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Daily-current-affairs / 24 Nov 2025

सतत स्वच्छता की ओर बढ़ता भारत: शौचालय उपलब्धता से सतत अपशिष्ट प्रबंधन तक

सतत स्वच्छता की ओर बढ़ता भारत: शौचालय उपलब्धता से सतत अपशिष्ट प्रबंधन तक

भूमिका:

स्वच्छता, मानव गरिमा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के सबसे मूल सूचकों में से एक है। स्वच्छ शौचालय तक पहुंच लोगों को जलजनित रोगों से बचाती है, बच्चों की शिक्षा का समर्थन करती है और महिलाओं तथा लड़कियों के लिए सुरक्षित स्थान सुनिश्चित करती है। तीव्र शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के युग में, स्वच्छता एक विकासात्मक प्राथमिकता और शासन संबंधी चुनौती दोनों के रूप में उभरी है।

    • हाल ही में 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया गया जो वैश्विक स्वच्छता संकट और सभी के लिए सुरक्षित शौचालय प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाता है। यह सतत विकास लक्ष्य 6 (SDG) की भावना को भी प्रतिबिंबित करता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक जल और स्वच्छता की उपलब्धता और सतत प्रबंधन सुनिश्चित करना है। पिछले दशक में भारत ने स्वच्छता को एक राष्ट्रीय मिशन बनाया है और अपने सुधारों के पैमाने के लिए वैश्विक पहचान प्राप्त की है।  

स्वच्छ भारत मिशन का विकास:

2 अक्टूबर 2014 को लॉन्च किए गए स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य खुले में शौच को समाप्त करना और देशभर में स्वच्छता मानकों को परिभाषित करना था। इसके दो घटक स्वच्छ भारत मिशन (SBM)-ग्रामीण और स्वच्छ भारत मिशन (SBM)-शहरी क्रमशः ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता अवसंरचना में सुधार के लिए तैयार किए गए थे।

एसबीएम चरण I: एक राष्ट्रव्यापी परिवर्तन

पहले चरण ने शौचालय निर्माण और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया कि प्रत्येक परिवार सुरक्षित स्वच्छता सुविधा तक पहुंच रखता हो। परिणाम अभूतपूर्व थे:

• भारत ने अक्टूबर 2019 में खुद को खुले में शौच मुक्त (ODF) घोषित किया, जब सभी गांवों, जिलों और राज्यों ने ODF स्थिति प्राप्त की।
• WHO के एक अध्ययन ने बेहतर स्वच्छता को 2014 की तुलना में 2019 में 3 लाख कम दस्त से होने वाली मौतों से जोड़ा।
• ODF गांवों में परिवारों ने स्वास्थ्य खर्चों पर प्रति वर्ष लगभग ₹50,000 की बचत की।
खुले में शौच कम होने से भू-जल प्रदूषण स्तर में कमी आई।
• 93% से अधिक महिलाओं ने शौचालय उपलब्धता के कारण स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस किया।

यह मिशन तेजी से वैश्विक संदर्भ बिंदु बन गया और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने स्वच्छता सुधार में भारत की उपलब्धियों को बार-बार एक मॉडल के रूप में रेखांकित किया।

एसबीएम चरण II: उपलब्धता से स्थिरता की ओर:

शौचालय निर्माण में सफलता ने एक नई चुनौती प्रस्तुत की- दीर्घकालिक संचालन, रखरखाव और स्वच्छता सुनिश्चित करना। 2020 में लॉन्च किया गया SBM-ग्रामीण चरण II ODF स्थिति को बनाए रखने और व्यापक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ विकसित करने पर केंद्रित है।

ODF प्लस गांव क्या है?

एक ODF प्लस गांव वह होता है जो खुले में शौच रोकना जारी रखता है और साथ ही ठोस एवं तरल अपशिष्ट का प्रबंधन करता है तथा दृश्य स्वच्छता बनाए रखता है। इसके तीन स्तर हैं:

1.        ओडीएफ प्लस एस्पायरिंग – ODF स्थिति बनाए रखता है; ठोस या तरल अपशिष्ट प्रबंधन में से कोई एक मौजूद होता है।

2.      ओडीएफ प्लस राइजिंग – ODF स्थिति बनाए रखता है; दोनों प्रणालियाँ मौजूद होती हैं।

3.      ओडीएफ प्लस मॉडल – ODF स्थिति बनाए रखता है; दोनों अपशिष्ट धाराओं का प्रबंधन करता है, दृश्य स्वच्छता बनाए रखता है और IEC संदेश प्रदर्शित करता है।

ग्रामीण प्रगति:

भारत के 95% से अधिक गांवों को ODF प्लस घोषित किया गया है।
• ODF प्लस गांवों की संख्या दिसंबर 2022 में 1 लाख से बढ़कर 5.67 लाख हो गई।
• 4,85,818 गांवों ने ODF प्लस मॉडल स्थिति हासिल की है।

यह प्रगति सरकारी नेतृत्व से समुदाय आधारित स्वामित्व की दिशा में बदलाव दर्शाती है। ग्रामीण क्षेत्र अब अल्पकालिक अभियानों से आगे बढ़कर दीर्घकालिक स्वच्छता की ओर बढ़ रहे हैं।

शहरी स्वच्छता: अवसंरचना विस्तार और प्रणाली सुधार:

शहरी भारत को घनी आबादी, अनौपचारिक बस्तियों और भारी मात्रा में अपशिष्ट जैसी अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। SBM-शहरी के अंतर्गत शहरों ने स्वच्छता कवरेज में उल्लेखनीय वृद्धि की है।

शहरी उपलब्धियाँ

• 4,692 शहर ODF हैं, 4,314 ODF+ और 1,973 ने ODF++ प्रमाणन प्राप्त किया है।
• 63.7 लाख घरेलू शौचालयों के निर्माण के साथ लक्ष्य का 108% हासिल किया गया।
सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय निर्माण 125% तक पहुंचा, जहां 6.38 लाख इकाइयाँ बनाई गईं।

अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमता

भारत की अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमता 2014 के 18% से बढ़कर 2021 में 70% हो गई। इस बदलाव से लाखों टन कचरा वैज्ञानिक रूप से निपटाया जा रहा है, जिससे खुले में डंपिंग कम हुई है।

शहरों ने तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया है—GPS सिस्टम, डिजिटल निगरानी और डेटा-आधारित योजना ने दक्षता और जवाबदेही बढ़ाई है।

प्रमाणन स्तर:

ODF+शौचालयों की कार्यक्षमता और रखरखाव पर केंद्रित।
ODF++वैज्ञानिक मल-कीचड़ और सीवेज प्रबंधन जोड़ता है।
Water+वे शहर जो अपशिष्ट जल का उपचार और पुन: उपयोग करते हैं।

अब तक:
• 3,000 से अधिक शहर ODF+
• 950 से अधिक शहर ODF++
• 64 शहर Water+ स्थिति प्राप्त

स्वच्छता नेतृत्व के उदाहरण:

इंदौर: शहरी स्वच्छता का मॉडल

इंदौर कई वर्षों से राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग में शीर्ष पर है। इसकी सफलता के प्रमुख तत्व हैं:
• 100% घर-घर कचरा संग्रहण
• 98% स्रोत पर कचरा पृथक्करण
डंपसाइट्स का पूर्ण उन्मूलन
मजबूत नगरपालिका नेतृत्व और सक्रिय नागरिक भागीदारी

इंदौर का उदाहरण दिखाता है कि वैज्ञानिक अपशिष्ट प्रबंधन घनी आबादी वाले शहरों में भी संभव है।

नवी मुंबई: तकनीक और परिपत्र अर्थव्यवस्था

नवी मुंबई ने नवाचार और सामुदायिक भागीदारी को जोड़ा है:
भारत की पहली टेक्सटाइल रिकवरी सुविधा संचालित करता है।
• 99.9% सीवरेज नेटवर्क कवरेज और 100% अपशिष्ट जल उपचार।
उपचारित पानी का 30% से अधिक पुन: उपयोग।
नियमित सामुदायिक स्वच्छता अभियान।

इन पहलों से कचरे को संसाधन में बदलने वाली परिपत्र अर्थव्यवस्था बनती है।

लगातार चुनौतियाँ:

    • कमज़ोर पृथक्करण व्यवहार:
      आधिकारिक आंकड़ों में भले ही 85% कचरा पृथक्करण का दावा किया गया हो, लेकिन कई शहरों में वास्तविक प्रदर्शन इससे काफी कम है। उदाहरण के लिए: गुरुग्राम में ज़मीनी स्तर पर वास्तविक पृथक्करण सिर्फ़ 10% है। उचित पृथक्करण के बिना, आगे की अपशिष्ट प्रसंस्करण प्रणाली विफल हो जाती है।
    • कचरा संग्रह में असमानता:
      कुछ इलाकों में अभी भी विश्वसनीय दैनिक कचरा संग्रहण की कमी है, जिससे निवासियों को निजी कचरा कलेक्टर रखने या अवैध रूप से कचरा फेंकने पर मजबूर होना पड़ता है। कई बार वाहनों की डिजाइन भी पृथक कचरे को ढोने के अनुरूप नहीं होती, जिससे समस्या और बढ़ती है।
    • व्यवहारगत बाधाएँ:
      स्वच्छता केवल अवसंरचना का विषय नहीं है, यह मानव व्यवहार पर अत्यधिक निर्भर है। आदतें, सुविधा और सामाजिक मान्यताएँ यह निर्धारित करती हैं कि लोग शौचालयों का सही उपयोग करते हैं या घर पर कचरा पृथक्करण करते हैं या नहीं।

शहरी झुग्गियों में असमानता:

गैर-मान्यता प्राप्त झुग्गियों के 51% निवासियों को बेहतर स्वच्छता उपलब्ध नहीं है।
जाति और वर्ग आधारित बाधाएँ सुरक्षित शौचालयों तक पहुंच को सीमित करती हैं।
अनौपचारिक बस्तियों को सीमित स्थान और अस्पष्ट भूमि अधिकारों के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह:

    • एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन:
      शहरों को पृथक्करण, संग्रहण, परिवहन और प्रसंस्करण के लिए मानकीकृत प्रणालियों की आवश्यकता है। आगामी त्वरित डंपसाइट सुधार कार्यक्रम, जो 15 अगस्त से शुरू होगा, का लक्ष्य पुराने कचरा स्थलों को एक वर्ष में साफ करना और उस भूमि को उपयोगी उद्देश्यों के लिए मुक्त करना है।
    • व्यवहार परिवर्तन 2.0:
      केवल जनसंचार अभियान पर्याप्त नहीं हैं। स्थानीय जागरूकता कार्यक्रम, युवाओं की भागीदारी और पुनर्चक्रण के लिए प्रोत्साहन स्वच्छता को एक स्थायी आदत बना सकते हैं।
      • हालिया स्वच्छ सर्वेक्षण संस्करणों में “Waste is Best” विषय इस बात को रेखांकित करता है कि परिपत्र प्रथाएँ आर्थिक मूल्य रखती हैंग्रीन रोजगार, उद्यमिता और संसाधन पुनर्प्राप्ति के रूप में।
    • समान पहुंच और कार्यकर्ता कल्याण:
      सफाईमित्र सुरक्षित शहर के रूप में मान्यता प्राप्त शहर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि स्वच्छता कार्यकर्ताओं को सुरक्षा उपकरण, मशीनीकरण और गरिमापूर्ण कार्य वातावरण मिले।
      • अब समावेशी नीतियों को अप्राप्त झुग्गी समूहों को लक्षित करना होगा, भूमि अधिकार संबंधी चुनौतियों का समाधान करना होगा और ऐसी सुविधाएँ डिजाइन करनी होंगी जो घनी शहरी बस्तियों में फिट हो सकें।

निष्कर्ष:

भारत की स्वच्छता यात्रा अब दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य परिवर्तन में से एक बन चुकी है। देश अब शौचालय निर्माण से आगे बढ़कर स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन, सीवेज उपचार और व्यवहारगत परिवर्तन की दिशा में काम कर रहा है। स्वच्छ भारत मिशन, अमृत योजना और जल जीवन मिशन ने स्वच्छता को साझा जिम्मेदारी बना दिया है। भविष्य की दिशा अब स्वच्छ, समावेशी और पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित गांवों और शहरों की ओर है।

UPSC/PCS Main Question: शहरी भारत में स्वच्छता का संकट केवल तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि सामाजिक असमानता, संस्थागत क्षमता और नीति कार्यान्वयन की चुनौतियों का सम्मिलित परिणाम है।इस कथन के आलोक में खुले में शौच मुक्त प्लस (ODF Plus) ढांचे की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए।