संदर्भ:
भारत में डिजिटल परिवर्तन बहुत तेज़ी से हो रहा है। स्मार्टफोन की बढ़ती पहुँच, इंटरनेट का प्रसार और 'डिजिटल इंडिया' और 'मेक इन इंडिया' जैसे सरकारी अभियानों के चलते देश में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खपत तेजी से बढ़ रही है। यह प्रगति 'विकसित भारत' की नींव को मजबूत करती है, लेकिन साथ ही एक बढ़ती हुई पर्यावरणीय चिंता इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरा) को भी जन्म देती है।
भारत में ई-कचरे का उत्पादन:
भारत अब ई-कचरा उत्पन्न करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है, केवल चीन और अमेरिका इससे आगे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत ने 2023–24 में लगभग 17.78 लाख मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न किया। यह आंकड़ा 2017–18 के 7.08 लाख मीट्रिक टन से 151% अधिक है। औसतन, भारत हर साल 1.69 लाख मीट्रिक टन ई-कचरे में इज़ाफा कर रहा है।
ई-कचरे के मुख्य स्रोत हैं:
• उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू उपकरण (मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी, फ्रिज)
• आईटी और टेलीकॉम उपकरण
• औद्योगिक स्वचालन डिवाइस
• बैटरी चालित और प्रकाश उपकरण
अनौपचारिक रीसाइक्लिंग और अनुचित निपटान की चुनौतियाँ:
भारत के 95% से अधिक ई-कचरे को अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा संसाधित किया जाता है, जो अक्सर असुरक्षित और अनियमित वातावरण में कार्य करता है। इस नेटवर्क में कबाड़ीवाले और स्थानीय रीसाइक्लर शामिल होते हैं, जो खुले में जलाना और एसिड से धातु निकालना जैसे कच्चे तरीके अपनाते हैं।
हालाँकि ये तरीके कम लागत और व्यापक पहुँच के कारण प्रभावी माने जाते हैं, लेकिन इनके कई गंभीर खतरे हैं:
पर्यावरणीय खतरे:
• विषैली गैसें हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित करती हैं।
• सीसा (lead), मरकरी, कैडमियम और ब्रोमीनयुक्त ज्वलनशील रसायन जैसे जहरीले तत्व खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं।
स्वास्थ्य जोखिम:
• अनौपचारिक श्रमिक, खासकर महिलाएं और बच्चे, श्वसन रोगों, त्वचा की बीमारियों और गंभीर रोगों से पीड़ित होते हैं।
• ई-कचरा क्षेत्रों के आसपास की आबादी की औसत आयु केवल 27 वर्ष तक घट गई है।
आर्थिक हानि:
• भारत हर साल वैज्ञानिक रीसाइक्लिंग द्वारा प्राप्त किए जा सकने वाले ₹80,000 करोड़ मूल्य के कीमती धातुओं को खो देता है।
• सिर्फ जल प्रदूषण के कारण $10 अरब से अधिक की आर्थिक क्षति होती है।
• अनौपचारिक तंत्र के कारण $20 अरब का अनुमानित कर राजस्व नुकसान होता है।
नीतिगत प्रतिक्रिया: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR)
ई-कचरे की चुनौती से निपटने के लिए भारत ने ई-वेस्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 के तहत EPR ढांचा लागू किया है। EPR के तहत उत्पादकों को उनके इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के जीवनचक्र की जिम्मेदारी लेनी होती है—डिज़ाइन से लेकर निपटान तक।
EPR ढांचे की प्रमुख विशेषताएं:
• उत्पादकों को ई-कचरे को एकत्र कर प्रमाणित रीसाइक्लर तक पहुंचाना अनिवार्य है।
• वार्षिक EPR लक्ष्य बिक्री और उत्पाद की उम्र के आधार पर तय किए जाते हैं।
• ई-कचरे की आवाजाही को डिजिटल रूप से ट्रैक करना अनिवार्य है जिससे पारदर्शिता बढ़े।
EPR प्रमाणपत्रों के लिए न्यूनतम मूल्य (Floor Pricing) की शुरुआत:
2023 में एक प्रमुख बदलाव EPR प्रमाणपत्रों के लिए न्यूनतम मूल्य प्रणाली की शुरुआत था। यह प्रमाणपत्र रीसाइक्लर को तब जारी किए जाते हैं जब वे ई-कचरे को वैज्ञानिक ढंग से संसाधित करते हैं। न्यूनतम मूल्य यह सुनिश्चित करता है कि रीसाइक्लर को एक निश्चित न्यूनतम आर्थिक लाभ मिले।
न्यूनतम मूल्य प्रणाली के लाभ:
• प्रमाणपत्रों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करता है।
• अनियमित संस्थाओं द्वारा कीमतों को बिगाड़ने से रोकता है।
• औपचारिक क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करता है।
• उत्पादकों को जिम्मेदारी से स्रोत चुनने के लिए प्रेरित करता है।
हालाँकि, यह चिंता जताई जा रही है कि इससे उत्पादकों की अनुपालन लागत बढ़ सकती है, जिसका बोझ उपभोक्ताओं पर आ सकता है। फिर भी, यह लागत पर्यावरणीय सुधार और संसाधन पुनर्प्राप्ति के दीर्घकालिक लाभों की तुलना में नगण्य है।
परिपत्र अर्थव्यवस्था (Circular Economy) की अनिवार्यता
ई-कचरा केवल एक चुनौती नहीं है, बल्कि यह एक विशाल आर्थिक अवसर भी है। परिपत्र अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव इस कचरे को संपत्ति में बदल सकता है—पुनः उपयोग (reuse), मरम्मत (repair), पुनः निर्माण (remanufacturing), और पुनर्चक्रण (recycling) को बढ़ावा देकर।
परिपत्र अर्थव्यवस्था क्या है?
"बनाओ–उपयोग करो–फेंको" वाले पारंपरिक रेखीय मॉडल के विपरीत, परिपत्र अर्थव्यवस्था का उद्देश्य है:
• उत्पादों की उपयोगी अवधि को बढ़ाना।
• नई कच्ची सामग्री पर निर्भरता को कम करना।
• बंद लूप प्रणालियों (closed-loop systems) के माध्यम से मूल्यवान संसाधनों को पुनः प्राप्त करना।
भारत के लिए यह मॉडल विशेष रूप से प्रासंगिक है, क्योंकि देश को कच्चे माल के आयात पर भारी निर्भरता और प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय मॉडल और अभ्यास:
• चीन ने निर्माण में पुनः प्राप्त कच्चे माल के न्यूनतम उपयोग को अनिवार्य किया है।
• यूरोपीय संघ ने 'राइट टू रिपेयर डाइरेक्टिव' शुरू की है, जो मरम्मत योग्य डिज़ाइनों और आसान स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता को बढ़ावा देती है।
भारत इन मॉडलों को अपनाकर और अपनी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार ढालकर लाभ उठा सकता है।
एक प्रभावी ई-कचरा तंत्र के निर्माण के लिए रणनीतियाँ
परिपत्रता की पूरी क्षमता को साकार करने के लिए भारत को नीति और बुनियादी ढांचे में कई खामियों को दूर करना होगा:
1. अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना
• अनौपचारिक श्रमिकों को कौशल सिखाना और उन्हें लाइसेंस प्राप्त संचालन में जोड़ना।
• सुरक्षात्मक उपकरण और सुरक्षित रीसाइक्लिंग तकनीकों की सुविधा देना।
• पंजीकरण और अनुपालन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
2. रिवर्स लॉजिस्टिक्स और संग्रहण दक्षता
• हर जिले में शहरी संग्रहण केंद्र स्थापित करना।
• पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स लौटाने पर नकद वापसी या छूट देना।
• ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ साझेदारी कर घर-घर से ई-कचरे का संग्रह करना।
3. जन जागरूकता और उपभोक्ता व्यवहार
उपभोक्ताओं की निष्क्रियता एक बड़ी बाधा है। 2023 की ICEA रिपोर्ट के अनुसार, भारत के घरों में 20 करोड़ से अधिक अनुपयोगी डिवाइस पड़े हैं—डेटा सुरक्षा या रीसाइक्लिंग की जानकारी के अभाव के कारण।
• डेटा मिटाने और सुरक्षित निपटान पर बड़े पैमाने पर अभियान चलाना।
• जिम्मेदार रीसाइक्लिंग के लाभों को स्कूलों, हाउसिंग सोसायटियों और कॉरपोरेट्स में प्रचारित करना।
ICEA जैसे औद्योगिक संगठन सुझाव देते हैं:
• क्षेत्रीय रीसाइक्लिंग क्लस्टर स्थापित करना।
• सामग्री की पूरी यात्रा को ट्रैक करने के लिए ऑडिटेबल डाटाबेस बनाना।
• निर्माताओं को मॉड्यूलर, मरम्मत योग्य और पुनर्चक्रण योग्य डिज़ाइन अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
5. नीति निगरानी और अनुपालन
• EPR नियमों के उल्लंघन पर सख्त दंड लगाना।
• उत्पाद की उम्र और बाजार की स्थिति के अनुसार समय-समय पर EPR लक्ष्य संशोधित करना।
• कचरे के प्रवाह की रीयल-टाइम निगरानी के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।
जब वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियाँ दुर्लभ तत्वों तक पहुँच को सीमित कर रही हैं और आपूर्ति शृंखलाएं अस्थिर हो रही हैं, तब भारत की द्वितीयक कच्चे माल को पुनः प्राप्त करने की क्षमता ही इसकी निर्माण क्षमता और आत्मनिर्भरता तय करेगी।
एक मजबूत घरेलू रीसाइक्लिंग उद्योग:
• रणनीतिक आयात निर्भरता को कम करेगा।
• हरित नौकरियों का सृजन करेगा, विशेषकर युवाओं और महिलाओं के लिए।
• पेरिस समझौते के तहत भारत के जलवायु लक्ष्यों में योगदान देगा।
निष्कर्ष:
भारत का 'विकसित भारत' का सपना पर्यावरणीय स्थिरता के समानांतर संकल्प के बिना अधूरा है। ई-कचरे की बढ़ती समस्या एक संकट के साथ-साथ एक रणनीतिक अवसर भी है। मजबूत नीतियों, नवाचारों और उत्पादक से लेकर उपभोक्ता तक सभी पक्षों को सशक्त बनाकर भारत इस कचरे को एक हरित और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की नींव में बदल सकता है।
जैसे-जैसे हम डिजिटल युग में और गहराई से प्रवेश कर रहे हैं, जिम्मेदार निपटान और संसाधन पुनर्प्राप्ति को राष्ट्रीय विकास के मूल में स्थान देना होगा। हमारे सामने विकल्प स्पष्ट है: या तो ई-कचरे का यह पहाड़ एक बोझ बनता जाए या इसे सतत विकास के अगले युग का परिपत्र संसाधन इंजन बना दें।
मुख्य प्रश्न: भारत तेजी से एक डिजिटल अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है, लेकिन यह परिवर्तन एक पर्यावरणीय लागत के साथ आता है। भारत में ई-कचरे से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और अनौपचारिक रीसाइक्लरों को औपचारिक परिपत्र अर्थव्यवस्था ढांचे में एकीकृत करने के लिए रणनीतियाँ सुझाइए। |