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Daily-current-affairs / 23 Aug 2023

हिमालयी राज्य: पर्यावरणीय चिंताओं और विकास प्राथमिकताओं को संतुलित करना - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 24-08-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर3- पर्यावरण - सतत विकास

कीवर्ड: विकास का पर्यावरणीय प्रभाव, ऊर्जा सुरक्षा बनाम पर्यावरणीय कमजोरी, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड), हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ)

भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी हालिया प्राकृतिक आपदाओं ने इस बात पर बहस छेड़ दी है कि क्या नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र तीव्र विकास का सामना कर पा रहा है ? यह लेख विभिन्न मुद्दों , चुनौतियों और संभावित समाधानों की जांच करते हुए, हिमालयी राज्यों में पर्यावरणीय चिंताओं और विकास की आवश्यकता के बीच जटिल संबंध पर प्रकाश डालता है।

पर्यावरण संरक्षण बनाम विकास

  • पर्यावरणीय अनिवार्यताएँ: हिमालय क्षेत्र, गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के अपने जटिल नेटवर्क के माध्यम से एक विशाल आबादी का भरण-पोषण करता है और आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाता है। हालाँकि, हाल की आपदाओं ने अनियंत्रित विकास पर पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। जोशीमठ भूस्खलन जैसी आपदाएं क्षेत्र की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं, जिससे स्पष्ट है की पर्यावरण पर विकास का असर किस प्रकार पड़ रहा है।
  • विकास का पर्यावरणीय प्रभाव: बांधों का निर्माण, नदी तलों पर अतिक्रमण और खनन कार्यों ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं को बढ़ाया है। गंगा नदी के किनारे लगभग 70 चल रही या योजनाबद्ध परियोजनाएं मौजूद हैं। इनमे से कई परियोजनाओं में व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन का अभाव है, जिससे इन प्रयासों की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि गंगा जैसी नदियों पर कई बांध बनाए जा रहे हैं, जिससे संभावित रूप से इसका प्रवाह बाधित हो रहा है और अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति हो रही है। 2021 में हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) की घटना, एक अतिरिक्त संकेत है कि प्राकृतिक शक्तियों का जटिल संतुलन गड़बड़ा गया है। नतीजतन, हिमालयी राज्य वर्तमान में इस असंतुलन के परिणामों का अनुभव कर रहे हैं।

जल विद्युत : आवश्यकता बनाम पर्यावरण असंतुलन ?

  • ऊर्जा सुरक्षा बनाम पर्यावरणीय नाजुकता: जलविद्युत, जिसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में जाना जाता है, हिमालयी देशों के ऊर्जा आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, भूगर्भिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण ने विवाद को जन्म दिया है। सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने 2013 की उत्तराखंड बाढ़ के लिए आंशिक रूप से जलविद्युत बांधों को जिम्मेदार ठहराया था । इन परियोजनाओं के ऊर्जा लाभों को उनके पर्यावरणीय निहितार्थों के के साथ देखा जाना चाहिए ।
  • विकास बनाम संरक्षण: वर्तमान में भारत की ऊर्जा संरचना में जलविद्युत का अनुपात स्थिर बना हुआ है, जबकि सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को प्रमुखता मिल रही है। पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास को संतुलित करने के लिए ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के बीच एक महीन रेखा की आवश्यकता होती है। चार धाम राजमार्ग परियोजना पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास की चुनौतियों का उदाहरण है। इससे चीन के साथ भारत की सीमा तक सुविधाजनक सैन्य मार्ग सहित आवागमन की सुविधा मिलने की संभावना है। परियोजना की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित आयोग की अध्यक्षता करने वाले एक पर्यावरणविद् के अनुसार, पेड़ों को काटने का कार्य भूस्खलन जैसे मौजूदा खतरों को बढ़ाता है।

भूराजनीतिक जटिलताएँ: जलवायु परिवर्तन और सीमाएँ

  • हिमालय विभिन्न राष्ट्रों के बीच भू-राजनीतिक सीमाओं के रूप में कार्य करता है, जिससे जल जैसे साझा संसाधन विवादास्पद विषय बन गए हैं। हालाँकि, हिमालय क्षेत्र में आठ देशों द्वारा जलवायु कार्रवाई पर सहयोग हेतु एक समझौता किया गया। इसके बावजूद नदी प्रवाह जैसे मामलों के बारे में सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान की प्रभावशीलता रणनीतिक विचारों और अविश्वास की भावना से बाधित होती है। जलवायु परिवर्तन से संसाधनों पर संघर्ष को तीव्र हुआ है परिणामस्वरूप मौजूदा तनाव को बढ़ा है । भू-राजनीति और पर्यावरण संबंधी चिंताओं से क्षेत्र की चुनौतियों में जटिलता और बढ़ी है।
  • हिमालय क्षेत्र के कई देश में पानी की कमी बढ़ रही है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका के पास प्रति व्यक्ति सालाना 2.3 मिलियन गैलन से अधिक नवीकरणीय मीठे पानी के संसाधन हैं। इसके विपरीत, चीन के पास 528,000 गैलन, भारत के पास 264,000 गैलन और पाकिस्तान के पास प्रति व्यक्ति 79,000 गैलन से भी कम नवीकरणीय मीठे पानी के संसाधन हैं। शहरी क्षेत्रों के विस्तार, कृषि गतिविधियों और औद्योगिक कार्यों के समर्थन के लिए पानी की बढ़ती मांग इन राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों से गुजरने वाली नदियों पर और दबाव डालती है।

पर्यटन, अपशिष्ट और सतत विकास

  • पर्यटन में उछाल और पारिस्थितिक परिणाम: हिमालय क्षेत्र सालाना लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है लेकिन साथ ही पर्याप्त अपशिष्ट भी पैदा होता है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2025 तक पहाड़ी राज्यों में आने वाले पर्यटकों की संख्या सालाना 240 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। 2018 में दर्ज 100 मिलियन के आंकड़े से उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज होगी । वैज्ञानिक तरीके से ठोस अपशिष्ट निपटान की विफलता से हिमालय के नाजुक पर्यावरण के लिए हानिकारक परिणाम हो सकते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सभी महत्वपूर्ण नदियों के प्राथमिक स्रोतों इन पर्वत श्रृंखलाओं की हिमनदीयों में स्थित है, इन हिमनदीयों पर संकट से उत्पन्न होने वाले संभावित विनाशकारी परिणामों की कल्पना करना कठिन नहीं है। पर्यटकों की आमद से प्रदूषण, वनों की कटाई वृद्धि होती है। पर्यावरणीय स्थिरता के साथ पर्यटन-संचालित विकास को संतुलित करने हेतु नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए नवीन अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों और नियमों की आवश्यकता है।
  • विनियमन और संरक्षण: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए घाटियों में वनस्पति आवरण बनाए रखने पर ध्यान देने के साथ, क्षेत्र में विनियमन आवश्यक है। 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय हिमालयी क्षेत्र में लगभग 60 प्रतिशत जल स्रोतों की संभावित कमी को लेकर एक महत्वपूर्ण चिंता जताई गई है। परिणामतः हिमालयी क्षेत्र में पर्याप्त वनस्पति आवरण बनाए रखना जरूरी है। इस संदर्भ में अनुशंसा की गई है कि हिमालय घाटियों के ऊपरी हिस्से को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) के रूप में नामित किया जाए। प्रस्तावित पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र इन महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा कर सकते हैं। पर्यटन और शहरी आबादी दोनों द्वारा उत्पन्न का निपटान करने के लिए दीर्घकालिक व्यवहार्यता और पारिस्थितिक नाजुकता को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

हिमालयी राज्य पर्यावरण संरक्षण और विकास लक्ष्यों में सामंजस्य स्थापित करने की जटिल चुनौती का सामना कर रहे हैं। हालाँकि जलविद्युत ऊर्जा सुरक्षा में तो योगदान दे सकता है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए पड़ोसी देशों के बीच सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं। पर्यटन-संचालित विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच नाजुक संतुलन को स्थायी नीतियों के माध्यम से बरकरार रखा जाना चाहिए। इस जटिल क्षेत्र में संतुलन एवं सतत विकास करने के लिए, हिमालयी राज्यों को एक ऐसा रास्ता तय करना होगा जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उनके नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करे।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. हिमालयी राज्यों में पर्यावरणीय चिंताओं और विकासात्मक प्राथमिकताओं के बीच परस्पर क्रिया का अन्वेषण करें। नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर अनियंत्रित विकास के संभावित परिणामों का विश्लेषण करें। पर्यावरण को संरक्षित करते हुए सतत विकास प्राप्त करने की रणनीतियों पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. पर्यावरणीय प्रभाव पर विचार करते हुए, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में हिमालयी जलविद्युत परियोजनाओं की भूमिका का परीक्षण करें। 2013 की उत्तराखंड बाढ़ को एक केस स्टडी के रूप में उपयोग करें। नीति निर्माता हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाए बिना ऊर्जा जरूरतों को कैसे पूरा कर सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत - डाउन टू अर्थ

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