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Daily-current-affairs / 30 Oct 2025

भारत में वृद्धजन: जनांकिकीय परिवर्तन, चुनौतियाँ और नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता

भारत में वृद्धजन: जनांकिकीय परिवर्तन, चुनौतियाँ और नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता

सन्दर्भ:

भारत एक बड़े जनांकिकीय परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। वृद्धजन (60 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले) जनसंख्या पहले से कहीं तेज़ी से बढ़ रही है। बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ, पोषक आहार और बढ़ती जीवन प्रत्याशा ने आयु बढ़ा दी है, लेकिन इसके साथ ही सामाजिक, आर्थिक और नीतिगत नई चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। अब देश को सिल्वर वेव” (Silver Wave) युग के लिए तैयार होना होगा। 2036 तक भारत में लगभग 23 करोड़ वृद्ध नागरिक होंगे, जो कुल जनसंख्या का लगभग 15% हिस्सा होंगे। समाज के इस बढ़ते वर्ग का स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक कल्याण, शहरी नियोजन और व्यापक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

वृद्धजनों की जनांकिकीय प्रोफ़ाइल:

जनसंख्या प्रक्षेपण पर तकनीकी समूह (2020) के अनुसार, भारत में वृद्धजनों की जनसंख्या 2011 में 10 करोड़ से बढ़कर 2036 तक 23 करोड़ तक पहुँच जाएगी। इसका अर्थ है कि तब तक प्रत्येक सातवाँ भारतीय 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का होगा।
हालाँकि, भारत में वृद्धावस्था की गति राज्यों में समान नहीं है। केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्य, साथ ही हिमाचल प्रदेश और पंजाब, राष्ट्रीय औसत की तुलना में वृद्धजनों की कहीं अधिक हिस्सेदारी रखते हैं।

    • केरल की वृद्धजन आबादी 2011 के 13% से बढ़कर 2036 में 23% होने का अनुमान है, जिससे यह भारत का सबसे वृद्ध राज्यबन जाएगा।
    • इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की जनसंख्या अभी अपेक्षाकृत युवा है, लेकिन इन राज्यों में भी वृद्धावस्था की दर तेजी से बढ़ रही है।

लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (LASI) 2021, जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा संचालित की गई थी, इस चित्र को और गहराई देती है:

    • वृद्धजन भारत की कुल जनसंख्या का 12% हिस्सा हैं, जो 2050 तक बढ़कर 31.9 करोड़ तक पहुँचने की संभावना है।
    • वृद्धजनों में लैंगिक अनुपात 1,000 पुरुषों पर 1,065 महिलाएँ है, जिनमें महिलाएँ कुल वृद्ध जनसंख्या का 58% हिस्सा बनाती हैं और उनमें से आधे से अधिक विधवा हैं।
    • निर्भरता अनुपात (प्रति 100 कार्यशील आयु व्यक्ति पर निर्भर लोग) 62 है, जो कार्यशील जनसंख्या पर बढ़ते आर्थिक और सामाजिक दबाव को दर्शाता है।

वृद्धजनों के समक्ष चुनौतियाँ:

भारत में वृद्धावस्था स्वास्थ्य, आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक समावेशन और डिजिटल पहुँच जैसी अनेक जटिल चुनौतियाँ लेकर आई है।

1. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ

भारत में जेरियाट्रिक केयर (Geriatric Care) अब भी कमजोर है। स्वास्थ्य सेवाओं का ध्यान मुख्य रूप से मातृत्व, प्रजनन और संक्रामक रोगों पर केंद्रित है, जबकि वृद्धजनों में पाई जाने वाली दीर्घकालिक बीमारियाँ तथा मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ जैसे डिमेंशिया, अल्ज़ाइमर और अवसाद आदि पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। ग्रामीण क्षेत्रों में जेरियाट्रिक अस्पतालों और पुनर्वास सुविधाओं की भारी कमी है।

2. आर्थिक असुरक्षा

अनेक वृद्धजन पेंशन, बचत या बीमा के अभाव में जीवन यापन करते हैं। लगभग 70% भारतीय वृद्धजन अपने परिवार पर निर्भर हैं। बढ़ते चिकित्सा खर्च और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा, विशेषकर असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए, आर्थिक संवेदनशीलता को और गहरा किया है।

3. सामाजिक और भावनात्मक एकाकीपन

शहरीकरण, प्रवासन और संयुक्त परिवारों के टूटने से पारंपरिक देखभाल प्रणाली कमजोर हो गई है। अकेलापन और उपेक्षा अब वृद्धजनों के बीच एक मूक महामारी बन चुके हैं।

4. डिजिटल विभाजन

डिजिटल शासन और स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में हुए बदलाव ने बड़ी संख्या में वृद्ध नागरिकों को पीछे छोड़ दिया है। लगभग 85% से अधिक वृद्धजन डिजिटल साक्षरता से वंचित हैं, जिससे उन्हें योजनाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और वित्तीय सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाई होती है।

5. अवसंरचना और गतिशीलता संबंधी बाधाएँ

सार्वजनिक परिवहन, फुटपाथ और शौचालय जैसी सुविधाएँ वृद्धजनों के अनुकूल नहीं हैं। अधिकांश स्थानों पर रैंप, हैंडरेल और सुलभ डिज़ाइन का अभाव है, जिससे उनकी गतिशीलता और स्वतंत्रता सीमित होती है।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए सरकारी पहलें:

भारत में वृद्धजन कल्याण के प्रयास मुख्य रूप से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) द्वारा संचालित हैं, जो अन्य मंत्रालयों, राज्य सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ समन्वय करता है। एक व्यापक नेटवर्क स्वास्थ्य, आवास, पेंशन और सामाजिक समावेशन को संबोधित करता है।

    • अटल पेंशन योजना (APY): 2015 में शुरू की गई यह योजना 60 वर्ष की आयु के बाद ₹1,000 से ₹5,000 तक की गारंटीड मासिक पेंशन प्रदान करती है। यह निम्न-आय वर्ग को लक्षित करती है और अब तक 8 करोड़ से अधिक सब्सक्राइबरों तक पहुँच चुकी है, जिसके तहत ₹49,000 करोड़ से अधिक परिसंपत्तियाँ प्रबंधित हैं।
    • अटल वयो अभ्युदय योजना (AVYAY): यह योजना वरिष्ठ नागरिकों को सामाजिक समावेशन और देखभाल सुविधाओं के माध्यम से सशक्त बनाने हेतु कई उप-योजनाओं को एकीकृत करती है। इसके तहत इंटीग्रेटेड प्रोग्राम फॉर सीनियर सिटिज़न्स (IPSrC) वृद्धाश्रम, मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों और फिजियोथेरेपी क्लीनिकों को सहयोग देता है। वर्ष 2025 तक, भारत में इस कार्यक्रम के तहत 696 वरिष्ठ नागरिक गृह संचालित हो रहे हैं।
    • राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY): 2017 में शुरू की गई इस योजना के तहत गरीब वरिष्ठ नागरिकों, विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे (BPL) को मुफ्त में सहायक उपकरण जैसे चलने की छड़ी, व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र और नकली दाँत वितरित किए जाते हैं।
    • राष्ट्रीय हेल्पलाइन एल्डरलाइन (14567): 2021 में शुरू की गई यह टोल-फ्री हेल्पलाइन वृद्धजनों को भावनात्मक, कानूनी और स्वास्थ्य सहायता प्रदान करती है और उन्हें उनके क्षेत्र की संबंधित सेवाओं से जोड़ती है।
    • सेज (SAGE) और सेक्रेड (SACRED) पोर्टल्स:
      • SAGE (Senior Care Ageing Growth Engine) वृद्धजन देखभाल से संबंधित उत्पाद और सेवाएँ विकसित करने वाले स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देता है तथा ₹1 करोड़ तक की इक्विटी सहायता प्रदान करता है।
      • SACRED (Senior Able Citizens for Re-Employment in Dignity) वरिष्ठ नागरिकों को रोजगार और अंशकालिक कार्य उपलब्ध कराकर पुनःरोज़गार और वित्तीय स्वावलंबन को बढ़ावा देता है।
    • आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY): 2024 में इस योजना का विस्तार कर 70 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को ₹5 लाख तक का वार्षिक स्वास्थ्य कवरेज दिया गया, भले ही वे गरीबी रेखा से ऊपर हों।
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS): राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत यह योजना 60–79 वर्ष के लाभार्थियों को ₹200 और 80 वर्ष से अधिक आयु वालों को ₹500 मासिक पेंशन प्रदान करती है। वर्तमान में 2.2 करोड़ से अधिक वृद्धजन इस योजना से लाभान्वित हैं।
    • राष्ट्रीय वृद्धजन स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम (NPHCE): 2010–11 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से मुफ्त जेरियाट्रिक देखभाल प्रदान करता है। अब यह सभी 713 जिलों में विस्तारित हो चुका है, जहाँ विशिष्ट जेरियाट्रिक वार्ड, फिजियोथेरेपी इकाइयाँ और आउटरीच सेवाएँ उपलब्ध हैं।
    • वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष (SCWF): 2015 में स्थापित इस कोष के अंतर्गत भविष्य निधि और बीमा निधि में पड़ी अनक्लेम्ड राशि का उपयोग वृद्धजन कल्याण योजनाओं के वित्तपोषण में किया जाता है।

कानूनी और नीतिगत ढाँचा:

1. माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 (और 2019 संशोधन)

 

यह ऐतिहासिक कानून बच्चों और उत्तराधिकारियों को अपने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य करता है। 2019 के संशोधन ने इसके दायरे का विस्तार करते हुए:

      • सौतेले बच्चों, ससुराल पक्ष और दादा-दादी को भी शामिल किया।
      • ₹10,000 की अधिकतम सीमा को हटाया।
      • केवल जीविकानहीं, बल्कि गरिमा के साथ जीवनकी परिकल्पना को अनिवार्य किया।
      • प्रत्येक जिले में वरिष्ठ नागरिकों के लिए पुलिस नोडल अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान किया।
      • अस्पतालों में जेरियाट्रिक कतारें और विशेष बिस्तर सुनिश्चित करने का प्रावधान किया।

2. संवैधानिक और कानूनी प्रावधान

      • अनुच्छेद 41: राज्य को वृद्धावस्था, बीमारी और अपंगता के मामलों में सार्वजनिक सहायता प्रदान करने का निर्देश देता है।
      • हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (धारा 20): माता-पिता के भरण-पोषण को अनिवार्य बनाता है।
      • आयकर अधिनियम: वरिष्ठ नागरिकों को कर रियायतें प्रदान करता है।
      • नालसा (Legal Services to Senior Citizens) योजना, 2016: वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराती है।

3. नीतिगत उपाय

      • राष्ट्रीय वृद्धजन नीति (NPOP), 1999वृद्धजन कल्याण के लिए भारत की पहली राष्ट्रीय नीति।
      • राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक नीति (ड्राफ्ट, 2020)सक्रिय और उत्पादक वृद्धावस्था, वित्तीय समावेशन और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता पर केंद्रित।
      • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP)इसमें IGNOAPS और अन्य पेंशन योजनाएँ शामिल हैं।

वृद्धजन देखभाल में प्रौद्योगिकी की भूमिका:

    • ई-संजीवनी जैसे टेलीमेडिसिन प्लेटफ़ॉर्म डॉक्टरों को दूरदराज़ क्षेत्रों के वृद्ध रोगियों से जोड़ते हैं।
    • वियरेबल डिवाइस स्वास्थ्य संकेतकों की निगरानी करते हैं और आपातकालीन अलर्ट भेजते हैं।
    • ऑनलाइन फार्मेसी और स्मार्ट होम सिस्टम स्वतंत्रता को बढ़ावा देते हैं और देखभालकर्ताओं पर निर्भरता घटाते हैं।

आगे की राह:

    • जेरियाट्रिक स्वास्थ्य अवसंरचना और होम-बेस्ड सर्विसेज को सुदृढ़ किया जाए।
    • विशेषकर असंगठित क्षेत्र के लिए पेंशन और बीमा कवरेज का विस्तार किया जाए।
    • वरिष्ठ नागरिकों के लिए डिजिटल साक्षरता और सस्ती तकनीकी पहुँच को बढ़ावा दिया जाए।
    • पीढ़ियों के बीच संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम और शैक्षणिक उपकरण विकसित किए जाएँ।
    • वृद्ध देखभाल कार्य को कुशल श्रम के रूप में मान्यता दी जाए और वेतन व प्रशिक्षण में सुधार किया जाए।

निष्कर्ष:

भारत की सिल्वर इकोनॉमी, जिसकी 2024 में अनुमानित कीमत ₹73,000 करोड़ थी, वृद्धजन आबादी के विस्तार के साथ तीव्र गति से बढ़ रही है। यह केवल चुनौतियाँ ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, आवास और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में आर्थिक अवसर भी प्रदान करती है। इस क्षमता का लाभ उठाने के लिए भारत को एक समन्वित राष्ट्रीय ढाँचे की आवश्यकता है, जो कल्याण, स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी और कानूनी संरक्षण को एकीकृत करे। एक ऐसा समाज जो अपने वृद्धजनों की गरिमा और कल्याण की रक्षा करता है, वही अधिक मजबूत और मानवीय बनता है और उस भविष्य के लिए कार्य करने का समय अब आ गया है।

 

UPSC/PCS मुख्य प्रश्न:
भारत जनसांख्यिकीय लाभांश से जनसांख्यिकीय परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। आने वाले दशकों में सामाजिक और आर्थिक नीति के लिए बढ़ती वृद्ध जनसंख्या के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।