संदर्भ:
आतंकवाद लंबे समय से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती रहा है। पहले यह खतरा सीमापार घुसपैठ, घात लगाकर किए गए हमले और बम विस्फोट जैसे पारंपरिक तरीकों तक सीमित था। लेकिन अब यह और भी अधिक जटिल और बहुआयामी रूप ले चुका है। आज का आतंकवाद युद्धभूमि से आगे बढ़कर साइबरस्पेस, डिजिटल भ्रामक सूचनाओं और मनोवैज्ञानिक प्रभावों तक फैल चुका है। 2024 के पहलगाम आतंकी हमले, जिसमें भारतीय सेना के चार जवान शहीद हुए, ने इस बदलाव को उजागर किया। उस हमले के बाद की सैन्य कार्रवाई महत्वपूर्ण थी, लेकिन जिस तेजी से साइबर और सूचना के क्षेत्र में जवाब दिया गया, वह एक नया मोड़ था।
जैसे-जैसे आतंकवाद अब हाइब्रिड वॉरफेयर यानी "संयुक्त युद्ध तकनीक" अपना रहा है जिसमें शारीरिक हमले, साइबर हमले और प्रोपेगंडा शामिल होते हैं, भारत की रणनीतियाँ भी इन नए खतरों का मुकाबला करने के लिए बदल रही हैं।
हाइब्रिड वॉरफेयर और आतंकवाद को समझना:
आधुनिक आतंकवाद अब केवल हथियारों से लड़ी जाने वाली हिंसा तक सीमित नहीं है। यह अब हाइब्रिड वॉरफेयर का रूप ले चुका है, जिसमें पारंपरिक युद्ध के साथ-साथ साइबर हमले, फर्जी खबरें, डीपफेक वीडियो और आर्थिक दबाव भी शामिल होते हैं।
इस प्रकार का युद्ध भ्रम पैदा करता है और सैन्य बलों के साथ-साथ आम नागरिकों के दिमाग को भी निशाना बनाकर अस्थिरता फैलाता है। 2024 का पहलगाम हमला इसका उदाहरण है, जहाँ सीधा हमला करने के साथ-साथ साइबर तकनीकों का भी उपयोग किया गया।
फर्जी ट्विटर अकाउंट्स ने भारतीय नौसेना के जहाज़ों की पहचान छिपाकर झूठी जानकारी फैलाई, और डीपफेक ऑडियो क्लिप्स के जरिए झूठे पलटवार की खबरें प्रसारित की गईं। इन तकनीकों का उद्देश्य लोगों को भ्रमित करना और भय का माहौल पैदा करना था।
भारत हाल के वर्षों में ऐसे कई खतरों का सामना कर चुका है जैसे 2019 का पुलवामा हमला, जम्मू के सांबा और पुंछ में घात हमले और रक्षा प्रतिष्ठानों पर साइबर जासूसी के प्रयास।
इन खतरों की बढ़ती संख्या और जटिलता के चलते भारत ने अपनी सुरक्षा रणनीतियों को बदला है, जिसमें अब पारंपरिक और डिजिटल दोनों तरह की तैयारियाँ शामिल हैं।
भारत की सैन्य और साइबर प्रतिक्रिया:
भारत ने परंपरागत रूप से आतंकवाद का मुकाबला सैन्य अभियानों से किया है, जैसे 2016 में नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक।
2024 में पहलगाम हमले के बाद भारत ने "ऑपरेशन सिंदूर" नामक एक तेज़ और सटीक सैन्य अभियान जम्मू-कश्मीर में चलाया।
इस अभियान को खास बनाने वाली बात थी—रीयल टाइम खुफिया जानकारी, निगरानी तकनीक और साइबर सतर्कता का एकीकृत उपयोग, जिससे समन्वित और प्रभावी प्रतिक्रिया दी जा सकी।
भारत की साइबर सुरक्षा रणनीति भी अब राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम हिस्सा बन गई है। आईबीएम एक्स-फोर्स थ्रेट इंटेलिजेंस इंडेक्स 2023 के अनुसार, भारत साइबर हमलों का चौथा सबसे अधिक निशाना बनने वाला देश है।
सिर्फ 2023 में ही भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-In) ने 14 लाख से अधिक साइबर घटनाओं की रिपोर्ट की, जिनमें फिशिंग और मालवेयर अटैक शामिल थे। इनमें से कई हमलों की उत्पत्ति पाकिस्तान से हुई थी।
भारत ने 2023 में 22,000 से अधिक फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स को निष्क्रिय किया।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सरकार ने फर्जी सूचनाओं का मुकाबला करने के लिए त्वरित कार्रवाई की, फर्जी अकाउंट हटाए और प्रेस ब्रीफिंग्स के जरिए लोगों को भरोसेमंद जानकारी दी।
यह बदलाव दिखाता है कि अब भारत केवल नुकसान होने के बाद प्रतिक्रिया नहीं दे रहा, बल्कि पहले से ही सक्रिय और समग्र रणनीति अपनाई जा रही है।
कानूनी और संस्थागत ढाँचा:
भारत में आतंकवाद और साइबर खतरों से निपटने के लिए कई कानूनी और संस्थागत ढाँचे मौजूद हैं।
· सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act): हैकिंग, पहचान की चोरी, साइबर स्टॉकिंग जैसे अपराधों को संबोधित करता है।
· डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023: नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, ताकि उसका दुरुपयोग न हो।
हालाँकि विशेषज्ञों का मानना है कि ये कानून आधुनिक हाइब्रिड वॉरफेयर की जटिलताओं से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, विशेष रूप से डीपफेक और एआई-जनित सामग्री के ज़रिए होने वाले मनोवैज्ञानिक हमलों के संदर्भ में।
भारत की प्रमुख संस्थाओं में शामिल हैं:
· राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)
· राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO)
· मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC)
· CERT-In, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है।
हालांकि इन संस्थाओं के बीच विभिन्न मंत्रालयों में विभाजित अधिकार क्षेत्र के कारण रीयल टाइम समन्वय में बाधा आती है। इसके अलावा, एकीकृत साइबर कमांड की अनुपस्थिति के कारण भारत तेज़ी से साइबर हमलों का मुकाबला करने में पिछड़ सकता है।
इसके अतिरिक्त, आईटी एक्ट जैसे मौजूदा कानूनी उपकरण सोशल मीडिया के व्यापक उपयोग और नवीनतम तकनीकों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए थे।
इस वजह से कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एआई-जनित सामग्री के माध्यम से जनमत को प्रभावित करने वाले मामलों में कार्यवाही करने में कठिनाई होती है।
रणनीतिक कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति अब उसकी कूटनीतिक पहलों से भी आकार ले रही है। वैश्विक स्तर पर भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र में "अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (CCIT)" को अपनाने की मांग करता रहा है। यह प्रस्तावित संधि आतंकवाद को परिभाषित करने और किसी भी प्रकार की आतंकवादी गतिविधियों को, चाहे उसका राजनीतिक उद्देश्य कुछ भी हो, अपराध घोषित करने का लक्ष्य रखती है।
भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और इज़राइल जैसे देशों के साथ साइबर सुरक्षा सहयोग को भी मज़बूत किया है। इन साझेदारियों का उद्देश्य साइबर खुफिया साझा करना, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा करना और तकनीकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना है।
क्वाड समूह (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के अंतर्गत भारत ने साइबर मानदंडों का निर्माण, 5G नेटवर्क की सुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती के लिए भी काम किया है।
हालाँकि, क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग सीमित बना हुआ है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC), जो आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए एक मंच बन सकता था, भारत-पाकिस्तान तनाव के चलते निष्क्रिय बना हुआ है। इसके विपरीत, आसियान (ASEAN) और यूरोपीय संघ (EU) जैसे क्षेत्रीय संगठन अंतरराष्ट्रीय खतरों से निपटने के लिए अधिक प्रभावी रणनीतियाँ अपना चुके हैं।
सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव-
आतंकवाद के गंभीर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होते हैं। लंबे समय तक चलने वाले संघर्षों के कारण विकास योजनाओं के लिए तय धन रक्षा खर्चों में चला जाता है। संवेदनशील क्षेत्र निवेश के लिए कम आकर्षक बन जाते हैं, जिससे हाशिए पर रह रहे समुदायों, खासकर युवाओं, के कट्टरपंथ की ओर आकर्षित होने का खतरा बढ़ जाता है।
एक $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखने वाले देश के लिए आंतरिक सुरक्षा सतत विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स के अनुसार, आतंकवाद के कारण भारत का GDP नुकसान विश्व के शीर्ष 10 देशों में आता है।
राजनीतिक रूप से, आतंकवाद लोकचर्चा और चुनाव परिणामों को भी प्रभावित कर सकता है। बार-बार होने वाले हमलों से अक्सर सैन्य जवाब की मांग तेज़ होती है, जिससे राष्ट्रवाद और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलता है।
हालाँकि संकट की घड़ी में मज़बूत नेतृत्व जरूरी होता है, लेकिन सुरक्षा उपायों और लोकतांत्रिक मूल्यों तथा नागरिक स्वतंत्रताओं के बीच संतुलन बनाना भी उतना ही आवश्यक है।
भारत के सामने एक रणनीतिक दुविधा भी है—
· एक ओर, यदि वह सैन्य रूप से कठोर प्रतिक्रिया देता है, तो अंतरराष्ट्रीय आलोचना और टकराव की आशंका रहती है।
· दूसरी ओर, यदि प्रतिक्रिया नरम होती है, तो यह आतंकवादियों को और अधिक दुस्साहसी बना सकता है।
इसलिए इस सूक्ष्म संतुलन को बनाना सामरिक समझ और रणनीतिक दूरदर्शिता की माँग करता है।
आगे की राह:
• सशस्त्र बलों के अंतर्गत एक समर्पित साइबर कमांड की स्थापना।
• कानूनी ढांचे को अद्यतन करना ताकि हाइब्रिड युद्ध की नई चुनौतियों जैसे एआई-जनित खतरों और गलत सूचना से निपटा जा सके।
• क्वांटम एन्क्रिप्शन, स्वदेशी ऑपरेटिंग सिस्टम और अत्याधुनिक निगरानी उपकरणों जैसी उन्नत तकनीकों में निवेश।
• जन-जागरूकता अभियानों को मजबूत करना ताकि लोग भ्रामक सूचनाओं से खुद को बचा सकें।
• नागरिक समाज, मीडिया और तकनीकी प्लेटफार्मों की भूमिका को जोड़ना, ताकि हाइब्रिड खतरों से लड़ाई में एक समन्वित प्रयास हो सके।
हालाँकि सैन्य तैयारियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा इस पर निर्भर करेगी कि वह कितनी तेज़ी से अनुकूलन, नवाचार और सहयोग कर सकता है, देश के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर।
वास्तविक परीक्षा केवल हमलों से बचाव में नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण में है जो आतंकवाद और हाइब्रिड युद्ध की विघटनकारी ताक़तों का सामना कर सके।
निष्कर्ष:
भारत की आतंकवाद से लड़ाई अब केवल पारंपरिक रक्षा तरीकों तक सीमित नहीं है; यह अब साइबरस्पेस, डिजिटल युद्ध, और मनोवैज्ञानिक तकनीकों तक फैल चुकी है।
जैसे-जैसे हाइब्रिड वॉरफेयर एक सामान्य तरीका बनता जा रहा है, भारत की प्रतिक्रिया को भी पारंपरिक और डिजिटल दोनों खतरों से निपटने के लिए विकसित होना होगा।
2024 का अनुभव दर्शाता है कि भारत अब बहुआयामी रक्षा रणनीति को अपनाने के लिए तैयार है, जिसमें सैन्य शक्ति, तकनीकी नवाचार, कानूनी सुधार, और कूटनीतिक प्रयास शामिल हैं।
आधुनिक राष्ट्रीय सुरक्षा की जटिलता को समझना और भारत की वैश्विक जिम्मेदारियों को जानना छात्रों और भावी नीति-निर्माताओं के लिए अत्यंत आवश्यक है।
मुख्य प्रश्न: आतंकवाद, भारत के लिए एक प्रमुख सुरक्षा चुनौती बना हुआ है। सीमा-पार आतंकवाद की बदलती प्रकृति और भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीतियों पर चर्चा कीजिए। आतंकवाद को रोकने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के महत्व को रेखांकित कीजिए। |