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Daily-current-affairs / 09 Jun 2025

भारत में खुरधारी प्रजातियों का आकलन: बाघ संरक्षण और वन स्वास्थ्य पर प्रभाव

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संदर्भ:
भारत कई वन्य जीवों का घर है
, जिनमें हिरण, मृग, जंगली सुअर और गौर जैसे खुरधारी स्तनधारी (Ungulates) शामिल हैं। ये जानवर हमारे वनों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बाघों और अन्य बड़े मांसाहारी जीवों के लिए मुख्य भोजन भी हैं।

  • पहली बार वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है कि भारत के विभिन्न हिस्सों में इन जानवरों की कितनी संख्या है और उनकी जनसंख्या में क्या बदलाव हो रहे हैं। यह रिपोर्ट राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा 2022 की अखिल भारतीय बाघ गणना के दौरान एकत्र आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई है। अध्ययन से पता चला है कि कुछ प्रजातियाँ संरक्षित क्षेत्रों जैसे बाघ अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में अच्छी स्थिति में हैं, जबकि अन्य गंभीर खतरों का सामना कर रही हैं। आवास की हानि, शिकार और विकास परियोजनाएं इनके पतन का कारण बन रही हैं। इसका असर सिर्फ इन जानवरों पर ही नहीं, बल्कि बाघों, जंगलों और आस-पास रहने वाले लोगों पर भी पड़ता है।

खुरधारी जीव: वन खाद्य श्रृंखला की नींव
खुरधारी प्रजातियाँ बाघों और अन्य बड़े मांसाहारी जैसे तेंदुए और जंगली कुत्तों के लिए मुख्य शिकार आधार हैं। इनके चरने की आदतें वन की झाड़ियों और मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बना रहता है। इसलिए इनकी जनसंख्या की स्थिति को समझना संरक्षण योजना के लिए आवश्यक है।

इस आकलन में कैमरा ट्रैप छवियों, क्षेत्रीय सर्वेक्षणों, और मल तथा खुरों के निशानों जैसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों का उपयोग किया गया, ताकि पूरे भारत में खुरधारी प्रजातियों की घनत्व और वितरण को मापा जा सके।

मुख्य निष्कर्ष: प्रजातियों की प्रवृत्ति और क्षेत्रीय भिन्नताएँ

समृद्ध स्थिति में खुरधारी प्रजातियाँ

1.        चितल (धब्बेदार हिरण):
भारत की सबसे व्यापक और अधिक संख्या वाली खुरधारी प्रजाति। चितल की पारिस्थितिक अनुकूलता इसे विभिन्न आवासों में जीवित रहने में सक्षम बनाती है, जैसे कि वन किनारे और मानव-प्रभावित कृषि क्षेत्र। यह कई परिदृश्यों में बाघों के लिए सबसे महत्वपूर्ण शिकार प्रजाति बनी हुई है।

2.      सांभर (बड़ा हिरण):
विशेष रूप से मध्य भारत और पश्चिमी घाटों में बाघों के शिकार आधार का अहम हिस्सा। सांभर की संख्या स्थिर है क्योंकि यह घने जंगलों में अच्छी तरह से अनुकूलित है।

3.      गौर (भारतीय बाइसन):
संवेदनशील वर्ग में सूचीबद्ध, लेकिन पश्चिमी घाट, मध्य भारत, पूर्वी घाट और पूर्वोत्तर हिमालयी तलहटी में गौर की जनसंख्या अपेक्षाकृत स्वस्थ है। यह असमान भू-भाग वाले शांत वनों को पसंद करता है और वन गतिशीलता में योगदान देता है।

4.     नीलगाय और जंगली सूअर:
नीलगाय, भारत की सबसे बड़ी मृग प्रजाति, अत्यधिक अनुकूलनीय है और अक्सर कृषि क्षेत्रों में घुसपैठ करती है, जिससे किसानों से टकराव की स्थिति बनती है।
जंगली सूअर भी व्यापक और लचीली प्रजाति है, जो विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती है।

गिरावट की स्थिति में और संकटग्रस्त प्रजातियाँ

1.        हॉग डियर:
पहले घास के मैदानों और बाढ़ मैदानों में आम था, लेकिन अब यह प्रजाति दलदली आवासों के नुकसान के कारण काफी कम हो गई है। यह अब केवल तराई आर्क लैंडस्केप और ब्रह्मपुत्र बाढ़ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में ही बची है।

2.      बारहसिंगा (दलदली हिरण):
यह जल-आधारित विशेषज्ञ प्रजाति अपने अधिकांश ऐतिहासिक क्षेत्र से लुप्त हो गई है और अब केवल कुछ स्थानों जैसे कान्हा, दुधवा और काजीरंगा में पाई जाती है। हालांकि बांधवगढ़ और सतपुड़ा में पुनःस्थापना प्रयास सफल रहे हैं, फिर भी यह प्रजाति विशेष पारिस्थितिक तंत्र पर निर्भर होने के कारण अत्यधिक संवेदनशील बनी हुई है।

3.      जंगली भैंसा और पिग्मी हॉग:
इनकी आबादी छोटी और आनुवंशिक रूप से अलग-थलग है, जिससे ये इनब्रीडिंग और स्थानीय लुप्त होने के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।

भौगोलिक असमानता
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के वनों में खुरधारी प्रजातियों की संख्या समान रूप से वितरित नहीं है:

स्वस्थ जनसंख्या वाले क्षेत्र:

·         उत्तराखंड

·         पश्चिमी घाट

·         मध्य भारतीय पठार

·         पूर्वोत्तर भारत
इन क्षेत्रों में चितल, सांभर और गौर की बड़ी आबादी है, विशेष रूप से बाघ अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में, जहाँ सुरक्षा स्तर अधिक है।

चिंताजनक क्षेत्र:

·         ओडिशा

·         झारखंड

·         छत्तीसगढ़
इन क्षेत्रों में खुरधारी प्रजातियों की जनसंख्या खनन, अवसंरचना परियोजनाओं, वामपंथी उग्रवाद और स्थानीय समुदायों द्वारा शिकार जैसी गतिविधियों के कारण घट रही है।

इसके अलावा, बाघ अभयारण्यों से लगे वन्यजीव अभयारण्य और वन मंडल, जहाँ संरक्षण कमज़ोर है, वहाँ शिकार की संख्या काफी कम है, जिससे बाघ जैसे शिकारियों का समर्थन करना कठिन हो जाता है।

बाघ संरक्षण पर प्रभाव
भारत में 3,600 से अधिक जंगली बाघ हैं, जो वैश्विक जनसंख्या का 70% से अधिक है। इनकी संख्या बनाए रखने के लिए एक स्वस्थ और स्थिर शिकार आधार आवश्यक है। खुरधारी प्रजातियों में गिरावट से कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:

1.        बाघ-बहुल राज्यों पर दबाव:
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्य, जहाँ पहले से ही बड़ी संख्या में बाघ हैं, अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता के करीब पहुँच चुके हैं। परिणामस्वरूप, बाघ पूर्वी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ शिकार की संख्या कम है और आवास खंडित हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है।

2.      पशुधन पर हमला और मानव संघर्ष:
कम शिकार वाले क्षेत्रों में बाघ मवेशियों का शिकार करते हैं। इससे मनुष्यों द्वारा बदले की भावना से बाघों की हत्या होती है और संरक्षण प्रयासों को झटका लगता है।

3.      कृषि भूमि में बढ़ता संघर्ष:
जंगली सूअर और नीलगाय जैसे प्रजातियाँ अक्सर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष और नकारात्मक धारणाएँ बढ़ती हैं।

4.     खंडन और आनुवंशिक अलगाव:
सड़कें, रेलवे और बिजली लाइनें जैसे ढाँचागत विकास परियोजनाएं वन्यजीव गलियारों को काटती हैं, जिससे शिकार प्रजातियों और बड़े मांसाहारी जीवों की आवाजाही और आनुवंशिक विविधता प्रभावित होती है।

आगे की राह: संरक्षण रणनीतियाँ

1.        परिदृश्य-स्तरीय आवास पुनर्स्थापन
घास के मैदान, बाढ़ क्षेत्र और आर्द्रभूमियों जैसे पारिस्थितिक तंत्रों को पुनर्जीवित करें, जो बारहसिंगा और हॉग डियर जैसी प्रजातियों के लिए आवश्यक हैं।
वन्यजीव आवासों को कृषि भूमि या शहरी ढाँचों में बदलने से रोकें।

2.      संरक्षित क्षेत्रों से बाहर संरक्षण को मज़बूत करना
अभयारण्यों, बफर जोन और गलियारों को संरक्षण नेटवर्क में शामिल करें।
सीमा क्षेत्रों में समुदाय-आधारित संरक्षण मॉडल अपनाएँ ताकि शिकार और अतिक्रमण पर रोक लगाई जा सके।

3.      पुनर्वन्यकरण और प्राकृतिक आवास में प्रजनन
संवेदनशील प्रजातियों का प्रजनन संरक्षित प्राकृतिक आवासों में किया जाए, जहाँ उन्हें शिकारी से सुरक्षा मिले और पुनःस्थापित करने से पहले संख्या बढ़ाई जा सके।

4.     आनुवंशिक संपर्क सुनिश्चित करना
वन्यजीव गलियारों को बहाल करें और संरक्षित करें ताकि जानवरों की आवाजाही और आनुवंशिक विविधता बनी रहे।

5.      स्थानीय समुदायों की भागीदारी
वैकल्पिक आजीविका और प्रोत्साहन उपलब्ध कराएं ताकि वनों पर निर्भरता कम हो।
समुदायों को शिकार प्रजातियों और बाघों के पारिस्थितिक व आर्थिक महत्व के बारे में शिक्षित करें।

निष्कर्ष
भारत की खुरधारी प्रजातियों का स्वास्थ्य, वन की समग्र स्थिति और शिकारी प्रजातियों की स्थिरता का प्रमुख संकेतक है। जहाँ चितल और सांभर जैसी प्रजातियाँ सुरक्षित क्षेत्रों में फल-फूल रही हैं, वहीं बारहसिंगा और हॉग डियर जैसी प्रजातियाँ आवास क्षरण और खंडन के कारण संकट में हैं।

शिकार प्रजातियों का असमान वितरण बाघ संरक्षण के प्रयासों के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न करता है।

इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि अब केवल बाघ-केंद्रित संरक्षण से आगे बढ़ते हुए शिकार-आधारित, पारिस्थितिक तंत्र-केंद्रित दृष्टिकोणअपनाने की आवश्यकता है। ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे पूर्व-मध्य राज्य भविष्य में बाघों के विस्तार के लिए बड़ी संभावनाएँ रखते हैं लेकिन केवल तब जब वहाँ का शिकार आधार बहाल और सुरक्षित किया जाए। भारत के बाघों और इसके वनों का भविष्य काफी हद तक इन अक्सर अनदेखे शाकाहारी जीवों की स्थिति पर निर्भर करेगा।

मुख्य प्रश्न: "भारत में खुरधारी प्रजातियों का स्वास्थ्य बाघ संरक्षण प्रयासों की सफलता के लिए केंद्रीय है।" इस कथन के आलोक में, शिकारी प्रजातियों को बनाए रखने में शिकार आधार की भूमिका की समीक्षा कीजिए तथा वन पारिस्थितिकी तंत्र में पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने के उपाय सुझाइए।