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Daily-current-affairs / 17 Nov 2023

भारत में केंद्र और राज्यों के बीच लगातार टकराव के आर्थिक प्रभाव - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 18/11/2023

प्रासंगिकता: जी. एस. पेपर 2-राजनीति-संघवाद ( Also Relevance: GS Paper 3- Fiscal Federalism)

की-वर्ड: सहकारी संघवाद, पीएम गति शक्ति, राजकोषीय संघवाद, केंद्र-राज्य संबंध

सन्दर्भ:-

भारत में केंद्र सरकार और राज्यों के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से विवादास्पद रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इन संघर्षों की आवृत्ति और तीव्रता दोनों में वृद्धि देखी गई है। 'निरंतर टकराव' के रूप में संदर्भित, ये विवाद न केवल सहकारी संघवाद मॉडल को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि आर्थिक परिदृश्य पर भी स्थायी प्रभाव छोड़ रहे हैं।

भारत में संघवादः

  • राजनीतिक प्रणाली में सत्ता का ऊर्ध्वाधर विभाजन अर्थात केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच अधिकार और शक्तियों का विभाजन।
  • भारत में, शक्ति केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और स्थानीय शासन संस्थानों के बीच वितरित की गई है।

संघवाद के प्रकारः

  • सहकारी संघवादः एकीकृत सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विभिन्न संस्थाओं के बीच क्षैतिज सहयोग ।
  • प्रतिस्पर्धी संघवादः इस प्रकार का संघवाद राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है और आर्थिक विकास के प्रयासों को प्रेरित करता है।
  • राजकोषीय संघवादः यह वित्तीय शक्ति विभाजन से संबंधित है। इसमें कर, उनके अधिरोपण और भारत के वित्त आयोग जैसे संवैधानिक प्राधिकरणों के माध्यम से निष्पक्ष विभाजन किया गया है।

केंद्र-राज्य विवादों का ऐतिहासिक संदर्भ

विवादों का लंबा इतिहास

  • आर्थिक नीतियों पर केंद्र और राज्यों के बीच विवादों की जड़ें भारत के राजनीतिक इतिहास में गहराई से निहित हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में इन संघर्षों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी गई है।

कमजोर सहकारी संघवाद

  • प्रभावी शासन के लिए आवश्यक सहकारी संघवाद मॉडल, केंद्र और राज्यों दोनों के कठोर रुख के कारण खतरे में है। संसाधन साझाकरण से लेकर सामाजिक क्षेत्र की नीतियों के समरूपीकरण तक के मुद्दे विवादास्पद हो गए हैं, जो सहकारी संघवाद की सहयोगी भावना को चुनौती देते हैं।

बदलते आर्थिक परिदृश्य

आर्थिक संबंधों का विकास

  • 1980 और 1990 के दशक से केंद्र और राज्यों के बीच आर्थिक संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव आया हैं।
  • हालांकि 1991 के बाद से आर्थिक सुधारों ने राज्यों को निवेश के मामले में कुछ स्वायत्तता प्रदान की है, सार्वजनिक व्यय नीतियों पर उनका नियंत्रण राजस्व प्राप्तियों के लिए केंद्र पर उनकी निर्भरता के कारण सीमित है।

परिवर्तित संतुलन

  • केंद्र और राज्यों के बीच पारंपरिक वित्तीय संतुलन एक कठोर गतिरोध में बदल गया है, जिससे बातचीत की गुंजाइश सीमित हो गई है। जैसे-जैसे आर्थिक सुधार हो रहे हैं, राज्यों की स्वायत्तता में और कटौती की जा रही है।

विवादों के आर्थिक परिणाम

A. केंद्र द्वारा राज्यों के निवेश संबंधी निर्णय को कमजोर करना

  • अवसंरचना विकास दुविधा
    • हाल की बुनियादी ढांचा विकास पहल, जैसे कि पीएम गति शक्ति, एक ऐसे परिदृश्य को प्रकट करती है जहां केंद्र का प्रभुत्व निवेश के मामले में राज्यों की निर्णय शक्ति को कमजोर करता है।
    • योजना और कार्यान्वयन का केंद्रीकरण योजना तैयार करने में राज्यों के लचीलेपन को प्रतिबंधित करता है, जिसके परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण क्षेत्रों में राज्यों द्वारा कम निवेश किया जा रहा है।
  • पूंजीगत व्यय में विषमता
    • सड़कों और पुलों पर पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) से यह स्पष्ट होता है कि केंद्र का कैपेक्स काफी बढ़ गया है, जबकि राज्यों का विकासात्मक खर्च तुलनात्मक रूप से बहुत काम रहा है।
    • उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में केंद्र के बढ़ते खर्च से राज्यों के बीच असमानता बढ रही है।

B. राजकोषीय प्रतिस्पर्धा और कल्याण संबंधी प्रावधान

  • विशिष्ट राजकोषीय प्रतिस्पर्धा
    • लगातार टकराव ने केंद्र और राज्यों के बीच राजकोषीय प्रतिस्पर्धा के एक अनूठे रूप को जन्म दिया है। क्षेत्रीय रूप से प्रतिस्पर्धा करने के बजाय, राज्य सरकारें अन्य राज्यों और केंद्र दोनों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहीं हैं।
    • यह प्रतिस्पर्धा, विशेष रूप से कल्याण संबंधी प्रावधान में, केंद्र के बढ़े हुए राजकोषीय व्यय से आगे पहुँच गई है।
  • व्यय संबंधी असमानताएँ
    • संबिधान के अनुसार केंद्र को अधिक खर्च करने की शक्ति प्राप्त है, परिणामतः राज्यों को कई सीमाओं का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से गैर-कर राजस्व में, क्योंकि केंद्र सीधे कई उपयोगिताओं और सेवाओं को प्रदान करता है।
    • खर्च करने की शक्ति में यह असमानता कल्याण संबंधी प्रावधान में एक असमानता पैदा करता है, जो नागरिकों के समग्र आर्थिक कल्याण को प्रभावित करती है।

C. समानांतर नीतियों की अक्षमताएँ

  • समानांतर नीतियों का उद्भव
    • संघीय संघर्ष के परिणामस्वरूप समानांतर नीतियों का उदय हुआ है, जिससे केंद्र और राज्य दोनों समान प्रयासों को दोहराते हैं।
    • पेंशन सुधारों का मामला इसका उदाहरण है, कुछ राज्य संघीय प्रणाली में विश्वास की कमी के कारण पुरानी पेंशन योजनाओं की ओर लौट रहे हैं। जिससे राष्ट्र की राजकोषीय स्थिति प्रभावित होती है।

आगे की राह

अपरिहार्य परस्पर निर्भरता

  • परस्पर निर्भरता की आवश्यकता
    लगातार टकराव के बावजूद, प्रभावी शासन के लिए केंद्र और राज्यों के बीच परस्पर निर्भरता महत्वपूर्ण है।
  • केंद्र द्वारा लागू किए गए कई कानूनों और नीतियों के लिए राज्यों के सहयोग की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से समवर्ती क्षेत्रों में।

सहकारी संघवाद के लिए संतुलित दृष्टिकोण

  • राज्यों की स्वायत्तता और केंद्र के व्यापक लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाना सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है जो सरकार के दोनों स्तरों को लाभान्वित करे।
  • विश्वास की कमी को दूर करना और संवाद को बढ़ावा देना एक सामंजस्यपूर्ण आर्थिक संबंध प्राप्त करने में महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

भारत में केंद्र और राज्यों के बीच लगातार टकराव के आर्थिक निहितार्थ दूरगामी हैं, जो बुनियादी ढांचे के विकास, राजकोषीय प्रतिस्पर्धा और नीतियों की दक्षता को प्रभावित करते हैं। जबकि विकसित आर्थिक परिदृश्य राज्यों के लिए कुछ गुंजाइश प्रदान करता है, केंद्र के प्रभुत्व से उत्पन्न चुनौतियों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। विविध और गतिशील भारतीय संदर्भ में सतत आर्थिक विकास और प्रभावी शासन सुनिश्चित करने के लिए सहकारी संघवाद और राज्यों की स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे भारत विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इन निरंतर संघर्षों को हल करना राष्ट्र के समग्र कल्याण के लिए अनिवार्य हो जाता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. प्रश्न 1: भारत में केंद्र और राज्यों के बीच लगातार टकराव बढ़ने में किन ऐतिहासिक कारकों का योगदान रहा है, विशेष रूप से आर्थिक नीतियों के संदर्भ में? (10 Marks,150 Words)
  2. प्रश्न 2: बुनियादी ढांचे के विकास में केंद्र के प्रभुत्व के आर्थिक परिणामों पर चर्चा करें, निवेश के मामले में राज्यों के सामने आने वाली चुनौतियों और पूंजीगत व्यय में परिणामी असमानताओं पर प्रकाश डालें। (15 Marks,250 Words)

Source- The Hindu


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