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Daily-current-affairs / 10 Jun 2025

भारत की आगामी जनगणना 2026–27: पहले से कहीं अधिक क्यों है महत्वपूर्ण

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संदर्भ:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित
हम भारत के लोगसे अभिप्रेत है जो एक राजनीतिक समुदाय का द्योतक है। इस संदर्भ में, जनगणना मात्र एक तकनीकी प्रक्रिया या जनसंख्या की संख्यात्मक गणना और श्रेणीकरण भर नहीं है। इस माध्यम से जनसंख्या को एक संगठित राजनीतिक समुदाय — 'जनता' — के रूप में रूपांतरित किया जाता है। यह 'जनता' साझा मूल्यों और दृष्टिकोणों के आधार पर यह निर्धारित करती है कि वह स्वयं को किस प्रकार शासित करेगी और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण कैसे सुनिश्चित किया जाएगा। इस प्रक्रिया के लिए यह अनिवार्य है कि यह जानकारी हो कि देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर कितने लोग निवास करते हैं, उनका वितरण कैसा है, वे किस प्रकार जीवन यापन करते हैं, और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन कितनी तीव्रता से घटित हो रहे हैं।"

  • लेकिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार, इस महत्वपूर्ण परंपरा में रुकावट आई। कोविड-19 महामारी के कारण 2021 की जनगणना स्थगित कर दी गई थी, और अब एक लंबे इंतज़ार के बाद भारत सरकार ने घोषणा की है कि अगली जनगणना दो चरणों में 2026 और 2027 के दौरान की जाएगी। यह डेटा 1 मार्च 2027 की स्थिति को दर्शाएगा। यह जनगणना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। 2011 के बाद से भारत में बहुत बदलाव आया है, लोग कैसे काम करते हैं, कैसे स्थान बदलते हैं, कैसे मतदान करते हैं और कैसे रहते हैं। ताज़ा और भरोसेमंद डेटा के बिना, नीतियां और निर्णय अंधेरे में लिए जा रहे हैं।

भारत में जनगणना के बारे में:
पहली समकालिक दशकीय (हर दस साल में) जनगणना 1881 में डब्ल्यू.सी. प्लौडेन की अध्यक्षता में की गई थी, जो उस समय भारत के जनगणना आयुक्त थे। स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना 1951 में हुई थी और तब से हर दशक के पहले वर्ष में यह होती रही है।

हालाँकि संविधान जनगणना कराने का आदेश देता है, लेकिन 1948 का जनगणना अधिनियम इसके समय या आवृत्ति को स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं करता है।

भारत में जनगणना गृह मंत्रालय के अंतर्गत रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा कराई जाती है।

जनगणना में कुल जनसंख्या की गिनती की जाती है और उन्हें विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है ग्रामीण और शहरी, अनुसूचित जातियाँ (SC) और अनुसूचित जनजातियाँ (ST), आर्थिक गतिविधियाँ, साक्षरता और शिक्षा, आवास और घरेलू सुविधाएँ, प्रवासन, प्रजनन और मृत्यु दर।

यह देश के नवीनतम प्रशासनिक नक्शे को भी दर्ज करती है। तकनीकी रूप से देखें तो जनगणना केवल वर्तमान वास्तविकता को दर्ज करती है। लेकिन उसे परिभाषित श्रेणियों में दर्ज करने की क्रिया स्वयं में नई वास्तविकताओं को जन्म देती है। कुछ प्राकृतिक जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियाँ स्वतः चल रही होती हैं, चाहे आप उन्हें दर्ज करें या नहीं।

भारत के लिए जनगणना क्यों है अत्यंत महत्वपूर्ण?

विवादों के बावजूद, जनगणना भारत में सबसे व्यापक, निष्पक्ष और आवश्यक जनसांख्यिकीय डेटा स्रोत बनी हुई है। यह वह आधारभूत ढांचा प्रदान करती है जिस पर अन्य सभी सर्वेक्षण, आर्थिक, सामाजिक और बाज़ार संबंधी आधारित होते हैं।

1. सभी सर्वेक्षणों के लिए डेटा की रीढ़
जनगणना निम्नलिखित महत्वपूर्ण डेटा बिंदुओं को दर्ज करती है:

·         उम्र और लिंग

·         पारिवारिक संरचना

·         रोजगार और आय

·         प्रवासन

·         भाषा, शिक्षा और विकलांगता

यह डेटा हर बड़े सरकारी सर्वेक्षण को दिशा देता है और निजी क्षेत्र को प्रवृत्तियों का पूर्वानुमान लगाने और उपभोक्ताओं को लक्षित करने में मदद करता है।

2. आर्थिक नीति को दिशा देना
मौद्रिक नीति के निर्णय जैसे ब्याज दरों को तय करना मुद्रास्फीति दर पर निर्भर करते हैं, जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) से प्राप्त होती है। लेकिन CPI का आधार उपभोग पैटर्न होता है जैसे कि आय का कितना हिस्सा भोजन पर खर्च होता है। यह पुराने सर्वेक्षणों पर आधारित होता है जो जनगणना डेटा से अपने नमूना ढांचे लेते हैं।

उदाहरण के लिए, अगर भोजन पर खर्च का वास्तविक हिस्सा घटकर 46% से 30% हो गया है, और हम अभी भी 46% मानकर चल रहे हैं, तो भोजन मुद्रास्फीति ज़्यादा लगेगी। इससे रिज़र्व बैंक ब्याज दरें अनावश्यक रूप से ऊँची रख सकता है, जिससे आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है।

3. प्रवासन पैटर्न को समझना
प्रवासन को अक्सर गलत समझा जाता है। आम धारणा के विपरीत, केवल 4% भारतीय ही अंतर-राज्यीय प्रवासन करते हैं। बाकी लगभग 96%  ज़िलों या राज्यों के भीतर ही स्थानांतरित होते हैं:

·         62% अंतर-जिला प्रवासन

·         26% अंतर-जनपदीय प्रवासन

·         केवल 12% अंतर-राज्यीय प्रवासन

इसके अलावा, अधिकांश प्रवासन ग्रामीण से ग्रामीण क्षेत्रों के बीच होता है, न कि ग्रामीण से शहरी की ओर। लेकिन यह स्थिति 2011 से अब तक काफ़ी बदल चुकी हो सकती है। ताज़ा और सटीक डेटा कल्याण योजनाओं, शहरी अवसंरचना और श्रम बाज़ारों की योजना बनाने के लिए आवश्यक है।

4. शहरीकरण और शहर नियोजन
अनुमानों के अनुसार, भारत में 30% से 70% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं यह अंतर प्रयुक्त परिभाषा पर निर्भर करता है। यह भारी भिन्नता शासन और बजट आवंटन को कठिन बना देती है।

अगर जनगणना यह दर्शाए कि ज़्यादा लोग शहरों में रहते और काम करते हैं, तो यह शहर शासन, अवसंरचना योजना, कर व्यवस्था और सेवाओं की आपूर्ति में मूलभूत बदलाव की मांग करेगा।

क्यों सर्वेक्षण जनगणना का स्थान नहीं ले सकते
कुछ लोग तर्क देते हैं कि बड़े पैमाने पर प्रशासनिक और डिजिटल डेटा जनगणना की जगह ले सकते हैं, लेकिन यह भ्रामक है:

·         प्रशासनिक डेटा राज्यों या विभागों के बीच मानकीकृत नहीं होता, जिससे तुलना कठिन हो जाती है।

·         विभागों द्वारा दी गई स्वघोषित जानकारी (जैसे स्वच्छता या स्कूल नामांकन पर) अक्सर राजनीतिक या नौकरशाही दबावों के कारण बढ़ा-चढ़ा कर दी जाती है।

एक मज़बूत उदाहरण है राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2020-21, जिसमें पाया गया कि 30% घरों में अब भी शौचालय नहीं हैं, जबकि सरकार ने 100% शौचालय कवरेज का दावा किया था।

विलंबता में देरी और कारण:
हर साल के साथ भारत की जनसांख्यिकीय वास्तविकता बदलती जा रही है और इसे सटीक रूप से दर्ज करना कठिन और महंगा होता जा रहा है। जब नीतियाँ पुराने डेटा पर आधारित होती हैं, तो संसाधनों का ग़लत आवंटन और नीतिगत विफलता का खतरा बढ़ता है।

इसके अलावा, जैसे-जैसे जनगणना जाति और परिसीमन जैसे राजनीतिक मुद्दों से जुड़ती जा रही है, यह और अधिक विवादास्पद और कम विश्वसनीय बनती जा रही है। यह 2026–27 की जनगणना को एक बड़ी चुनौती और एक महत्वपूर्ण अवसर दोनों बनाता है।

निष्कर्ष:
2026–27 की जनगणना केवल जनसंख्या की गिनती नहीं है। यह एक राष्ट्रीय दर्पण है जो दिखाता है कि हम कौन हैं और कैसे रहते हैं। एक दशक से अधिक समय से भारत के नीति-निर्माता, अर्थशास्त्री, व्यवसाय और नागरिक समाज पुराने आँकड़ों पर निर्भर होकर काम कर रहे हैं।

यह जनगणना भारत को प्रभावी नीतियाँ बनाने, लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और समान आर्थिक विकास को गति देने के लिए एक महत्वपूर्ण पुनरारंभ प्रदान कर सकती है। हालाँकि इसमें देरी हुई है, फिर भी 2027 की जनगणना एक सही दिशा में कदम है  बशर्ते इसे पारदर्शिता, कठोरता और राजनीतिक विकृति से मुक्त होकर संपन्न किया जाए।

मुख्य प्रश्न-
जनगणना केवल लोगों की गिनती नहीं है, बल्कि भारत की सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकता का दर्पण है।इस कथन के प्रकाश में, भारत की जनसांख्यिकीय समझ और सामाजिक नीति को आकार देने में दशकीय जनगणना की भूमिका की आलोचनात्मक परिक्षण करें।