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Daily-current-affairs / 13 Jan 2024

भारत की सामरिक रणनीति: बदलते वैश्विक परिदृश्य में ख्यातिप्राप्त सुरक्षा का नया रूप

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संदर्भ:

     वर्ष 2023 में भारत द्वारा की जाने वाली जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी और उद्घाटन सत्र के संबोधन ने, केवल भारत के भू-राजनीतिक कौशल को प्रदर्शित किया है, बल्कि लोकतांत्रिक विदेश नीति के एक नए युग की शुरुआत भी की है। इस शिखर सम्मेलन ने वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को मजबूत किया, ख्यातिप्राप्त सुरक्षा-साख को समृद्ध करने हेतु इसमें एक आदर्श बदलाव को भी रेखांकित किया है। प्रोफेसर निकोलस जे. कल (Professor Nicholas J. Cull) की सुरक्षा की सम्मिश्रित अवधारणा; जिसमें आक्रामक और रक्षात्मक दोनों घटक शामिल हैं, एक ऐसा दृष्टिकोण प्रदान करती है जिसके माध्यम से वैश्विक परिदृश्य में भारत के रणनीतिक सुरक्षा हितों को आसानी से समझा जा सकता है।

ख्यातिप्राप्त सुरक्षा(Reputational Security ) की अवधारणा:

     प्रोफेसर निकोलस जे. कल द्वारा परिभाषित ख्यातिप्राप्त सुरक्षा, एक ऐसी अवधारणा है; जो इस बात पर आधारित है कि एक राष्ट्र को वैश्विक स्तर पर कितनी सुरक्षा प्राप्त है।  यह इस बात पर भी निर्भर करता है, कि इसे व्यापक वैश्विक समुदाय के द्वारा कितना महत्त्व दिया जाता है। प्रो.कल की इस अवधारणा में, सुरक्षा के आक्रामक और रक्षात्मक दोनों घटक शामिल होते हैं।  साथ ही इस प्रतिष्ठा निर्माण की प्रक्रिया में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सुरक्षा प्रतिष्ठा को आकार देने के लिए की जाने वाली सभी रणनीतिक कार्रवाईयों को भी शामिल किया जाता है।

     प्रोफेसर कल का तर्क है, कि प्रतिष्ठित सुरक्षा पारंपरिक सुरक्षा दृष्टिकोणों से अलग है। यह मुख्य रूप से सैन्य शक्ति के साथ अन्य तत्वों पर भी आधारित हैं। उनका मानना ​​है, कि प्रतिष्ठित सुरक्षा एक राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिक स्थायी और प्रभावी तरीका हो सकता है।

1.    आक्रामक घटकः प्रतिष्ठा संबंधी सुरक्षा के आक्रामक पहलू में; विदेशों में किसी राष्ट्र की पहचान, मूल्यों और उद्देश्यों से संबंधित प्रभावी आख्यानों का निर्माण और प्रसार करना शामिल है। यह अनिवार्य रूप से किसी देश के सकारात्मक पहलुओं और वैश्विक समुदाय में इसके योगदान को उजागर करती हैं। इसके माध्यम से, एक राष्ट्र अपनी छवि और प्रभाव को विश्व में बढ़ा सकता है, जो सकारात्मक राजनयिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक परिणामों की वृद्धि में योगदान कर सकता है।

2.    रक्षात्मक घटकः  प्रतिष्ठित सुरक्षा के रक्षात्मक घटक से सम्बंधिते पहली अवधारणा में, किसी राष्ट्र में व्याप्त नकारात्मक पहलुओं को समाप्त कर एक ऐसे समाज का निर्माण करना शामिल है, जो सराहनीय हो। इसका अर्थ है, देश की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाले कारकों को कम करने के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों जैसी आंतरिक चुनौतियों का समाधान करना। दूसरा रक्षात्मक आयाम सूचना वातावरण से संबंधित है। एक प्रतिस्पर्धी डिजिटल दुनिया में, राष्ट्रों को नकारात्मक या गलत धारणाओं से बचने के लिए काम करना चाहिए। इसमें गलत तथा भ्रामक सूचना और नकारात्मक आख्यानों से सुरक्षा के लिए सूचना और संचार रणनीतियों का सक्रिय रूप से प्रबंधन करना शामिल है।

3.    प्रभुत्व के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष: प्रो. कल इस बात पर जोर देते हैं, कि प्रतिष्ठा और वैश्विक नेतृत्व के लिए अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में सदैव से ही प्रतिष्ठा स्थापना की चाह केंद्र में रही है। एक राष्ट्र केवल अपने लक्ष्य के रूप में, बल्कि व्यापक आर्थिक-सामाजिक एवं राजनयिक सुरक्षा और भू-राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में भी सकारात्मक प्रतिष्ठा के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। अन्य बातों के अलावा समकालीन वैश्विक परिदृश्य में, जहां सभी सूचनाएं तेजी से और व्यापक रूप से प्रसारित होती है; किसी देश में निवेश को आकर्षित करने, गठबंधन बनाने और वैश्विक मंच पर अपने प्रभुत्व स्थापित करने में सकारात्मक प्रतिष्ठा अनिवार्य है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है, कि ख्यातिप्राप्त सुरक्षा एक बहुआयामी अवधारणा है, जिसमें विदेशों में किसी राष्ट्र की सकारात्मक धारणाओं को आकार देने के लिए किये जाने वाले सभी सक्रिय उपाय शामिल होते हैं।, साथ ही साथ इसमें आंतरिक चुनौतियों का समाधान करने और नकारात्मक व्याख्याओं से बचने के लिए सूचना वातावरण का प्रबंधन करने हेतु रक्षात्मक प्रयास शामिल है। इसे प्रभुत्व और वैश्विक नेतृत्व के लिए व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में एक प्रमुख तत्व के रूप में देखा जाता है।

 

ख्यातिप्राप्त सुरक्षा में रणनीतिक बदलाव:

     'विश्व गुरु' से 'विश्व मित्र' में परिवर्तन:

  भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर सहित अन्य भारतीय नेताओं ने, भारत की वैश्विक भूमिका में जानबूझकर बदलाव की योजना बनाई है। पारंपरिक 'विश्व गुरु' की अवधारण से हटकर भारत अब 'विश्व मित्र' की पहचान बनाने के लिए प्रयासरत है और खुद को सभी देशों के मित्र के रूप में स्थापित करना चाहता है। यह परिवर्तन वैश्विक रूप से भारत के सहयोगी दृष्टिकोण को रेखांकित करता है। भारत का यह दृष्टिकोण वैक्सीन राजनयिक और 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' शीर्षक वाले जी20 सम्मलेन के माध्यम से स्पष्टतः परिलक्षित हुआ था। सामूहिक विकास और समग्र हितों को ध्यान में रखकर, भारत अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में व्याप्त अंतर को भी समाप्त करना चाहता है। यह वैश्विक प्रतिष्ठा की स्थापना हेतु एक महत्वपूर्ण कारक है।

     जलवायु परिवर्तन नेतृत्व और व्यवहार परिवर्तन:

  जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता केवल अलंकारिक नहीं है; बल्कि यह यह उसके मूर्त कार्यों में भी दिखती है। इस संदर्भ में मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) पहल स्थायी जीवन के लिए व्यवहार परिवर्तनों पर जोर देते हुए भारत के सक्रिय रुख को दर्शाती है। सामान्य जरूरतों के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करने से लेकर संयुक्त राष्ट्र में सौर पैनलों को उपहार में देने तक, भारत खुद को वैश्विक स्तर पर जलवायु-जागरूक प्रथाओं के नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर रहा है। यह केवल भारत के घरेलू प्रयासों के साथ संरेखित है, बल्कि कम विकसित देशों के लिए पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाने हेतु एक प्रेरणा के रूप में भी काम करता है। भारत का यह प्रयास एक जिम्मेदार वैश्विक नेता के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत करता है।

      वैश्विक दक्षिण और समावेशी राजनय:

  जी20 शिखर सम्मेलन से पहले, भारत ने वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी की, जिसमें 125 देशों को अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए शामिल किया गया था। ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, ' वैश्विक दक्षिण' की स्थापना विकासशील देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। समावेशिता, जैसा कि जी20 में अफ्रीकी संघ के समावेश से प्रदर्शित होता है; भारत के सामूहिक दृष्टिकोण को सशक्त बनाता है। एक कैलेंडर वर्ष में दो शिखर सम्मेलनों के माध्यम से वैश्विक दक्षिण में भारत की पहुंच; विभिन्न देशों की जरूरतों और आकांक्षाओं के साथ खुद को संरेखित करके, प्रतिष्ठित सुरक्षा बढ़ाने में इसके समर्पित प्रयास को दर्शाती है।

नीतिगत पहल और सतत विकासः

     संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) और राष्ट्रीय पहलः

   संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एस. डी. जी.) को प्राप्त करने के लिए भारत, स्वच्छ भारत मिशन और एसडीजी के साथ संरेखित महत्वाकांक्षी जिला कार्यक्रम जैसी नीतिगत पहलों को अपना रहा है। नीति आयोग इन लक्ष्यों की दिशा में उनकी प्रगति के आधार पर राज्यों को वर्गीकृत करते हैं। सामाजिक चुनौतियों से निपटने और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ सहयोग आदि भारतीय प्रतिबद्धता, एसडीजी को प्राप्त करने के इसके व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो एक जिम्मेदार वैश्विक नेता के रूप में भारतीय प्रभुत्व को शक्ति प्रदान करती है।

     बहुपक्षवाद में निवेशः

   बहुपक्षवाद पर भारत का जोर इसकी विदेश नीति की आधारशिला है। बातचीत और सहयोग के प्रस्तावक के रूप में खुद को स्थापित करके, भारत वैश्विक चुनौतियों की जटिलता को पहचानता है। बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता केवल एक नीतिगत विकल्प नहीं है, बल्कि भारत को एक जिम्मेदार वैश्विक नेता के रूप में प्रदर्शित करने का एक रणनीतिक प्रयास भी है। यह दृष्टिकोण इस समझ के साथ संरेखित होता है, कि कोई भी राष्ट्र या व्यक्ति अकेले दुनिया की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता है। इसके लिए सामूहिक सोच और समस्या-समाधान की आवश्यकता होती है।

     सुरक्षा का लोकतंत्रीकरणः

  अपना वैश्विक प्रभुत्व स्थापित करने की दिशा में भारत की प्रगति पारंपरिक शक्ति केंद्रों और अभिजात वर्ग के दायरे से परे है। वैश्विक दक्षिण के साथ जुड़ने, स्थायी प्रथाओं पर जोर देने और बहुपक्षवाद के लिए प्रतिबद्ध होने के लिए किए गए प्रयास, सुरक्षा के लोकतंत्रीकरण का संकेत देते हैं। भारत का दृष्टिकोण क्षेत्रीय और सांस्कृतिक सीमाओं से परे है, जो केवल वैश्विक उत्तर के साथ बल्कि विकासशील देशों के साथ भी प्रतिध्वनित होता है। यह समावेशी रणनीति भारत को वैश्विक स्थिरता, सहयोग और सतत विकास के लिए एक प्रतिबद्ध नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करती है।

चुनौतियां और भविष्य का दृष्टिकोणः

    एक ओर जहां सुरक्षा-साख बढ़ाने के भारतीय प्रयास सराहनीय हैं, वहीं दूसरी ओर इस प्रेस में कई प्रकार की चुनौतियां भी हैं। इस हेतु जी20 शिखर सम्मेलन के निर्णयों का प्रभावी कार्यान्वयन और एसडीजी की दिशा में निरंतर प्रगति, भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत करने में सहायक होगी। इसके अतिरिक्त, वैश्विक दक्षिण में रणनीतिक संचार क्षमताओं में निवेश करने से भारत का प्रभाव और जनमत बढ़ेगा। वैश्विक स्थिरता और सहयोग के लिए निरंतर प्रतिबद्धता के साथ इन चुनौतियों का सामना करना भारत के विकसित हो रहे भू-राजनीतिक परिदृश्य में अपनी प्रभुता और सुरक्षा दोनों को बनाए रखने के लिए आवश्यक होगा।

निष्कर्ष:

   ख्यातिप्राप्त सुरक्षा को बढ़ाने की दिशा में भारत की वर्तमान यात्रा, जटिल वैश्विक वातावरण में एक सूक्ष्म और रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है। विदेश नीति में परिवर्तनकारी बदलाव, स्थायी प्रथाओं पर जोर, समावेशी कूटनीति और बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता आदि;  सामूहिक रूप से एक जिम्मेदार और सहयोगी वैश्विक नेता के रूप में भारत की छवि को आकार देने में योगदान करते हैं। जैसे-जैसे भारत 2047 में अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता के शताब्दी समारोह की ओर बढ़ रहा है, ये रणनीतिक पहल भविष्य के लिए आधार तैयार कर रही हैं। साथ ही साथ सकारात्मक परिवर्तन के लिए एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत की भूमिका आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए दृढ़ प्रतिबद्ध है। इस प्रकार यह स्पष्ट है, कि वैश्विक स्थिरता और सहयोग के प्रति भारत का दृढ़ समर्पण आने वाले वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलताओं को दूर करने की अनुकूल स्थिति में है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. प्रतिष्ठित सुरक्षा के आक्रामक और रक्षात्मक घटकों पर चर्चा करें और विश्लेषण करें कि भारत का 'विश्व गुरु' से 'विश्व मित्र' में बदलाव इसकी सकारात्मक वैश्विक छवि को आकार देने में कैसे योगदान देता है। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. संयुक्त राष्ट्र एसडीजी जैसी पहलों के माध्यम से सतत विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और बहुपक्षवाद पर उसके जोर का मूल्यांकन करें। ये नीतियां विश्व स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा सुरक्षा को कैसे बढ़ाती हैं, और उनके कार्यान्वयन में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत: ORF

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