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Daily-current-affairs / 29 Sep 2023

डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन - कृषि नवाचार और जैव विविधता संरक्षण के वास्तुकार - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 30-09-2023

प्रासंगिकता- जीएस पेपर 1-स्वतंत्रता के बाद का भारत, जीएस पेपर 3-भारतीय अर्थव्यवस्था-कृषि

मुख्य शब्द- हरित क्रांति, खाद्य सुरक्षा, सतत कृषि, जैव विविधता

संदर्भ

डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन का जन्म 1925 में मद्रास प्रेसीडेंसी के कुंभकोणम में हुआ था। इन्होंने अपने जीवन को कृषि के क्षेत्र में समर्पित किया। उन्होंने प्राणी विज्ञान और कृषि में उच्च शिक्षा प्राप्त की और फिर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में काम किया।

आइए डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के जीवन का कालक्रम पर एक नजर डालते हैं

  • 1925: मद्रास प्रेसीडेंसी के कुंभकोणम में जन्म हुआ था ।
  • 1940: प्राणी विज्ञान और कृषि में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
  • 1947-1949: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान(IARI) में शामिल हुए ।
  • 1954: गेहूं अनुसंधान पर डॉ. नॉर्मन बोरलॉग के साथ काम किया।
  • 1979-1982: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(ICAR) के महानिदेशक नियुक्त किए गए ।
  • 1982: अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक बने।
  • 1987: कृषि में उनके योगदान के लिए उन्हें पहला विश्व खाद्य पुरस्कार दिया गया।
  • 1988: एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना।
  • 2002: पगवाश सम्मेलनों के अध्यक्ष के रूप में चुने गए। यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो शांति और निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देता है।
  • 2004: किसानों पर राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त।
  • 2007-2013: राज्यसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने महिला किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिए महिला किसान विधेयक पेश किया था ।

एम. एस. स्वामीनाथन के प्रमुख योगदानः

  • खाद्य असुरक्षा को कम करनाः- इन्होंने भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व किया, जिसने खाद्य उत्पादन को बढ़ावा दिया और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। परिणामतः राष्ट्र खाद्य की कमी वाले देश से खाद्य अधिशेष वाला राष्ट्र बन गया ।

हरित क्रांति के बारे में

  • 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग के नेतृत्व में हरित क्रांति हुई थी । इससे गेंहू और चावल के उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई । इसने उन्हें विश्व स्तर पर 'हरित क्रांति के जनक ' का खिताब दिलाया, इसके अलावा उन्हें गेहूं की उच्च उपज देने वाली किस्मों (एचवाईवी) के विकास के लिए 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
  • जबकि भारत में, M.S. स्वामीनाथन ने हरित क्रांति को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • इस परिवर्तनकारी आंदोलन ने नए, उच्च उपज देने वाले विभिन्न प्रकार के बीजों को पेश करके विकासशील देशों में खाद्यान्न उत्पादन, विशेष रूप से गेहूं और चावल को काफी बढ़ावा दिया। इसकी प्रारंभिक सफलताएँ मेक्सिको और भारतीय उपमहाद्वीप में देखी गईं।
  • 1967-68 से 1977-78 तक फैली हरित क्रांति ने भारत को खाद्य की कमी वाले देश से दुनिया की अग्रणी कृषि उत्पादक देशों में बदल दिया।

फसल अनुसंधान में प्रगतिः-

  • M.S. स्वामीनाथन ने भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल उच्च उपज देने वाली बौनी गेहूं की किस्मों को विकसित करने के लिए नॉर्मन बोरलॉग के साथ सहयोग किया।
  • विभिन्न फसलों में नवीन उत्परिवर्तन प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए उच्च उपज देने वाले बासमती चावल की किस्मों का विकास किया ।

सतत कृषि के लिए वकालतः

  • इन्होंने फसल की किस्मों को बढ़ाने के लिए टिकाऊ कृषि, आनुवंशिकी और प्रजनन के महत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ावा दिया ।
  • इन्होंने कृषि पद्धतियों में अनुसंधान के व्यावहारिक अनुप्रयोग को बढ़ावा देने के लिए "प्रयोगशाला से भूमि" जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए।

किसानों के लिए उचित समर्थन सुनिश्चित करनाः-

  • M.S. स्वामीनाथन ने किसानों पर राष्ट्रीय आयोग का नेतृत्व किया। जिसने फसलों के लिए उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य की वकालत की ।

विविध कृषि पहलः-

  • इन्होंने पोषण, जैव संवर्धन, कृषि के लिए वित्त प्रवाह में वृद्धि, सतत खेती और कृषि में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी पर जोर दिया गया।

चावल की खेती में नेतृत्वः-

  • इन्होंने दूरदर्शी नेतृत्व के साथ अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया और चावल की खेती के संबर्धन में योगदान दिया। जिसमें इन्होंने सी4 कार्बन स्थिरीकरण में नवाचार और उच्च उपज देने वाली बासमती चावल की किस्मों का विकास किया था ।

कृषि में एक दूरदर्शी के रूप में मान्यताः-

  • इन्हे कृषि और सतत विकास के क्षेत्र में एक दूरदर्शी और अग्रणी नेता के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिन्होंने कृषि प्रथाओं और नीतियों पर स्थायी प्रभाव डाला ।

कुट्टनाड और केरल की जैव विविधता में योगदानः

कुट्टनाड पैकेजः Dr. M.S. स्वामीनाथन ने 1,800 करोड़ रुपये से अधिक के व्यापक कुट्टनाड पैकेज की सिफारिश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । यह पहल, M.S. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एम. एस. एस. आर. एफ.) द्वारा प्रस्तावित की गई थी । इसने आर्द्रभूमि क्षेत्र प्रणाली को 'विशेष कृषि क्षेत्र' घोषित करने की वकालत की। पैकेज में जल प्रसार वाले क्षेत्रों की सुरक्षा, बुनियादी ढांचे के उन्नयन और अल्पकालिक धान की किस्मों की खेती को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया था ।

जैव विविधता संरक्षणः जैव विविधता संरक्षण में डॉ. स्वामीनाथन ने अपना योगदान इडुक्की जिले (इडुक्की पैकेज के रूप में जाना जाता है) पर एमएसएसआरएफ की 2008 की रिपोर्ट तैयार करने और वायनाड में 'सामुदायिक कृषि जैव विविधता केंद्र' की स्थापना मे दिया था। जैव विविधता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को जन जागरूकता, सामुदायिक भागीदारी और आर्थिक प्रोत्साहनों के रूप मे देखा जा सकता है । जिससे केरल में इन सीटू और ऑन-फार्म संरक्षण परंपराओं के संरक्षण को प्रोत्साहन मिला ।

डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के शोध और हरित क्रांति से जुड़ाव :

  1. 1960 के दशक में कृषि प्रगतिः - हरित क्रांति को 1960 के दशक के मध्य में कृषि मे तेजी से प्रगति के रूप मे चिह्नित किया जाता है । इसमें उच्च उपज देने वाली, रोग प्रतिरोधी फसल किस्मों की खेती को बढावा दिया गया था । डॉ. स्वामीनाथन ने मुख्य रूप से पंजाब में इस आंदोलन को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
  2. उच्च उपज देने वाली फसलें- इन्होनें उच्च उपज देने वाली किस्में (एचवाईवी) का विकास किया जो पारंपरिक किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेयर काफी अधिक उपज देती हैं। ये किस्में अक्सर रोग प्रतिरोधी होती हैं और सूखे जैसी स्थितियों के प्रति सहनशील होती हैं। जैसे आई. आर. 8 चावल और कल्याण सोना गेहूं ।
  3. उत्पादकता केन्द्रः- उपज अंतर एक फसल की संभावित अधिकतम उपज और एक विशिष्ट क्षेत्र के लिए इसकी वास्तविक प्राप्त उपज के बीच की असमानता हो दर्शाता है । इस अंतर को दूर करना हरित क्रांति का एक केंद्रीय उद्देश्य था जिसमे स्वामीनाथन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
  4. आनुवंशिक अध्ययनः- साइटोजेनेटिक्सः गुणसूत्रों का वैज्ञानिक अध्ययन और वंशानुगत लक्षणों के साथ उनका सहसंबंध, जिसमें फसलों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता जैसी विशेषताओं को शामिल किया जाता है। डॉ. स्वामीनाथन ने साइटोजेनेटिक्स पर शोध किया।
  5. गेहूं की किस्मः- हेक्साप्लॉइड गेहूं को वैज्ञानिक रूप से ट्रिटिकम एस्टिवम के रूप में जाना जाता है, इसमें गुणसूत्रों के छह सेट होते हैं और इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। डॉ. स्वामीनाथन ने हेक्साप्लॉइड गेहूं के साइटोजेनेटिक्स पर शोध किया।
  6. प्रकाश संश्लेषण और कार्बन स्थिरीकरणः
  • कार्बन स्थिरीकरणः वह प्रक्रिया जिसमें फसलें वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती हैं और प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से इसे कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित करती हैं। यह प्रक्रिया पौधे की वृद्धि और उत्पादकता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • सी3 और सी4 प्रकाश संश्लेषित मार्गः कार्बन स्थिरीकरण के लिए दो अलग-अलग मार्ग होते है । सी3 (केल्विन चक्र) धीमी गति से काम करता है और तब होता है जब पत्ते के छिद्र खुले होते हैं। सी4 अधिक कुशल है और मेसोफिल और बंडल म्यान कोशिकाओं दोनों में होता है। डॉ. स्वामीनाथन के कार्यकाल के दौरान सी4 चावल पर शोध किया गया था।

निष्कर्ष

उनका निधन कृषि अनुसंधान, शिक्षा और कृषि विस्तार में परिवर्तनकारी नवाचार की विशेषता वाले एक उल्लेखनीय युग के समापन का प्रतीक है। उन्हें सार्वभौमिक रूप से प्रशंसा और सम्मान के योग्य व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है, विशेष रूप से उन लोगों के बीच जिन्होंने खाद्य सुरक्षा और कृषि में उनके महत्वपूर्ण योगदान से बहुत लाभ उठाया है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. हरित क्रांति में डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन की भूमिका और भारतीय कृषि पर इनके प्रभाव की चर्चा कीजिए। उनकी पहलों ने देश में खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का समाधान कैसे किया? (10 marks, 150 words)
  2. केरल में, विशेष रूप से कुट्टनाड क्षेत्र में जैव विविधता संरक्षण में डॉ. स्वामीनाथन के योगदान की जांच करें। सतत कृषि और नवीन कृषि प्रथाओं के लिए उनकी वकालत ने राज्य में कृषि परिदृश्य को कैसे बदल दिया? (15 marks, 250 words)

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