संदर्भ:
भारत ने प्रतिजैविक प्रतिरोध (AMR) पर हाल ही में दूसरा राष्ट्रीय कार्ययोजना NAP-AMR 2.0 (2025–29) जारी किया है। यह ऐसे समय में आया है जब AMR इस सदी के सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में तेजी से उभर रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री द्वारा लॉन्च की गई यह नई योजना 2010 से चली आ रही भारत की पहलों पर आधारित है और इसका उद्देश्य राष्ट्रीय संकल्प को मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, कृषि, जलीय कृषि, खाद्य प्रणालियों और पर्यावरण सहित सभी क्षेत्रों में समन्वित कार्रवाई में बदलना है।
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- आज AMR अस्पतालों तक सीमित नहीं है। प्रतिरोधी जीव मिट्टी, जल, पशुधन, खाद्य श्रृंखला और अपशिष्ट प्रणालियों के माध्यम से फैलते हैं, जिससे नियंत्रण तभी संभव है जब मजबूत वन हेल्थ दृष्टिकोण अपनाया जाए। अद्यतन राष्ट्रीय योजना इसी वास्तविकता को प्रतिबिंबित करती है और पहले की तुलना में कहीं अधिक संरचित, बहु-क्षेत्रीय ढाँचा तैयार करने का प्रयास करती है।
- आज AMR अस्पतालों तक सीमित नहीं है। प्रतिरोधी जीव मिट्टी, जल, पशुधन, खाद्य श्रृंखला और अपशिष्ट प्रणालियों के माध्यम से फैलते हैं, जिससे नियंत्रण तभी संभव है जब मजबूत वन हेल्थ दृष्टिकोण अपनाया जाए। अद्यतन राष्ट्रीय योजना इसी वास्तविकता को प्रतिबिंबित करती है और पहले की तुलना में कहीं अधिक संरचित, बहु-क्षेत्रीय ढाँचा तैयार करने का प्रयास करती है।
प्रतिजैविक प्रतिरोध (AMR) क्यों महत्वपूर्ण है?
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- प्रतिजैविक प्रतिरोध तब विकसित होता है जब बैक्टीरिया, वायरस या फफूंद जैसे सूक्ष्मजीव उन दवाओं पर प्रतिक्रिया देना बंद कर देते हैं जो उन्हें नष्ट करने के लिए बनाई गई हैं। इसका परिणाम उपचार में देरी, लंबी बीमारी, अधिक चिकित्सा खर्च और मृत्यु का बड़ा जोखिम होता है। इससे भी महत्वपूर्ण, यह जीवनरक्षक चिकित्सा प्रक्रियाओं की सुरक्षा को खतरे में डालता है।
- सामान्य शल्य चिकित्सा, कैंसर की कीमोथेरेपी, अंग प्रत्यारोपण, गहन देखभाल और नवजात उपचार—ये सभी प्रभावी एंटीबायोटिक पर निर्भर हैं। यदि दवाएँ काम न करें, तो ये प्रक्रियाएँ खतरनाक या असंभव हो जाती हैं। इस प्रकार AMR का सीधा प्रभाव स्वास्थ्य प्रणाली, आर्थिक उत्पादकता और राष्ट्रीय विकास पर पड़ता है।
- भारत को विशेष रूप से गंभीर चुनौती, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ, एंटीबायोटिक का व्यापक दुरुपयोग, अपर्याप्त विनियामक निगरानी और औषधीय कचरे, कृषि तथा जलीय कृषि से होने वाला पर्यावरणीय प्रदूषण से है। सभी क्षेत्रों द्वारा समन्वित कार्रवाई के अभाव में AMR चिकित्सा प्रगति के वर्षों को पलट सकता है।
- प्रतिजैविक प्रतिरोध तब विकसित होता है जब बैक्टीरिया, वायरस या फफूंद जैसे सूक्ष्मजीव उन दवाओं पर प्रतिक्रिया देना बंद कर देते हैं जो उन्हें नष्ट करने के लिए बनाई गई हैं। इसका परिणाम उपचार में देरी, लंबी बीमारी, अधिक चिकित्सा खर्च और मृत्यु का बड़ा जोखिम होता है। इससे भी महत्वपूर्ण, यह जीवनरक्षक चिकित्सा प्रक्रियाओं की सुरक्षा को खतरे में डालता है।
पृष्ठभूमि:
भारत ने 2010 में एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स बनाकर AMR को संरचित रूप से संबोधित करना शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप:
• AMR नियंत्रण पर राष्ट्रीय नीति (2011)
• AMR पर पहली राष्ट्रीय कार्ययोजना (2017–21), WHO वैश्विक कार्ययोजना के अनुरूप
• प्रयोगशाला नेटवर्क और राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली का सुदृढ़ीकरण
• वन हेल्थ दृष्टिकोण को प्रारंभिक रूप से अपनाना
• केरल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, सिक्किम और पंजाब जैसे राज्यों में पहलें
• केरल और गुजरात में ओवर-द-काउंटर एंटीबायोटिक बिक्री पर प्रतिबंध जैसे विनियामक कदम
• पर्यावरण और कृषि में कुछ प्रतिजैविक तथा कीटनाशकों पर प्रतिबंध
• अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय भागीदारों के साथ अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने हेतु, भारत AMR इनोवेशन हब की स्थापना
पहली योजना क्यों कमजोर पड़ी:
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- पहली योजना ने रणनीतिक दिशा तो प्रदान की, लेकिन उसकी सफलता राज्यों पर निर्भर थी। स्वास्थ्य प्रशासन, अस्पताल संचालन, औषधि विनियमन, पशु चिकित्सा सेवाएँ, कृषि में एंटीबायोटिक उपयोग और अपशिष्ट प्रबंधन, ये सभी मुख्यतः राज्य विषय हैं।
- राज्यों में अनुपालन सुनिश्चित करने या साझा जवाबदेही स्थापित करने के स्पष्ट तंत्र के अभाव में, कार्यान्वयन बिखरा हुआ रहा। कुछ ही राज्यों ने औपचारिक वन हेल्थ संरचनाएँ विकसित कीं जबकि अधिकांश ने अलग-थलग विभागीय पहलें ही अपनाईं।
- भारत का अनुभव बताता है कि बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य लक्ष्य तभी सफल होते हैं जब केंद्र और राज्य एक साझा ढाँचे में काम करें। तपेदिक उन्मूलन और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में हुई प्रगति संयुक्त समीक्षाओं, साझा योजनाओं और समर्पित वित्तीय मार्गों पर आधारित रही है। AMR में ऐसे तंत्रों के अभाव ने पहली योजना को समान रूप से प्रभावी होने से रोका।
- पहली योजना ने रणनीतिक दिशा तो प्रदान की, लेकिन उसकी सफलता राज्यों पर निर्भर थी। स्वास्थ्य प्रशासन, अस्पताल संचालन, औषधि विनियमन, पशु चिकित्सा सेवाएँ, कृषि में एंटीबायोटिक उपयोग और अपशिष्ट प्रबंधन, ये सभी मुख्यतः राज्य विषय हैं।
NAP-AMR 2.0 (2025–29) की प्रमुख विशेषताएँ:
1. वन हेल्थ एकीकरण को मजबूत करना
योजना के अनुसार AMR अस्पतालों, पशुपालन, कृषि, मत्स्य पालन, खाद्य प्रणालियों और पर्यावरण के माध्यम से विस्तरित होता है इसलिए यह मानव स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा, कृषि, जलीय कृषि और पर्यावरण एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करती है। अपशिष्ट प्रबंधन, खाद्य श्रृंखला निगरानी और पर्यावरणीय प्रदूषण नियंत्रण को अधिक महत्व दिया गया है।
2. स्पष्ट लक्ष्य, भूमिकाएँ और समयसीमाएँ
प्रत्येक मंत्रालय और विभाग ने क्षेत्र-विशिष्ट कार्ययोजना बनाई है, जिसमें निर्धारित लक्ष्य और बजट शामिल हैं। इससे निगरानी बेहतर होगी और जवाबदेही स्पष्ट होगी।
3. सभी क्षेत्रों में उन्नत निगरानी
मानव, पशु, कृषि और पर्यावरण निगरानी प्रणालियाँ अब अधिक सामंजस्यपूर्ण प्रोटोकॉल का पालन करेंगी। इससे भारत प्रतिरोधी जीवों, एंटीबायोटिक उपयोग पैटर्न और पर्यावरणीय प्रदूषण पर अधिक विश्वसनीय राष्ट्रीय डेटा उत्पन्न कर सकेगा।
4. नवाचार पर अधिक जोर
योजना त्वरित निदान उपकरणों, पॉइंट-ऑफ-केयर टेस्टिंग, एंटीबायोटिक के विकल्प और बेहतर पर्यावरणीय निगरानी तकनीकों की आवश्यकता को रेखांकित करती है। भारत AMR इनोवेशन हब अनुसंधान और नई प्रौद्योगिकी मंचों के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाएगा।
5. निजी क्षेत्र की भागीदारी
भारत में स्वास्थ्य और पशु चिकित्सा सेवाओं का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान किया जाता है इसलिए NAP-AMR 2.0 निजी अस्पतालों, प्रयोगशालाओं, औषधि कंपनियों, पेशेवर समूहों और उद्योग निकायों के साथ मजबूत साझेदारी पर जोर देता है।
6. क्षमता निर्माण और जन-जागरूकता
योजना व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों, जन-जागरूकता अभियानों और सभी स्वास्थ्य संस्थानों में संक्रमण नियंत्रण सुदृढ़ीकरण का आह्वान करती है। प्रयोगशाला नेटवर्क को उन्नत किया जाएगा।
7. मजबूत राष्ट्रीय पर्यवेक्षण
अंतर-क्षेत्रीय पर्यवेक्षण अब नीति आयोग द्वारा एक समर्पित समन्वय एवं निगरानी समिति के माध्यम से किया जाएगा। एक राष्ट्रीय डैशबोर्ड राज्यों और मंत्रालयों में प्रगति को ट्रैक करेगा।
केंद्र–राज्य तंत्र:
इन सुधारों के बावजूद राज्यों में प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिए कोई औपचारिक तंत्र नहीं है। यहाँ:
• राज्यों के लिए AMR कार्ययोजना अधिसूचित करना अनिवार्य नहीं
• कोई संयुक्त केंद्र–राज्य समीक्षा मंच नहीं
• प्रशासनिक जवाबदेही की कोई स्पष्ट प्रणाली नहीं
• प्रगति आधारित प्रोत्साहन या वित्तीय तंत्र का अभाव
जबकि AMR के निर्धारक अस्पताल प्रथाएँ, पशु चिकित्सा निगरानी, औषधि विनियमन, कृषि एंटीबायोटिक उपयोग, खाद्य सुरक्षा और अपशिष्ट प्रबंधन राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, यह अंतर महत्वपूर्ण है।
प्रभावी समन्वय ढाँचा बनाना:
1. राष्ट्रीय–राज्य AMR परिषद
स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में एक स्थायी निकाय, जिसमें नीति आयोग, प्रमुख मंत्रालयों और सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व हो। यह निकाय:
• प्रगति की नियमित समीक्षा
• संयुक्त समस्या समाधान
• बहु-क्षेत्रीय निर्णय
• AMR को एक राजनीतिक और प्रशासनिक प्राथमिकता के रूप में स्थापित करना सुनिश्चित कर सकता है।
2. राज्यों के लिए औपचारिक दिशानिर्देश
केंद्र सरकार प्रत्येक मुख्य सचिव से अनुरोध कर सकती है कि वे वार्षिक समीक्षा चक्रों के साथ राज्य AMR कार्ययोजना तैयार करें, अधिसूचित करें और लागू करें। इससे AMR को आवश्यक प्रशासनिक दृश्यता मिलेगी।
3. NHM के माध्यम से वित्तपोषण मार्ग
यहाँ तक कि मामूली सशर्त प्रोत्साहन जैसे TB और मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रमों में उपयोग किए गए, भी राज्यों को निगरानी, प्रयोगशाला क्षमता, दवा प्रबंधन और संक्रमण नियंत्रण को मजबूत करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
4. साझा निगरानी और डैशबोर्ड
एक राष्ट्रीय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के संकेतकों को ट्रैक कर सकता है, जिससे प्रदर्शन मूल्यांकन अधिक पारदर्शी होगा।
आगे की राह:
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- NAP-AMR 2.0 वैज्ञानिक आधार, स्पष्ट समयसीमाएँ और मजबूत बहु-क्षेत्रीय सहयोग प्रदान करता है। भारत, विशेषकर नवाचार हब, राज्य-स्तरीय विनियामक कदम और वन हेल्थ सिद्धांतों को प्रारंभिक अपनाने के माध्यम से वैश्विक AMR विमर्श में नेतृत्व दिखा चुका है। लेकिन राष्ट्रीय प्रगति अंततः राज्य-स्तरीय स्वामित्व पर निर्भर करती है। AMR की लड़ाई समितियों में नहीं, बल्कि अस्पतालों, फार्मेसियों, खेतों, बाजारों, प्रयोगशालाओं और अपशिष्ट जल प्रणालियों में लड़ी जाती है। जब तक राज्य कार्यात्मक AMR सेल स्थापित नहीं करते, विनियम लागू नहीं करते, संक्रमण नियंत्रण सुदृढ़ नहीं करते और एंटीबायोटिक उपयोग की निगरानी नहीं बढ़ाते, तब तक योजना ठोस परिणाम नहीं दे पाएगी।
- सही राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक समन्वय और वित्तीय प्रोत्साहन के साथ भारत एक ऐसा राष्ट्रीय मॉडल बना सकता है जो सभी क्षेत्रों की सामूहिक कार्रवाई सुनिश्चित करे।
- NAP-AMR 2.0 वैज्ञानिक आधार, स्पष्ट समयसीमाएँ और मजबूत बहु-क्षेत्रीय सहयोग प्रदान करता है। भारत, विशेषकर नवाचार हब, राज्य-स्तरीय विनियामक कदम और वन हेल्थ सिद्धांतों को प्रारंभिक अपनाने के माध्यम से वैश्विक AMR विमर्श में नेतृत्व दिखा चुका है। लेकिन राष्ट्रीय प्रगति अंततः राज्य-स्तरीय स्वामित्व पर निर्भर करती है। AMR की लड़ाई समितियों में नहीं, बल्कि अस्पतालों, फार्मेसियों, खेतों, बाजारों, प्रयोगशालाओं और अपशिष्ट जल प्रणालियों में लड़ी जाती है। जब तक राज्य कार्यात्मक AMR सेल स्थापित नहीं करते, विनियम लागू नहीं करते, संक्रमण नियंत्रण सुदृढ़ नहीं करते और एंटीबायोटिक उपयोग की निगरानी नहीं बढ़ाते, तब तक योजना ठोस परिणाम नहीं दे पाएगी।
निष्कर्ष:
प्रतिजैविक प्रतिरोध अब कोई दूर का वैज्ञानिक मुद्दा नहीं, यह स्वास्थ्य परिणामों, पर्यावरणीय सेहत और राष्ट्रीय विकास को आकार दे रहा है। भारत का NAP-AMR 2.0 पहले की तुलना में कहीं अधिक परिपक्व, विस्तृत और कार्यान्वयन-उन्मुख ढाँचा प्रस्तुत करता है। चुनौती अब यह सुनिश्चित करने की है कि राष्ट्रीय रणनीति राज्य-स्तरीय कार्रवाई में बदल सके।
UPSC/PCS मुख्य प्रश्न:
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