भारत ने अमेरिका और चीन के बाद दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऑटोमोबाइल उद्योग के रूप में अपनी मजबूत पहचान बनाई है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार, भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का आकार ₹22 लाख करोड़ तक पहुंच गया है, जबकि अमेरिका का ₹78 लाख करोड़ और चीन का ₹49 लाख करोड़ है। यह क्षेत्र केवल गतिशीलता का साधन ही नहीं है, यह आर्थिक वृद्धि, तकनीकी प्रगति और रोजगार सृजन का एक प्रमुख चालक है, जिसने अब तक लगभग 4.5 करोड़ नौकरियां उत्पन्न की हैं।
भारत में ऑटोमोबाइल क्षेत्र ने ऐतिहासिक रूप से संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का प्रतिबिंब प्रस्तुत किया है। जब अर्थव्यवस्था बढ़ती है, तो वाहनों की मांग में वृद्धि होती है; जब अर्थव्यवस्था धीमी होती है, तो ऑटो बिक्री भी घटती है। इसका योगदान व्यापक आर्थिक विस्तार, औद्योगिक संबंधों और तकनीकी नवाचार में इसे राष्ट्रीय विकास का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमिका
ऑटोमोटिव क्षेत्र भारत के सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक है और राष्ट्र की विनिर्माण प्रणाली का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह न केवल घरेलू बाजार की जरूरतें पूरी करता है, बल्कि वैश्विक ऑटोमोबाइल आपूर्ति श्रृंखलाओं में भी एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
विकास यात्रा
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1991 में, क्षेत्र के डीलाइसेंसिंग और ‘ऑटोमैटिक रूट’ के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति के साथ उद्योग ने एक परिवर्तनकारी चरण में प्रवेश किया।
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उदारीकरण के बाद से, लगभग सभी वैश्विक ऑटोमोबाइल दिग्गज—जैसे हुंडई, टोयोटा और मर्सिडीज-बेंज—ने भारत में विनिर्माण संयंत्र स्थापित किए हैं और लगातार उत्पादन क्षमता का विस्तार कर रहे हैं।
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एफडीआई प्रवाह—पिछले चार वर्षों में, इस क्षेत्र ने $36 अरब का एफडीआई आकर्षित किया है, जो भारत को एक विनिर्माण केंद्र के रूप में निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
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आर्थिक और रोजगार प्रभाव
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भारी उद्योग मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2024–25 के अनुसार, यह क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 3 करोड़ नौकरियों का समर्थन करता है।
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यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6% और विनिर्माण GDP में 35% से अधिक का योगदान देता है।
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उत्पादन वृद्धि—1991–92 में 20 लाख इकाइयों के वाहन उत्पादन से बढ़कर 2023–24 में 2.8 करोड़ इकाइयों तक।
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वार्षिक उद्योग कारोबार लगभग 240 अरब अमेरिकी डॉलर।
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FY24 में निर्यात 45 लाख इकाइयों तक पहुंचा, जबकि वाहनों और ऑटो कंपोनेंट्स का संयुक्त निर्यात मूल्य 35 अरब अमेरिकी डॉलर रहा।
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बाजार संरचना और प्रमुख खंड
भारत का ऑटोमोबाइल बाजार व्यापक और विविध है, जिसमें यात्री वाहन, वाणिज्यिक वाहन, दोपहिया, तीनपहिया और क्वाड्रिसाइकिल शामिल हैं।
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बिक्री के मामले में दोपहिया वाहन प्रमुख हैं। इसका कारण है भारत की बड़ी युवा आबादी, बढ़ता मध्यम वर्ग और बेहतर ग्रामीण संपर्क।
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ट्रक, बस और वैन सहित वाणिज्यिक वाहनों को लॉजिस्टिक्स और यात्री परिवहन में बढ़ती मांग का लाभ मिल रहा है।
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तीनपहिया और छोटे यात्री कारों के विद्युतीकरण जैसी उभरती प्रवृत्तियां इस क्षेत्र के भविष्य को आकार दे रही हैं।
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वैश्विक स्तर पर भारत की मजबूत प्रतिस्पर्धी स्थिति:
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दुनिया का सबसे बड़ा ट्रैक्टर निर्माता।
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दूसरा सबसे बड़ा बस निर्माता।
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तीसरा सबसे बड़ा भारी ट्रक निर्माता।
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ऑटो कंपोनेंट उद्योग
संरचना और भूमिका
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‘मेक इन इंडिया’ पहल की भूमिका
2014 में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शुरू की गई मेक इन इंडिया योजना ने ऑटोमोबाइल क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण और स्थानीयकरण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चार स्तंभों—नई प्रक्रियाएं, नया बुनियादी ढांचा, नए क्षेत्र और नई सोच—पर आधारित, यह योजना प्रोत्साहित करती है:
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स्थानीयकरण और आत्मनिर्भरता — उन्नत ऑटोमोटिव तकनीक (AAT) उत्पादों का भारत में निर्माण।
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विनिर्माण हब विकास — हुंडई, टोयोटा और मर्सिडीज-बेंज जैसी वैश्विक कंपनियों को संयंत्र स्थापित करने के लिए आकर्षित करना।
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बुनियादी ढांचा विस्तार — राजमार्ग, ईवी चार्जिंग नेटवर्क और वाहन परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाना।
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नवाचार और अनुसंधान — ईवी तकनीक, बैटरी निर्माण और चार्जिंग बुनियादी ढांचे को समर्थन।
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निर्यात वृद्धि — चीन प्लस वन रणनीति का लाभ उठाकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का विविधीकरण।
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ईवी उद्योग को बढ़ावा — जम्मू-कश्मीर में लिथियम भंडार का उपयोग कर घरेलू लिथियम-आयन बैटरी उत्पादन क्षमता का निर्माण।
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इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिए सरकारी पहल
भारत ईवी क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है, अगस्त 2024 तक 44 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों का पंजीकरण हो चुका है। ईवी क्षेत्र में 2030 तक 206 अरब अमेरिकी डॉलर का बाजार अवसर है, जिसके लिए 180 अरब अमेरिकी डॉलर के विनिर्माण और चार्जिंग बुनियादी ढांचे में निवेश की आवश्यकता होगी।
ईवी को प्रोत्साहित करने वाली प्रमुख सरकारी योजनाएं:
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फेम इंडिया योजना चरण-II — ई-2W, ई-3W, ई-4W, ई-बस और सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों के लिए प्रोत्साहन।
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ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स के लिए पीएलआई योजना — AAT उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा।
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उन्नत रसायन सेल (ACC) के लिए पीएलआई योजना — 50 GWh घरेलू बैटरी निर्माण का लक्ष्य।
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पीएम ई-ड्राइव योजना (2024) — विभिन्न वाहन प्रकारों, चार्जिंग ढांचे और परीक्षण एजेंसियों के उन्नयन में ईवी अपनाने को समर्थन।
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पीएम ई-बस सेवा – भुगतान सुरक्षा तंत्र (2024) — 38,000 से अधिक इलेक्ट्रिक बसों की तैनाती को समर्थन।
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SMEC (2024) — भारत में इलेक्ट्रिक यात्री कार निर्माण को बढ़ावा।
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अन्य मंत्रालयीय पहल:
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विद्युत मंत्रालय — ईवी चार्जिंग दिशानिर्देश और इंटरऑपरेबिलिटी मानक।
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वित्त मंत्रालय — ईवी पर जीएसटी 12% से घटाकर 5%।
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सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) — ईवी के लिए हरे नंबर प्लेट और परमिट आवश्यकताओं से छूट।
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आवास और शहरी कार्य मंत्रालय — नई इमारतों में ईवी चार्जिंग प्वाइंट अनिवार्य।
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चुनौतियां और आगे की राह
यद्यपि यह क्षेत्र निरंतर वृद्धि के लिए तैयार है, कुछ प्राथमिकताओं पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है:
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हाइड्रोजन ईंधन सेल और बायोफ्यूल — स्वच्छ गतिशीलता समाधानों में विविधता लाना।
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एफडीआई आकर्षण — वैश्विक ओईएम को अनुसंधान एवं विकास और विनिर्माण का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करना।
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आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना — घरेलू बैटरी उत्पादन और महत्वपूर्ण ऑटो कंपोनेंट निर्माण को बढ़ावा।
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तकनीकी उन्नति — ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन और हाई-टेक कंपोनेंट्स का बड़े पैमाने पर उत्पादन।
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बुनियादी ढांचा विस्तार — ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों तक ईवी चार्जिंग का विस्तार।
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भारत के कुशल कार्यबल, प्रतिस्पर्धी विनिर्माण आधार और बड़े घरेलू बाजार के कारण, देश न केवल अपनी वृद्धि को बनाए रखने में सक्षम है बल्कि अगली पीढ़ी की गतिशीलता में वैश्विक नेता बनने की स्थिति में भी है।
निष्कर्ष
भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग एक परिवर्तनकारी दौर में है। पारंपरिक वाहनों के प्रमुख निर्माता होने से लेकर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का केंद्र बनने तक, यह क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। मजबूत घरेलू मांग, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, सहायक सरकारी नीतियां और सतत परिवहन की दिशा में बदलाव का संयोजन भारत को वैश्विक ऑटोमोटिव वृद्धि की अगली लहर का नेतृत्व करने की मजबूत स्थिति में रखता है।
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