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Daily-current-affairs / 15 Sep 2023

वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य 2030 - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 16-09-2023

प्रासंगिकताः जीएस पेपर 3-अर्थव्यवस्था-नवीकरणीय ऊर्जा

मुख्य शब्दः COP 28, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) G20, अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) पेरिस समझौता

संदर्भ -

  • 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक दुबई में होने वाले जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 28वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP28) मे 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का वैश्विक लक्ष्य प्रस्तावित किया है।
  • जी-20 घोषणा में भी इसकी घोषणा की गई थी । यद्यपि इस तरह के वैश्विक लक्ष्य का विचार आकर्षक है, लेकिन इसमें काफी जटिलताओं भी है जिन विचार करने की आवश्यकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा की वर्तमान स्थितिः

  • 2021 में, विश्व स्तर पर ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा स्रोतों (RES) की स्थापित क्षमता 3026 गीगावाट (GW) थी ,जो कुल क्षमता का 39% है। विशेष रूप से, पनबिजली ने अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादन के आधे से अधिक का योगदान दिया और सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी , संयुक्त रूप से 36% थी ।
  • 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हमें 2021 में सभी स्रोतों से कुल स्थापित क्षमता में लगभग 6000 गीगावाट क्षमता जोड़ने की आवश्यकता होगी। ध्यान देने योग्य है ,पनबिजली परियोजनाओं से जुड़ी विस्तारित समयसीमा को देखते हुए, सौर और पवन ऊर्जा से इस क्षमता का बड़ा हिस्सा उपलब्ध होने की उम्मीद है। सौर और पवन ऊर्जा की संयुक्त रूप से 25% की क्षमता उपयोग कारक (सीयूएफ) को मानते हुए, इनसे अकेले लगभग 13,000 टेरावाट-घंटे (टीडब्ल्यूएच) बिजली पैदा होगी । यदि वैश्विक ऊर्जा की मांग पूर्व-कोविड-19 दशक के औसत 2.6% पर बढ़ती रहती है, तो इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नवीउकरणीय ऊर्जा श्रोतों को कुल वैश्विक ऊर्जा उत्पादन में लगभग 38% का योगदान देने आवश्यकता होगी।

भारत का नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यः

  • भारत का 2022 तक 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को प्राप्त करने का लक्ष्य था, जिसमे -
  • 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा।
  • 60 गीगावॉट पवन ऊर्जा।
  • 10 गीगावॉट बायोमास पावर।
  • 5 गीगावॉट लघु पनबिजली से ऊर्जा उत्पादन शामिल है ।
  • इसे संशोधित कर 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा का लक्ष्य रखा गया है । जिसकी घोषणा COP26 शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी ।
  • इसके अलावा भारत का लक्ष्य 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% ऊर्जा उत्पादन है ।

इसकी घोषणा पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में की गई है ।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा प्रस्तुत ऊर्जा उत्पादन मिश्रण 2030 पर रिपोर्ट (Ministry of Power)

कोयला से ऊर्जा उत्पादन का अनुमान

  • ऊर्जा मिश्रण में कोयले की हिस्सेदारी 2022-23 में 73% से घटकर 2030 में 55% होने का अनुमान है।

कोयले के उपयोग पर प्रभावः

  • बिजली उत्पादन में कोयले की घटती हिस्सेदारी के बावजूद, 2023 और 2030 के बीच कोयला बिजली क्षमता और उत्पादन में वृद्धि होगी। कोयला क्षमता में 19% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि इस अवधि के दौरान जीवाश्म ऊर्जा उत्पादन में 13% की वृद्धि होने की उम्मीद है।

सौर ऊर्जा का योगदान

  • सौर ऊर्जा का बिजली मिश्रण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने का अनुमान है, जिससे इसके समग्र भार में वृद्धि होगी। अनुमान है कि सौर ऊर्जा क्षमता में चार गुना वृद्धि होगी, जो 2030 तक 109 गीगावाट से बढ़कर 392 गीगावाट हो जाएगी। साथ ही, इसी दौरान सौर उत्पादन 173 बिलियन यूनिट (बीयू) से बढ़कर 761 बीयू होने की उम्मीद है।

अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का योगदान

भविष्य के ऊर्जा मिश्रण में बड़ी पनबिजली और पवन ऊर्जा के लिए अनुमान मामूली हैं।

  • 2030 तक बड़े पनबिजली उत्पादन के 8% से 9% तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • पवन उत्पादन 9% तक कम होने का अनुमान है (पिछले 12% के अनुमान से)

कुल मिलाकर, छोटे पनबिजलीसंयंत्र , सौर, पवन और बायोमास सहित नवीकरणीय स्रोतों से 2030 में ऊर्जा मिश्रण का 31% होने की उम्मीद है, जो वर्तमान 12% से महत्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।

ऊर्जा जरूरतों में क्षेत्रीय विषमताएँ :

  • ध्यान देने वाली बात है कि ऊर्जा की कोई एकल "वैश्विक" मांग नहीं है; बल्कि, विभिन्न देशों में अलग अलग मांग का एक वैश्विक समुच्चय है। ऊर्जा की मांग मे विभिन्न देशों के बीच काफी अंतर है, और यह उनके विकास दर पर निर्भर करती है।
  • विकासशील देशों, विशेष रूप से चीन और भारत में 2010 और 2019 के बीच क्रमशः 6.6% और 6.3% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ ऊर्जा की खपत में तेजी से वृद्धि हुई है । इसके विपरीत, यूरोपीय संघ (ईयू) में 0.3% की गिरावट देखी गई और संयुक्त राज्य अमेरिका मे 0.12% की मामूली वृद्धि हुई । ऊर्जा मांग मे वृद्धि दर के इस अंतर के कारण अक्षय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका, यदि अपनी वर्तमान जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को काम नहीं करेगा , तो उसे अपनी अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए केवल 26 गीगावाट नई नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता होगी, जो 6000 गीगावाट के लक्ष्य का केवल 0.4% है। इसके विपरीत, भारत को अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए लगभग 717 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता होगी, जो तीन गुना लक्ष्य के 12% हिस्से के बराबर होगी।
  • हालाँकि, यदि U.S. और EU सभी जीवाश्म ईंधन-आधारित बिजली उत्पादन को समाप्त करने का निर्णय लेते हैं, तो उन्हें क्रमशः लगभग 1565 GW और 538 GW अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ने की आवश्यकता होगी। इस परिदृश्य में, वे नवीकरणीय ऊर्जा हिस्सेदारी का अधिक न्यायसंगत हिस्सा वहन करेंगे, जिससे विकासशील देशों के लिए संक्रमण कम कठिन होगा।

कॉप 28 में वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य

  • अफसोस की बात है कि कॉप 28 में वैश्विक आरई लक्ष्य के बारे में पारदर्शिता का अभाव है। यह अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (आईआरईएनए) की एक रिपोर्ट से प्रेरणा लेता प्रतीत होता है, जिसमें 2022 के स्तर की तुलना में 2030 तक वैश्विक स्तर पर कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाकर 11 TW से अधिक करने का सुझाव दिया गया है।
  • आईआरईएनए. के विश्लेषण में, 2030 तक अधिकांश गैर-नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि विकासशील क्षेत्रों में अनुमानित है। 2030 तक, उप-सहारा अफ्रीका में ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 80% नवीकरणीय स्रोतों से आने की उम्मीद है, जबकि यूरोपीय संघ में 70% है। ध्यान देने वाली बात है चीन और भारत के विश्व स्तर पर महत्वाकांक्षी लक्ष्य हैं, जबकि इन क्षेत्रों और विकसित दुनिया के बीच नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता मे अंतर काफी अधिक है।

चुनौतियाँ

  • क्षमता वृद्धि के पूर्व अनुमान विभिन्न चुनौतियों प्रस्तुत करते हैं, यह मुख्य रूप से ऊर्जा की मांग में वृद्धि से क्षमता वृद्धि को अलग करते हैं। यद्यपि सापेक्ष लक्ष्यों को प्राप्त करना कम जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि वे अपेक्षाओं के अनुरूप मांग वृद्धि पर कम निर्भर हैं।
  • इसके अतिरिक्त, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में इस वृद्धि को प्राप्त करने के लिए विकासशील देशों पर निर्भरता आपूर्ति स्थिरता और व्यवहार्य ऊर्जा भंडारण विकल्पों के बिना संभव नहीं हो सकता है। इसके अलावा, 100 अरब डॉलर के न्यूनतम वार्षिक जलवायु वित्त लक्ष्य को भी पूरा करने में असमर्थता चुनौतियों प्रस्तुत करता है।

लक्ष्य और जिम्मेदारियां:

  • विशेष रूप से, वैश्विक नवीकरणीय लक्ष्य के सबसे मुखर प्रस्तावकों के पास तुलनीय घरेलू लक्ष्य नहीं हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने COP26 में 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता लक्ष्य के लिए भारत की प्रतिबद्धता को व्यक्त किया है , जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इस तरह की समान प्रतिबद्धताएं नहीं की हैं।
  • उनके लिए, लक्ष्य सरकार द्वारा अनिवार्य दायित्वों के बजाय बाजार संकेतों के रूप में अधिक कार्य करते हैं।

निष्कर्ष निकालनाः

कॉप 28 में विकासशील देशों, विशेष रूप से भारत को वैश्विक नवीकरणीय क्षमता लक्ष्य को तीन गुना करने पर तभी विचार करना चाहिए जब विकसित देश पेरिस समझौते के तहत अपनी जिम्मेदारियों के अनुरूप न्यायसंगत, पूर्ण घरेलू लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हों। वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करना एक स्थायी और न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए साझा जिम्मेदारियों के साथ एक सहयोगी प्रयास होना चाहिए।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

  1. ऊर्जा की खपत में वृद्धि दर विभिन्न क्षेत्रों के बीच कैसे भिन्न है, और 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए इसका क्या प्रभाव पड़ता है? (10 Marks, 150 Words)
  2. अक्षय ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से विकासशील देशों पर भरोसा करने के साथ कौन सी चुनौतियां जुड़ी हुई हैं, और अक्षय ऊर्जा स्रोतों में सफल संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है? (15 Marks, 250 Words)

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