संदर्भ:
भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने लंबे समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर वार्ताएँ पूरी कर ली हैं, जो उनके द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देता है। यह अंतिम समझौता तीन वर्षों से अधिक समय तक चली वार्ताओं और तेरह दौर की चर्चाओं के बाद हुआ है और दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की आगामी बैठक में औपचारिक रूप से अनुमोदित (ratify) किया जाएगा। यह समझौता व्यापार, निवेश, रोजगार सृजन और नवाचार के लिए उत्प्रेरक के रूप में देखा जा रहा है।
मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) को समझना:
मुक्त व्यापार समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच एक बाध्यकारी समझौता होता है, जिसका उद्देश्य अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं पर शुल्क, आयात कोटा और वरीयताओं को घटाना या समाप्त करना होता है।
प्राथमिक व्यापार समझौतों (PTAs) के विपरीत, जो कुछ सीमित वस्तुओं पर शुल्क में रियायत देते हैं, एफटीए व्यापक व्यापार श्रेणियों को शामिल करता है और लगभग पूर्ण शुल्क मुक्त व्यापार प्रदान करता है।
एफटीए के मुख्य उद्देश्य:
• सीमा शुल्क में कमी: आमतौर पर 90–95% व्यापारित वस्तुओं पर शुल्क समाप्त करने का लक्ष्य होता है।
• गैर-शुल्क बाधाओं को हटाना: व्यापार में रुकावट डालने वाले नियमों, मानकों और नौकरशाही अड़चनों को सरल या समाप्त करना।
• सेवाओं और निवेश का प्रवाह: सेवाओं के व्यापार को आसान बनाना और निवेश के लिए अनुकूल नियामक वातावरण तैयार करना।
एफटीए का महत्व:
- यह समझौता दोनों देशों के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से अत्यंत मूल्यवान है। यह उस समय आया है जब वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता और संरक्षणवाद की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
- भारत के लिए, यह एफटीए उस समय आया है जब उसका यूके के साथ व्यापार अधिशेष (trade surplus) बना हुआ है, जो निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकूल स्थिति है।
- 2024 में भारत यूके का 11वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था और यूके के कुल व्यापार का 2.4% भारत के साथ था। यूके सरकार ने अनुमान लगाया है कि इस समझौते के लागू होने के बाद द्विपक्षीय व्यापार में $34.05 बिलियन की वृद्धि हो सकती है।
- यूके के दृष्टिकोण से यह समझौता ब्रेक्जिट के बाद का सबसे बड़ा व्यापार समझौता है, खासकर जब पिछली सरकारों के (बोरिस जॉनसन और लिज़ ट्रस) प्रयास असफल रहे थे। यह समझौता लेबर पार्टी के नेता कीर स्टारमर की सरकार के समय हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक निर्णायक बैठक हुई।
व्यापार समझौते की प्रमुख विशेषताएं:
हालांकि समझौते का पूरा विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन आधिकारिक वक्तव्यों में कई महत्वपूर्ण बिंदु सामने आए हैं:
• शुल्क में कटौती:
o भारत 90% उत्पादों पर शुल्क में कटौती करेगा, जिनमें से 85% पूरी तरह से दस वर्षों में शुल्क मुक्त हो जाएंगे।
o यूके भारत से आयातित 99% वस्तुओं पर शुल्क समाप्त कर देगा।
o भारतीय निर्यातकों को वस्त्र, चमड़ा, जूते, ऑटो पार्ट्स, इंजीनियरिंग उत्पाद, रत्न और आभूषण जैसे क्षेत्रों में लाभ होने की संभावना है।
• मद्यपान और ऑटोमोबाइल क्षेत्र:
o व्हिस्की और जिन पर शुल्क 150% से घटाकर 75% किया जाएगा, जो दस वर्षों में और घटकर 40% हो जाएगा।
o ऑटोमोबाइल पर पहले 100% से अधिक शुल्क था, जो अब घटाकर 10% किया जाएगा, हालांकि यह कोटा सीमाओं के अधीन रहेगा।
• सेवाएं और पेशेवर गतिशीलता:
समझौते में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, डबल कॉन्ट्रिब्यूशन कन्वेंशन के अंतर्गत भारत से यूके में अस्थायी रूप से भेजे गए कामगारों और उनके नियोक्ताओं को तीन वर्षों तक सामाजिक सुरक्षा योगदान (social security contribution) से छूट मिलेगी।
यह प्रावधान आईटी, वित्तीय, पेशेवर और शैक्षिक सेवाओं में काम कर रहे पेशेवरों की गतिशीलता को बढ़ावा देगा।
आर्थिक और क्षेत्रीय प्रभाव:
वस्त्र क्षेत्र, जिसे वस्त्र निर्यात संवर्धन परिषद (AEPC) द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है, ने निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि की आशा जताई है। वर्तमान में भारत को बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जिन्हें पहले से ही यूके बाज़ार में शुल्क-मुक्त पहुंच प्राप्त है। शुल्क हटने से भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ेगी, विशेष रूप से क्योंकि यूके से इस क्षेत्र में आयात बहुत कम है।
रत्न और आभूषण क्षेत्र भी व्यापार मात्रा में वृद्धि की उम्मीद कर रहा है। रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (GJEPC) के अनुसार, इस क्षेत्र में निर्यात अगले दो वर्षों में $2.5 बिलियन तक बढ़ सकता है।
वाणिज्य मंत्रालय के ट्रेडस्टैट डेटाबेस के अनुसार, भारत से यूके को निर्यात होने वाले अन्य प्रमुख उत्पादों में शामिल हैं:
• दवाइयाँ
• कुर्ती और गैर-कुर्ती वस्त्र
• इलेक्ट्रिकल मशीनरी और उपकरण
संभावित चुनौतियाँ:
• कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM):
CBAM भारतीय निर्यात जैसे स्टील और एल्युमिनियम पर उनके कार्बन उत्सर्जन के आधार पर शुल्क लगा सकता है, जबकि ब्रिटिश उत्पाद भारत में बिना किसी समान प्रतिबंध के प्रवेश कर सकते हैं। यह असंतुलन इस समझौते में संबोधित नहीं किया गया है, जिससे भारतीय निर्माताओं को नुकसान हो सकता है।
• निवेशक-राज्य विवाद निपटान तंत्र (ISDS):
हालाँकि यूके से भारत में $23.3 बिलियन और भारत से यूके में $17.5 बिलियन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है, फिर भी इस समझौते में निवेशक सुरक्षा का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। इससे व्यापार विवादों और कानूनी समाधान की प्रक्रिया को लेकर चिंता उत्पन्न होती है।
सार्वजनिक खरीद तक पहुँच
एक अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान यूके की कंपनियों को भारत के सार्वजनिक खरीद बाज़ार तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे वे सरकारी अनुबंधों के लिए अनुकूल शर्तों पर बोली लगा सकेंगी। जहाँ यह प्रतिस्पर्धात्मक अवसर प्रदान करता है, वहीं यह आयात पर निर्भरता बढ़ने और घरेलू औद्योगिक संप्रभुता के क्षरण को लेकर आशंका भी उत्पन्न करता है।
भारत के लिए एफटीए का रणनीतिक महत्व
• निवेश सुविधा:
एफटीए नियामकीय स्पष्टता प्रदान करते हैं जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ता है। हाल ही में हुए भारत-ईएफटीए समझौते से अगले 15 वर्षों में 100 अरब डॉलर का निवेश आने की संभावना है, जो मेक इन इंडिया और रोजगार सृजन को सहयोग देगा।
• आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण:
एफटीए स्रोतों की विविधता लाकर विशेष क्षेत्रों पर निर्भरता घटाते हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए ECTA जैसे समझौते इलेक्ट्रिक वाहन और ग्रीन तकनीक के लिए आवश्यक खनिजों तक पहुंच प्रदान करते हैं।
• बाजार तक विस्तारित पहुंच:
एफटीए भारतीय उत्पादों और सेवाओं को साझेदार देशों के बाज़ारों में वरीयता प्राप्त प्रवेश देते हैं। उदाहरण के लिए, भारत- यूएई CEPA से वस्त्र, इंजीनियरिंग उत्पाद और आभूषण के निर्यात में 11.8% की वृद्धि हुई।
• प्रौद्योगिकी सहयोग:
विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ हुए एफटीए तकनीकी हस्तांतरण का अवसर प्रदान करते हैं। भारत-जापान CEPA और भारत-ईएफटीए जैसे समझौते उन्नत विनिर्माण और डिजिटल नवाचार के क्षेत्रों में सहयोग को दर्शाते हैं।
• सेवाओं के क्षेत्र में वृद्धि:
एफटीए सेवा क्षेत्र को उदार बनाने में सहायक होते हैं, जिससे पेशेवरों की गतिशीलता, योग्यता की पारस्परिक मान्यता और वीज़ा नियमों में सरलता आती है। ऑस्ट्रेलिया और UAE के साथ हुए एफटीए ने विशेष रूप से IT/ITeS निर्यात को बढ़ाया और भारतीय पेशेवरों के लिए नए अवसर पैदा किए।
निष्कर्ष
भारत–यूके एफटीए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है जो दोनों लोकतंत्रों के आर्थिक संबंधों को नया आकार दे सकती है। यह समझौता व्यापार, निवेश और पेशेवर गतिशीलता के लिए अवसर तो खोलता है, लेकिन इसके साथ-साथ कुछ संवेदनशील क्षेत्रों के लिए जोखिम भी उत्पन्न करता है। औद्योगिक नीति का समन्वय, पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय और संतुलित बाज़ार पहुँच इस समझौते को समावेशी और टिकाऊ विकास की दिशा में सफल बनाने के लिए आवश्यक होंगे।
मुख्य प्रश्न: “एफटीए विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए दोधारी तलवार हैं।”भारत–यूके एफटीए के संदर्भ में, भारत की सार्वजनिक खरीद और घरेलू उद्योगों पर संप्रभुता के लिए एफटीएs द्वारा प्रस्तुत अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। |