सन्दर्भ:
प्रत्येक वर्ष 3 नवंबर को विश्व ‘अंतरराष्ट्रीय जैवमंडल आरक्षित दिवस’ (International Day for Biosphere Reserves) मनाया जाता है, जो उन क्षेत्रों को रेखांकित करता है जहाँ प्रकृति और मानव के बीच संतुलित सहअस्तित्व होता है। ये आरक्षित क्षेत्र मात्र संरक्षित क्षेत्र नहीं हैं,ये जीवंत उदाहरण हैं कि कैसे जैव विविधता संरक्षण और सामुदायिक कल्याण साथ-साथ चल सकते हैं। भारत ने अपनी विशाल पारिस्थितिक विविधता के साथ ऐसे आरक्षित क्षेत्रों का एक मजबूत नेटवर्क बनाया है, जो वैज्ञानिक अनुसंधान, पारंपरिक ज्ञान और सतत आजीविका को जोड़ता है।
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र क्या हैं?
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserve – BR) वे क्षेत्र होते हैं जहाँ जैव विविधता के संरक्षण के साथ-साथ सतत विकास और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते हैं। ये क्षेत्र “जीवित प्रयोगशालाओं” (living laboratories) के रूप में कार्य करते हैं, जहाँ वैज्ञानिक, नीति निर्माता और स्थानीय समुदाय मिलकर पर्यावरणीय चुनौतियों के व्यावहारिक समाधान खोजते हैं।
वन्यजीव अभयारण्यों या राष्ट्रीय उद्यानों के विपरीत, जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र किसी एक कानून के अधीन संचालित नहीं होते। ये यूनेस्को के ‘मानव और जैवमंडल कार्यक्रम’ (Man and the Biosphere Programme – MAB) के तहत अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त हैं, किंतु इनका नियंत्रण राष्ट्रीय सरकारों के अधीन ही रहता है।
इनका उद्देश्य तीन प्रमुख लक्ष्यों के बीच संतुलन स्थापित करना है:
1. संरक्षण – परिदृश्य, पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियों और आनुवंशिक विविधता की रक्षा करना।
2. विकास – सतत आर्थिक और मानवीय विकास को प्रोत्साहित करना।
3. तार्किक समर्थन – अनुसंधान, शिक्षा और संरक्षण से संबंधित स्थानीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर सूचना का आदान-प्रदान सुगम बनाना।
यूनेस्को का ‘मानव और जैवमंडल कार्यक्रम’ (MAB Programme):
1971 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों को एक साथ लाकर मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देता है। इसका उद्देश्य पारिस्थितिक तंत्रों पर मानव गतिविधियों के प्रभाव की पहचान, अध्ययन और प्रबंधन करना तथा सतत जीवनशैली के लिए रणनीतियाँ विकसित करना है।
यूनेस्को के अंतर्गत विश्व जैवमंडल आरक्षित नेटवर्क (World Network of Biosphere Reserves – WNBR) में 124 देशों के 700 से अधिक स्थल शामिल हैं, जो पृथ्वी के विभिन्न पारिस्थितिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन आरक्षित क्षेत्रों में विश्वभर में 260 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं, जो लगभग ऑस्ट्रेलिया के आकार के क्षेत्र को शामिल करते हैं।
कार्यक्रम का ध्यान निम्नलिखित पहलुओं पर केंद्रित है:
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- यह समझना कि जलवायु परिवर्तन, नगरीकरण और ऊर्जा उपयोग पर्यावरण को कैसे प्रभावित करते हैं।
- पारिस्थितिक तंत्रों और मानव समाजों के बीच अंतर्संबंधों का अध्ययन करना।
- पर्यावरण शिक्षा, अनुसंधान और ज्ञान-साझाकरण को बढ़ावा देना।
- सतत संसाधन प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सशक्त करना।
इस वैश्विक ढाँचे में भारत की भागीदारी उसके पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
भारत में जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र:
भारत में 18 अधिसूचित जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र हैं, जो लगभग 91,425 वर्ग किमी क्षेत्र को कवर करते हैं। इनमें से 13 को यूनेस्को द्वारा विश्व जैवमंडल आरक्षित नेटवर्क का हिस्सा मान्यता दी गई है। ये क्षेत्र नीलगिरी पर्वतों और सुंदरबन से लेकर हिमाचल प्रदेश के शीत मरुस्थल तक फैले हुए हैं, जिसे 2025 में यूनेस्को की सूची में नवीनतम रूप से जोड़ा गया।
यह विविधता भारत की पारिस्थितिक समृद्धि को दर्शाती है — उच्च-ऊँचाई वाले शीत मरुस्थलों और उष्णकटिबंधीय वनों से लेकर तटीय और द्वीपीय पारिस्थितिक तंत्रों तक।
प्रशासन और वित्तपोषण:
भारत में जैवमंडल आरक्षित कार्यक्रम का प्रबंधन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा इसके जैवमंडल आरक्षित प्रभाग के माध्यम से किया जाता है।
यह ‘जैव विविधता संरक्षण’ के लिए केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme – CSS) के तहत कार्य करता है, जो ‘प्राकृतिक संसाधन और पारिस्थितिक तंत्र संरक्षण’ (CNRE) कार्यक्रम का हिस्सा है।
वित्त पोषण का ढाँचा लागत-साझाकरण मॉडल पर आधारित है:
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- अधिकांश राज्यों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच 60:40 अनुपात।
- उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों के लिए 90:10 अनुपात।
केंद्रीय बजट 2025–26 में जैव विविधता संरक्षण के लिए आवंटन ₹5 करोड़ से बढ़ाकर ₹10 करोड़ कर दिया गया, जिससे पारिस्थितिक संरक्षण और सतत आजीविका पर राष्ट्रीय फोकस का नवीनीकरण हुआ।
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की संरचना
प्रत्येक जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र को तीन परस्पर संबद्ध क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, जो विशिष्ट कार्य करते हैं:
1. कोर क्षेत्र (Core Zone)
o यह सबसे अधिक संरक्षित भाग होता है, जहाँ किसी भी प्रकार की मानव गतिविधि की अनुमति नहीं होती।
o इसमें राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य शामिल होते हैं और यह स्थानिक प्रजातियों तथा आनुवंशिक संसाधनों का केंद्र होता है।
2. बफर क्षेत्र (Buffer Zone)
o यह कोर क्षेत्र को घेरे रहता है और यहाँ पुनर्स्थापन, पर्यटन या अनुसंधान जैसी सीमित गतिविधियाँ की जा सकती हैं।
o मानव उपयोग को इस प्रकार विनियमित किया जाता है कि कोर क्षेत्र पर न्यूनतम प्रभाव पड़े।
3. संक्रमण क्षेत्र (Transition Zone)
o यह सबसे बाहरी क्षेत्र होता है जहाँ समुदाय रहते हैं और कृषि, वानिकी, पर्यटन जैसी सतत आर्थिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं।
o यह सहयोग का क्षेत्र होता है, जो मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य को प्रोत्साहित करता है।
घोषणा के मानदंड:
किसी क्षेत्र को जैवमंडल आरक्षित घोषित करने के लिए निम्न शर्तें आवश्यक हैं:
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- उच्च पारिस्थितिक मूल्य वाले संरक्षित कोर क्षेत्र का होना।
- किसी जैवभौगोलिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना और इतना बड़ा होना कि संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रख सके।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी और उनके पारंपरिक ज्ञान का समावेश।
- ऐसे पारंपरिक जनजातीय या ग्रामीण जीवनशैली का संरक्षण जो पर्यावरण के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध को प्रतिबिंबित करती हो।
संरक्षण और सतत विकास में भूमिका:
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र यह प्रदर्शित करने के महत्वपूर्ण मॉडल हैं कि संरक्षण और मानव प्रगति एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। वे निम्नलिखित भूमिकाएँ निभाते हैं:
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- पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और पुनर्स्थापन के माध्यम से जैव विविधता का संरक्षण।
- पर्यावरण-अनुकूल विकास, जैविक कृषि और सतत पर्यटन को बढ़ावा देकर स्थानीय एवं वन-निर्भर समुदायों की आजीविका का समर्थन।
- नाजुक क्षेत्रों में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखकर जलवायु लचीलापन (climate resilience) को सुदृढ़ करना।
- पर्यावरण-अनुकूल व्यवहारों और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।
ये प्रयास भारत की व्यापक पर्यावरण नीतियों और जैव विविधता संधि (Convention on Biological Diversity) तथा संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे वैश्विक दायित्वों के अनुरूप हैं।
पूरक राष्ट्रीय पहलें:
भारत का जैवमंडल आरक्षित नेटवर्क अन्य संरक्षण कार्यक्रमों के साथ घनिष्ठ समन्वय में कार्य करता है:
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- प्रोजेक्ट टाइगर (1973): बाघ संरक्षण का प्रमुख कार्यक्रम, जिसने कठोर सुरक्षा और आवास प्रबंधन के माध्यम से बाघ आबादी को पुनर्जीवित किया है।
- प्रोजेक्ट एलिफेंट: आवास संरक्षण, मानव-हाथी संघर्ष में कमी और पालतू हाथियों के कल्याण पर केंद्रित।
- वन्यजीव आवासों का समेकित विकास (IDWH): राज्यों को वन्यजीव संरक्षण के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना (NBAP): जैव विविधता अधिनियम, 2002 को लागू करती है और जैविक संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करती है।
- पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZs): राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के चारों ओर सुरक्षात्मक बफर क्षेत्र बनाते हैं ताकि मानवीय दबाव कम किया जा सके।
- ग्रीन इंडिया मिशन (GIM): वन आच्छादन बढ़ाने, पारिस्थितिक तंत्रों को पुनर्जीवित करने और जलवायु अनुकूलन को सशक्त करने का लक्ष्य रखता है।
साथ मिलकर ये पहलें एक समग्र ढाँचा बनाती हैं, जहाँ जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र पारिस्थितिक, सामाजिक और आर्थिक प्राथमिकताओं के एकीकरण के प्रदर्शन स्थल के रूप में कार्य करते हैं।
हाल की उपलब्धियाँ और प्रभाव:
भारत की जैवमंडल आरक्षित योजना की सफलता मापनीय पारिस्थितिक परिणामों में परिलक्षित होती है:
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- खाद्य एवं कृषि संगठन की ‘ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्सेज असेसमेंट 2025’ में भारत को कुल वन क्षेत्र में विश्व में 9वाँ और वार्षिक वन वृद्धि में तीसरा स्थान प्राप्त हुआ।
- संरक्षण और आजीविका कार्यक्रमों में सामुदायिक भागीदारी बढ़ने से कोर जैव विविधता क्षेत्रों पर दबाव घटा है।
- शीत मरुस्थल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र के विस्तार ने भारत की वैश्विक संरक्षण नेतृत्व भूमिका को सुदृढ़ किया है।
ये उपलब्धियाँ इस बात को रेखांकित करती हैं कि भारत केवल संरक्षणवादी दृष्टिकोण से आगे बढ़कर समावेशी, समुदाय-आधारित पारिस्थितिक तंत्र प्रबंधन की ओर अग्रसर है।
आगे की राह:
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र सह-अस्तित्व की भावना का प्रतीक हैं जहाँ लोग प्रकृति के साथ रहते हैं, उससे अलग नहीं। इनके प्रबंधन को सशक्त करने के लिए आवश्यक है:
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- अनुसंधान और क्षमता निर्माण में अधिक निवेश।
- पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का एकीकरण।
- ऐसे पारिस्थितिक विकास कार्यक्रमों का विस्तार जो नाजुक संसाधनों पर निर्भरता घटाएँ।
- युवाओं में पर्यावरणीय चेतना को प्रोत्साहित करने हेतु शिक्षा और जन-जागरूकता को बढ़ावा देना।
जैसे-जैसे भारत अपने संरक्षण प्रयासों का विस्तार करता जा रहा है, इसके जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र देश की पर्यावरणीय दृष्टि के केंद्र में बने रहेंगे जो जैव विविधता को पोषित करते हुए लोगों को सशक्त बनाएँगे।
निष्कर्ष:
भारत का जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र नेटवर्क इस विचार का साक्षात प्रमाण है कि स्थिरता (sustainability) केवल प्रकृति की रक्षा करने के बारे में नहीं है, बल्कि इस बात को पुनर्परिभाषित करने में है कि मनुष्य उसके साथ कैसे रहते हैं। ये क्षेत्र पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था, संरक्षण और संस्कृति के बीच जीवंत संतुलन का प्रतिनिधित्व करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्राकृतिक जगत और मानव समुदाय दोनों साथ-साथ विकसित हों। अंतरराष्ट्रीय जैवमंडल आरक्षित दिवस का उत्सव मनाते हुए भारत आज नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवन और प्रकृति को बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता है।
| UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र ऐसे जीवंत प्रयोगशालाएँ हैं जो संरक्षण और विकास के बीच की खाई को पाटते हैं।” इस संदर्भ में भारत के जैवमंडल आरक्षित कार्यक्रम के महत्त्व पर चर्चा कीजिए। |

