संदर्भ-
वर्तमान वैश्विक पारिस्थितिक संकटों में प्लास्टिक प्रदूषण एक प्रत्यक्ष और गहन चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है। हर बार जब भी कोई व्यक्ति प्लास्टिक की बोतल से जल ग्रहण करते हैं या एकल-प्रयोग वाले रैपर का परित्याग करते हैं, तब अनजाने में उस प्रदूषण चक्र को पोषित करते हैं, जिसकी परिणति न केवल नदियों एवं महासागरों के दूषित होने में होती है, बल्कि यह मानव खाद्य श्रृंखला तक को प्रभावित करता है। प्लास्टिक अब इस पृथ्वी के प्रत्येक भू-भाग में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है चाहे वह महासागरों की अतल गहराइयाँ हों अथवा वह वायुमंडल जिसकी वायु में हम सांस लेते हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस के सन्दर्भ में, जो प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है, वर्ष 2025 की थीम "प्लास्टिक प्रदूषण का समापन" वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित और ठोस कार्रवाई की तात्कालिक आवश्यकता की ओर संकेत करती है। यह दिवस, जिसे 1973 से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के तत्वावधान में संचालित किया जा रहा है, पर्यावरणीय जागरूकता के प्रसार हेतु विश्व का सबसे व्यापक मंच बन चुका है और इसे 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में इस वैश्विक आयोजन की मेज़बानी कोरिया गणराज्य द्वारा की जा रही है। इस वर्ष का अभियान—#BeatPlasticPollution—नागरिकों से अपेक्षा करता है कि वे प्लास्टिक के उपभोग को अस्वीकार करें, न्यूनतम करें, पुनः प्रयोग में लाएँ, पुनः चक्रण करें एवं समग्र रूप से अपने प्लास्टिक-उपयोग व्यवहार का पुनर्विचार करें।
प्लास्टिक प्रदूषण पर भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं
1. बासेल, रॉटरडैम और स्टॉकहोम सम्मेलन (2019): भारत ने जिनेवा में इन सम्मेलनों की संयुक्त बैठकों में भाग लिया और खतरनाक कचरे, जिसमें प्लास्टिक भी शामिल है, को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत ने विकासशील देशों में ई-कचरे के डंपिंग के चलन का कड़ा विरोध किया और अधिक सख्त वैश्विक नियमों की वकालत की। खास बात यह रही कि भारत ने बासेल सम्मेलन के पूर्व-सूचित सहमति (PIC) प्रक्रिया के तहत प्लास्टिक कचरे को शामिल करने का समर्थन किया, जिससे किसी भी देश को प्लास्टिक कचरे के आयात से पहले जानकारी देना और अनुमति लेना आवश्यक हो गया। भारत ने सिंगल-यूज़ प्लास्टिक को चरणबद्ध रूप से हटाने और अवैध प्लास्टिक डंपिंग को रोकने हेतु अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों का भी समर्थन किया।
2. G20 ओसाका ब्लू ओशन विज़न (2019): G20 नेताओं के घोषणापत्र के हिस्से के रूप में, भारत ने समुद्री प्लास्टिक कचरे और सूक्ष्म-प्लास्टिक को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने का संकल्प लिया, और 2050 तक महासागरों में प्लास्टिक कचरे के किसी भी और निर्वहन को रोकने का दीर्घकालिक लक्ष्य रखा। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) जैसे औद्योगिक भागीदारों के साथ नवाचार, जागरूकता और कॉर्पोरेट जिम्मेदारी पर बल दिया।
3. प्रकृति और लोगों के लिए उच्च महत्वाकांक्षा गठबंधन (2021): भारत ने यह वैश्विक पहल पेरिस में वन प्लैनेट समिट के दौरान अपनाई। यह गठबंधन 2030 तक दुनिया के कम से कम 30% भूमि और महासागर क्षेत्रों की रक्षा करने का लक्ष्य रखता है। प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना इस एजेंडा का केंद्र है, क्योंकि इसका जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
भारत की घरेलू नीति परिदृश्य: कानून और नियम
भारत ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक विस्तृत और विकसित कानूनी ढांचा तैयार किया है, जो मुख्य रूप से पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत आता है। इस प्रयास का मुख्य आधार है प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2021, जो पिछले नियमों की तुलना में कहीं अधिक कठोर हैं।
मुख्य प्रावधानों में शामिल हैं:
• पहचाने गए सिंगल-यूज़ प्लास्टिक (SUP) पर प्रतिबंध: 1 जुलाई 2022 से, भारत ने उन SUP वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया जिनकी उपयोगिता कम और कचरा फैलाने की क्षमता अधिक थी।
• 120 माइक्रॉन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध: 31 दिसंबर 2022 से, इस सीमा से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाया गया ताकि पुनः चक्रण की क्षमता बढ़ाई जा सके।
• 60 GSM से कम के नॉन-वोवन प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध: 30 सितंबर 2021 से प्रभावी, यह नियम हल्के वजन वाले प्लास्टिक बैग को लक्षित करता है जिन्हें इकट्ठा करना और पुनः चक्रित करना कठिन होता है।
इन केंद्रीय उपायों के अलावा, कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार विशिष्ट प्रतिबंध और प्रवर्तन तंत्र लागू किए हैं।
विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उद्योग को उत्तरदायी बनाना
भारत ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) यानी इस ढांचे को लागू किया है ताकि निर्माताओं को उनके उत्पादों से उत्पन्न प्लास्टिक कचरे के लिए उत्तरदायी बनाया जा सके।
• दिसंबर 2024 तक, 50,131 उत्पादक, आयातक और ब्रांड स्वामी केंद्रीय EPR पोर्टल पर पंजीकृत थे।
• 2,840 प्लास्टिक कचरा प्रोसेसर इस प्रणाली का हिस्सा हैं।
• इस तंत्र के माध्यम से 103 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरे का प्रसंस्करण किया जा चुका है।
EPR यह अनिवार्य करता है कि कंपनियाँ अपने प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे को एकत्रित करें, पुनः चक्रित करें या सुरक्षित रूप से निपटान करें, जिससे एक बंद लूप (closed-loop) प्रणाली बनाई जा सके और पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके। ऑनलाइन पोर्टल पारदर्शिता और अनुपालन निगरानी को बेहतर बनाता है।
इसके अतिरिक्त, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने पैकेजिंग विनियम (2018) जारी किए हैं, जो प्रदूषकों के संक्रमण की सीमाओं को निर्दिष्ट करते हैं और खाद्य-ग्रेड सुरक्षित प्लास्टिक के उपयोग को अनिवार्य करते हैं, जो गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज़ (GMP) के अनुसार हों।
विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार: एक सर्कुलर इकोनॉमी की ओर-
भारत प्लास्टिक में सर्कुलर इकोनॉमी विकसित करने के लिए प्रौद्योगिकी में भारी निवेश कर रहा है जहां कचरे को संसाधन के रूप में देखा जाता है। प्रमुख पहलों में शामिल हैं:
• CSIR और उद्योग सहयोग: वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने प्लास्टिक कचरे को डीजल, टाइल्स, फ्यूल ऑयल, हाइड्रोजन और हरित प्लास्टिसाइज़र में परिवर्तित करने की तकनीकें विकसित की हैं। दिल्ली विकास प्राधिकरण और निजी कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
• TDB-DST और APChemi Pvt. Ltd. (2025): यह साझेदारी प्यूरिफाइड पाइरोलिसिस ऑयल के उत्पादन पर केंद्रित है, जिसका उपयोग टिकाऊ प्लास्टिक और रसायन बनाने में होता है।
• 18 उत्कृष्टता केंद्र (Centres of Excellence - CoEs): रसायन और पेट्रोकेमिकल विभाग (DCPC) के तहत स्थापित, जो जैविक प्लास्टिक और पुनः चक्रण नवाचारों पर शोध करते हैं।
• CSIR निवेश: CSIR ने तीन वर्षों में ₹345 करोड़ स्वीकृत किए हैं, जो प्लास्टिक के विकल्प और कचरे के कुशल रूपांतरण पर आधारित 15 स्थिरता परियोजनाओं पर केंद्रित हैं।
प्लास्टिक पार्क: सतत प्रोसेसिंग के लिए औद्योगिक क्लस्टर
नई पेट्रोकेमिकल्स योजना के अंतर्गत प्लास्टिक पार्क विकसित किए जा रहे हैं, जो विशेष क्षेत्र हैं जहाँ कई प्लास्टिक प्रसंस्करण इकाइयाँ एकत्रित होती हैं। सरकार द्वारा:
• प्रत्येक परियोजना के लिए अधिकतम ₹40 करोड़ तक, 50% तक की सहायता दी जाती है।
• अब तक भारत भर में 10 प्लास्टिक पार्कों को मंजूरी दी जा चुकी है।
ये पार्क उत्पादन, पुनः चक्रण और अनुसंधान कार्यों को केंद्रीकृत करते हैं, जिससे लागत में कमी और पर्यावरणीय सहक्रियाएं प्राप्त होती हैं।
स्वच्छ भारत मिशन: अवसंरचना और जागरूकता को सशक्त बनाना
• स्वच्छ भारत मिशन (SBM)-ग्रामीण चरण II (अप्रैल 2020 से):
o ग्रामीण अपशिष्ट प्रबंधन पर केंद्रित।
o प्रत्येक ब्लॉक के लिए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाई (PWMU) हेतु ₹16 लाख तक का अनुदान।
o क्लस्टर-आधारित मॉडल को बढ़ावा, जिससे कई क्षेत्रों को एक साथ कवर किया जा सके।
• SBM-शहरी 2.0 (अक्टूबर 2021 को प्रारंभ):
o “कचरा मुक्त शहरों” के लिए 3-स्टार प्रमाणीकरण का लक्ष्य।
o 2021–2026 के लिए ₹1.41 लाख करोड़ का आवंटन।
o घर-घर संग्रह, स्रोत पर कचरे का पृथक्करण, प्लास्टिक में कमी और अपशिष्ट ढेर (legacy waste) के उपचार पर बल।
स्थानीय नवाचार: समुदाय आधारित प्लास्टिक विकल्प
• कमलपुर, त्रिपुरा: कमलपुर नगर पंचायत ने सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के स्थान पर PBAT आधारित कंपोस्टेबल बैग का उपयोग प्रारंभ किया, जिसे CIPET द्वारा प्रमाणित किया गया है। ये बैग 180 दिनों में पूरी तरह से विघटित हो जाते हैं।
• तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु: “थुनिप्पै तिरुविझा” पहल के अंतर्गत, GIZ इंडिया के सहयोग से त्रिची सिटी कॉर्पोरेशन ने किसानों के बाज़ारों में कपड़े के थैलों का प्रचार किया।
o तेनूर मार्केट: एक वर्ष में 2,200 किग्रा सिंगल-यूज़ प्लास्टिक की बचत।
o केके नगर: 4 महीनों में 620 किग्रा की बचत।
o वोरैयूर: 6 महीनों में 300 किग्रा की कमी।
निष्कर्ष
भारत की प्लास्टिक प्रदूषण के विरुद्ध रणनीति वैश्विक कूटनीति, घरेलू कानून, वैज्ञानिक नवाचार एवं नागरिक भागीदारी को समन्वित रूप से जोड़ती है। सिंगल-यूज़ प्लास्टिक को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने से लेकर पुनः चक्रण अवसंरचना के विस्तार और प्लास्टिक मुक्त बाज़ारों के समर्थन तक, देश एक परिपत्र और सतत प्लास्टिक अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है।
हालाँकि प्रवर्तन और नवाचारों के पैमाने पर कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, भारत का मॉडल समावेशी, प्रौद्योगिकी-प्रेरित पर्यावरणीय शासन के लिए एक मजबूत आधार प्रस्तुत करता है। यदि यह गति बरकरार रही, तो भारत न केवल अपने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है, बल्कि वैश्विक प्लास्टिक न्यूनीकरण लक्ष्यों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
मुख्य प्रश्न- भारत के सर्कुलर प्लास्टिक अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को आगे बढ़ाने में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की भूमिका पर चर्चा करें। प्लास्टिक संकट से निपटने में प्लास्टिक पार्क और सीएसआईआर की अपशिष्ट से ईंधन प्रौद्योगिकी जैसी पहल कितनी प्रभावी हैं? |