परिचय:
जोहान्सबर्ग में आयोजित 2025 जी-20 लीडर्स’ समिट कई कारणों से ऐतिहासिक रहा। पहली बार अफ्रीकी महाद्वीप जी-20 बैठक की मेज़बानी कर रहा था, अमेरिका ने इस शिखर सम्मेलन का पूर्ण बहिष्कार किया और अंतिम घोषणा पत्र अमेरिकी भागीदारी के बिना तैयार किया गया। इन असाधारण परिस्थितियों के बावजूद, उपस्थित सभी सदस्य देशों ने 122-पैराग्राफ वाले घोषणा पत्र को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। इस घोषणा पत्र में बहुपक्षीय सहयोग, ग्लोबल साउथ की प्रतिनिधित्वशीलता और वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधार पर विशेष जोर दिया गया।
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- भारत के लिए यह सम्मेलन 2023 की अपनी अध्यक्षता की प्रमुख प्राथमिकताओं “सतत विकास, आतंकवाद-रोधी सहयोग, ग्लोबल साउथ की क्षमता-वृद्धि, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार” को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण मंच सिद्ध हुआ। साथ ही, सम्मेलन ने उभरते भू-राजनीतिक तनावों को भी उजागर किया, जिसमें वैश्विक संघर्षों पर संयमित भाषा, जलवायु दायित्वों को लेकर गहरी असहमति और ग्लोबल नॉर्थ व ग्लोबल साउथ के बीच बढ़ती दूरियां शामिल हैं।
- भारत के लिए यह सम्मेलन 2023 की अपनी अध्यक्षता की प्रमुख प्राथमिकताओं “सतत विकास, आतंकवाद-रोधी सहयोग, ग्लोबल साउथ की क्षमता-वृद्धि, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार” को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण मंच सिद्ध हुआ। साथ ही, सम्मेलन ने उभरते भू-राजनीतिक तनावों को भी उजागर किया, जिसमें वैश्विक संघर्षों पर संयमित भाषा, जलवायु दायित्वों को लेकर गहरी असहमति और ग्लोबल नॉर्थ व ग्लोबल साउथ के बीच बढ़ती दूरियां शामिल हैं।
जी-20 के बारे में:
जी-20 एक अनौपचारिक अंतरराष्ट्रीय मंच है जिसमें 19 प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ, यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ शामिल हैं। यह समूह संयुक्त रूप से लगभग:
• वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 88%
• वैश्विक व्यापार का 78%
• विश्व की लगभग तीन-चौथाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।
2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद जी-20 को देशों के शीर्ष नेताओं के स्तर तक उन्नत किया गया। तब से इसका उद्देश्य लगातार व्यापक होता गया है, जिसमें व्यापार, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, कृषि, डिजिटल प्रशासन और वैश्विक असमानताओं जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल होते गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र की तरह जी-20 का भी कोई स्थायी सचिवालय नहीं है। इसकी अध्यक्षता हर वर्ष बदलती रहती है और इसे “ट्रोइका” तंत्र (अर्थात् पूर्व, वर्तमान और आगामी अध्यक्ष देशों) के सहयोग से संचालित किया जाता है।
जोहान्सबर्ग घोषणा पत्र की प्रमुख बिंदु:
1. ‘उबुंटू’ की भावना और सामूहिक कार्रवाई
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- घोषणा पत्र की शुरुआत अफ्रीकी दर्शन “उबुंटू” के उल्लेख से हुई, जो पारस्परिक संबंध, सह-अस्तित्व और साझा जिम्मेदारी के विचार पर आधारित है। वैश्विक देशों ने बढ़ते संघर्षों, मानवीय संकटों और आर्थिक अस्थिरता की पृष्ठभूमि में वैश्विक बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करने का संकल्प दोहराया।
- दस्तावेज़ में रूस–यूक्रेन युद्ध का केवल सीमित उल्लेख किया गया और गाज़ा संघर्ष का नाम नहीं लिया गया, फिर भी यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि किसी भी देश को सैन्य बल के माध्यम से किसी क्षेत्र पर कब्जा नहीं करना चाहिए, जो मौजूदा भू-राजनीतिक तनावों का प्रत्यक्ष संकेत है।
- घोषणा पत्र की शुरुआत अफ्रीकी दर्शन “उबुंटू” के उल्लेख से हुई, जो पारस्परिक संबंध, सह-अस्तित्व और साझा जिम्मेदारी के विचार पर आधारित है। वैश्विक देशों ने बढ़ते संघर्षों, मानवीय संकटों और आर्थिक अस्थिरता की पृष्ठभूमि में वैश्विक बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करने का संकल्प दोहराया।
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2. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) सुधार की दिशा में निर्णायक प्रगति
• घोषणा पत्र में साफ कहा गया कि वर्तमान सुरक्षा परिषद वैश्विक भू-राजनीति को स्पष्ट नहीं करती। इसलिए मांग की गई:
o सदस्य देशों की संख्या बढ़ाई जाए
o अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए
• 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तनकारी सुधार प्रक्रिया शुरू की जाए
• यह मांग पूरी तरह भारत के लंबे समय से चले आ रहे इस विचार के अनुरूप है कि UNSC को अधिक लोकतांत्रिक, प्रतिनिधित्वपूर्ण और विश्वसनीय बनाया जाए।
3. आतंकवाद पर स्पष्ट और कठोर रुख
· भारत यह सुनिश्चित करने में सफल रहा कि घोषणा पत्र में सीधे शब्दों में लिखा जाए कि:
“हम आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा करते हैं।”
· यह छोटा वाक्य रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई सदस्य देश आतंकवाद की परिभाषा और इससे निपटने के तरीकों पर सहमति नहीं रखते। दस्तावेज़ में नागरिकों की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के पालन पर भी जोर दिया गया।
4. महिलाओं और युवाओं पर केंद्रित प्रतिबद्धताएँ
· घोषणा पत्र में यह दोहराया गया:
o महिलाओं के सामने मौजूद सामाजिक व आर्थिक बाधाएँ समाप्त की जाएँ
o महिला-नेतृत्वित विकास को बढ़ावा दिया जाए
o राजनीति व अर्थव्यवस्था में महिलाओं की प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित की जाए
· युवा प्रतिबद्धताओं में “नेल्सन मंडेला बे टारगेट” का उल्लेख उल्लेखनीय है, जिसके अनुसार 2030 तक उन युवाओं की संख्या को 5% तक लाना है जो न शिक्षा, न प्रशिक्षण और न रोजगार (Not in Education, Employment or Training- NEET) में हैं।
5. जलवायु कार्रवाई, हरित वित्त और न्यायपूर्ण ऊर्जा संक्रमण
· अमेरिका की आपत्तियों के बावजूद जलवायु पर व्यापक सहमति बनी:
o जलवायु वित्त को “अरबों से खरबों” स्तर तक विस्तार देना
o यह स्वीकारना कि विकासशील देशों को 2030 तक जलवायु लक्ष्यों हेतु 5.8–5.9 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी
o वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना
o न्यायपूर्ण ऊर्जा परिवर्तन सुनिश्चित करना, विशेषकर अफ्रीका में जहाँ 600 मिलियन लोग अब भी बिजली से वंचित हैं
· घोषणा पत्र में “जी20 क्रिटिकल केमिकल्स फ्रेमवर्क” का स्वागत भी किया गया, जिसका लक्ष्य महत्वपूर्ण खनिजों की टिकाऊ और पारदर्शी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ बनाना है।
6. ऋण स्थिरता और विकास वित्त
• नेताओं ने माना कि विकासशील देशों पर बढ़ता कर्ज उनके विकास मार्ग में एक बड़ी बाधा है। इसके समाधान के लिए G20 कॉमन फ्रेमवर्क को सशक्त बनाने पर सहमति बनी।
• एक प्रमुख संस्थागत उपलब्धि यह रही कि उप-सहारा अफ्रीका के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए 25वें आईएमएफ कार्यकारी बोर्ड अध्यक्ष का गठन किया गया।
7. खाद्य सुरक्षा और कृषि
• 2024 में विश्व के लगभग 720 मिलियन लोग पर्याप्त भोजन तक पहुँच से वंचित हैं, इस पृष्ठभूमि में घोषणा पत्र में “खाद्य का अधिकार” फिर दोहराया गया और छोटे व सीमांत किसानों “विशेषकर अफ्रीका” को समर्थन बढ़ाने पर जोर दिया गया।
• अफ्रीकी महाद्वीप मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) जैसी क्षेत्रीय पहलों को भी सुदृढ़ करने का आह्वान किया गया।
8. डिजिटल प्रशासन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता
· सम्मेलन में “AI फॉर अफ्रीका इनिशिएटिव” की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य अफ्रीका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक सुरक्षित, न्यायसंगत और क्षमता-वर्धक पहुँच सुनिश्चित करना है। प्रमुख सिद्धांत थे:
o मानवाधिकार-आधारित सुरक्षा
o पारदर्शिता और जवाबदेही
o अपराध व आतंकवाद में दुरुपयोग की रोकथाम
सम्मेलन में भारत की पहल:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल साउथ के विकास और सहयोग को आगे बढ़ाते हुए छह प्रमुख प्रस्ताव प्रस्तुत किए:
1. ड्रग–टेरर नेक्सस पर जी-20 पहल
भारत ने विशेषकर फेंटानिल (Fentanyl) जैसे सिंथेटिक ओपिओइड (Synthetic Opioids) के माध्यम से बढ़ते आतंकवादी वित्तपोषण पर गंभीर चिंता व्यक्त की। इस पहल के अंतर्गत शामिल है:
• वित्तीय लेनदेन की उन्नत निगरानी
• सीमा प्रबंधन तंत्र को सशक्त बनाना
• खुफिया सूचनाओं का अंतरराष्ट्रीय साझाकरण
• कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमताओं को बढ़ाना
2. जी-20 – अफ्रीका स्किल्स मल्टीप्लायर पहल
अगले दस वर्षों में अफ्रीका में 10 लाख प्रमाणित प्रशिक्षक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। “ट्रेन-द-ट्रेनर” मॉडल पर आधारित यह कार्यक्रम विनिर्माण, डिजिटल सेवाओं और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख क्षेत्रों में क्षमता निर्माण को बढ़ावा देगा।
3. वैश्विक पारंपरिक ज्ञान भंडार
विश्व भर में उपलब्ध पारंपरिक एवं स्वदेशी ज्ञान को संरक्षित, प्रलेखित और साझा करने के लिए एक वैश्विक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का प्रस्ताव दिया गया। इसका उद्देश्य बायोपाइरेसी (Biopiracy) पर नियंत्रण और अनुसंधान-अभिनव को प्रोत्साहन देना है।
4. जी-20 वैश्विक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया टीम
महामारियों, आपदाओं और स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान त्वरित और समन्वित हस्तक्षेप के लिए प्रशिक्षित, बहुराष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रतिक्रिया बल स्थापित करने का सुझाव दिया गया।
5. ओपन सैटेलाइट डेटा साझेदारी
जी-20 सदस्य देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच उपग्रह डेटा का खुला और जिम्मेदार आदान-प्रदान सुनिश्चित करने का प्रस्ताव। इसका सीधा लाभ विकासशील देशों को आपदा प्रबंधन, कृषि योजना, तटीय सुरक्षा और पर्यावरणीय निगरानी में प्राप्त हो सकेगा।
6. क्रिटिकल मिनरल्स सर्कुलैरिटी पहल
महत्वपूर्ण खनिजों के पुनर्चक्रण, जिम्मेदार खनन और शहरी खनन (Urban mining) के माध्यम से ऊर्जा संक्रमण को गति देने और आपूर्ति श्रृंखलाओं की स्थिरता को सुदृढ़ करने पर बल दिया गया।
इसके अतिरिक्त, भारत ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के सुरक्षित और नैतिक उपयोग को लेकर कठोर प्रतिबंध, मानव पर्यवेक्षण और जिम्मेदार AI ढाँचे की आवश्यकता पर भी जोर दिया। साथ ही, सभी सदस्य देशों को 2026 की शुरुआत में आयोजित होने वाले “AI इम्पैक्ट समिट” में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया।
जी-20 के सामने प्रमुख चुनौतियाँ:
हालाँकि जी-20 वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक विमर्श में अत्यधिक प्रभावशाली मंच है, फिर भी इसकी कार्यक्षमता अनेक सीमाओं और विरोधाभासों से प्रभावित होती है। प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
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- भू-राजनीतिक विभाजन: रूस–यूक्रेन संघर्ष, चीन–पश्चिम तनाव और मध्य पूर्व संकट सदस्य देशों को अलग-अलग धड़ों में बाँटते हैं।
- प्रतिबद्धताओं का गैर-बाध्यकारी स्वरूप: जी-20 के घोषणापत्र और निर्णय स्वैच्छिक होते हैं, जिनके पालन के लिए कोई कानूनी दायित्व या दंड व्यवस्था नहीं है।
- जलवायु जिम्मेदारियों पर मतभेद: विकसित और विकासशील देशों के बीच “ऐतिहासिक जिम्मेदारियों” और “वित्तीय योगदान” को लेकर असहमति बनी हुई है।
- अमेरिका–चीन प्रतिस्पर्धा: दोनों महाशक्तियों के बीच आर्थिक और तकनीकी प्रतिद्वंद्विता वार्ताओं को बार-बार प्रभावित करती है।
- ऋण और विकास वित्त में भारी अंतर: विकासशील देशों के लिए ऋण पुनर्संरचना और वित्तपोषण की व्यवस्थाएँ अभी भी अपर्याप्त हैं।
- स्थायी संस्थागत व्यवस्था का अभाव: स्थायी सचिवालय न होने के कारण नीति-निरंतरता और निर्णय-अनुपालन अक्सर कमजोर पड़ जाता है।
- भू-राजनीतिक विभाजन: रूस–यूक्रेन संघर्ष, चीन–पश्चिम तनाव और मध्य पूर्व संकट सदस्य देशों को अलग-अलग धड़ों में बाँटते हैं।
2025 शिखर सम्मेलन में ये चुनौतियाँ और अधिक स्पष्ट रूप से सामने आईं। अमेरिका के बहिष्कार तथा वैश्विक संघर्षों पर अत्यंत नरम और सहमति-उन्मुख भाषा ने यह संकेत दिया कि वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति गहरे विभाजन, अविश्वास और प्रतिस्पर्धा के दौर से गुजर रही है।
भारत के लिए जी-20 का महत्व:
भारत के लिए जी-20 केवल एक बहुपक्षीय आर्थिक मंच नहीं, बल्कि वैश्विक नीतिनिर्माण में अपनी भूमिका को सशक्त बनाने का रणनीतिक अवसर है। भारत के लिए जी-20 के महत्व को निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है:
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- सुरक्षा परिषद को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने की भारत की पुरानी मांग को अंतरराष्ट्रीय समर्थन दिलाने के लिए जी-20 प्रभावी मंच प्रदान करता है।
- विकासशील देशों की आवश्यकताओं, क्षमता-विकास और आर्थिक न्याय के मुद्दों को प्रमुखता दिलाने में भारत सक्रिय भूमिका निभाता है।
- विकसित देशों से वित्तीय सहयोग बढ़ाने और न्यायपूर्ण ऊर्जा संक्रमण के लिए भारत जी-20 में निरंतर दबाव बनाता है।
- भारत सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी पहल को प्राथमिकता देकर सामूहिक कार्रवाई के लिए सहमति बनाता है।
- डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, अंतरिक्ष डेटा साझाकरण, और सुरक्षित AI उपयोग जैसे क्षेत्रों में भारत अपने अनुभव और नेतृत्व को साझा करता है।
- जी-20 भारत को विश्व स्तर पर एक विश्वसनीय, स्थिर और समाधान-केंद्रित नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करने का अवसर देता है।
- सुरक्षा परिषद को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने की भारत की पुरानी मांग को अंतरराष्ट्रीय समर्थन दिलाने के लिए जी-20 प्रभावी मंच प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
2025 का जी-20 शिखर सम्मेलन वैश्विक भू-राजनीतिक उथल-पुथल, प्राथमिकताओं में टकराव और अमेरिका की अनुपस्थिति के बीच आयोजित हुआ। इसके बावजूद, सभी सदस्य देशों ने बहुपक्षवाद, समावेशिता और सतत विकास के आधार पर विस्तृत घोषणा पत्र सर्वसम्मति से स्वीकार किया। भारत के लिए यह सम्मेलन 2023 की अपनी अध्यक्षता की निरंतरता को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ, विशेषकर आतंकवाद, कौशल विकास, पारंपरिक ज्ञान, क्रिटिकल मिनरल्स और वैश्विक शासन सुधारों से जुड़े विमर्शों को आगे बढ़ाने के संदर्भ में। हालांकि, वास्तविक परीक्षा अब क्रियान्वयन की होगी, क्योंकि आगामी अध्यक्षता अब अमेरिका के पास जाने वाली है, इसलिए यह चुनौती बनी रहेगी कि क्या विभाजित अंतरराष्ट्रीय प्रणाली सामूहिक कार्रवाई को जारी रख पाएगी। जोहान्सबर्ग घोषणा पत्र यह संकेत देता है कि बहुपक्षीय मंच आज भी प्रासंगिक हैं, लेकिन उनकी सफलता राजनीतिक इच्छाशक्ति, भरोसा और विश्वसनीय वैश्विक सहयोग पर निर्भर करेगी।
| UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न: अफ्रीका द्वारा पहली बार जी-20 लीडर्स’ समिट की मेजबानी के महत्व पर चर्चा कीजिए। साथ ही, अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किए जाने से वैश्विक शासन प्लेटफॉर्म किस प्रकार पुनर्गठित होंगे, इसका विश्लेषण कीजिए। |


