संदर्भ:
भारत के रक्षा क्षेत्र ने पिछले दशक में महत्वपूर्ण प्रगति की है। जो क्षेत्र पहले मुख्यतः आयात पर निर्भर था, वह अब आत्मनिर्भर और विकासशील उद्योग में बदल रहा है। सरकार ने 2029 तक ₹3 लाख करोड़ के रक्षा निर्यात का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है और भारतीय रक्षा उत्पाद पहले ही 90 से अधिक देशों में निर्यात किए जा रहे हैं। यह परिवर्तन भारत की सैन्य शक्ति को मजबूत करने और विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने की बड़ी रणनीति का हिस्सा है। रक्षा बजट में भी भारी वृद्धि हुई है, 2013–14 के ₹2.53 लाख करोड़ से बढ़कर 2025–26 में ₹6.81 लाख करोड़ हो गया है जो राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार के सशक्त फोकस को दर्शाता है।
· ‘मेक इन इंडिया’, रक्षा गलियारों का विकास, निजी कंपनियों को समर्थन, और नई तकनीकों में निवेश जैसे प्रयासों ने इस रूपांतरण में योगदान दिया है। आज भारत केवल अपनी सशस्त्र सेनाओं का आधुनिकीकरण ही नहीं कर रहा, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रमुख भागीदार बन रहा है।
आयात पर निर्भरता से रिकॉर्ड उत्पादन तक:
- पिछले दशक में भारत ने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखा है। 2014–15 में देशीय उत्पादन ₹46,429 करोड़ था। 2023–24 में यह बढ़कर ₹1.27 लाख करोड़ हो गया, लगभग 174 प्रतिशत की वृद्धि।
- आत्मनिर्भर भारत की इस रणनीतिक बदलाव ने सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (PSUs) और निजी कंपनियों दोनों को वायु, थल, जल और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में मजबूत विनिर्माण आधार तैयार करने की शक्ति दी।
- यह गति 2024–25 में भी बनी रही। रक्षा मंत्रालय ने इस वर्ष 193 अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए, जिनका कुल मूल्य ₹2,09,050 करोड़ रहा जो अब तक का सर्वाधिक है। इनमें से 177 अनुबंध (₹1,68,922 करोड़) भारतीय कंपनियों को दिए गए, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि आयात से देशीय उत्पादन की ओर एक निर्णायक मोड़ आया है।यह न केवल उत्पादन को बढ़ाता है, बल्कि रोजगार सृजन, तकनीकी क्षमताओं में सुधार और घरेलू रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को भी सुदृढ़ करता है।
स्वदेशी रक्षा विकास के प्रमुख स्तंभ:
रक्षा औद्योगिक गलियारे:
रणनीतिक रक्षा निर्माण के लिए अवसंरचना की आवश्यकता होती है। इसके तहत भारत ने दो रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना की:
• उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में, कुल 11 औद्योगिक नोड्स।
• फरवरी 2025 तक ₹8,658 करोड़ के निवेश प्रतिबद्धताएँ प्राप्त हो चुकी थीं और 253 एमओयू के माध्यम से ₹53,439 करोड़ के संभावित निवेश के संकेत मिले हैं।
पॉजिटिव इंडिजेनाइजेशन लिस्ट:
भारत ने पाँच "पॉजिटिव इंडिजेनाइजेशन लिस्ट" जारी की हैं, जो आयात पर रोक लगाकर घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करती हैं। 5,500 से अधिक वस्तुओं को कवर करते हुए, इन सूचियों के अंतर्गत फरवरी 2025 तक 3,000 वस्तुओं का स्वदेशीकरण हो चुका था। इनमें शामिल हैं:
• आर्टिलरी गन
• असॉल्ट राइफलें
• कॉर्वेट युद्धपोत
• सोनार प्रणाली
• ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट
• लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर (LCH)
• राडार
• व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म
• रॉकेट, बम
• कमांड-पोस्ट और डोज़िंग के लिए बख्तरबंद वाहन
नवाचार में iDEX की भूमिका:
अप्रैल 2018 में “इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX)” कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जिससे एमएसएमई, स्टार्टअप, अनुसंधान संस्थानों और अकादमिक संस्थाओं के ज़रिए रक्षा नवाचार को प्रोत्साहन मिला। प्रमुख बिंदु:
• प्रत्येक परियोजना के लिए ₹1.5 करोड़ तक का अनुदान।
• iDEX समर्थित संस्थाओं से ₹2,400 करोड़ मूल्य की 43 वस्तुओं की खरीद।
• FY 2025–26 के लिए ₹449.62 करोड़ का आवंटन (ADITI उप-योजना सहित)।
• फरवरी 2025 तक: 549 समस्या कथन, 619 प्रतिभागी, 430 अनुबंध।
संरचनात्मक नीति सुधार और निवेश वातावरण:
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) उदारीकरण (सितंबर 2020): स्वचालित मार्ग से 74 प्रतिशत तक निवेश की अनुमति, उसके ऊपर सरकारी मार्ग से। अप्रैल 2000 से अब तक ₹5,516.16 करोड़ का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
- टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स, वडोदरा (अक्टूबर 2024): C 295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट निर्माण हेतु 56 में से 40 विमान भारत में निर्मित
- मंथन (एरो इंडिया 2025): बेंगलुरु में रक्षा नवाचार सम्मेलन—स्टार्टअप, निवेशकों, शैक्षणिक संस्थाओं और रक्षा के बीच संपर्क।
- डिफेंस टेस्टिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर स्कीम (DTIS): आठ ग्रीनफील्ड परीक्षण सुविधाओं के लिए समर्थन; सात पहले ही स्वीकृत (UAS, EW, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स, कम्युनिकेशन)।
- घरेलू खरीद को प्राथमिकता: DAP 2020 के तहत, FY 2025–26 के आधुनिकीकरण बजट का 75 प्रतिशत (₹1,11,544 करोड़) घरेलू उत्पादन के लिए आरक्षित।
भारत का रक्षा निर्यात:
2013–14 में ₹686 करोड़ से बढ़कर 2024–25 में ₹23,622 करोड़ तक पहुंचा जो 34 गुना वृद्धि है। निर्यात का विस्तार और विविधता भारत को एक भरोसेमंद वैश्विक रक्षा नवोन्मेषक के रूप में स्थापित करती है।
2024–25 की प्रमुख उपलब्धियाँ:
• ₹15,233 करोड़ निजी क्षेत्र से, ₹8,389 करोड़ DPSUs से (2023–24 में क्रमशः ₹15,209 करोड़ और ₹5,874 करोड़)।
• DPSU निर्यात में 42.85 प्रतिशत वृद्धि।
• 1,762 निर्यात प्राधिकरण (16.9 प्रतिशत वृद्धि), 17.4 प्रतिशत अधिक निर्यातक।
• निर्यात किए गए उत्पाद: बुलेट-प्रूफ जैकेट, पेट्रोल जहाज़, डोर्नियर विमान, चेतक हेलिकॉप्टर, टॉरपीडो।
• 100+ देशों में पहुँच—अमेरिका, फ्रांस, आर्मेनिया सहित।
• महत्वपूर्ण उपलब्धि: ब्रह्मोस मिसाइल अनुबंध (जनवरी 2022) फिलीपींस के साथ—US$375 मिलियन।
प्रमुख अधिग्रहण और स्वदेशी कार्यक्रम:
1. ब्रह्मोस मिसाइल – मार्च 2024 में ₹19,518.65 करोड़ का अनुबंध, साथ ही ₹988.07 करोड़ जहाज-लॉन्च संस्करण हेतु। संयुक्त उपक्रम स्तर पर 9 लाख मानव दिवस और सहायक उद्योगों में 1.35 करोड़ मानव दिवस का सृजन।
2. MQ 9B ड्रोन – अमेरिका से 31 ड्रोन की खरीद—दीर्घ दूरी की निगरानी और सटीक हमले के लिए।
3. LCH प्रचंड हेलिकॉप्टर – 28 मार्च 2025 को 156 हेलिकॉप्टर के अनुबंध (₹62,700 करोड़), डिलीवरी तीन वर्षों में शुरू होगी। “65% से अधिक स्वदेशी सामग्री”, 250 MSMEs शामिल—8,500+ नौकरियाँ।
4. AMCA (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) – मई 2025 में AMCA निष्पादन मॉडल स्वीकृत; ADA द्वारा औद्योगिक साझेदारियों के साथ क्रियान्वयन।
5. KC 135 फ्लाइट रिफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट – पहली बार वेट-लीज़ के माध्यम से प्रशिक्षण हेतु; छह महीनों में तैनात।
6. ATAGS तोपें – 307 तोपों और 327 टोइंग वाहनों की खरीद (₹7,000 करोड़)। DRDO, भारत फोर्ज, TAS द्वारा सह-विकसित; 40 किमी रेंज, स्वचालित लोडिंग; कठोर परीक्षण।
चुनौतियाँ और अवसर:
• घरेलू उत्पादन: इस गति को बनाए रखने के लिए अनुसंधान एवं विकास को गहरा करना और उत्पादन क्षमता का विस्तार आवश्यक है। भारत को 2029 तक ₹50,000 करोड़ निर्यात लक्ष्य पाने हेतु वैश्विक तकनीकी समता पर ध्यान देना होगा।
• प्रोक्योरमेंट दक्षता: DAP 2020 की घरेलू खरीद पहल स्वागत योग्य है, लेकिन नौकरशाही और खरीद समय सीमाएँ प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकती हैं। प्रक्रियाओं को सरल, मूल्यांकन पारदर्शी और उद्योग प्रतिक्रिया मज़बूत होनी चाहिए।
• नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: iDEX ने आधारशिला रखी है, लेकिन प्रोटोटाइप से पूर्ण उत्पादन तक पहुँचना अब भी चुनौती है। बेहतर इनक्यूबेशन, परीक्षण, वित्त और बाज़ार तक पहुँच आवश्यक है।
• कौशल विकास: उच्च स्तरीय उत्पादन के लिए कुशल कार्यबल की आवश्यकता है, विशेष रूप से एयरोस्पेस, एवियोनिक्स, डिजिटल सिस्टम्स और इंटीग्रेशन में। रक्षा गलियारे और परीक्षण केंद्रों के साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण और अनुसंधान शिक्षा का तालमेल ज़रूरी है।
• निर्यात रणनीति: उन्नत प्रणालियों, मिसाइल, UAV, कॉम्बैट एयरक्राफ्ट का निर्यात गुणवत्ता के साथ-साथ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, प्रमाणन, और राजनयिक समझौतों पर निर्भर है। मित्र देशों के साथ साझेदारी, तकनीक हस्तांतरण समझौते, और ऑफसेट तंत्र निर्णायक होंगे।
• क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य: दक्षिण एशिया का बदलता खतरा वातावरण (चीन, पाकिस्तान, प्रॉक्सी नेटवर्क) स्वदेशी रक्षा तत्परता की माँग करता है। स्वदेशी क्षमताओं को रणनीतिक सिद्धांत, कूटनीति और एकीकृत युद्ध तैयारी से समर्थन मिलना चाहिए।
निष्कर्ष:
भारत की बढ़ती रक्षा औद्योगिक क्षमता, आत्मनिर्भर और वैश्विक प्रतिस्पर्धा वाले राष्ट्र की महत्वाकांक्षा को मूर्त रूप दे रही है। रक्षा प्रणालियों का आयातक बनने से लेकर निर्माता और निर्यातक बनने तक की राह अब स्पष्ट है। रणनीतिक स्पष्टता, अनुकूल नीतियाँ, अवसंरचना, निवेश और नवाचार एक साथ आ रहे हैं।
यदि स्पष्ट राजनीतिक इच्छाशक्ति और सतत सुधार जारी रहे, तो भारत न केवल अपने ऐतिहासिक रक्षा आयात निर्भरता को पार कर सकता है, बल्कि एक वैश्विक रक्षा विनिर्माण शक्ति बनकर उभर सकता है।
मुख्य प्रश्न- "भारत का रक्षा आयातक से निर्यातक बनना व्यापार संबंधी परिवर्तन के बजाय रणनीतिक परिवर्तन को दर्शाता है।" हाल के नीतिगत उपायों और औद्योगिक विकास के प्रकाश में इस कथन की आलोचनात्मक जांच करें। (250 शब्द) |