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Daily-current-affairs / 24 Jun 2025

समाचार, समीक्षा और सेंसरशिप: फेयर डीलिंग की भारतीय परिभाषा पर पुनर्विचार

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सन्दर्भ- 
समाचार एजेंसी एएनआई और एक यूट्यूबर (मोहक मंगल) के बीच हाल ही में हुआ एक कानूनी विवाद भारत में कॉपीराइट कानूनों के काम करने के तरीके को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाता है, विशेष रूप से सोशल मीडिया और डिजिटल कंटेंट के युग में। यह मामला कॉपीराइट संरक्षण और उचित उपयोग (या उचित व्यवहार) के बीच के धुंधले क्षेत्र को उजागर करता है, खासकर उन कंटेंट क्रिएटर्स के लिए जो समाचार क्लिप का उपयोग सार्वजनिक टिप्पणी, शिक्षा या आलोचना के लिए करते हैं।

मामला किस बारे में है?
ANI (एक अग्रणी समाचार एजेंसी) ने यूट्यूब कंटेंट क्रिएटर मोहक मंगल के खिलाफ कॉपीराइट और ट्रेडमार्क उल्लंघन का मामला दायर किया। उन्होंने आरोप लगाया कि मंगल ने अपनी कम से कम 10 यूट्यूब वीडियो में उनके कॉपीराइटेड वीडियो क्लिप्स बिना अनुमति के इस्तेमाल किए। ANI का कहना है कि इस अनधिकृत उपयोग से उनके न्यूज़ प्लेटफॉर्म्स से ट्रैफिक हटकर यूट्यूब पर जा रहा है, जिससे उनकी आमदनी प्रभावित हो रही है।
इसके अलावा, ANI ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक अलग मामला भी दायर किया, जो ट्रेडमार्क उल्लंघन, मानहानि और ANI के बारे में की गई आलोचनात्मक टिप्पणियों से जुड़ा था।
मंगल ने उत्तर में कहा कि उन्होंने जो सामग्री इस्तेमाल की, वह भारतीय कॉपीराइट कानून के "फेयर डीलिंग" अपवाद के तहत आती है। उन्होंने कहा कि उन्होंने समाचार घटनाओं को समझाने, आलोचना करने और अपने विचार व्यक्त करने के लिए छोटे क्लिप्स का इस्तेमाल किया, जो भारतीय कानून के तहत संरक्षित गतिविधियां हैं।

कॉपीराइट और उचित व्यवहार (Fair Dealing) क्या है?
कॉपीराइट किसी कार्य के निर्माताजैसे कि न्यूज़ वीडियो, लेख या फ़ोटोको उस कार्य का उपयोग, वितरण या पुनरुत्पादन करने का विशेष अधिकार देता है। हालाँकि, भारत में 1957 का कॉपीराइट अधिनियम कुछ अपवादों की अनुमति देता है, जिसे उचित व्यवहार (fair dealing) कहा जाता है।
धारा 52 के अनुसार, कुछ विशेष उपयोगों को कॉपीराइट उल्लंघन नहीं माना जाता। इनमें शामिल हैं:
व्यक्तिगत या निजी उपयोग, जिसमें शोध शामिल है
आलोचना या समीक्षा के लिए उपयोग
वर्तमान घटनाओं की रिपोर्टिंग के दौरान उपयोग
शैक्षणिक संदर्भों में उपयोग (जैसे शिक्षक या छात्र द्वारा)
न्यायिक कार्यवाही में उपयोग

इसलिए, यदि कोई व्यक्ति कॉपीराइटेड कार्य का उपयोग आलोचना, समीक्षा या समाचार रिपोर्टिंग के लिए करता हैवह भी पूरी सामग्री की नकल किए बिना और उचित संदर्भ मेंतो वह उचित व्यवहार के अंतर्गत सुरक्षित हो सकता है।

न्यायालय का पक्ष-
दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान ANI ने उन वीडियो को हटाने की मांग की जिनमें उसकी सामग्री का उपयोग हुआ था। लेकिन अदालत ने कॉपीराइट उल्लंघन या ट्रेडमार्क मुद्दों पर तुरंत कोई निर्णय नहीं दिया। इसके बजाय, उसने केवल ट्रेडमार्क अपमान (disparagement) के मामले पर ध्यान केंद्रित किया और मंगल को ANI के खिलाफ की गई अपमानजनक टिप्पणियाँ हटाने के लिए कहा।
मंगल ने अपने बचाव में “
बहुत छोटी या नगण्य” (“de minimis”) सिद्धांत का उपयोग किया। इसका अर्थ है कि यदि कॉपीराइट की गई सामग्री का उपयोग बहुत छोटा या नगण्य है, तो उस पर कानूनी जांच की आवश्यकता नहीं होती।
भारतीय अदालतें यह तय करने के लिए पाँच कारकों पर विचार करती हैं कि कोई कार्य
बहुत छोटी या नगण्य (de minimis) है या नहीं:

1.        नुकसान का आकार और प्रकार

2.      अदालती कार्यवाही की लागत और समय

3.      उस कानूनी नियम का उद्देश्य जो उल्लंघित हुआ

4.     तीसरे पक्ष (जैसे दर्शकों) पर प्रभाव

5.      आरोपी व्यक्ति की मंशा

यह सिद्धांत तब उपयोगी हो सकता है जब प्रयुक्त सामग्री बहुत कम और हानिरहित हो।

यूट्यूब की भूमिका:
ANI ने यूट्यूब के कॉपीराइट स्ट्राइक सिस्टम के माध्यम से एक Takedown request दायर किया, जो अमेरिका के Digital Millennium Copyright Act (DMCA) के अंतर्गत काम करता है। यूट्यूब ने वीडियो हटा दिए, हालांकि विवाद भारत से संबंधित है।
बाद में मंगल ने यूट्यूब को जवाबी नोटिस (Counter-Notice) भेजा, यह दावा करते हुए कि उनके वीडियो फेयर डीलिंग के अंतर्गत संरक्षित हैं और उन्होंने उन्हें पुनः बहाल करने का अनुरोध किया।

पिछले मामलों और अदालती निर्णय
भारत में कुछ महत्वपूर्ण मामलों ने फेयर डीलिंग की व्याख्या करने में मदद की है:

1.        टीवी टुडे नेटवर्क बनाम न्यूज़लॉन्ड्री (2022): न्यूज़लॉन्ड्री ने टीवी टुडे के न्यूज़ क्लिप्स का उपयोग आलोचना के लिए किया। टीवी टुडे ने कॉपीराइट और मानहानि का दावा किया। दिल्ली हाईकोर्ट ने वीडियो हटाने से मना कर दिया और कहा कि मामला ट्रायल कोर्ट में तय होगा।

2.      DU फोटोकॉपी मामला (2016): दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक फोटोकॉपी स्टोर पर किताबों के अध्यायों से बने कोर्स पैक बेचने का मामला था। अदालत ने कहा कि शैक्षणिक उपयोग उचित व्यवहार में आता है।

3.      ब्लैकवुड बनाम पारसुरामन (1959): एक मामला जिसमें छात्र गाइड को व्यावसायिक रूप से बेचा जा रहा था। अदालत ने कहा कि यह उचित व्यवहार नहीं है क्योंकि उसका उद्देश्य लाभ अर्जन था।

इन मामलों से स्पष्ट होता है कि भारतीय अदालतें उद्देश्य, प्रयुक्त सामग्री की मात्रा, और प्रयोग की मंशा को देखकर तय करती हैं कि कोई उपयोग फेयर डीलिंग के अंतर्गत आता है या नहीं।

फेयर डीलिंग बनाम फेयर यूज़
यह समझना जरूरी है कि भारत का कॉपीराइट कानून अमेरिका के मॉडल से भिन्न है:
भारत: एक सख्त सूचीबद्ध अपवाद प्रणाली अपनाता है (fair dealing)
संयुक्त राज्य अमेरिका: एक लचीला परीक्षण अपनाता है (fair use), जो चार मुख्य कारकों पर आधारित होता हैउद्देश्य, प्रकृति, प्रयुक्त मात्रा, और बाज़ार पर प्रभाव।

भारत की प्रणाली कंटेंट क्रिएटर्स को अमेरिकी मॉडल की तुलना में कम लचीलापन देती है।

अंतर्राष्ट्रीय ढाँचा
भारत बर्न कन्वेंशन (1886) का हिस्सा है, जो कॉपीराइट संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक तय करता है। इस कन्वेंशन के अनुसार, किसी कार्य का कॉपीराइट इसके निर्माण के क्षण से ही अस्तित्व में आ जाता हैपंजीकरण आवश्यक नहीं होता।
कॉपीराइट की अवधारणा की शुरुआत इंग्लैंड के "Statute of Anne" (1710) से हुई थी, जिसने लेखकों को उनके कार्यों पर अधिकार दिया। इसके बाद अमेरिका में 1790 का कॉपीराइट अधिनियम आया।

AI और कॉपीराइट की भूमिका
भारत का वर्तमान कॉपीराइट कानून AI-जनित सामग्री को कवर नहीं करता। धारा 2(d) के अनुसार लेखक को एक मानव माना गया है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि AI के लिए विशेष बौद्धिक संपदा अधिकार (IPRs) बनाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है, लेकिन इस विषय पर विचार करने के लिए एक समिति गठित की गई है।

निष्कर्ष:
ANI बनाम मंगल मामला डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कॉपीराइट संरक्षण के बीच के तनाव को दर्शाता है। यह यह भी दिखाता है कि कंटेंट क्रिएटर्स को समाचार क्लिप्स या अन्य कॉपीराइट सामग्री का उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

कंटेंट क्रिएटर्स को सुनिश्चित करना चाहिए कि:
सामग्री का उपयोग उपयुक्त संदर्भ और टिप्पणी के साथ हो
केवल छोटी क्लिप्स का उपयोग हो
उपयोग जनहित में हो, न कि केवल मनोरंजन या लाभ के लिए
संभव हो तो उचित श्रेय दिया जाए

इस मामले का परिणाम शायद एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश करेगा कि अदालतें डिजिटल स्पेस में कॉपीराइट और फेयर डीलिंग को कैसे संभालती हैं। जैसे-जैसे अधिक रचनाकार, शिक्षक और पत्रकार ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म की ओर बढ़ रहे हैं, स्पष्ट कानूनी मानक और अधिकारों तथा सीमाओं की जानकारी अत्यंत आवश्यक होती जा रही है। फेयर डीलिंग को समझना, कॉपीराइट का सम्मान करना, और जिम्मेदारी से कंटेंट का उपयोग करना आज के डिजिटल भारत में अत्यंत आवश्यक है।

मुख्य प्रश्न
भारत की कानूनी व्यवस्था को डिजिटल सामग्री को विनियमित करते हुए संवैधानिक स्वतंत्रताओं को बनाए रखने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? परीक्षण कीजिए।