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Daily-current-affairs / 18 Oct 2025

भारत का रक्षा रूपांतरण: आयात निर्भरता से स्वदेशी क्षमता तक

भारत का रक्षा रूपांतरण: आयात निर्भरता से स्वदेशी क्षमता तक

संदर्भ:

भारत के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में हो रहे तीव्र परिवर्तन ने राष्ट्रीय सुरक्षा, औद्योगिक विकास और प्रौद्योगिकीय आत्मविश्वास को एक नई दिशा दी है। एचएएल के नासिक परिसर में पहला हल्का लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस एमके1ए के नए विमान उत्पादन लाइनों के उद्घाटन के अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा ने बताया  कि देश का रक्षा निर्यात अब 25,000 करोड़ रुपये तक पहुँच गया है जो  इस परिवर्तन की ठोस पुष्टि करती है। कुछ वर्ष पूर्व जहाँ रक्षा निर्यात मात्र 1,000 करोड़ रुपये के स्तर पर था, वहीं आज भारत न केवल आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर है, बल्कि वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखला में एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभर रहा है।

    • सरकार द्वारा 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपये के घरेलू रक्षा उत्पादन और 50,000 करोड़ रुपये के निर्यात का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, वह आत्मनिर्भर भारतकी भावना को साकार करने की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। पिछले एक दशक में प्रमुख सुधारों, तकनीकी नवाचारों और नीतिगत परिवर्तनों ने भारत के रक्षा परिदृश्य को धीरे-धीरे बदल दिया है, जिससे देश दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक से उभरते वैश्विक निर्यातक की दिशा में अग्रसर हुआ है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

    • स्वतंत्रता के समय भारत को 16 आयुध कारखानों (Ordnance Factories) और एक प्रशिक्षित तकनीकी कार्यबल सहित एक मामूली लेकिन संरचित रक्षा औद्योगिक आधार विरासत में मिला था। हालांकि, इन इकाइयों का अधिकांश कार्य रखरखाव और असेंबली तक सीमित था, न कि नवाचार या अनुसंधान पर केंद्रित।
    • 1958 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की स्थापना स्वदेशी अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए की गई थी, लेकिन इसे सीमित वित्तपोषण और सशस्त्र बलों के साथ कमजोर समन्वय का सामना करना पड़ा।
    • 1962 के चीन युद्ध के बाद भारत ने अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिए भारी मात्रा में हथियार आयात, विशेषकर सोवियत संघ से, पर निर्भरता बढ़ा दी। यह आयात-आधारित दृष्टिकोण दशकों तक जारी रहा, जिससे भारत दुनिया के शीर्ष हथियार आयातकों में शामिल रहा और तकनीकी निर्भरता की कमजोरियां उजागर हुईं।

आत्मनिर्भर रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण:

पिछले एक दशक में भारत की रक्षा नीति में बड़ा परिवर्तन हुआ है, जिसका उद्देश्य विदेशी निर्भरता को कम करना और स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना है। अब ध्यान स्वदेशी डिजाइन, अनुसंधान और उत्पादन पर केंद्रित है, जिसे संस्थागत सुधारों, नई खरीद प्रक्रियाओं और निजी क्षेत्र की भागीदारी से समर्थन मिला है।

प्रमुख उपलब्धियां हैं

    • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) और डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (DMA) की स्थापना, ताकि थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच समन्वय को बढ़ावा दिया जा सके।
    • हाल की संयुक्त अभियानों, जैसे ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने दिखाया है कि इन सुधारों ने समन्वय और परिचालन दक्षता में सुधार किया है।

संरचनात्मक सुधार:

भारत की सुरक्षा संरचना को आधुनिक खतरों से निपटने और निर्णय-निर्माण को सुव्यवस्थित करने के लिए पुनर्गठित किया गया है। 2018 से 2019 के बीच तीन त्रि-सेवा एजेंसियां बनाई गईं

• डिफेंस साइबर एजेंसीसैन्य साइबर ऑपरेशनों और साइबर युद्ध को संभालती है।
डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA)संचार, नेविगेशन और निगरानी के लिए अंतरिक्ष के सैन्य उपयोग पर केंद्रित है।
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल ऑपरेशंस डिवीजन (AFSOD)विभिन्न क्षेत्रों में रणनीतिक मिशनों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता प्रदान करती है।

ये सभी इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के तहत कार्य करती हैं और CDS को रिपोर्ट करती हैं। एक और प्रमुख सुधार इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड्स की स्थापना है, जो संयुक्त अभियानों को और सशक्त बनाएगी।

रक्षा खरीद सुधार:

डिफेंस एक्विजिशन प्रोसीजर (DAP) 2020 ने 2016 की पुरानी व्यवस्था की जगह ली, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
मुख्य विशेषताएं:

    • कई श्रेणियों में स्वदेशी सामग्री की आवश्यकता को 50% या उससे अधिक किया गया।
    • निगेटिव इम्पोर्ट लिस्ट्सकी शुरुआत की गई, जिसमें 500 से अधिक रक्षा वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया।
    • विदेशी विक्रेताओं को भारत में स्थानीय विनिर्माण या संयुक्त उपक्रम स्थापित करने की आवश्यकता रखी गई।

इसके परिणामस्वरूप, भारत का रक्षा उत्पादन 2023–24 में ₹1.27 लाख करोड़ के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है, जिसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है।

मुख्य नीतिगत सुधार और रक्षा कॉरिडोर:

    • 2021 में ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) का कॉर्पोरेटरण एक ऐतिहासिक सुधार था। 41 आयुध कारखानों को दक्षता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए सात नए रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (DPSUs) में पुनर्गठित किया गया।
    • इसके अलावा, सरकार ने दो रक्षा औद्योगिक गलियारे (Defence Industrial Corridors – DICs) उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में स्थापित किए हैं, ताकि निवेश आकर्षित किया जा सके, नवाचार को बढ़ावा मिले और रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी मजबूत हो।
      अब तक ₹8,600 करोड़ से अधिक का निवेश हो चुका है, और अगले वर्षों में ₹50,000 करोड़ से अधिक आकर्षित करने की योजना है।

रक्षा निर्यातों में वृद्धि:

    • भारत के रक्षा निर्यात पिछले दशक में लगभग 15 गुना बढ़े हैं 2016–17 में लगभग ₹1,500 करोड़ से बढ़कर 2024–25 में ₹23,622 करोड़ तक पहुँच गए।
    • निर्यात में रडार सिस्टम, मिसाइलें, तोपखाने की बंदूकें और गश्ती पोत शामिल हैं, जिन्हें वियतनाम, फिलीपींस और कई अफ्रीकी देशों को आपूर्ति किया गया है।
    • यह परिवर्तन भारत की उस दृष्टि से मेल खाता है, जिसके तहत वह एक नेट डिफेंस एक्सपोर्टर और विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार बनना चाहता है, विशेषकर ग्लोबल साउथ में।
      सरकार का लक्ष्य 2028–29 तक रक्षा निर्यात को ₹50,000 करोड़ तक पहुँचाने का है।

निजी क्षेत्र की भागीदारी और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी:

    • पहले राज्य-प्रभुत्व वाले रक्षा क्षेत्र में अब निजी कंपनियों और स्टार्ट-अप्स का स्वागत किया जा रहा है। टाटा, एलएंडटी, महिंद्रा डिफेंस, अडानी डिफेंस और भारत फोर्ज जैसी कंपनियों ने एयरोस्पेस, ड्रोन, बख्तरबंद वाहन और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्रों में प्रवेश किया है।
    • iDEX (Innovations for Defence Excellence) पहल ने 400 से अधिक स्टार्ट-अप्स को सहयोग दिया है, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), रोबोटिक्स, स्मार्ट हथियारों और साइबर सुरक्षा जैसी अत्याधुनिक तकनीकों पर काम कर रहे हैं।
    • इसकी उप-योजना ADITI (Acing Development of Innovative Technology with iDEX) महत्वपूर्ण और रणनीतिक प्रौद्योगिकियों के विकास पर केंद्रित है।

भारत की रक्षा वृद्धि को गति देने वाले तकनीकी नवाचार:

1.        कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI):
AI का उपयोग भविष्यवाणी आधारित रखरखाव, निर्णय-निर्माण और लक्ष्य पहचान में किया जा रहा है। रक्षा मंत्रालय ने 2022 में 75 AI-आधारित उत्पाद लॉन्च किए और हर वर्ष लगभग 12.6 मिलियन डॉलर की राशि एआई परियोजनाओं के लिए आवंटित की गई है।

2.      स्वायत्त प्रणालियाँ और रोबोटिक्स:
भारत नेट्रा’ UAV और DRDO के दक्षरोबोट जैसे मानवरहित प्रणालियों में प्रगति कर रहा है, जो निगरानी और बम निष्क्रिय करने में उपयोग होते हैं।

3.      साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध:
रक्षा साइबर एजेंसी, NTRO और DIA साइबर सुरक्षा क्षमताओं का विकास कर रहे हैं। DRDO की शक्तिइलेक्ट्रॉनिक वारफेयर प्रणाली ने दुश्मन की संचार और रडार नेटवर्क बाधित करने की भारत की क्षमता को बढ़ाया है।

4.     3D प्रिंटिंग और उन्नत विनिर्माण:
एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन को क्रांतिकारी बना रही है। HAL और Wipro3D की साझेदारी ने एयरो इंजन के धातु घटकों की 3D प्रिंटिंग को सक्षम किया है, जिससे उत्पादन समय और लागत दोनों में कमी आई है।

5.      क्वांटम प्रौद्योगिकी:
DRDO के अधीन नवगठित क्वांटम टेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (QTRC) अति-सुरक्षित संचार पर केंद्रित है। IIT दिल्ली के सहयोग से इसने 1 किमी दूरी तक क्वांटम सुरक्षित संचार का सफल परीक्षण किया है।

6.     स्वदेशी रक्षा प्लेटफॉर्म:
INS विक्रांत, प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट्स, तेजस LCA Mk-1A और ATAGS तोपें जैसे प्लेटफॉर्म भारत की जटिल रक्षा प्रणालियों में बढ़ती घरेलू क्षमताओं को प्रदर्शित करते हैं।

स्थायी चुनौतियाँ:

    • भारत की लगभग 36% रक्षा खरीद अभी भी आयात पर निर्भर है।
    • जेट इंजन, रडार, मिसाइल सीकर और स्टील्थ सिस्टम जैसी महत्वपूर्ण तकनीकें अभी विदेशी स्रोतों से आती हैं।
    • साइबर सुरक्षा में अंतराल और कुशल पेशेवरों की कमी (लगभग 8 लाख विशेषज्ञों की आवश्यकता) डिजिटल रक्षा को कमजोर बनाती है।
    • ब्यूरोक्रेसी और नियामक बाधाओं के कारण निजी क्षेत्र का एकीकरण धीमा है।
    • रक्षा गलियारे सैन्य आवश्यकताओं में उतार-चढ़ाव और असंगत नीति कार्यान्वयन के कारण पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाए हैं।
    • भारत का वैश्विक रक्षा निर्यात में हिस्सा अभी भी सीमित है, जो समय पर आपूर्ति और बिक्री के बाद सहायता से संबंधित चिंताओं से प्रभावित है।

आगे की राह:

1.        सार्वजनिकनिजी सहयोग को प्रोत्साहित करना: DPSU और निजी कंपनियों के बीच संयुक्त उपक्रम नवाचार और उत्पादन दक्षता को बढ़ा सकते हैं।

2.      तकनीकी हस्तांतरण और अनुसंधान पर ध्यान: उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकियों जैसे इंजन और सेंसर में स्वदेशी अनुसंधान में निवेश बढ़ाना आवश्यक है।

3.      रक्षा निर्यात को सुदृढ़ बनाना: भारत को समय पर डिलीवरी और गुणवत्ता आश्वासन में विश्वसनीय प्रतिष्ठा बनानी होगी ताकि दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में निर्यात बाजार बढ़ सके।

4.     रक्षा कौशल विकास: रक्षा इंजीनियरिंग, AI और साइबर सुरक्षा के लिए विशेष प्रशिक्षण संस्थान और Defence Talent Academy स्थापित की जा सकती है।

5.      इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड्स: इनके कार्यान्वयन में तेजी लाने से सेवाओं के बीच समन्वय और संसाधन-साझेदारी में सुधार होगा।

निष्कर्ष:

भारत का रक्षा क्षेत्र एक आयातक राष्ट्र से उभरते वैश्विक रक्षा केंद्र की ओर, ऐतिहासिक रूपांतरण से गुजर रहा है । आत्मनिर्भर भारत पहल ने राष्ट्रीय सुरक्षा को आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्वायत्तता के साथ पुनर्परिभाषित किया है।हालांकि पूर्ण तकनीकी स्वतंत्रता हासिल करना अभी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन भारत का नवाचार पारिस्थितिकी, निजी क्षेत्र की भागीदारी और निर्यात सफलता इसे एक आत्मविश्वासी, सक्षम और स्वावलंबी शक्ति के रूप में स्थापित कर रहे हैं। यदि निवेश, कौशल विकास और नीतिगत समर्थन निरंतर जारी रहे, तो भारत का निर्माता राष्ट्र, न कि खरीदार बाजारबनने का सपना शीघ्र ही वास्तविकता बन जाएगा।

 

UPSC/PSC मुख्य प्रश्न: भारत का रक्षा रूपांतरण आयात निर्भरता से तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक परिवर्तन का प्रतीक है। हाल के वर्षों में इस परिवर्तन को संचालित करने वाले प्रमुख नीतिगत सुधारों और संस्थागत तंत्रों पर चर्चा कीजिए।