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Daily-current-affairs / 06 Nov 2023

भारत में चुनावी बॉन्ड - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 07/11/2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2- राजनीति- चुनाव वित्त पोषण

की-वर्ड्स: चुनावी बॉन्ड योजना, आरपीए 1951, वेंकटचेलैया समिति रिपोर्ट (2002), राष्ट्रीय निर्वाचन कोष

संदर्भ-

  • प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित 2018 चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करने करने पर सहमत हो गई है।
  • याचिकाकर्ताओं का दावा है कि चुनावी बॉन्ड योजना में गुमनामी का सिद्धांत 'जानने का अधिकार' का उल्लंघन करता है, जो 'सूचना के अधिकार' (अनुच्छेद 19) का एक प्रमुख घटक है। जवाब में, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने लिखित रूप में तर्क दिया कि नागरिकों का सूचना का अधिकार उचित प्रतिबंधों के अधीन है।

चुनावी बॉन्ड को समझना

    चुनावी बॉन्ड ब्याज मुक्त "बेयरर इंस्ट्रूमेंट्स" हैं जिन्हें भारत सरकार ने 2017 में पेश किया था। ये बॉन्ड वचन पत्र के रूप में कार्य करते हैं और इन्हें धारक द्वारा मांग पर भुनाया जा सकता है। वे राजनीतिक दलों को अनाम दान देने में सक्षम बनाते हैं।

  • वे कैसे काम करते हैं?
  • चुनावी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से 1,000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक के मूल्यवर्गों में खरीदे जा सकते हैं, जो कि अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) मानदंडों के अधीन हैं। राजनीतिक दल इन बॉन्डों को प्राप्ति के 15 दिनों के भीतर भुना सकते हैं और चुनावी खर्च के लिए धन का उपयोग कर सकते हैं।

  • खरीद विंडो
  • चुनावी बॉन्ड केवल जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10-दिवसीय सीमित अवधि के दौरान खरीदे जा सकते हैं। इस सीमित उपलब्धता का उद्देश्य राजनीतिक दलों के धन प्रवाह को विनियमित करना है।

  • पात्रता मानदंड
  • चुनावी बॉन्ड का उपयोग केवल प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान करने के लिए किया जा सकता है। इन पार्टियों को पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट प्राप्त करना चाहिए।

चुनावी बॉन्ड के पीछे तर्क

  • पूर्व में राजनीतिक चंदे का तरीका : भारतीय राजनीतिक दल पारंपरिक रूप से व्यक्तिगत नागरिकों और कॉर्पोरेट संस्थाओं दोनों से वित्तीय योगदान पर निर्भर रहें हैं । इस पारंपरिक प्रणाली के तहत, दाताओं को इन नकद चंदों के स्रोत को प्रकट करने के दायित्व के बिना किसी राजनीतिक दल को 20,000 रुपये तक नकद में योगदान करने की अनुमति थी। इस सीमा से अधिक राशि के लिए, चेक या डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से दान किया जाता था, साथ ही राजनीतिक दलों को भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को प्रस्तुत रिपोर्टों में इन योगदानों के स्रोतों को घोषित करने की आवश्यकता थी।
  • नकद चंदे के मुद्दे: पारंपरिक चुनावी चंदे की एक महत्वपूर्ण कमी नकद दान की प्रचलनता थी। भारतीय निर्वाचन आयोग को दानदाताओं को प्रकट करने की आवश्यकता से बचने के लिए, राजनीतिक दलों ने कभी-कभी 20,000 रुपये से अधिक के दान को छोटी-छोटी , कई राशियों में विभाजित करके नकद में स्वीकार किया। नकद दान की इस प्रथा ने दानदाताओं को गुमनाम रहने की अनुमति दी और राजनीतिक व्यवस्था में बेहिसाब धन के प्रवाह को बढ़ावा दिया।
  • नकद को हतोत्साहित करने और पारदर्शिता बढ़ाने के प्रयास: नकद दान और पारदर्शिता की कमी से उत्पन्न चुनौतियों के जवाब में, भारत सरकार ने चुनावी बॉन्ड प्रणाली की शुरुआत की। इस कदम का उद्देश्य नकद अंशदान पर निर्भरता को हतोत्साहित करना और राजनीतिक धन उगाहने में अधिक पारदर्शिता को बढ़ावा देना था।
  • दाताओं की गुमनामी का महत्व: चुनावी बांड प्रणाली के माध्यम से दाता की गुमनामी को बनाए रखने से नकद दान के प्रभाव में कमी आने और चुनावी फंडिंग की पता लगाने की क्षमता में वृद्धि होने की उम्मीद है। इस बांड तंत्र के समर्थकों का तर्क है कि दाता प्रकटीकरण की आवश्यकता के किसी भी कदम के परिणामस्वरूप नकद योगदान के माध्यम से राजनीतिक गतिविधियों के वित्तपोषण की प्रथा का पुनरुत्थान हो सकता है।

चुनावी बॉन्ड की आलोचना

  • पारदर्शिता बाधा: आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बांड भारतीय और विदेशी कंपनियों से असीमित, गुमनाम दान की अनुमति देकर राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता में बाधा डालते हैं, जिससे संभावित रूप से चुनावी भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • दाता गुमनामी के मुद्दे: इस प्रणाली की दाता गुमनामी की विशेषता, पारदर्शिता के खिलाफ जाती है और नागरिकों के 'जानने के अधिकार' का उल्लंघन करती है। इसमें प्रभावी दाता ट्रैकिंग का अभाव है।
  • धन विधेयक का स्वरूप : 'धन विधेयक' के रूप में चुनावी बॉन्ड की शुरूआत राज्यसभा की जांच को दरकिनार कर देती है, जिससे प्रक्रिया की अखंडता के बारे में चिंताएं पैदा होती हैं।
  • निर्वाचन आयोग की चिंताएं: निर्वाचन आयोग चिंतित है कि चुनावी बॉन्ड पारदर्शिता से समझौता कर सकते हैं और विदेशी कॉर्पोरेट प्रभाव को आमंत्रित कर सकते हैं। निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को चन्दा देने के लिए शेल कंपनियों कि स्थापना की संभावना की चेतावनी देता है। यह प्रणाली रिपोर्टिंग आवश्यकताओं को कमजोर करती है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की चेतावनी: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बार-बार चुनावी बांडों की अपारदर्शी प्रकृति और हस्तांतरणीयता के कारण काले धन के प्रचलन, मनी लॉन्ड्रिंग, सीमा पार जालसाजी के साथ अवैध मुद्रा को बढ़ाने की क्षमता के बारे में आगाह किया है।

चुनावी वित्त सुधार के लिए आगे का रास्ता

  • चुनावों का राज्य वित्त पोषण: जर्मनी, जापान, कनाडा और स्वीडन जैसे देशों के सफल मॉडल का अनुसरण करते हुए, मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिए आंशिक राज्य वित्त पोषण पर विचार किया जा सकता है ।
  • राष्ट्रीय निर्वाचन कोष: एक राष्ट्रीय निर्वाचन कोष की स्थापना की जा सकती है जहां सभी दाता योगदान करें , और फंड आवंटित किए गए राजनीतिक दलों को उनके वोट शेयर के आधार पर प्रदान किए जाएं । यह दृष्टिकोण दाता की गुमनामी की रक्षा करता है और राजनीतिक वित्तपोषण से काला धन समाप्त करने में मदद करता है।
  • गुमनाम दान की सीमा तय करना: जैसा कि भारत के विधि आयोग ने सिफारिश की है कि अनाम स्रोतों से प्राप्त दान पर 20 करोड़ रुपये या राजनीतिक दल के कुल वित्तपोषण का 20% की सीमा लागू की जानी चाहिए
  • नकद दान पर प्रतिबंध: व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को नकद दान पर पूर्ण प्रतिबंध लागू किया जाए , जो वर्तमान में 2000 रुपये से कम के दान के लिए अनुमति को प्रतिस्थापित करता हो ।
  • पार्टी खातों की लेखा परीक्षा: पार्टी की आय और व्यय की लेखा परीक्षा और प्रकटीकरण के लिए कठोर नियामक ढांचे की स्थापना की जाए , जैसा कि वेंकटचेलैया समिति की रिपोर्ट (2002) में प्रस्तावित है।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएं: फ्रांस में 1995 में कॉर्पोरेट फंडिंग पर प्रतिबंध और व्यक्तिगत दान पर 6,000 यूरो की सीमा निर्धारित कर दी गई । इन अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं से सीखा जा सकता और उन्हें लागू किया जा सकता है । ब्राजील और चिली ने भी कॉर्पोरेट फंडिंग से जुड़े भ्रष्टाचार के घोटालों के जवाब में कॉर्पोरेट दान पर प्रतिबंध लगा दिया है।

निष्कर्ष :

भारत में चुनावी बांड योजना बहस और कानूनी चुनौतियों का विषय बनी हुई है। यह राजनीतिक फंडिंग में सुधार और पारदर्शिता बढ़ाने के प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन विभिन्न मोर्चों पर इसका विरोध किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय इस योजना की संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर रहा है जो भारत में राजनीतिक वित्तपोषण के भविष्य को आकार दे सकता है।
एक निष्पक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था की अखंडता को बनाए रखने के लिए, पारदर्शी और नैतिक चुनावी वित्तपोषण प्रक्रिया स्थापित करना अनिवार्य है। कई विकसित पश्चिमी देशों में अपनी राजनीतिक व्यवस्थाओं के भीतर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मजबूत तंत्र हैं। जैसा कि भारत वर्ष 2047 तक एक विकसित देश के दर्जे तक पहुंचने की आकांक्षा रखता है, अतः उसे अपने राजनीतिक परिदृश्य में पारदर्शिता के समान मानकों को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए । चुनावी वित्त पर निगरानी बढ़ाना इस दिशा में एक आवश्यक प्रारंभिक कदम हो सकता है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. भारत की चुनावी बॉन्ड योजना की प्रमुख विशेषताएं और आलोचनाएं क्या हैं? सुधारों के माध्यम से चुनावी वित्तपोषण पारदर्शिता में कैसे सुधार किया जा सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. चुनावी बॉन्ड योजना में दाता की गुमनामी के महत्व और निर्वाचन आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर चर्चा करें। राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

Source – Indian Express

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