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Daily-current-affairs / 28 Mar 2024

विद्युत वितरण कंपनियों की वित्तीय दुर्दशा को दूर करना: भारत में ऊर्जा परिवर्तन का सशक्तिकरण - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

  • भारत का ऊर्जा परिवर्तन परिदृश्य, कोविड-19 के बाद हुए मजबूत आर्थिक पुनरुत्थान और अनुकूल कारकों के समूह से आशाजनक गति प्राप्त कर रहा है, जिनमें युवा जनसंख्या, विविध अर्थव्यवस्था और हरित विनिर्माण का समर्थन करने वाली सरकारी पहल इत्यादि शामिल हैं। यद्यपि, विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOM) के रूप में एक गंभीर बाधा विद्यमान है, जो इस बदलाव की सबसे कमज़ोर बिंदु मानी जाती हैं। वित्तीय सहायता के अनेक चरणों के बावजूद, DISCOM कम्पनियाँ अक्षमता और निम्न प्रदर्शन की समस्या से आज भी जूझ रही हैं, यह भारत के ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में प्रगति के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकती हैं।

भारत के स्वच्छ ऊर्जा और आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के चार सिद्धांत:

  • भारत के स्वच्छ ऊर्जा और आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के लिए संशोधित सिद्धांत निम्नलिखित हैंः
    •  लागत प्रभावी ऊर्जा समाधानों को अपनाना: आर्थिक रूप से व्यवहार्य विकल्पों की ओर संक्रमण हेतु स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की घटती लागतों का लाभ उठाया जाना चाहिए। उजाला कार्यक्रम जैसी पहल, जिसने एलईडी बल्बों की लागत को काफी कम कर दिया, इस दृष्टिकोण का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। सब्सिडी के बिना भी सौर और पवन जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देकर और इलेक्ट्रिक बसों में परिवर्तन करके, आर्थिक बचत को महत्वपूर्ण विकास आवश्यकताओं की ओर पुनर्निर्देशित किया जा सकता है, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि रोजगार की रक्षा और विकास संभव हो सके।
    • लचीला और सुरक्षित ऊर्जा प्रणालियों का निर्माण करना: जलवायु परिवर्तन और महामारियों के बढ़ते जोखिमों को देखते हुए, ऊर्जा, शहरी विकास और परिवहन सहित विभिन्न क्षेत्रों में लचीलापन (resilience) बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। भारत को वितरित ऊर्जा प्रणालियों और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर वस्तु आयात और विदेशी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता कम करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
    • दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना: भारत के व्यापक विकास के चरण को देखते हुए, कुशल संसाधन उपयोग आवश्यक है। मेक इन इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से भारत की निर्माण क्षमता और तकनीकी प्रगति का लाभ उठाना आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकता है। इसके अलावा परिपत्र अर्थव्यवस्था (circular economy) के सिद्धांतों को शामिल करने से भारत की अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी।
    • सामाजिक और पर्यावरणीय समानता को बढ़ावा देनाः भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ मौजूद सामाजिक असमानताओं को स्वीकार करना चाहिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में निवेश करके और वायु प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करके सामाजिक और आर्थिक समानता को प्राथमिकता देना आवश्यक है, जो कमजोर आबादी को असमान रूप से प्रभावित करती हैं। साथ ही साथ यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन मुद्दों को कम करने में किए गए निवेश समानता को प्राथमिकता देते हैं या नहीं और सबसे अधिक प्रभावित समुदायों का समर्थन किस प्रकार किया जा रहा है।

डिस्कॉम्स के सामने आने वाली चुनौतियां:

  • वितरण उपयोगिताएँ अंतिम उपभोक्ताओं और स्वच्छ/स्वस्थ विद्युत उत्पादन के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करती हैं, जो उन्हें ऊर्जा संक्रमण परिदृश्य में महत्वपूर्ण बनाती हैं। वर्तमान में, बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं को छोड़कर, जो सीधे उत्पादकों से बिजली प्राप्त करने या स्वयं बिजली उत्पादन करने का विकल्प चुन सकते हैं; विद्युत वितरण और इसकी खुदरा आपूर्ति एक-दूसरे के साथ घनिष्ठता से संबंधित है। हालाँकि, डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिति अभी भी अनिश्चित बनी हुई है, क्योंकि उनकी अक्षमता हरित बिजली को अपनाने में बाधा डालती है
  • हाल ही में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) द्वारा दी गई सिफारिशों को देखते हुए, दिवालिया DISCOM की दुर्दशा का शीघ्र समाधान कठिन लगता है। CEA का सुझाव है, कि राज्य सरकारों को 2030 तक संसाधन पर्याप्तता योजनाएँ तैयार करनी चाहिए, जिसका लक्ष्य दीर्घकालिक विद्युत खरीद समझौतों के माध्यम से 75 प्रतिशत बिजली मांग को कम जोखिम वाला बनाना है। हालांकि, ऐसे उपाय भारत को अगले दो दशकों के लिए उथले बिजली बाजारों से जोड़े रखेंगे, जो ऊर्जा परिवर्तन एजेंडे के लिए चुनौतियां उत्पन्न कर सकते हैं।

सरकारी हस्तक्षेप और उनका प्रभाव:

  •  सरकारी हस्तक्षेप, जिसमें वितरण क्षेत्र पुनर्गठन योजना जैसी वित्तीय सहायता योजनाएँ शामिल हैं, DISCOM को बुनियादी ढांचे के उन्नयन और मीटर लगाने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। हालांकि, ये उपाय अस्थायी राहत प्रदान करते हैं और DISCOM की कार्यप्रणाली को बाधित करने वाले अंतर्निहित प्रणालीगत मुद्दों का समाधान नहीं करते हैं। इसके अलावा, अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सरकारी गारंटी पर निर्भरता, निजी उत्पादकों को DISCOM से भुगतान जोखिमों के लिए मजबूर करती है, जिससे संभावित रूप से कीमतें बढ़ सकती हैं और अक्षय ऊर्जा स्रोतों को कमजोर किया जा सकता है।
  • हालांकि, निजीकरण वित्तीय रूप से विवश सरकारों के लिए एक संभावित समाधान के रूप में कार्य करता है, तथापि यह DISCOM द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों के लिए रामबाण नहीं है। स्वामित्व संरचना और प्रदर्शन के बीच का संबंध उम्मीद से कमजोर है, जो केवल स्वामित्व परिवर्तन से परे व्यापक सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इसके अलावा, सार्वजनिक स्वामित्व का भारी दवाब बिजली आपूर्ति उद्योग पर हावी है, जो DISCOM को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक विघटनकारी परिवर्तनों को अपनाने में चुनौतियां उत्पन्न करता है।

विनियामक ढांचा और सुधार:

  •  विद्युत विनियामक आयोगों को डिस्कॉम में सुधार का काम सौंपा गया है, फिर भी विद्युत अधिनियम 2003 के पारित होने के दो दशक से अधिक समय बाद आज भी चुनौतियां यथावत हैं। विकृत शुल्क, अवैतनिक बिल, और बढ़ती नियामक परिसंपत्तियाँ डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिरता और विकास की संभावनाओं को बाधित करती हैं। नियामक ढांचे को डिस्कॉम को मजबूत बैलेंस शीट के साथ लाभदायक संस्था बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जो भविष्य के निवेशों के लिए विवेकपूर्ण ऋण वित्तपोषण का समर्थन करने में सक्षम हो।
  • स्वस्थ DISCOM को बढ़ावा देने के लिए तीन प्रमुख सुधारात्मक प्रयास आवश्यक हैं। सबसे पहले, विद्युत अधिनियम में संशोधन करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टैरिफ आर्थिक लागत और निवेश पर रिटर्न को दर्शाते हैं, इस प्रकार लाभप्रदता और दक्षता के लिए प्रबंधकीय प्रोत्साहन का आधार प्रदान करते हैं। दूसरा, जीएसटी परिषद द्वारा अपनाए गए सफल मॉडल के समान केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझा दोहरे जनादेश के माध्यम से विद्युत नियामकों की स्वायत्तता बढ़ाना। अंत में, प्रतिस्पर्धा और विकल्प लाने के लिए बिजली बाजारों को उदार बनाना, जिससे इस क्षेत्र में दक्षता और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष:

·        निष्कर्षतः, भारत की ऊर्जा परिवर्तन यात्रा के लिए वितरण उपयोगिताओं (डिस्कॉम्स) का पुनरोद्धार अनिवार्य है। इस सन्दर्भ में सरकारी हस्तक्षेप और राजकोषीय सहायता योजनाएं अस्थायी राहत प्रदान करती हैं, अतः स्थायी प्रगति के लिए अंतर्निहित प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करने वाले व्यापक सुधार आवश्यक हैं। नियामक ढांचे में संशोधन करके, स्वायत्तता बढ़ाकर और बिजली क्षेत्र के भीतर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर, भारत एक मजबूत और लचीला ऊर्जा संक्रमण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। डिस्कॉम्स के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में विफलता भारत के ऊर्जा संक्रमण एजेंडे को विफल करने कर सकती है। यह विफलता एक स्थायी और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के लिए विघटनकारी सुधारों की तात्कालिकता को रेखांकित करती है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.    भारत में वितरण उपयोगिताओं (DISCOMS) के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करें और चर्चा करें कि वे देश के ऊर्जा परिवर्तन एजेंडे को कैसे बाधित करते हैं। इन चुनौतियों से निपटने में सरकारी हस्तक्षेपों और राजकोषीय सहायता योजनाओं की भूमिका की जाँच करें। स्थायी ऊर्जा भविष्य के लिए DISCOMS के पुनरोद्धार को सुनिश्चित करने के लिए और कौन से सुधार आवश्यक हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

2.    केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने DISCOMS की वित्तीय अस्थिरता को कम करने के लिए दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौतों सहित उपायों की सिफारिश की है। भारत के ऊर्जा परिवर्तन एजेंडे पर ऐसे उपायों के संभावित प्रभाव का मूल्यांकन करें। उथले बिजली बाजारों पर निर्भरता की सीमाओं पर चर्चा करें और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने को आगे बढ़ाते हुए डिस्कॉम के वित्तीय स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए वैकल्पिक रणनीतियों का सुझाव दें। (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- हिंदू

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