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Daily-current-affairs / 15 Jul 2025

भारत में रोजगार और कौशल संकट की चुनौती से निपटने की आवश्यकता

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सन्दर्भ:

भारत, दुनिया की सबसे युवा आबादी वाले देशों में से एक है, जहाँ लाखों छात्र हर साल विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और अन्य कौशल विकास कार्यक्रमों से स्नातक होते हैं। लेकिन इस जनसांख्यिकीय लाभ के बावजूद, देश एक गहराते रोजगार संकट का सामना कर रहा है। कई शिक्षित युवा या तो बेरोजगार हैं या फिर असंगठित और निम्न गुणवत्ता वाले कार्यों में लगे हुए हैं, इसका कारण है कौशल का अभाव, प्रशिक्षण की कमी और उद्योग से जुड़ाव का अभावयह केवल बेरोजगारी का नहीं, बल्कि रोज़गारयोग्यता (Unemployability) का भी मुद्दा है जो शिक्षा, कौशल विकास और कार्यबल नियोजन में संरचनात्मक सुधारों की मांग करता है।

औपचारिक रोजगार की प्रवृत्तियाँ
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO), जो संगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सेवानिवृत्ति बचत प्रबंधन करता है, औपचारिक नौकरियों की स्थिति का एक प्रमुख संकेतक है।
• EPFO के पास 7 करोड़ से अधिक सदस्य हैं, जिससे यह दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा एजेंसियों में से एक बन गया है।
• 2019 के बाद के डेटा में महामारी के चलते नई सदस्यता में गिरावट देखी गई थी।
हालांकि, मार्च 2025 के आंकड़े संगठित क्षेत्र में श्रमिक भागीदारी में लगातार सुधार दर्शाते हैं।
• 18–25 वर्ष की आयु के युवा EPFO के नए सदस्यों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
इनमें से केवल 18–21 वर्ष की आयु समूह की भागीदारी हाल के महीनों में 18% से 22% के बीच रही है।
हालांकि यह औपचारिकता की ओर संकेत करता है, लेकिन इन नौकरियों की गुणवत्ता, वेतन, लाभ और दीर्घकालिक सुरक्षा पर गहराई से विश्लेषण की आवश्यकता है।

युवा बेरोजगारी: समस्या की व्यापकता
भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत की बेरोजगार आबादी में 83% युवा शामिल हैं।
चिंता की बात यह है कि माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोजगारों की हिस्सेदारी पिछले दो दशकों में लगभग दोगुनी हो गई है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2023–24 के अनुसार:
स्नातक होने के बाद केवल आधे युवा नौकरी के लिए तैयार हैं।
हर दो में से एक युवा के पास डिजिटल और व्यावसायिक कौशल नहीं हैं, जो आज की तेजी से बदलती तकनीकी दुनिया में जरूरी हैं।

डिजिटल कौशल की कमी
कई भारतीय युवाओं को बुनियादी डिजिटल दक्षताएँ भी नहीं आतीं:
• 75% एक अटैचमेंट के साथ ईमेल भेजने में असमर्थ हैं।
• 60% से अधिक साधारण फ़ाइल कार्यों (जैसे कॉपी-पेस्ट) नहीं कर सकते।
लगभग 90% युवाओं को स्प्रेडशीट में फॉर्मूला जैसी सामान्य चीज़ें नहीं आतीं।
यह डिजिटल निरक्षरता खतरनाक है क्योंकि स्वचालन, एआई और डिजिटल उपकरण अब लगभग हर उद्योग में अनिवार्य हो चुके हैं। इस ज्ञान के बिना भारत के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा घरेलू और वैश्विक दोनों ही नौकरियों के लिए तैयार नहीं है।

बदलता हुआ रोज़गार परिदृश्य
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट 2025” कई अवसरों और बदलावों को प्रस्तुत करती है:
• 2030 तक लगभग 170 मिलियन (17 करोड़) नई नौकरियाँ पैदा होंगी (वैश्विक रोजगार का 14%)
साथ ही, 92 मिलियन (9.2 करोड़) नौकरियाँ खत्म भी हो जाएंगी (8%)
शुद्ध लाभ होगा 78 मिलियन नौकरियों का, जो कुल रोजगार में 7% की वृद्धि है।
यह स्पष्ट करता है कि हमें रीस्किलिंग, अपस्किलिंग और कार्यबल को नए रोल्स के अनुसार ढालने की तुरंत ज़रूरत है। जो देश अपनी शिक्षा प्रणाली को इस बदलाव के अनुरूप ढाल पाएँगे, वही इस संक्रमण से लाभ उठा पाएँगे।

लगातार बनी असंगठितता और रोज़गार असुरक्षा
इन परिवर्तनों के बावजूद, भारत का श्रम बाजार अभी भी मुख्य रूप से असंगठित है:
लगभग 90% रोजगार असंगठित है।
• 2018 से वेतनभोगी और नियमित नौकरियों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है।
ठेका आधारित नौकरियाँ बढ़ी हैं, लेकिन इनमें अक्सर नौकरी सुरक्षा और सामाजिक संरक्षण की कमी होती है।
यह दर्शाता है कि आर्थिक विकास और गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के बीच disconnect है, विशेष रूप से युवाओं के लिए।

प्रमुख सरकारी पहलें
इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई कौशल विकास और रोजगार सृजन योजनाएँ शुरू की गई हैं:

कौशल विकास एवं प्रशिक्षण
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): उद्योग की ज़रूरतों से जुड़ा अल्पकालिक प्रशिक्षण।
राष्ट्रीय अप्रेंटिस प्रोत्साहन योजना (NAPS): कंपनियों को प्रशिक्षुओं को रखने के लिए प्रोत्साहन।
जन शिक्षा संस्थान (JSS): वंचित वर्गों के लिए गैर-औपचारिक कौशल प्रशिक्षण।
शिल्पी प्रशिक्षण योजना (CTS): आईटीआई के माध्यम से विभिन्न तकनीकी ट्रेड्स में प्रशिक्षण।

रोजगार सृजन
मनरेगा: ग्रामीण परिवारों को 100 दिनों का वेतनयुक्त कार्य।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): सूक्ष्म उद्यमों और स्वरोजगार को समर्थन।
दीन दयाल अंत्योदय योजना (DAY-NULM & DDU-GKY): शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सृजन।
उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना: ₹1.97 लाख करोड़ का प्रावधान, 5 वर्षों में 60 लाख नौकरियाँ सृजित करने की संभावना।

बजट 2024–25 मुख्य बिंदु
• ₹2 लाख करोड़ का पैकेज, 5 वर्षों में 4.1 करोड़ युवाओं को लाभ।
1 करोड़ युवाओं के लिए इंटर्नशिप योजना, ₹5,000 मासिक भत्ता।
20 लाख युवाओं को कौशल प्रशिक्षण, 1,000 आईटीआई का उन्नयन।

हालाँकि ये पहलें आशाजनक हैं, लेकिन असली चुनौती है उचित क्रियान्वयन, उद्योग से तालमेल और नतीजों की निगरानी

संरचनात्मक सुधार: भारत को क्या करना चाहिए
शिक्षा और रोजगार के बीच की खाई को भरने के लिए गहरे सुधार आवश्यक हैं:

1.        उद्योग और अकादमिक संस्थानों का एकीकरण
शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के बीच औपचारिक साझेदारी अनिवार्य करें।
संयुक्त पाठ्यक्रम, शिक्षक प्रशिक्षण और इंटर्नशिप की व्यवस्था करें।

2.      परिणाम आधारित जवाबदेही
केवल पास प्रतिशत या डिग्री नहीं, रोजगार परिणाम को ट्रैक करें।
मान्यता प्रणाली को प्लेसमेंट और वास्तविक नौकरी प्रदर्शन से जोड़ें।

3.      नवाचार को बनाएं आदत
हर स्कूल और कॉलेज में आइडिया लैब और टिंकर लैब अनिवार्य करें।
सॉफ्ट स्किल्स, विदेशी भाषाएँ और बहु-विषयक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करें।

4.     सीमाओं से परे सोचें
वैश्विक कौशल मांगों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल बनाएंविशेष रूप से यूरोप और जापान जैसे वृद्ध होते समाजों के लिए।
Link4Skills जैसी योजनाओं के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाएँ।

5.      शिक्षा को पेशेवर बनाना
भारतीय शिक्षा सेवा (Indian Education Services) की स्थापना करें, जिससे योग्य लोग शिक्षा नेतृत्व में आएँ।

6.     उद्योग विशेषज्ञों के लिए कक्षाएँ खोलें
पेशेवरों को शिक्षण में लाने के लिए रास्ते बनाएंताकि सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान के बीच की दूरी घटे।

निष्कर्ष
भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। एक ओर है जनसांख्यिकीय लाभ और दूसरी ओर है गहराता हुआ कौशल और रोजगार संकट
समस्या केवल नौकरी की कमी नहीं हैबल्कि शिक्षा प्रणाली और श्रम बाजार की ज़रूरतों के बीच मेल न होना है।

सरकारी योजनाएँ जैसे PMKVY, NAPS और PLI उपयोगी हैं, लेकिन इनकी सफलता ज़मीनी सच्चाई से मेल खाने पर निर्भर करती है।
इसी तरह बजट में घोषित इंटर्नशिप, आईटीआई उन्नयन और कौशल विकास कार्यक्रम नतीजों में बदलने चाहिए, केवल घोषणाओं में नहीं

यदि साहसिक सुधार, वैश्विक दृष्टिकोण और व्यावहारिक कौशल में निवेश किया जाए, तो भारत अपने युवाओं को भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार कर सकता है।
लेकिन यदि जल्द संरचनात्मक बदलाव नहीं किए गए, तो योग्यता और रोज़गारयोग्यता के बीच बढ़ती खाई भारत की प्रगति में बाधा बनती रहेगी।

मुख्य प्रश्न:
भारत की जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) को अक्सर एक रणनीतिक लाभ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि, युवाओं में लगातार बनी बेरोजगारी और रोजगार योग्य न होने की समस्या ने एक विरोधाभास (paradox) की स्थिति पैदा कर दी है। शिक्षा प्रणाली से प्राप्त होने वाले परिणामों और युवाओं की रोजगार-योग्यता के बीच इस असंतुलन के संरचनात्मक कारणों की चर्चा कीजिए।