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Daily-current-affairs / 25 Sep 2025

मतदाता सूची प्रबंधन: लोकतांत्रिक मूल्यों, शुद्धता और सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करना

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परिचय:

किसी भी लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव केवल एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं होते, बल्कि यह जनता की इच्छा के प्रति एक संवैधानिक प्रतिबद्धता होते हैं। इस प्रक्रिया के केंद्र में मतदाता सूची होती है, जो नागरिकों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अधिकार प्रदान करती है। एक व्यापक, सटीक और अद्यतन मतदाता सूची चुनावों की वैधता बनाए रखने के लिए अनिवार्य है। इसके विपरीत, नामांकन में त्रुटियाँ, गलत विलोपन या दोहराव चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकते हैं और मताधिकार से वंचित होने की आशंकाएँ बढ़ा सकते हैं। हाल के समय में, मतदाता सूची से नामों के विलोपन को लेकरजैसे बिहार और कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र मेंउठे विवादों ने भारत में मतदाता सूची प्रबंधन की प्रक्रियाओं, सुरक्षा उपायों और चुनौतियों को केंद्र में ला दिया है।

 विधिक ढांचा:

    • भारत में मतदाता सूचियों की तैयारी और रखरखाव मुख्यतः जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RPA 1950) द्वारा शासित है। इसके धारा 22 के अंतर्गत, निर्वाचन निबंधक अधिकारी (ERO) को प्रविष्टियों को सुधारने, मृत मतदाताओं के नाम हटाने या उन लोगों के नाम विलोपित करने का अधिकार है, जिन्होंने निवास बदला हो या अन्यथा अयोग्य हों। यह प्रावधान मतदाता सूचियों की शुद्धता बनाए रखने की आवश्यकता को उचित प्रक्रिया की अनिवार्यता के साथ संतुलित करता है।
    • निर्वाचक निबंधन नियम, 1960 नामों को शामिल करने, सुधारने या हटाने की व्यवस्था को और विस्तार से स्पष्ट करते हैं। नागरिक नामांकन के लिए फॉर्म 6, सुधार हेतु फॉर्म 8 और समावेशन पर आपत्ति या विलोपन के लिए फॉर्म 7 का उपयोग कर सकते हैं। कानून समय-समय पर मतदाता सूची का पुनरीक्षण भी अनिवार्य करता है, जो प्रायः प्रत्येक आम चुनाव से पहले किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि मतदाता सूची जनसांख्यिकीय और स्थानांतरण संबंधी परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करती है।
    • संचालन स्तर पर, बूथ स्तर अधिकारी (BLO) और निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ERO) मतदाता सूची प्रबंधन की रीढ़ हैं। उनकी जिम्मेदारियों में क्षेत्रीय सत्यापन, आवेदनों की जाँच और नोटिस एवं सुनवाई प्रक्रिया के माध्यम से पारदर्शिता बनाए रखना शामिल है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) एक पर्यवेक्षी संस्था के रूप में समान प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है और अनुपालन की निगरानी करता है।

 

विलोपन और सुधार की प्रक्रिया:

    • किसी मतदाता का नाम हटाना विशिष्ट आधारों और प्रक्रियाओं से बंधा है। नाम केवल तभी हटाया जा सकता है जब:

1. व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो।

2. व्यक्ति अब उस निर्वाचन क्षेत्र में सामान्यतः निवास नहीं करता हो।

3. व्यक्ति अन्यथा नामांकन के योग्य न हो, जैसेअल्पवयस्क होना या नागरिक न होना।

    • विलोपन शुरू करने के लिए, निर्वाचन क्षेत्र का कोई भी मतदाता कारणों सहित फॉर्म 7 दाखिल कर सकता है। इस फॉर्म में आवेदक को निर्वाचन फोटो पहचान पत्र (EPIC) संख्या, संपर्क विवरण और उस मतदाता के विवरण देना होता है जिसका विलोपन किया जाना है।
    • महत्वपूर्ण यह है कि प्रक्रिया केवल फॉर्म दाखिल करने पर समाप्त नहीं होती। ERO को अनिवार्य रूप से संबंधित मतदाता को नोटिस जारी करना होता है, उसे अपनी बात रखने का अवसर देना होता है और BLO द्वारा क्षेत्रीय सत्यापन कराना होता है। केवल इस जांच के बाद ही अंतिम विलोपन आदेश पारित किया जा सकता है। इस प्रकार, प्रणाली में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय शामिल हैं जो मतदाताओं को गलत विलोपन से बचाने हेतु बनाए गए हैं।
    • हाल के वर्षों में, ERONet (मतदाता सूची प्रबंधन प्रणाली) और वोटर हेल्पलाइन ऐप जैसी डिजिटल पहलों ने नामांकन, सुधार और विलोपन के लिए आवेदन की प्रक्रिया को सरल बनाया है। इन मंचों का उद्देश्य पहुँच और पारदर्शिता बढ़ाना है, परंतु ये ऑनलाइन प्रस्तुतियों की प्रामाणिकता की जाँच जैसी नई चुनौतियाँ भी लेकर आए हैं।

चुनौतियाँ और चिंताएँ:

मजबूत विधिक ढाँचे के बावजूद, मतदाता सूची प्रबंधन में कई समस्याएँ बनी रहती हैं:

1. दुरुपयोग की संभावना

फॉर्म 7 का ऑनलाइन दाखिल होना सुविधाजनक है, परंतु इससे दुरुपयोग के रास्ते भी खुले हैं। आलंद में उठे आरोप बताते हैं कि मतदाताओं की जानकारी के बिना सामूहिक विलोपन के लिए आवेदन किए जा सकते हैं। यद्यपि अंतिम विलोपन के लिए ERO सत्यापन आवश्यक है, ऐसी कोशिशें प्रमाणीकरण प्रक्रिया में खामियों पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं।

2. जागरूकता की कमी

कई मतदाता अपने नाम विलोपन को चुनौती देने के अधिकार या उपलब्ध प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों से अनभिज्ञ रहते हैं। यह अज्ञानता उन्हें मतदान के दिन नाम सूची से गायब होने पर असहज स्थिति में डाल सकती है।

3. कार्यान्वयन में खामियाँ

सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता स्थानीय अधिकारियों की सजगता पर निर्भर करती है। अपर्याप्त सत्यापन या उचित नोटिस न देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को कमजोर करता है। कई बार उच्च कार्यभार और सीमित संसाधन भी प्रक्रियात्मक चूक में योगदान देते हैं।

4. शहरी गतिशीलता और पलायन

भारत का बढ़ता शहरीकरण और आंतरिक पलायन मतदाता सूची के रखरखाव को जटिल बनाता है। लोग प्रायः निर्वाचन क्षेत्र बदलते हैं परंतु अपने विवरण अपडेट नहीं करते, जिससे सूचियों में दोहराव बढ़ता है। इसके विपरीत, दोहराव दूर करने के प्रयासों में अतिशयोक्ति से वास्तविक मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।

5. प्रौद्योगिकीगत जोखिम

डिजिटलीकरण ने दक्षता बढ़ाई है, परंतु इसके साथ डेटा गोपनीयता, साइबर जोखिम और आधार जैसी लिंक्ड डाटाबेस के दुरुपयोग की चिंताएँ भी बढ़ी हैं। सुविधा और सुरक्षा के बीच संतुलन आवश्यक है।

 व्यापक प्रभाव

    • मतदाता सूचियों की शुद्धता का सीधा असर लोकतंत्र के स्वास्थ्य पर पड़ता है। गलत विलोपन या त्रुटियाँ मताधिकार से वंचित करने का कारण बन सकती हैं, जो अनुच्छेद 326 के अंतर्गत गारंटीकृत संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। इसी तरह, दोहराव या अयोग्य नामों से फूली हुई सूचियाँ चुनावी कदाचार का माध्यम बन सकती हैं, जो समान अवसर के सिद्धांत को विकृत करती हैं।
    • तात्कालिक चुनावी परिणामों से परे, त्रुटियाँ जनता के चुनावी प्रक्रिया में विश्वास को कमजोर करती हैं। जब मतदाता यह संदेह करने लगते हैं कि उनका नाम सूची में है या नहीं, या जब सामूहिक विलोपन की राजनीतिक कथाएँ सामने आती हैं, तो चुनावों की वैधता ही प्रश्नांकित हो जाती है। भारत जैसे विशाल और विविध देश में, जहाँ मतदाता भागीदारी लोकतांत्रिक जीवंतता का मापदंड है, चुनावी प्रणाली में विश्वास बनाए रखना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना स्वयं चुनाव कराना।

आगे की राह:

मतदाता सूची प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई उपाय विचारणीय हैं:

1. ऑनलाइन प्रक्रियाओं में बेहतर प्रमाणीकरण

EPIC से आधार लिंक प्रस्तावित है, परंतु इसे बहिष्करण और गोपनीयता संबंधी खतरों से बचाने हेतु कड़े सुरक्षा उपायों के साथ लागू करना चाहिए। वैकल्पिक रूप से बहु-स्तरीय प्रमाणीकरण (मोबाइल OTP + EPIC विवरण + ऑफलाइन सत्यापन) दुरुपयोग को कम कर सकता है।

2. विलोपन प्रक्रिया में पारदर्शिता

प्रत्येक विलोपन को SMS, ईमेल और भौतिक नोटिस के माध्यम से सक्रिय रूप से संप्रेषित किया जाना चाहिए। प्रस्तावित विलोपन को स्थानीय मीडिया में प्रकाशित करना पारदर्शिता को और बढ़ा सकता है।

3. शिकायत निवारण तंत्र

शीघ्र निवारण वाली ऑनलाइन और ऑफलाइन व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए, ताकि मतदाता मतदान दिवस से पहले गलत विलोपन को चुनौती दे सकें। मतदाता सूची से जुड़ी शिकायतों के लिए समर्पित हेल्पलाइन भी उपयोगी होगी।

4. स्थानीय अधिकारियों की क्षमता निर्माण

BLO और ERO को नियमित प्रशिक्षण मिलना चाहिए, जिसमें प्रक्रियात्मक कानून और डिजिटल मंचों का उपयोग दोनों शामिल हों। पर्याप्त स्टाफिंग और संसाधन प्रक्रियात्मक शॉर्टकट्स से बचने के लिए आवश्यक हैं।

5. मतदाता जागरूकता अभियान

ECI और नागरिक समाज को नामांकन, सुधार और आपत्तियों के बारे में जागरूकता फैलाने में निवेश करना चाहिए। नागरिकों को समय-समय पर, विशेषकर चुनाव से पहले, अपने नाम की जाँच करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

6. मतदाता सूचियों का स्वतंत्र ऑडिट

नागरिक भागीदारी के साथ समय-समय पर तृतीय पक्ष ऑडिट पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ा सकते हैं। ऐसे ऑडिट प्रणालीगत त्रुटियों की पहचान कर सकते हैं और संरचनात्मक सुधार सुझा सकते हैं।

निष्कर्ष

मतदाता सूची प्रबंधन तकनीकी और नैतिकदोनों प्रकार की जिम्मेदारी है। एक ओर इसमें सटीक प्रक्रियाओं, अद्यतन प्रौद्योगिकी और सतर्क पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है; दूसरी ओर इसमें समावेशिता, निष्पक्षता और न्याय जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन अपेक्षित है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत का विधिक ढाँचा पहले से ही सुरक्षा उपाय प्रदान करता है, परंतु प्रभावी क्रियान्वयन भी प्रमुख चुनौती है।