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Daily-current-affairs / 19 Dec 2025

सतत विकास की आधारशिला: भारत में ऊर्जा संरक्षण की बदलती भूमिका

सतत विकास की आधारशिला: भारत में ऊर्जा संरक्षण की बदलती भूमिका

सन्दर्भ: 

ऊर्जा केवल बिजली या ईंधन तक सीमित नहीं है बल्कि यह आधुनिक जीवन की आधारशिला है जो घरों को रोशन करने, उद्योगों को चलाने, परिवहन को सक्षम बनाने, डिजिटल सेवाओं, अस्पतालों और विद्यालयों को समर्थन देने का कार्य करती है। यह आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और तकनीकी उन्नति की नींव है। जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है, विश्वसनीय और सतत ऊर्जा की मांग निरंतर बढ़ रही है, जिससे केवल आपूर्ति विस्तार ही नहीं बल्कि ऊर्जा के जिम्मेदार और कुशल उपयोग की आवश्यकता भी सामने आती है।

      • 14 दिसंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस ऊर्जा दक्षता और संसाधन संरक्षण के क्षेत्र में भारत की प्रगति को रेखांकित करता है। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के नेतृत्व में यह दिवस घरों, उद्योगों और संस्थानों में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ ऊर्जा-बचत प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। उजाला एलईडी वितरण, रूफटॉप सोलर योजनाएँ, मानक एवं लेबलिंग, तथा भवन ऊर्जा संहिताएँ जैसी पहलें ऊर्जा खपत और कार्बन उत्सर्जन को घटाने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

पृष्ठभूमि और विकासक्रम:

      • राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 1991 से प्रतिवर्ष मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य ऊर्जा खपत में कमी और उद्योगों, संस्थानों तथा घरों में कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देने हेतु जन-जागरूकता सृजित करना है।
      • ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के अधिनियमन के बाद, विद्युत मंत्रालय के अधीन ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) को राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा संरक्षण प्रयासों का नेतृत्व करने का दायित्व सौंपा गया। इनमें जन-जागरूकता अभियान, विद्यालय स्तरीय प्रतियोगिताएँ, क्षमता निर्माण कार्यक्रम और राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार शामिल हैं।
      • यह आयोजन इस बात की निरंतर याद दिलाता है कि ऊर्जा दक्षता और संरक्षण, ऊर्जा की वहनीयता सुनिश्चित करने, उत्सर्जन घटाने, ग्रिड की विश्वसनीयता मजबूत करने तथा तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में भारत के व्यापक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को समर्थन देने के लिए केंद्रीय महत्व रखते हैं।

प्रमुख उपलब्धि:

2025 के उत्तरार्ध तक भारत ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की, जिसमें उसकी कुल स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 50% से अधिक (505 गीगावाट में से 259 गीगावाट से अधिक) गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त होने लगा।

1. संकल्पनात्मक अंतर: दक्षता बनाम संरक्षण:

      • ऊर्जा दक्षता का तात्पर्य कम ऊर्जा खपत के साथ समान उत्पादन या सेवा प्राप्त करना है।
      • ऊर्जा संरक्षण का अर्थ ऊर्जा की बर्बादी और अनावश्यक उपयोग से बचना है।
      • लागत में कमी, पर्यावरण संरक्षण और सतत आर्थिक विकास को सक्षम करते हुए दोनों मिलकर भारत की ऊर्जा रणनीति का एक प्रमुख स्तंभ बनाते हैं।

2. भारत का वर्तमान ऊर्जा परिदृश्य (2025):

      • भारत विश्व के शीर्ष तीन ऊर्जा उपभोक्ताओं में शामिल है, जहाँ बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है। विद्युत उत्पादन 2023–24 में 1,739.09 अरब यूनिट (BU) से बढ़कर 2024–25 में 1,829.69 BU हो गया, जो 5.21% की वृद्धि को दर्शाता है। 2025–26 के लिए उत्पादन लक्ष्य 2,000.4 BU निर्धारित किया गया है, जो मजबूत मांग और निरंतर क्षमता विस्तार को रेखांकित करता है।
      • भारत के विद्युत मांग में एक बड़ा संक्रमण चल रहा है। 31 अक्टूबर 2025 तक कुल स्थापित उत्पादन क्षमता 505 गीगावाट रही, जिसमें 259 गीगावाट से अधिक सौर, पवन, जल और परमाणु जैसे गैर-जीवाश्म स्रोतों से थी। यह उपलब्धि भारत के स्वच्छ और अधिक सतत ऊर्जा भविष्य की ओर बढ़ते कदम को दर्शाती है।

नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की वैश्विक स्थिति भी उल्लेखनीय है:
सौर ऊर्जा क्षमता में तीसरा स्थान,
पवन ऊर्जा क्षमता में चौथा स्थान, तथा
कुल स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में विश्व स्तर पर चौथा स्थान (2025),
अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के आँकड़ों के अनुसार।
 

प्रमुख ऊर्जा संरक्षण पहलें:

विद्युत मंत्रालय और ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) ने विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा अपव्यय कम करने और कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं।

      • औद्योगिक ऊर्जा दक्षता:
        • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) भारत की औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन के लिए बाजार-आधारित रूपरेखा है। उत्सर्जन-प्रधान क्षेत्रों को लक्ष्य दिए जाते हैं और लक्ष्य से अधिक प्रदर्शन पर उन्हें व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र अर्जित करने का अवसर मिलता है। दिसंबर 2025 में एल्यूमीनियम, सीमेंट, पेट्रोकेमिकल्स, रिफाइनरी, पल्प एवं पेपर, वस्त्र तथा क्लोर-एल्कली सहित प्रमुख क्षेत्रों को पूर्ववर्ती परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (PAT) तंत्र से CCTS में स्थानांतरित किया गया।
        • PAT योजना ने बड़े पैमाने पर दक्षता सुधार की नींव रखी, जिसमें अनिवार्य ऊर्जा कमी लक्ष्य निर्धारित किए गए और व्यापार हेतु ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र (ESCerts) जारी किए गए।
      • घरेलू एवं उपभोक्ता-स्तरीय दक्षता:
        • मानक एवं लेबलिंग (S&L) कार्यक्रम, जो 28 उपकरण श्रेणियों (17 अनिवार्य) को शामिल करता है, स्टार-रेटिंग लेबल के माध्यम से उपभोक्ताओं को सशक्त बनाता है और निर्माताओं को नवाचार के लिए प्रेरित करता है।
        • उजाला एलईडी कार्यक्रम (Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All), जनवरी 2015 में शुरू किया गया, जिसके अंतर्गत 36.87 करोड़ एलईडी बल्ब वितरित किए गए, जिससे ऊर्जा की उल्लेखनीय बचत, पीक डिमांड में कमी और CO उत्सर्जन में गिरावट आई।
        • प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना (2024), ₹75,021 करोड़ के परिव्यय के साथ, एक करोड़ घरों को रूफटॉप सोलर प्रणालियों से सुसज्जित करने का लक्ष्य रखती है, जिससे प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली उपलब्ध कराई जाती है। दिसंबर 2025 तक 23.9 लाख से अधिक घरों में रूफटॉप सोलर स्थापित हो चुके थे। विशेष रूप से, 7.7 लाख से अधिक परिवारों को शून्य बिजली बिल प्राप्त हो रहा है, जो विकेंद्रीकृत स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की सफलता को दर्शाता है।
        • संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (RDSS) के तहत 4.76 करोड़ स्मार्ट मीटर लगाए गए, जिससे ग्रिड दक्षता और परिचालन प्रदर्शन में सुधार हुआ।
      • भवन और निर्माण क्षेत्र:
        • ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC) और ऊर्जा संरक्षण एवं सतत भवन संहिता (ECSBC) वाणिज्यिक भवनों के लिए न्यूनतम ऊर्जा दक्षता मानक निर्धारित करती हैं।
        • इको निवास संहिता (ENS) आवासीय भवनों में डिजाइन, इन्सुलेशन और वेंटिलेशन से संबंधित मानकों के माध्यम से ऊर्जा दक्षता में सुधार पर केंद्रित है।
      • डिजिटल और संस्थागत ढाँचे:
        • ऊर्जा दक्षता सूचना उपकरण (UDIT) जैसे टूल ऊर्जा खपत पैटर्न और कार्यक्रम प्रदर्शन पर देशव्यापी जानकारी प्रदान करते हैं।
        • राष्ट्रीय उन्नत ऊर्जा दक्षता मिशन (NMEEE) एक नीति ढाँचा उपलब्ध कराता है, जिसमें PAT, ऊर्जा दक्षता के लिए बाजार रूपांतरण (MTEE), ऊर्जा दक्षता वित्तपोषण मंच (EEFP) और ऊर्जा दक्ष आर्थिक विकास के लिए रूपरेखा (FEEED) शामिल हैं।
        • मिशन LiFE (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) के अंतर्गत व्यवहारगत पहलें नागरिकों की सजग और सतत ऊर्जा उपयोग में सहभागिता को सुदृढ़ करती हैं।

भारत का वैश्विक नेतृत्व:

भारत के घरेलू प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापक मान्यता मिली है:

      • भारत अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता हब का सदस्य है, जो ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं पर सहयोग को बढ़ावा देने वाला वैश्विक मंच है।
      • UNFCCC जैसे ढाँचों के माध्यम से भारत ने आर्थिक विकास और जलवायु उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाते हुए ऊर्जा संक्रमण का मार्ग प्रस्तुत किया है, जिसमें 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन और 2030 के लिए महत्वाकांक्षी NDC लक्ष्यजैसे GDP की उत्सर्जन तीव्रता में कमी और गैर-जीवाश्म ऊर्जा का उच्च हिस्साशामिल हैं।
      • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और वैश्विक जैवईंधन गठबंधन (GBA) जैसी पहलें वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा सहयोग को आगे बढ़ाने में भारत के नेतृत्व को रेखांकित करती हैं।

आगे की राह:

      • भारत के लिए ऊर्जा संरक्षण अब केवल वैकल्पिक नीति विकल्प नहीं, बल्कि दीर्घकालिक विकास रणनीति का अनिवार्य स्तंभ बन चुका है। बढ़ती ऊर्जा मांग, जलवायु परिवर्तन के दबाव और आयात निर्भरता को देखते हुए आने वाले वर्षों में ऊर्जा दक्षता को पहला ईंधन (First Fuel) मानने की सोच को व्यवहार में लाने की आवश्यकता है।
      • प्रथम, नीति स्तर पर, ऊर्जा संरक्षण को केवल बिजली क्षेत्र तक सीमित न रखकर परिवहन, शहरी नियोजन, कृषि, डिजिटल अवसंरचना और MSME क्षेत्र तक एकीकृत रूप से लागू करना आवश्यक है। कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) को पारदर्शी, विश्वसनीय और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाकर निजी निवेश और हरित नवाचार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
      • द्वितीय, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में स्मार्ट ग्रिड, AI-आधारित ऊर्जा प्रबंधन, ऊर्जा भंडारण, ग्रीन हाइड्रोजन और ऊर्जा-कुशल भवन डिज़ाइन को तेजी से अपनाने की आवश्यकता है। अनुसंधान एवं विकास (R&D) तथा घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देकर भारत को ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकियों का वैश्विक केंद्र बनाया जा सकता है।
      • तृतीय, नागरिक सहभागिता निर्णायक भूमिका निभाएगी। मिशन LiFE को जनांदोलन के रूप में आगे बढ़ाते हुए उपभोग व्यवहार, जीवनशैली और दैनिक ऊर्जा उपयोग में परिवर्तन लाना होगा। विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और स्थानीय निकायों के माध्यम से ऊर्जा साक्षरता को मजबूत करना दीर्घकालिक सांस्कृतिक बदलाव की कुंजी है।
      • अंततः, संस्थागत समन्वय और डेटा-आधारित निर्णय भविष्य की सफलता तय करेंगे। राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर सहयोग, रियल-टाइम डेटा प्लेटफॉर्म और परिणाम-आधारित निगरानी तंत्र ऊर्जा संरक्षण प्रयासों को प्रभावी बनाएंगे।

निष्कर्ष:

ऊर्जा संरक्षण केवल एक तकनीकी लक्ष्य नहीं, बल्कि एक नागरिक दायित्व और विकासात्मक अनिवार्यता है। राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस के अवसर पर संदेश स्पष्ट है कि ऊर्जा की बचाई गई प्रत्येक इकाई राष्ट्रीय प्रगति, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक सुदृढ़ता में योगदान देती है। सरकारों, उद्योगों और नागरिकों को मिलकर दक्षता-आधारित संस्कृति का निर्माण करना होगा, ताकि भारत की ऊर्जा सुरक्षा और सततता सुदृढ़ हो तथा देश 2030 की जलवायु प्रतिबद्धताओं और विकसित भारत के दृष्टिकोण की ओर सशक्त रूप से अग्रसर हो सके।

 

UPSC/PCS मुख्य प्रश्न:

ऊर्जा संरक्षण को भारत में सतत विकास की आधारशिला माना जा रहा है। इस कथन के आलोक में भारत में ऊर्जा संरक्षण की बदलती भूमिका का विश्लेषण कीजिए।