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Daily-current-affairs / 25 Oct 2025

भारत-अफगानिस्तान संबंध: अफगान कूटनीति में भारत का व्यावहारिक यथार्थवाद

भारत-अफगानिस्तान संबंध: अफगान कूटनीति में भारत का व्यावहारिक यथार्थवाद

सन्दर्भ:

अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद भारत-अफगानिस्तान सम्बन्ध ने एक उल्लेखनीय मोड़ लिया है। 9 से 16 अक्टूबर 2025 तक अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी भारत की आठ दिवसीय यात्रा पर थे, जो तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत की अब तक की सर्वोच्च-स्तरीय यात्रा रही। इस यात्रा के दौरान, भारत ने काबुल में अपने दूतावास को पुनः स्थापित करने की घोषणा की, जो जून 2022 से तकनीकी मिशनके रूप में कार्य कर रहा था। औपचारिक मान्यता दिए बिना तालिबान से संबंध का यह कदम भारत के सूक्ष्म दृष्टिकोण को रेखांकित करता है।

भारत की रणनीति:

  • मान्यता और कूटनीति के बीच भेद: किसी सरकार को मान्यता देना (de jure recognition) उसकी वैधता और सत्ता प्राप्ति के तरीके को स्वीकार करना होता है। भारत ने तालिबान को औपचारिक मान्यता देने से परहेज़ किया है, ताकि 2021 के हिंसक सत्ता-हस्तांतरण को समर्थन न मिले।
    हालांकि, एक वास्तविक (de facto) सरकार से कूटनीतिक संवाद अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत वैध है। 1961 और 1963 के वियना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमैटिक एंड कॉन्सुलर रिलेशंस के अनुसार, कूटनीतिक मिशन किसी सरकार की औपचारिक मान्यता के बिना भी कार्य कर सकते हैं।
  • अफगानिस्तान में भारत का कार्यपद्धति (Modus Operandi): दूतावास पुनः खोलने से पहले भी भारत ने नई दिल्ली स्थित अफगान मिशनों को धीरे-धीरे तालिबान के नियंत्रण में स्थानांतरित होने की अनुमति दी। पूर्व राजनयिकों ने तालिबान के साथ समन्वय में आवश्यक वाणिज्यिक कार्य जारी रखे, जिससे राजनीतिक परिवर्तनों के बावजूद निरंतरता बनी रही।
    यह मान्यता के बिना जुड़ावकी रणनीति भारत की कूटनीति में पहले भी देखी जा चुकी है, जैसे- ताइवान और म्यांमार की सैन्य सरकार के साथ भारत के संबंधों में, जहाँ बिना औपचारिक मान्यता के कार्यात्मक कूटनीतिक चैनल बनाए रखे गए हैं।

India–Afghanistan Relations

भारत के जुड़ाव के भू-राजनीतिक कारक:

भारत का तालिबान से संवाद सुरक्षा, कूटनीति और आर्थिक हितों के बीच संतुलन साधने की रणनीति है। भारत के सतर्क किन्तु सक्रिय रुख को तीन मुख्य कारणों से समझा जा सकता है:

1.      तालिबान की जुड़ाव में सक्रियता: 2021 के बाद से तालिबान ने भारतीय सहभागिता की इच्छा स्पष्ट की है। उन्होंने यह भी कहा है कि अफगानिस्तान का उपयोग भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा। विशेष रूप से, मई 2025 में पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करके तालिबान ने पाकिस्तान समर्थित आतंकी नेटवर्कों से दूरी का संकेत दिया। इस आश्वासन ने भारत के सीमित जुड़ाव में विश्वास को मजबूत किया।

2.     पाकिस्तान-अफगानिस्तान समीकरण: तालिबान-पाकिस्तान संबंधों में तनाव ने भारत को सामरिक अवसर प्रदान किया है। 2021 के शुरुआती दौर के विपरीत, तालिबान ने पाकिस्तान के साथ पूर्ण रूप से गठजोड़ से इनकार किया है, डुरंड रेखा को स्थायी सीमा मानने से मना किया है और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) से दूरी बनाए रखी है। जो भारत-विरोधी सहयोग के जोखिम को कम करती है।

3.     आर्थिक और विकास अवसर: अफगानिस्तान में भारत का 3 अरब डॉलर से अधिक का विकास और मानवीय निवेश भारत को एक प्रभावशाली स्थिति देता है। 2025 में अमेरिकी सहायता के बंद होने के बाद तालिबान अब क्षेत्रीय निवेश की तलाश में है, जिससे भारत को बुनियादी ढाँचे, खनन और कनेक्टिविटी परियोजनाओं में अवसर मिल रहे हैं। तापी (TAPI) गैस पाइपलाइन और चाबहार पोर्ट ट्रांज़िट जैसी पहलें भारत के सामरिक और आर्थिक हितों के केंद्र में हैं। दूतावास पुनः खोलना निवेशकों के विश्वास को बढ़ाता है और भारत की दीर्घकालिक विकास प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है।

India–Afghanistan Relations

भारत-अफगानिस्तान संबंधों का सामरिक महत्व:

1.      भू-राजनीतिक और सुरक्षा साझेदारी: अफगानिस्तान भारत के लिए क्षेत्रीय खतरों, विशेष रूप से पाकिस्तान से उत्पन्न चुनौतियों, का मुकाबला करने में सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। 1990 के दशक में नॉर्दर्न अलायंस को समर्थन और व्यापक विकास परियोजनाओं में भागीदारी भारत की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दर्शाती है। तालिबान का यह वादा कि अफगान भूमि का उपयोग भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होगा, उभरते आतंकवाद-रोधी सहयोग का मुख्य आधार है।

2.     विकास और पुनर्निर्माण में योगदान: भारत ने सलमा बाँध, जरांज-डेलाराम राजमार्ग, काबुल संसद भवन, अस्पतालों और विद्युत् उपकेंद्रों जैसी परियोजनाओं के माध्यम से अफगान पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सूखे और कोविड-19 महामारी के दौरान मानवीय सहायता ने भी भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

3.     आर्थिक और व्यापारिक संपर्क: 1–3 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के अनुमानित खनिज भंडार अफगानिस्तान को भारत के लिए आर्थिक अवसरों का केंद्र बनाते हैं। चाबहार पोर्ट (ईरान-अफगानिस्तान-भारत कॉरिडोर) जैसी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाएँ पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत के व्यापारिक एकीकरण को प्रोत्साहित करती हैं।

4.    सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध: भारत और अफगानिस्तान के बीच गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। बॉलीवुड की लोकप्रियता, अफगान छात्रों के लिए भारतीय छात्रवृत्तियाँ और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भारत की सॉफ्ट पावर और जन-से-जन संबंधों को मजबूत करते हैं।

5.     राजनीतिक परिवर्तनों के बीच कूटनीतिक जुड़ाव: भारत का यह निर्णय कि वह अपने मिशन को पूर्ण दूतावास स्तर पर अपग्रेड करेगा परन्तु औपचारिक मान्यता नहीं देगा, व्यावहारिक कूटनीति का उदाहरण है। यह दृष्टिकोण भारत को नैतिकता और यथार्थवाद के बीच संतुलन साधता है, साथ ही चीन के बढ़ते प्रभाव और पाकिस्तान की अस्थिरकारी गतिविधियों का मुकाबला करने में मदद करता है।

भारत-अफगानिस्तान संबंध की प्रमुख चुनौतियाँ:

1.      सुरक्षा चिंताएँ और आतंकवाद: कूटनीतिक जुड़ाव के बावजूद आतंकवाद एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। तालिबान के लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों से ऐतिहासिक संबंधों के कारण यह आशंका बनी हुई है कि अफगानिस्तान भारत-विरोधी आतंकवादियों का सुरक्षित ठिकाना बन सकता है। 2025 में तालिबान द्वारा अफगान भूमि से भारत पर हमले न होने देने के वादे के बावजूद संदेह कायम है।

2.     पाकिस्तान का प्रभाव और प्रॉक्सी राजनीति: पाकिस्तान की सामरिक प्रतिद्वंद्विता अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता को जटिल बनाती है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के खिलाफ कार्रवाई से तालिबान का इनकार और पाकिस्तान के साथ जारी तनाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करते हैं, जिन्हें भारत को सावधानीपूर्वक नेविगेट करना होगा।

3.     शासन और मानवाधिकार मुद्दे: तालिबान की गैर-लोकतांत्रिक शासन प्रणाली, असहमति पर दमन और महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिबंध भारत के समावेशी अफगान राजनीतिक प्रक्रियाके समर्थन से मेल नहीं खाते हैं। मुत्ताकी की भारत यात्रा के दौरान महिला पत्रकारों के बहिष्कार जैसी घटनाएँ नैतिक और कूटनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।

4.    आर्थिक और अवसंरचनात्मक बाधाएँ: अफगानिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और असुरक्षा की स्थिति भारतीय निवेशों और परियोजनाओं को प्रभावित करती है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध और शासन समस्याएँ परियोजनाओं की निरंतरता और व्यापार में बाधा डालती हैं, हालांकि चाबहार पोर्ट और भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर जैसी पहलें सीमित आशा जगाती हैं।

5.     चीन का बढ़ता प्रभाव: तालिबान के साथ चीन की बढ़ती संलग्नता, जिसमें अवसंरचनात्मक निवेश और राजनीतिक संवाद शामिल हैं, अफगानिस्तान में भारत के सामरिक प्रभाव को चुनौती देती है।

6.    नशीले पदार्थ और क्षेत्रीय स्थिरता: गोल्डन क्रेसेंट” (अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान) का हिस्सा होने के कारण अफगानिस्तान विश्व का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक है, जिससे भारत के लिए सीमा-पार सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न होते हैं, विशेषकर पंजाब जैसे राज्यों में जहाँ मादक द्रव्यों का दुरुपयोग गंभीर समस्या है।

अंतरराष्ट्रीय और संयुक्त राष्ट्र का दृष्टिकोण:

संयुक्त राष्ट्र की गैर-मान्यता नीति
संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान की सरकार को अब तक मान्यता नहीं दी है, क्योंकि तीन शर्तें अब तक पूरी नहीं हुई हैं:

1.        समावेशी शासन की स्थापना

2.      आतंकवादी नेटवर्कों का उन्मूलन

3.      मानवाधिकारों, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों का सम्मान

अफ़ग़ानिस्तान की संयुक्त राष्ट्र सीट के लिए तालिबान के अनुरोधों को बार-बार खारिज किया गया है। यात्रा छूट, जैसे कि मुत्तक़ी की भारत यात्रा की अनुमति, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा विषयानुसार (case-by-case) आधार पर दी जाती है। 

क्षेत्रीय प्रवृत्तियाँ:

कई देशों ने मान्यता के बिना जुड़ावकी रणनीति अपनाई है:

·         रूस: जुलाई 2025 में तालिबान को औपचारिक रूप से मान्यता दी।

·         चीन, यूएई, मध्य एशियाई देश: तालिबान द्वारा नियुक्त राजनयिकों या राजदूतों को स्वीकार किया।

·         पाकिस्तान: मई 2025 में अपने काबुल मिशन को राजदूत स्तर तक अपग्रेड किया।

ये व्यवस्थाएँ पूर्ण राजनीतिक समर्थन के बजाय व्यावहारिक चिंताओं जैसे क्षेत्रीय नियंत्रण, सुरक्षा खतरे और प्रभाव बनाए रखने पर आधारित हैं।

निष्कर्ष:

भारत-अफ़ग़ानिस्तान संबंध व्यावहारिक कूटनीति, रणनीतिक जुड़ाव और मानवीय प्रतिबद्धताओं से परिभाषित एक नए अध्याय में प्रवेश कर रहे हैं। उच्च-स्तरीय यात्राओं, अपने दूतावास के जीर्णोद्धार, लक्षित विकास परियोजनाओं और बिना किसी मान्यता के सावधानीपूर्वक जुड़ाव के माध्यम से, भारत एक जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में आगे बढ़ रहा है। सुरक्षा, आर्थिक हितों, सांस्कृतिक संबंधों और मानवाधिकारों में संतुलन स्थापित करते हुए, भारत का लक्ष्य अफ़ग़ानिस्तान में प्रभाव बनाए रखना, क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का मुकाबला करना और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन करते हुए स्थिरता को बढ़ावा देना है। विकसित हो रहा कूटनीतिक ढाँचा भारत की सूक्ष्म और लचीली विदेश नीति की क्षमता को प्रदर्शित करता है, जो अनिश्चितता के बीच दक्षिण एशिया के भविष्य को आकार देने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्थापित करता है।

 

UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: अफगानिस्तान में तालिबान शासन के प्रति भारत की मान्यता के बिना जुड़ावकी नीति आदर्शवाद की बजाय व्यावहारिक यथार्थवाद की ओर भारत की कूटनीति के परिवर्तन को दर्शाती है।  विवेचना कीजिए।