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Daily-current-affairs / 24 Apr 2025

जीपीएस स्पूफिंग: भारत की हवाई सीमा और सुरक्षा के लिए उभरता खतरा

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संदर्भ-

भारत को अपने आकाश में एक नई गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 2023 से 2025 के बीच, अमृतसर और जम्मू हवाई गलियारों में GPS हस्तक्षेप और स्पूफिंग के 465 से अधिक मामलों की रिपोर्ट दर्ज की गई है। इन घटनाओं की आधिकारिक पुष्टि मार्च 2025 में नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री ने लोकसभा में की। ये घटनाएं न केवल वाणिज्यिक विमानों को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि निगरानी विमानों पर भी असर डाल रही हैं, जिससे विमानन सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है।
इस प्रकार के हमले पहले पश्चिम एशिया और पूर्वी यूरोप जैसे क्षेत्रों में देखे गए थे, लेकिन अब यह भारत की पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी सीमाओं को प्रभावित करने लगे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान और चीन जैसे देश ग्रे-ज़ोन वॉरफेयर के तहत GPS स्पूफिंग का इस्तेमाल कर रहे हैंऐसी रणनीति जो खुले युद्ध के बिना भ्रम और अव्यवस्था फैलाती है।

जीपीएस स्पूफिंग क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

जीपीएस स्पूफिंग वह प्रक्रिया है जिसमें नकली सैटेलाइट संकेत भेजे जाते हैं ताकि नेविगेशन सिस्टम को गलत स्थान, गति या समय दिखाया जा सके। यह जैमिंग से अलग है, जो संकेतों को ब्लॉक करता है। स्पूफिंग चुपचाप सिस्टम को गुमराह करता है और तुरंत पकड़ में नहीं आता।
यह विमान के लिए खतरनाक है क्योंकि वे मार्गदर्शन के लिए उपग्रह संकेतों पर निर्भर करते हैं। ये संकेत पहले से ही कमजोर होते हैं क्योंकि वे 20,000 किलोमीटर से अधिक दूर स्थित उपग्रहों से आते हैं। इससे अधिक ताकतवर नकली संकेत विमान की निम्नलिखित प्रणालियों को आसानी से भ्रमित कर सकते हैं:
फ्लाइट मैनेजमेंट सिस्टम (FMS)
ऑटोमैटिक डिपेंडेंट सर्विलांस (ADS-B/ADS-C)
ग्राउंड प्रॉक्सिमिटी वार्निंग सिस्टम
अगर ये सिस्टम भ्रमित हो जाएं, तो विमान गलत दिशा में जा सकते हैं, जमीन से टकराने की चेतावनी मिस कर सकते हैं, या एयर ट्रैफिक कंट्रोल को गलत स्थान भेज सकते हैं।

जीपीएस स्पूफिंग का वैश्विक उपयोग-
स्पूफिंग अब सिर्फ एक सिद्धांत नहीं रह गया है। यह अब वास्तविक युद्ध में उपयोग किया जा रहा है। उदाहरण के लिए:
रूस ने यूक्रेन के साथ युद्ध में क्रासुखा-4 (Krasukha-4) और तिराडा-2 (Tirada-2) जैसे स्पूफिंग उपकरणों का उपयोग किया।
ईरान ने 2011 में एक अमेरिकी ड्रोन को स्पूफ करके अपने कब्जे में लिया था।
अज़रबैजान ने आर्मेनिया के साथ संघर्ष में स्पूफिंग का इस्तेमाल किया ताकि हवाई रक्षा को निष्क्रिय कर ड्रोन को हावी बनाया जा सके।

ये उदाहरण दिखाते हैं कि स्पूफिंग अब इलेक्ट्रॉनिक और विषम युद्ध (asymmetric warfare) का एक अहम हिस्सा बन चुका है।

भारत में स्पूफ़िंग: खतरनाक रुझान

नवंबर 2023 से फरवरी 2025 तक, भारत में जीपीएस स्पूफिंग की घटनाओं की संख्या तेजी से बढ़ी, खासकर भारत की संवेदनशील सीमाओं पर।

कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े:

मीट्रिक

विवरण

जीपीएस स्पूफिंग मामले (नवंबर 2023 - फरवरी 2025)

465 से अधिक

प्रभावित मुख्य क्षेत्र

अमृतसर, जम्मू, उत्तर-पूर्व (मणिपुर, नागालैंड)

एयर कॉरिडोर

अमृतसर एफआईआर, जम्मू एफआईआर, दिल्ली एफआईआर

दिल्ली एफआईआर

जीपीएस हस्तक्षेप के लिए विश्व स्तर पर 9वां स्थान

बीएसएफ द्वारा इंटरसेप्ट किए गए ड्रोन (2023-2025)

लगभग 300 (ज्यादातर पाकिस्तान से)

ड्रोन पेलोड

मादक पदार्थ, नकली मुद्रा, छोटे हथियार

कम जीएनएसएस सटीकता वाले क्षेत्र (जीपीएसजैम डेटा)

भारत-पाकिस्तान और भारत-म्यांमार सीमाएँ

दिल्ली एफआईआर में स्पूफिंग दर (ओपीएसग्रुप के अनुसार)

2024 से दैनिक रिपोर्ट

 

यह तथ्य कि एक ही समय में एक ही क्षेत्र में कई ड्रोन पकड़े गए, एक सुनियोजित रणनीति की ओर इशारा करता है।
ये ड्रोन, जो नशे और हथियारों से लैस थे, संभवतः स्पूफिंग का उपयोग कर अपने रास्तों को छिपा रहे थे और रडार सिस्टम को भ्रमित कर रहे थे।
GPSjam पोर्टल और OPSGROUP की एविएशन अलर्ट्स इस बात की पुष्टि करती हैं कि दिल्ली फ्लाइट इंफॉर्मेशन रीजन में 2024 से स्पूफिंग एक दैनिक समस्या बन गई है, जिससे लगभग 10% उड़ानें प्रभावित हो रही हैं।

गैर-राज्य कारकों की भूमिका
सिर्फ पाकिस्तान और चीन जैसे राज्य ही नहीं, हिंसक गैर-राज्य समूह भी स्पूफिंग का उपयोग कर सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
नशा तस्कर
हथियार तस्कर
उग्रवादी
सॉफ्टवेयर-डिफाइन्ड रेडियो (SDRs) और GPS सिमुलेटर जैसी तकनीक से बने सस्ते और आसानी से बनाए जा सकने वाले स्पूफिंग उपकरणों की मदद से छोटे समूह भी हमले कर सकते हैं। ये स्पूफर:
छोटे होते हैं
बैटरी से चलते हैं
ड्रोन पर लगाए जा सकते हैं
ऐसे उपकरण अपराधियों को बिना पकड़े सीमा पार करने या संवेदनशील इलाकों पर हमला करने में मदद कर सकते हैं। जब आतंकवादी समूहों को पाकिस्तान जैसे देशों से समर्थन मिलता है, तब स्पूफिंग को रोकना और भी कठिन हो जाता है। यह एक हाइब्रिड खतरा बन जाता है जिसमें आतंकवाद, तस्करी और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध का मिश्रण होता है।

GPS spoofing attack on GPS Enabled Drone [36]. | Download Scientific Diagram

वैश्विक स्तर पर खतरे को मान्यता:

2024 में 14वें ICAO एयर नेविगेशन सम्मेलन में, वैश्विक विमानन विशेषज्ञों ने GNSS हस्तक्षेप को "एक महत्वपूर्ण साइबर जोखिम" करार दिया। यह दिखाता है कि स्पूफिंग कितना गंभीर मुद्दा बन गया है, खासकर उन देशों के लिए जो सीमा संबंधी खतरों या ग्रे-ज़ोन रणनीतियों का सामना कर रहे हैं।

इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए भारत को एक मजबूत, बहु-स्तरीय योजना की आवश्यकता है। कुछ प्रमुख कदम इस प्रकार हैं:

1.        NavIC के उपयोग को बढ़ावा देना
भारत की अपनी नेविगेशन प्रणाली, NavIC, क्षेत्रीय कवरेज प्रदान करती है। इसे वाणिज्यिक विमानों और सैन्य प्रणालियों में उपयोग के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यह GPS का पूरा विकल्प नहीं है, लेकिन एक मजबूत सहायक प्रणाली बन सकती है।

2.      डिटेक्शन सिस्टम लगाना
स्पूफिंग को रीयल-टाइम में पकड़ने के लिए ज़मीन और हवाई सेंसर लगाएं। ये त्रिकोणीय विधियों से नकली सिग्नलों का स्रोत पकड़ सकते हैं। भारत ऑप्टिकल जाइरोस्कोप और सैटेलाइट-फ्री सिस्टम का भी उपयोग कर सकता है।

3.      स्वदेशी तकनीकों को समर्थन देना
भारत को सस्ते NavIC रिसीवर और एंटी-स्पूफिंग टूल्स के निर्माण में निवेश करना चाहिए। इससे विदेशी हार्डवेयर पर निर्भरता कम होगीखासतौर पर चीन जैसे शत्रु देशों से।

4.     विमानों की सुरक्षा प्रणाली को उन्नत करना
विमानों में RAIM (Receiver Autonomous Integrity Monitoring) और मल्टी-सेंसर GNSS सिस्टम लगाए जाएं जो अलग-अलग सैटेलाइट डेटा की तुलना करके सटीकता सुनिश्चित करें।

5.      GAGAN अपनाने की गति बढ़ाना
DGCA पहले ही निर्देश दे चुका है कि विमानों में GAGAN (भारतीय सैटेलाइट-बेस्ड ऑगमेंटेशन सिस्टम) को अपनाया जाए। लेकिन इसमें देरी हो रही है। ISRO और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण को इसे शीघ्र पूरा करना चाहिए।

6.     SAMBHAV जैसे सैन्य उपकरणों का उपयोग करना
हालांकि SAMBHAV (Secure Army Mobile Bharat Vision) सैन्य संचार के लिए है, लेकिन इसकी एन्क्रिप्टेड तकनीक स्पूफिंग को रोकने में मदद कर सकती है। भारत इसका उपयोग विमानन सुरक्षा में भी कर सकता है।

7.      भीड़-आधारित डिटेक्शन नेटवर्क
स्मार्टफोन और नागरिक उपकरणों को GNSS हस्तक्षेप की सूचना देने वाले एक भीड़-आधारित सिस्टम में शामिल किया जा सकता है। इससे स्पूफिंग प्रयासों की रीयल-टाइम ट्रैकिंग बेहतर होगी।

8.     वैश्विक साझेदारों से सहयोग करना
भारत को ICAO और आस-पास के देशों के साथ मिलकर स्पूफिंग डेटा साझा करना चाहिए और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना चाहिए।

निष्कर्ष
जीपीएस स्पूफिंग भारत की वायु सुरक्षा और राष्ट्रीय रक्षा के लिए एक शांत लेकिन खतरनाक खतरा है। जब सीमाओं के पास इसके मामले बढ़ रहे हैं, तो यह कम लागत लेकिन भारी असर वाली रणनीति त्वरित कार्रवाई की मांग करती है।
उन्नत तकनीक, सख्त नीतियों, सैन्य नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के संयोजन से भारत अपने आकाश की सुरक्षा कर सकता है और वैश्विक वायु क्षेत्र सुरक्षा में एक उदाहरण बन सकता है। जो एक तकनीकी चुनौती के रूप में शुरू हुआ था, वह अब भारत को अपनी रक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने और नेविगेशन प्रणालियों को अधिक सुरक्षित बनाने की दिशा में अग्रसर कर सकता है।

मुख्य प्रश्न: राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों से निपटने में स्वदेशी नेविगेशन प्रणालियों की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए। भारत नेविगेशन और एयरोस्पेस प्रणालियों में तकनीकी आत्मनिर्भरता कैसे सुनिश्चित कर सकता है?