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Daily-current-affairs / 10 Dec 2023

भारत में निश्चित खुराक संयोजन (FDC) की जटिल पहेली - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 11/12/2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2- सामाजिक न्याय और स्वास्थ्य

कीवर्ड्स: निश्चित खुराक संयोजन (FDC), जीवाणुरोधी माइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR), भारत के औषधि महानियंत्रक (DGCI), एंटीबायोटिक कुप्रबंधन

संदर्भ-

  • जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल पॉलिसी एंड प्रैक्टिस (2023) में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के अप्रमाणित और प्रतिबंधित निश्चित खुराक संयोजन (Fixed Dose Combination-FDC) के बढते उपयोग पर प्रकाश डाला है।
  • 2020 से फार्मास्युटिकल उद्योग की बिक्री के आंकड़ों पर आधारित अध्ययन से पता चलता है कि 60.5% एंटीबायोटिक एफडीसी (239 फॉर्मूलेशन सहित) अप्रमाणित थे, जबकि अन्य 9.9% (39 फॉर्मूलेशन) प्रतिबंधित होने के बावजूद बेंचे जा रहे थे।
  • यह प्रवृत्ति भारत में जीवाणुरोधी माइक्रोबियल प्रतिरोध (Antibacterial Microbial Resistance-AMR) की बढ़ती समस्या और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर चिंताजनक स्थिति बयां करती है।


निश्चित खुराक संयोजन (FDC)

  • निश्चित खुराक संयोजन (FDCs) दो या दो से अधिक दवाओं का संयोजन होता है जो एकल इकाई के रूप में बेंचे जाते हैं। इन्हें कंपाउंड दवाएं, बहु-सामग्री दवाएं या कंपोजिशन दवाएं भी कहा जाता है।
  • आपको बता दें कि एफडीसी का उपयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है, जैसे- संक्रमण, दर्द और सूजन आदि ।

दवा उद्योग द्वारा एफडीसी का उपयोग

  • भारत में दवा उद्योग ने नियामक ढांचे और मूल्य निर्धारण नियंत्रणों को दरकिनार करने के साधन के रूप में एफडीसी का इस्तेमाल किया है।
  • दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (DPCO) सरकार को एकल दवाओं की कीमतें तय करने की अनुमति देता है। चूंकि दवा संयोजन(एफडीसी) ,डीपीसीओ के तहत शामिल नहीं हैं, इसलिए दवा कंपनियों ने एफडीसी को मूल्य नियंत्रण से बचने का एक रणनीतिक तरीका बना लिया है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं के बजाय बाजार हितों से प्रेरित होकर, दवा उद्योग ने चिकित्सा औचित्य की कमी वाली एफडीसी को काफी बढ़ावा दिया है।
  • इसमें विटामिन के साथ एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं, एंटी-डायरिया एजेंटों के साथ एंटी-हिस्टामाइन और सल्फोनामाइड्स के साथ पेनिसिलिन जैसे जटिल संयोजन शामिल हैं।

विनियामक खामियां

  • एफडीसी से संबंधित विनियामक ढांचा 1978 से चिंता का कारण रहा है, जब पहली बार सरकारी समिति ने इस मुद्दे को मान्यता प्रदान की थी।
  • 1982 के संशोधनों ने केंद्र सरकार को चिकित्सीय मूल्य की कमी वाली दवाओं के निर्माण को प्रतिबंधित करने की शक्ति प्रदान की। इसके बाद 1988 के संशोधनों ने दवा निर्माताओं के लिए एफडीसी सहित सभी "नई दवाओं" हेतु भारत के औषधि महानियंत्रक को सुरक्षा और प्रभावकारिता का प्रमाण प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया था।
  • स्पष्ट कानूनी प्रावधानों के बावजूद, राज्य के दवा नियंत्रकों ने गैर-अनुमोदित एफडीसी के लिए विनिर्माण लाइसेंस जारी करके नियमित रूप से कानून का उल्लंघन किया है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय ने आपराधिक अभियोजन चलाने के बजाय, विशिष्ट एफडीसी के निर्माण को प्रतिबंधित करने के लिए धारा 26ए के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए एक प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण का सहारा लिया है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव

  • दवा कंपनियां अवैध रूप से एंटीबायोटिक्स के खतरनाक संयोजन को बेंच रही हैं। 2020 में केवल एक प्रकार की दवा में ही 239 अवैध संयोजन बेंचे गए, जो चिंता उत्पन्न करता है। यह नियामक ढांचे की 42 साल लंबी विफलता को उजागर करता है।
  • पर्याप्त निरीक्षण की कमी न केवल रोगी की सुरक्षा से समझौता करती है बल्कि भारत में एएमआर की बढ़ती समस्या में भी योगदान देती है।

अदृश्य खतराः एंटीबायोटिक कुप्रबंधन

  • सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक यह है कि इन अननुमोदित या प्रतिबंधित एफडीसी में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा एंटीबायोटिक दवाओं का हैं। एक ऐसे देश में जो जीवाणुरोधी माइक्रोबियल प्रतिरोध के बढ़ने से जूझ रहा है, ऐसे फॉर्मूलों का प्रसार एक गंभीर खतरा बन गया है।
  • एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग और अत्यधिक उपयोग दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ा सकता है। जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त जोखिम पैदा हो जाता है।

मूल कारणः सार्वजनिक स्वास्थ्य की बजाय बाजार को प्राथमिकता

  • दवा कंपनियां एफडीसी का इस्तेमाल इसलिए करती हैं क्योंकि वे इनके जरिए ज्यादा पैसे कमा सकती हैं और सख्त नियमों से बच सकती हैं। दवाओं को मिलाकर एक नया उत्पाद बनाने के बाद, कंपनियां ज्यादा कीमत वसूल सकती हैं क्योंकि इसमें कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती है।
  • इस नकली नवाचार को नियमों का भी समर्थन प्राप्त है, जो वास्तविक दवा नवाचार के बजाय इस तरह के संयोजन को पुरस्कृत करते हैं।

डॉक्टरों की भूमिका: प्रिस्क्रिप्शन की दुविधा

  • इस समस्या के लिए केवल दवा कंपनियों को ही जिम्मेदार ठहराना गलत है। अध्ययन में देखा गया है कि कई डॉक्टर अनजाने में इस समस्या में योगदान करते हैं।
  • दवाओं को नियंत्रित करने वाले नियमों के प्रति गलत विश्वास के कारण, डॉक्टर अक्सर मान लेते हैं कि बाजार में मौजूद किसी उत्पाद का पूरी तरह से परीक्षण किया गया है।
  • यह चिकित्सा समुदाय के भीतर एफडीसी की बारीकियों और उनके उपयोग से जुड़े संभावित जोखिमों के बारे में जागरूकता और शिक्षा बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

नियमन में खामियां और ‘व्हाक-ए-मोल’ (Whack-a-Mole) दृष्टिकोण

  • अवैध एफडीसी के लिए लगातार मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस जारी किए जाने से नियमन में विफलताएं स्पष्ट हैं।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय एक सक्रिय रुख अपनाने के बजाय, "व्हाक-ए-मोल" दृष्टिकोण का सहारा लेता है, जिसके बाद निषेधाज्ञा जारी करता है।
  • इससे न केवल कानूनी उलझन पैदा होती है, बल्कि यह संदिग्ध एफडीसी के लिए विनिर्माण लाइसेंस जारी करने के मूल कारण को भी संबोधित करने में विफल रहता है।

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और सहयोगात्मक समाधान

  • एफडीसी समस्या को हल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सहित एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • अन्य देशों, विशेष रूप से मजबूत नियामक ढांचे वाले देशों में सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखकर, यह जानने में मदद मिल सकती है कि एफडीसी को प्रभावी ढंग से कैसे प्रबंधित किया जाए ?
  • वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों और दवा नियामक निकायों के साथ सहयोगात्मक प्रयास एफडीसी के अनुमोदन और निगरानी के लिए व्यापक दिशानिर्देश स्थापित करने में योगदान कर सकते हैं।

तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को देखते हुए, स्वास्थ्य मंत्रालय को त्वरित और निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए।
  • विशेष रूप से एंटीबायोटिक्स युक्त, अनुमोदित और प्रतिबंधित एफडीसी का अनियंत्रित प्रसार देश के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है।
  • तत्काल प्रयासों में मौजूदा नियमों का कठोरता से पालन, राज्य के दवा नियंत्रकों की निगरानी और एफडीसी को नियंत्रित करने वाले नियामक ढांचे की एक व्यापक समीक्षा होनी चाहिए।

निष्कर्ष

भारत में अप्रमाणित और प्रतिबंधित एफडीसी, खासकर एंटीबायोटिक्स युक्त एफडीसी का मुद्दा तत्काल ध्यान और व्यापक सुधार की मांग करता है। दवा उद्योग की जटिलताओं को दूर करने के लिए नियामक ढांचे को विकसित होना चाहिए और दवा उद्योग को मुनाफे से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। नियामक निकायों, चिकित्सा समुदाय और अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के बीच सहयोगात्मक प्रयास भारत में अनियंत्रित एफडीसी के प्रसार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं। केवल एक ठोस और व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से ही भारत एंटीबायोटिक दुरुपयोग और जीवाणुरोधी माइक्रोबियल प्रतिरोध के संबद्ध जोखिमों के बढ़ते खतरे को कम करने की उम्मीद कर सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. भारत में अप्रमाणित और प्रतिबंधित निश्चित खुराक संयोजन (एफडीसी), की व्यापक उपलब्धता की अनुमति देने वाली नियामक चुनौतियों का मूल्यांकन करें। विनियामक ढांचे को मजबूत करने के लिए संभावित उपाय सुझाएं। (10 Marks, 150 Words)
  2. बाजार हितों द्वारा संचालित भारत में चिकित्सकीय रूप से संदिग्ध निश्चित खुराक संयोजन (FDC) को बढ़ावा देने में दवा उद्योग की भूमिका की जांच करें। औषधीय क्षेत्र में नवाचार और सार्वजनिक स्वास्थ्य को संतुलित करने हेतु सरकार के लिए रणनीतियों पर चर्चा करें। (15 Marks, 250 Words)

Source- The Hindu



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