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Daily-current-affairs / 29 Oct 2025

चिप डिज़ाइन से संप्रभुता तक: सेमीकंडक्टर आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत का निर्णायक कदम

चिप डिज़ाइन से संप्रभुता तक: सेमीकंडक्टर आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत का निर्णायक कदम

सन्दर्भ:

हाल ही में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा घोषणा की कि देश का पहला स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया 7-नैनोमीटर प्रोसेसर शक्तिवर्ष 2028 तक तैयार हो जाएगा।यह भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। यह परियोजना आईआईटी मद्रास द्वारा संचालित है जो भारत के लिए उन्नत सेमीकंडक्टर डिज़ाइन के क्षेत्र में प्रवेश को चिह्नित करती है। 7 नैनोमीटर चिप डिज़ाइन क्षेत्र में लंबे समय से ताइवान, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे वैश्विक देश अग्रणी हैं।  

शक्ति परियोजना के बारे में:

    • शक्ति प्रोसेसर परियोजना, जिसकी शुरुआत वर्ष 2013 में आईआईटी मद्रास द्वारा की गई थी, का उद्देश्य विभिन्न प्रकार के ओपन-सोर्स, स्वदेशी प्रोसेसर विकसित करना है। यह RISC-V आर्किटेक्चर पर आधारित है, जो स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है और किसी को भी बिना लाइसेंसिंग लागत के प्रोसेसर डिज़ाइन करने की अनुमति देता है।
    • वर्षों से, इस परियोजना ने एम्बेडेड सिस्टम, औद्योगिक उपयोग और रक्षा अनुप्रयोगों के लिए विभिन्न प्रोसेसर प्रोटोटाइप तैयार किए हैं। अब यह 7-नैनोमीटर प्रोसेसर डिज़ाइन करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, जो निम्नलिखित उच्च-प्रदर्शन अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त होगा:
      • बैंकिंग और वित्त में प्रयुक्त आईटी सर्वर
      • संचार प्रणालियाँ
      • रक्षा और सामरिक क्षेत्र

यह परियोजना इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत संचालित होती है और इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM), सरकार के सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले निर्माण क्षमताओं को विकसित करने वाले प्रमुख कार्यक्रम के साथ निकटता से जुड़ी हुई है।

भारत का 7 नैनोमीटर प्रोसेसर का महत्व:

7 nm प्रोसेसर डिज़ाइन करना एक बड़ी तकनीकी प्रगति है। संदर्भ के लिए, आधुनिक स्मार्टफोन और सुपरकंप्यूटर 3 nm से 7 nm तक की चिप्स पर निर्भर करते हैं, जो उच्च ट्रांजिस्टर घनत्व, तेज गति और अधिक ऊर्जा दक्षता प्रदान करती हैं।

ऐसी उन्नत चिप्स का स्वदेशी विकास कई सामरिक लाभ प्रदान करता है:

    • तकनीकी आत्मनिर्भरता: महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आयातित चिप्स पर निर्भरता कम करता है।
    • रणनीतिक सुरक्षा: डेटा और रक्षा प्रौद्योगिकियों पर भारत का नियंत्रण मजबूत करता है।
    • औद्योगिक तैयारी: भारत को भविष्य के घरेलू चिप निर्माण (फैब) इकाइयों के लिए तैयार करता है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत को अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर नोड्स पर अनुसंधान करने वाले देशों की श्रेणी में रखता है।

जब तक चिप डिज़ाइन 2028 तक तैयार होगा, तब तक भारत का पहला सेमीकंडक्टर वेफर फैब्रिकेशन (फैब) प्लांट भी चालू हो जाएगा, जिससे उन्नत चिप्स का स्वदेशी बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सकेगा।

Semiconductor

भारत का सेमीकंडक्टर परिदृश्य:

    • भारत की सेमीकंडक्टर मांग 2023 में लगभग 38 अरब डॉलर आंकी गई थी, जो 2030 तक 109 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, लगभग 13% की वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ।
    • हालाँकि, इस तेज़ी से बढ़ती मांग के बावजूद, भारत अब भी अपने 80% से अधिक सेमीकंडक्टर ताइवान, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से आयात करता है। यह निर्भरता भारत को सप्लाई चेन व्यवधानों और भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति संवेदनशील बनाती है।

सरकार इन खामियों को निम्नलिखित पहलों के माध्यम से दूर कर रही है:

1. इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM)

दिसंबर 2021 में ₹76,000 करोड़ के प्रावधान के साथ लॉन्च किया गया ISM भारत के सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम को संचालित करने वाली केंद्रीय एजेंसी है। यह MeitY के अंतर्गत काम करती है और निम्नलिखित पर केंद्रित है:
सेमीकंडक्टर फैब्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स की स्थापना
असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग (ATMP/OSAT) सुविधाओं की स्थापना
फिस्कल इंसेंटिव और मेंटरशिप के माध्यम से चिप डिज़ाइन स्टार्टअप्स का समर्थन
प्रतिभा और अनुसंधान क्षमता का निर्माण

ISM अब तक छह राज्यों में 10 प्रमुख सेमीकंडक्टर परियोजनाओं को स्वीकृति दे चुका है, जिनसे ₹1.6 लाख करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित हुआ है।

2. प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना

PLI योजना सेमीकंडक्टर निर्माण परियोजनाओं के लिए 50% तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसका उद्देश्य वैश्विक और भारतीय कंपनियों को भारत में बड़े पैमाने पर फैब और असेंबली सुविधाएँ स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

3. डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना

DLI योजना घरेलू चिप डिज़ाइन को बढ़ावा देती है, जो स्टार्टअप्स, MSMEs और शैक्षणिक संस्थानों को वित्तीय और अवसंरचनात्मक सहायता प्रदान करती है।
वर्तमान में 288 से अधिक शैक्षणिक संस्थान इस कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
• 23 डिज़ाइन परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है, जिससे डिज़ाइन प्रतिभा का आधार लगातार बढ़ रहा है।

4. सेमिकॉन इंडिया कार्यक्रम

यह व्यापक पहल उन्नत तकनीकों, पैकेजिंग और परीक्षण में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देती है। इसका उद्देश्य भारत के सेमीकंडक्टर विकास को एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी जैसे उभरते क्षेत्रों के साथ एकीकृत करना है।

5. वैश्विक सहयोग

भारत ने निम्नलिखित के साथ समझौते किए हैं:
माइक्रॉन (अमेरिका)गुजरात में सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए।
फॉक्सकॉन (ताइवान)बड़े पैमाने पर चिप और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के लिए।
यू.एस. नेशनल साइंस फाउंडेशनसेमीकंडक्टर, साइबर सुरक्षा और सतत प्रौद्योगिकी में संयुक्त अनुसंधान के लिए।

ये साझेदारियाँ भारत के इकोसिस्टम में पूंजी और उन्नत तकनीकी ज्ञान दोनों लेकर आती हैं।

रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव:

निवेश और रोजगार

      • सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम से 2030 तक 10 लाख से अधिक कुशल नौकरियाँ उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिनमें चिप डिज़ाइन, निर्माण और उन्नत पैकेजिंग शामिल हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहनों और रक्षा जैसे क्षेत्रों में नवाचार को भी प्रोत्साहित करेगा।

निर्यात क्षमता

      • मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्डदृष्टिकोण भारत को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए चिप्स उत्पादन में सक्षम बनाएगा, जिससे व्यापार संतुलन सुधरेगा और निर्यात राजस्व में वृद्धि होगी।

अनुसंधान और नवाचार

      • आईआईटी मद्रास और आईआईएससी बेंगलुरु जैसे भारतीय संस्थान IoT चिपसेट, प्रोसेसर डिज़ाइन और VLSI सिस्टम्स में संयुक्त अनुसंधान का नेतृत्व कर रहे हैं।
      • भारत का विक्रम प्रोसेसर, जो अंतरिक्ष और रक्षा अनुप्रयोगों के लिए विकसित किया गया है, एससीएल मोहाली में स्वदेशी निर्माण क्षमता को प्रदर्शित करता है।

चुनौतियाँ:

मजबूत नीतिगत गति के बावजूद, सेमीकंडक्टर उद्योग को कई गंभीर चुनौतियों का सामना है:

1.        उच्च पूंजी लागत:
सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने में 10 अरब डॉलर या उससे अधिक की लागत आती है, साथ ही निरंतर R&D निवेश की भी आवश्यकता होती है।

2.      कौशल की कमी:
भारत में इस क्षेत्र में लगभग 2.2 लाख पेशेवर कार्यरत हैं, जबकि 2027 तक इसकी मांग 5 लाख से अधिक होने की संभावना है, जो बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

3.      आयात पर निर्भरता:
सिलिकॉन वेफर और रसायनों जैसी 80% से अधिक आवश्यक सामग्री का आयात किया जाता है।

4.     प्रौद्योगिकी तक पहुँच:
उन्नत निर्माण उपकरण (जैसे EUV लिथोग्राफी) कुछ ही वैश्विक कंपनियों के नियंत्रण में हैं, जिससे भारत की पहुँच सीमित है।

5.      पर्यावरणीय बाधाएँ:
सेमीकंडक्टर उत्पादन संसाधन-प्रधान है, जिसमें उच्च जल और ऊर्जा की आवश्यकता होती है और जटिल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ भी जरूरी होती हैं।

चुनौतियों का समाधान

भारत पहले से ही इन बाधाओं को दूर करने के लिए कदम उठा रहा है:

    • चिप्स टू स्टार्टअपकार्यक्रम: चिप डिज़ाइन और एम्बेडेड सिस्टम्स में 85,000 इंजीनियरों को प्रशिक्षित करना।
    • राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन: चिप निर्माण के लिए आवश्यक रेयर अर्थ एलिमेंट्स के घरेलू स्रोतों को सुरक्षित करना।
    • स्थानीयकरण फोकस (ISM 2.0): कच्चे माल और घटकों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना ताकि आयात पर निर्भरता कम हो।
    • लागत प्रतिस्पर्धा: अध्ययनों से पता चला है कि भारत में सेमीकंडक्टर उत्पादन वैश्विक मानकों की तुलना में 15–30% सस्ता हो सकता है क्योंकि यहाँ परिचालन लागत कम है।

आगे की राह:

भारत की सेमीकंडक्टर रूपरेखा अब निम्नलिखित पर केंद्रित है:
• 28 nm से 7 nm डिज़ाइन तक और आगे 5 nm तकनीकों तक प्रगति करना।
गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में OSAT और टेस्टिंग सुविधाओं की स्थापना।
एआई, क्वांटम और क्लीन एनर्जी सेमीकंडक्टर के लिए R&D अवसंरचना को मजबूत करना।
डीप टेक एलायंस (सेमिकॉन इंडिया 2025 में घोषित) का विस्तार करना, जिसमें अगली पीढ़ी की तकनीकों के लिए $1 बिलियन फंड शामिल है।

निष्कर्ष:

भारत का 7 नैनोमीटर स्वदेशी प्रोसेसर विकसित करने की दिशा में कदम केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, यह देश के डिजिटल और औद्योगिक भविष्य में एक टर्निंग पॉइंट का प्रतीक है। सरकारी समर्थन, शैक्षणिक उत्कृष्टता और निजी क्षेत्र की भागीदारी को जोड़कर भारत एक आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम की नींव रख रहा है। आने वाले वर्षों में यह तय होगा कि यह दृष्टि किस हद तक विश्वस्तरीय निर्माण और नवाचार में परिणत होती है। यदि यही गति बनी रही, तो भारत जल्द ही दुनिया के सबसे बड़े सेमीकंडक्टर उपभोक्ताओं में से एक से आगे बढ़कर एक प्रमुख उत्पादक और नवोन्मेषक के रूप में उभरेगा।

UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: सेमीकंडक्टर निर्माण को अक्सर डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है। इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के तहत नीतिगत समर्थन के बावजूद, एक मजबूत सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन इकोसिस्टम स्थापित करने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। चर्चा कीजिये।