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Daily-current-affairs / 29 Dec 2023

शिपिंग मूल्य श्रृंखला में भारत का स्टेशनरी कोर्स - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 30/12/2023

प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 - अर्थव्यवस्था - मूल्य श्रृंखला

की-वर्ड्स: यांग्त्ज़ी नदी, थ्री गोरजेस परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, जल मार्ग विकास परियोजना-II (अर्थ गंगा)

संदर्भ:-

जहाज निर्माण तथा संचालन का ऐतिहासिक रूप से जीवंत भारतीयों की क्षमता जो कभी चीन से अग्रणी थी ,आज शिपिंग मूल्य श्रृंखला में एक ठहराव का अनुभव कर रही है । इस ठहराव के फलस्वरूप , चीन और भारत के समुद्री विकास मार्गों का विश्लेषण करना आवश्यक है, जिसमें चीन के समुद्री सामर्थ्य में यांग्त्ज़ी नदी की भूमिका और भारत की जहाजरानी उद्योग में उपस्थित चुनौतियों और अवसरों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।


भारत बनाम चीन: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1980 के दशक के अंत तक, भारत वैश्विक व्यापारिक शिपिंग (जहाजरानी उद्योग) क्षेत्र में चीन के मुकाबले लाभप्रद स्थिति में था। भारत में आरम्भ से ही आधुनिक जहाज-स्वामित्व की परंपरा रही है, जिसका एक उदाहरण भारतीय नौसेना के एक पूर्व अधिकारी द्वारा विशालकाय तेल टैंकरों को चालू करना और उनका स्वामित्व अपने पास रखना है, यह अब तक के सबसे बड़े जहाज निर्माण के उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन के साथ भारत के वर्तमान सहयोग ने इसकी समुद्री शक्ति को और अधिक रेखांकित किया है।

यांग्त्ज़ी नदी: चीन की जीवन रेखा

प्राचीन परंपरा और संस्कृति से ओत-प्रोत यांग्त्ज़ी नदी आधुनिक चीन की आर्थिक जीवन रेखा बन गई है। थ्री गोरजेस परियोजना ने इसका महत्व और भी बढ़ा दिया है। जैसे ही कोई यांग्त्ज़ी को पार करता है, वहाँ बड़े पैमाने पर व्यापारी जहाज दुनिया भर से कच्चे माल का परिवहन करते हैं या तैयार उत्पादों को दुनिया भर में ले जाते हैं।

समुद्री यात्रा और जहाज प्रबंधन में भारत का विकास:

भारत के शुरुआती निजी जहाज स्वामित्व और नाविक आबादी के विकास ने उसके समुद्री प्रयासों के लिए एक आधार तैयार किया था । अंग्रेजी बोलने वाले भारतीय नाविको, ने योग्य पूर्वी यूरोपीय लोगों की जगह ले ली और वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हो गए। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के समय भी समुद्री प्रशिक्षण को विकेंद्रीकृत करने और निजी स्वामित्व वाले जहाजरानी उद्योग के लिए समुचित प्रशिक्षण उपलब्ध कराने के साथ, नाविक आबादी के विस्तार पर ध्यान केन्द्रित करना जारी रहा।
वर्तमान में, भारतीय संस्थान विभिन्न ग्रेड और दक्षताओं वाले कुशल नाविकों का प्रशिक्षण देते हैं। अपने मूल्य अभियांत्रिकी कौशल के लिए विख्यात भारतीय नाविकों ने अब जहाज प्रबंधन के क्षेत्र में भी सफलतापूर्वक प्रवेश कर लिया है, जिससे उन्होंने इस उद्योग में सराहनीय योगदान दिया है। श्री संजय परासर का अनुमान है कि भारतीय नाविक और उनकी प्रबंधन कंपनियां प्रतिवर्ष लगभग 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा अर्जन करती हैं।

जहाज स्वामित्व, चार्टरिंग, वित्तपोषण और निर्माण में भारत की स्थिरता:

यद्यपि नौवहन उद्योग में श्रम शक्ति प्रदान करने में भारत अग्रणी है, लेकिन जहाजों के स्वामित्व, चार्टर्ड, वित्तपोषण और निर्माण में यह अभी भी पिछड़ा है। भारतीय शिपयार्डों के ऑर्डर बुक पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली चुनौतियां ,राज्य के स्वामित्व वाली शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, को प्रभावित करती हैं। भारत के व्यापार वृद्धि को पूरा करने वाले निजी जहाज स्वामित्व आमतौर पर किफायती लागत अनुमानों और अल्पकालिक बाजार पूर्वानुमानों के साथ संरेखण के कारण सेकेंड-हैंड जहाजों का विकल्प चुनते हैं।

दूसरी ओर, चीन बिल्कुल इसके विपरीत अवस्था में है। एक समर्पित सरकारी योजना से प्रेरित होकर, चीन वर्ष 2020 तक दुनिया का सबसे बड़ा जहाज निर्माता बन गया । चीन वैश्विक जहाजों के लगभग 50% का प्रतिनिधित्व करता है । चीनी जहाज मालिकों ने मुख्य रूप से अपने जहाजों का निर्माण राज्य के स्वामित्व वाले सरकारी यार्डों में किया, जिससे जहाज निर्माण में चीन की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी सुनिश्चित हुई।

सरकारी पहल और अवसर:

यूपीए सरकार के समुद्री एजेंडा 2020 का लक्ष्य वैश्विक जहाज निर्माण में भारत की हिस्सेदारी को 5% तक बढ़ाना था, लेकिन वर्ष 2020 तक, भारत की हिस्सेदारी व्यावहारिक रूप से शून्य हो गई । हालाँकि मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 इससे संदर्भित कई प्रमुख विषयों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, लेकिन इसमें जहाज निर्माण और स्वामित्व के लिए एक विशिष्ट योजना का अभाव है। लंबी तटरेखा और रणनीतिक भौगोलिक स्थिति के बावजूद, भारत में आज भी जहाज निर्माण उपेक्षित है, जिससे वैश्विक जहाजरानी उद्योग और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार में भारत की स्थिति सीमित हो गई है।

जहाज निर्माण का सामरिक महत्व:

भारत की लंबी तटरेखा और वैश्विक जहाजरानी उद्योग में महत्वपूर्ण स्थिति को देखते हुए जहाज निर्माण और स्वामित्व भारत के लिए कई मायनों में रणनीतिक महत्व रखता है। एक समृद्ध जहाज निर्माण क्षेत्र न केवल समुद्री उद्योग में भारत की स्थिति को बढ़ाता है बल्कि इसकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उपस्थिति को भी मजबूत करता है। औद्योगिक शक्ति, सैन्य शक्ति और जहाज निर्माण के बीच का संबंध स्पष्ट है, जैसा कि नागासाकी के शिपयार्ड के उदाहरण से पता चलता है, जो परमाणु बमबारी के बावजूद आज भी अपना कार्य अच्छे से संचालित कर रहा है।

आगे की राह:

भारत को वैश्विक समुद्री उद्योग के अग्रणी बनाये रखने के लिए जहाज स्वामित्व, चार्टरिंग, वित्तपोषण और निर्माण को पुनर्जीवित करना अनिवार्य है। मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 में आर्थिक विकास, सैन्य शक्ति और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार को प्रमुखता से रणनीतिक लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए जहाजरानी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट उपायों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।

मैरीटाइम इंडिया विजन 2030:

इस विजन में मुख्य रूप से 10 विषय पर 150 पहल सम्मिलित हैं, जिसमें बंदरगाह सम्बन्धी बुनियादी ढांचे, रसद दक्षता, प्रौद्योगिकी, नीति निर्माण, जहाज निर्माण, तटीय शिपिंग, अंतर्देशीय जलमार्ग, क्रूज पर्यटन, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और समुद्री सुरक्षा आदि शामिल हैं।

  • समुद्री विकास निधि: समुद्री क्षेत्र को कम लागत, दीर्घकालिक वित्तपोषण प्रदान करने के लिए 25,000 करोड़ रुपये का एक कोष स्थापित किया गया है, जिसमें केंद्र ने सात वर्षों में 2,500 करोड़ रुपये का योगदान दिया है।
  • बंदरगाह नियामक प्राधिकरण: निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए प्रमुख तथा गैर-प्रमुख बंदरगाहों पर निगरानी सुनिश्चित करने, बंदरगाहों के लिए संस्थागत कवरेज का विस्तार करने और संरचित विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए नए भारतीय बंदरगाह अधिनियम (1908 के पुराने भारतीय बंदरगाह अधिनियम की जगह) के तहत एक राष्ट्रव्यापी बंदरगाह प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी।
  • पूर्वी जलमार्ग कनेक्टिविटी परिवहन ग्रिड परियोजना: इस पहल का उद्देश्य बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमार के साथ क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देना है।
  • नदी विकास निधि: इस प्रस्ताव में नदी विकास निधि (आरडीएफ) के सहयोग से अंतर्देशीय जहाजों के लिए किफायती और दीर्घकालिक वित्तपोषण का विस्तार करने का आह्वान किया गया है। इसके अतिरिक्त, यह अंतर्देशीय जहाजों को शामिल करने के लिए टन भार कर योजना (जो वर्तमान में समुद्र में जाने वाले जहाजों और ड्रेजर पर लागू होती है) के कवरेज का विस्तार करने का सुझाव देता है, जिससे ऐसे जहाजों की उपलब्धता बढ़ जाती है।
  • बंदरगाह शुल्कों को युक्तिसंगत बनाना: जहाजरानी उद्योगों में प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने और शिप लाइनर्स द्वारा लगाए गए सभी गौण शुल्कों को समाप्त करने सहित पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए अधिक उपाय किए जाएंगे।
  • जल परिवहन को बढ़ावा देना: यह पहल शहरी क्षेत्रों में भीड़भाड़ को कम करने और शहरी परिवहन के वैकल्पिक साधन के रूप में जलमार्ग के विकास को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त है।

जल मार्ग विकास परियोजना-II (अर्थ गंगा) के कार्यान्वयन के माध्यम से, जो सतत विकास मॉडल पर आधारित है; आर्थिक गतिविधियों विशेष रूप से राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1 (गंगा नदी) के साथ समुद्री परिवहन, को काफी बढ़ावा मिलेगा, ।

सरकार को इस सन्दर्भ में, नवाचार को बढ़ावा देने, समयबद्ध कार्य योजना बनाने, मानक स्थापित करने, क्षमता निर्माण और मानव संसाधनों को संबोधित करने सहित "अपशिष्ट को धन" में बदलने वाले विचारों की खोज पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इस परिकल्पित दृष्टिकोण से ब्राउनफील्ड क्षमता बढ़ाने, विश्व स्तरीय मेगा पोर्ट स्थापित करने, दक्षिणी भारत में ट्रांस-शिपमेंट हब बनाने, बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करने और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र सहित समुद्री सुरक्षा से संबंधित चिंताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलने की उम्मीद है।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः, शिपिंग मूल्य श्रृंखला में भारत की स्थिर अवस्थिति, चीन की गतिशील प्रगति के साथ, रणनीतिक हस्तक्षेप की तात्कालिकता को रेखांकित करती है। जहाज निर्माण और स्वामित्व की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए, मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 में इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए। समुद्री विकास निधि और पूर्वी जलमार्ग कनेक्टिविटी परिवहन ग्रिड परियोजना जैसी परिकल्पित पहल प्रगति के लिए आधार प्रदान करती हैं, लेकिन इस सन्दर्भ में अधिक व्यापक और सक्रिय दृष्टिकोण जरूरी है। आर्थिक विकास, सैन्य शक्ति और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रमुखता को संरेखित करके, भारत अपनी समुद्री चुनौतियों से निजात पा सकता है और वैश्विक शिपिंग परिदृश्य में एक जीवंत भविष्य सुरक्षित कर सकता है।
अन्य बातों के अलावा जहाज निर्माण और स्वामित्व का पुनरुद्धार इस समय भारत के लिए न केवल एक आर्थिक अनिवार्यता है बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता भी है। वैश्विक शिपिंग मूल्य श्रृंखला में प्रतिस्पर्धी और गतिशील भविष्य सुनिश्चित करने के लिए तथा भारत को अपनी समुद्री चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक और दूरदर्शी रणनीति आवश्यक है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. वैश्विक जहाजरानी उद्योग में भारत की 1980 के दशक के अंत में ऐतिहासिक उपस्थिति, शिपिंग मूल्य श्रृंखला में चीन की जबरदस्त वृद्धि (विशेष रूप से यांग्त्ज़ी नदी के सन्दर्भ में) की तुलना में किस प्रकार अग्रणी थी ? चर्चा कीजिये। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 में जहाज निर्माण, स्वामित्व और समुद्री उद्योग के अन्य पहलुओं को पुनर्जीवित करने, आर्थिक विकास, सैन्य ताकत और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रमुखता के रणनीतिक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिए किन विशिष्ट उपायों या पहलों को सम्मिलित करने की आवश्यकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

Source- The Hindu



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