 करोड़ से मज़बूत किया गया है।
• स्पेशल सेंट्रल असिस्टेंस (SCA) फंड के माध्यम से विकास संबंधी सहायता ₹3,700 करोड़ से अधिक रही है, जिसका उद्देश्य LWE जिलों में सेवाओं और बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करना है।
यह फंडिंग सुनिश्चित करती है कि राज्य केवल उग्रवाद से नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि उसकी पुनरावृत्ति को रोकने की क्षमता भी बना रहे हैं।
विकास-
केवल सुरक्षा से उग्रवाद समाप्त नहीं होगा, इसके लिए विकास भी महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों में नक्सल-प्रभावित जिलों में बुनियादी ढांचे को लेकर अभूतपूर्व प्रगति हुई है।
1. सड़क संपर्क:
पिछले दशक से अब तक 12,000 किमी से अधिक सड़कों का निर्माण हुआ है, जिससे आंतरिक गांव अब बाज़ारों, स्कूलों और अस्पतालों से जुड़ गए हैं।
2. मोबाइल और इंटरनेट पहुँच:
कमज़ोर कनेक्टिविटी ने कभी इन इलाकों को अलग-थलग रखा था। अब बहु-चरणीय परियोजनाओं के तहत हज़ारों 2G और 4G टावर लगाए गए हैं, जिससे समुदाय डिजिटल दुनिया से जुड़ रहे हैं।
3. वित्तीय समावेशन:
नए बैंक शाखाएँ, एटीएम और 37,000 से अधिक बैंकिंग संवाददाता सुनिश्चित करते हैं कि लोग अब नकद चैनलों पर निर्भर न रहें, जिन्हें पहले नक्सलियों ने नियंत्रित किया था। लगभग 6,000 डाकघर अब वित्तीय और डाक सेवाओं की अंतिम-मील डिलीवरी सुनिश्चित कर रहे हैं।
4. शिक्षा और कौशल विकास:
कौशल विकास योजना के तहत सरकार ने अधिकांश प्रभावित जिलों में आईटीआई और कौशल विकास केंद्रों को वित्त पोषित किया है। ये केंद्र स्थानीय युवाओं को ऐसे व्यवसायों में प्रशिक्षित करते हैं जो स्थायी रोजगार प्रदान करते हैं और उग्रवादी भर्ती की आकर्षण को कम करते हैं।
5. स्थानीय भर्ती:
2018 में बस्तरिया बटालियन का गठन जो मुख्यतः दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा के जनजातीय युवाओं से बनी है, स्थानीय आबादी और राज्य के बीच बढ़ते विश्वास को दर्शाता है।
क्षेत्र की पुनः प्राप्ति-
ऑपरेशन ऑक्टोपस, डबल बुल और चक्रबंध जैसे अभियानों ने कई लंबे समय से चले आ रहे माओवादी ठिकानों को पुनः प्राप्त करने में मदद की है। बूढ़ा पहाड़, पारसनाथ, बारमसिया, छकरबंधा और अबूझमाड़ में रणनीतिक प्रगति से पता चलता है कि सेना अब उन क्षेत्रों पर नियंत्रण कर रही है जो कभी अभेद्य थे।
सिर्फ 2024 में ही प्रमुख मुठभेड़ों में वरिष्ठ माओवादी नेताओं को समाप्त किया गया, जिससे उनके नेतृत्व को झटका लगा। इन क्षेत्रों में अब पुलिस कैंप, स्कूल और छोटे बाजार स्थापित हो रहे हैं जो सामान्य स्थिति के स्पष्ट संकेत है।
पुनर्वास और पुनः एकीकरण
सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति सख्ती और सहानुभूति के बीच संतुलन बनाती है। जो पूर्व कैडर आत्मसमर्पण करते हैं, उन्हें प्रदान किया जाता है:
• वरिष्ठ नेताओं के लिए ₹5 लाख,
• निचले कैडर के लिए ₹2.5 लाख, और
• कौशल प्रशिक्षण के दौरान तीन वर्षों तक ₹10,000 प्रति माह।
केवल 2025 में ही 500 से अधिक कैडरों ने आत्मसमर्पण किया, जबकि छत्तीसगढ़ में दो वर्षों में 1,000 से अधिक ने हथियार डाले। ये कार्यक्रम पूर्व उग्रवादियों को सामुदायिक कार्यकर्ता, उद्यमी और यहाँ तक कि सुरक्षा स्वयंसेवक बनने में मदद करते हैं जो परिवर्तन का सबसे प्रभावशाली प्रमाण है।
शेष चुनौतियाँ-
हालाँकि नक्सल की ताकत घट गई है पर यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है।
• कट्टरपंथी विचारधारा अभी भी बिखरे समूहों को राज्य के विरुद्ध प्रेरित करती है।
• शहरों में मौजूद अग्रिम संगठन कानूनी दायरे में रहकर प्रचार फैलाते और धन जुटाते हैं।
• घने वनों वाले दुर्गम इलाकों में निरंतर पुलिसिंग कठिन है।
• जनजातीय समुदायों और स्थानीय प्रशासन के बीच विश्वास की कमी विकास की गति को धीमा कर सकती है।
निष्कर्ष-
भारत का नक्सलवाद के विरुद्ध अभियान अब केवल बंदूक और गश्त तक सीमित नहीं है। यह भटके हुए नागरिकों से पुनः जुड़ने और राज्य में विश्वास बहाल करने का प्रयास है। हिंसा में तेज़ गिरावट, दुर्गम क्षेत्रों में शासन की वापसी और पूर्व कैडरों का पुनर्वास एक गहरे संरचनात्मक परिवर्तन के संकेत हैं।
यदि यह एकीकृत दृष्टिकोण जो सुरक्षा, विकास और विश्वास पर आधारित है, सतत रूप से लागू रहा, तो यह भारत के सबसे लंबे आंतरिक संघर्षों में से एक का अंत कर सकता है और स्थायी शांति में बदल सकता है।
| UPSC/PSC मुख्य प्रश्न: विकास सबसे प्रभावी उग्रवाद-विरोधी उपकरण है। वामपंथी उग्रवाद (LWE) क्षेत्रों में सरकार के एकीकृत दृष्टिकोण के संदर्भ में इस कथन का आकलन कीजिए। |
