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Daily-current-affairs / 25 Jan 2024

भारत में चिकित्सा शिक्षा का लोकतंत्रीकरण और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का विस्तार

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संदर्भ:

  • भारत लंबे समय से स्वास्थ्य-असमानता जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, खासकर ग्रामीण इलाकों में; जहां स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी के कारण चिकित्सा देखभाल तक आम जनों की पहुंच बाधित होती है। निजी चिकित्सा शिक्षा के ऐतिहासिक प्रभुत्व ने इस मुद्दे को और भी बढ़ा दिया है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों के वितरण में असंतुलन उत्पन्न हो गया है। हालाँकि, हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी बदलाव देखा गया है, जो सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में किये जा रहे प्रयासों को चिह्नित करता है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • भारत में चिकित्सा शिक्षा का ऐतिहासिक प्रक्षेपवक्र 1980 के दशक से ही निजी क्षेत्र के प्रभुत्व वाले पैटर्न को दर्शाता है। उसके बाद से निजी चिकित्सा महाविद्यालयों का प्रसार हुआ, जिससे स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की शहरी-केंद्रित समूहण बढ़ता चला गया। निजी क्षेत्र और विदेशों में आकर्षक अवसरों के लिए चिकित्सा स्नातकों की महत्वाकांक्षा ने ग्रामीण परिवेश में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी को बढ़ावा दिया। साथ ही चिकित्सा शिक्षा के निजीकरण ने उच्च शिक्षण शुल्क, निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए पहुंच को सीमित करने जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई।

भारतीय चिकित्सा स्नातकों का वैश्विक विचलन:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर, शीर्ष स्तरीय भारतीय चिकित्सा महाविद्यालयों से स्नातकों की उच्च प्रवासन दर की प्रवृत्ति ने, भारतीय चिकित्सा स्नातकों की वैश्विक विचलन या अस्थिरता और शीर्ष चिकित्सा प्रतिभा को बनाए रखने में भारत के सामने आने वाली भविष्यगामी चुनौतियाँ दोनों को रेखांकित किया। विदेशों में बेहतर संभावनाओं और उन्नत अनुसंधान अवसरों के लालच ने घरेलू स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए एक चुनौती उत्पन्न कर दी है।

मेडिकल कॉलेजों और सीटों का क्रमिक विस्तारीकरण:

  • भारत में चिकित्सा महाविद्यालयों की वृद्धि संबंधित गहन विश्लेषण से पता चलता है, कि 2000 के दशक के बाद से चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है 21वीं सदी में, 2023-24 तक इन महाविद्यालयों की कुल संख्या 704 तक हो गई। यह आंकड़ा चिकित्सक-से-जनसंख्या अनुपात को संबोधित करने और स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह वृद्धि सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के सरकार के प्रयासों के अनुरूप है।

·       भारत में एमबीबीएस सीटों की बढ़ती संख्या कॉलेजों की संख्या में वृद्धि को दर्शाती है। 1970 के दशक के शुरुआत की कुल एमबीबीएस सीटें 12,000 से बढ़कर 2023-24 तक 1,07,948 तक पहुंच गईं। यह क्रमिक वृद्धि दर विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त विकास, बढ़ती जनसंख्या की प्रतिक्रिया और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता को इंगित करता है।

सरकारी पहल और सार्वजनिक क्षेत्र का विकास

  • सार्वजनिक चिकित्सा शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने से संबंधित सरकार के प्रयास में, नए सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की स्थापना और मौजूदा चिकित्सा महाविद्यालयों के विस्तार आदि शामिल हैं। इस प्रयास के परिणामस्वरूप देश में स्वास्थ्य देखभाल हेतु वर्ष 2014 के बाद से, 317 नए सार्वजनिक क्षेत्र के चिकित्सा महाविद्याल स्थापित किए गए हैं, जो 1980 के दशक के बाद हुए विकासपरक नीतिगत बदलाव के साथ संरेखित है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे द्वारा संचालित चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पताल स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की भर्ती में गंभीर कमी को दर्शाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के चिकित्सा महाविद्यालयों में सीटों की बढ़ी हुई संख्या का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना है। इसके लिए वर्ष 2020 और 2021 के बीच, सार्वजनिक क्षेत्र के मेडिकल कॉलेजों की संख्या 280 से बढ़ाकर 396 कर दी गई।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:

सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विस्तार का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव चिकित्सा शिक्षा का संभावित लोकतंत्रीकरण है। एमबीबीएस सीटों को, व्यापक जनसांख्यिकीय के लिए अधिक सुलभ बनाकर, सरकार का लक्ष्य उन सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को कम करना है, जो परंपरागत रूप से चिकित्सा शिक्षा तक समान पहुंच में बाधा बनती हैं। यह समावेशिता विविध चिकित्सा कार्यबल को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है, जो भारत की आबादी की विभिन्न आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करती है।

वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा वितरण:

  • सार्वजनिक मेडिकल कॉलेजों और सीटों की बढ़ी हुई संख्या का ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में, स्वास्थ्य देखभाल वितरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक चिकित्सा महाविद्यालयों से स्नातक छात्र इन क्षेत्रों में सेवा करने की अधिक संभावना रखते हैं, जिससे स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को दूर किया जा सकेगा और स्वास्थ्य सेवाओं की समग्र गुणवत्ता में सुधार होगा। साथ ही साथ यह सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने और सभी के लिए समान स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने के सरकार के लक्ष्य के अनुरूप है।

भविष्यगामी रणनीति:

  • चूँकि भारत इस समय परिवर्तनकारी पथ पर आगे बढ़ रहा है, इसलिए चिकित्सा संबंधी कई प्रमुख क्षेत्रों पर इसे विचार करने की आवश्यकता है, जैसे:

o   पाठ्यक्रम का विस्तार: चिकित्सा शिक्षा में संलग्न पाठ्यक्रम को वैश्विक मानकों और उभरती स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों के अनुरूप लगातार अद्यतन किया जाना चाहिए। इसके लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, टेलीमेडिसिन और अंतःविषय दृष्टिकोण को शामिल कर स्नातकों को उभरते स्वास्थ्य देखभाल परिदृश्य के लिए बेहतर ढंग से तैयार किया जा सकता है।

o   अनुसंधान और नवाचार: वर्तमान परिदृश्य में चिकित्सा शिक्षा ढांचे के भीतर अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं में निवेश करना और जिज्ञासा की संस्कृति को बढ़ावा देना केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता में बल्कि स्वास्थ्य देखभाल प्रथाओं की प्रगति में भी योगदान दे सकता है।

o   सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच परस्पर सहयोग चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच को बढ़ा सकता है। अधिक मजबूत और स्थायी स्वास्थ्य देखभाल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी दोनों क्षेत्रों की ताकत का लाभ उठा सकती है।

o   विशिष्ट प्रशिक्षण: एमबीबीएस डिग्री के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, निवारक चिकित्सा सुविधा और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एक ठोस प्रयास किया जाना चाहिए। इससे भारतीय स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य में चुनौतियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों का एक कैडर तैयार हो सकेगा।

o   सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम: सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रमों के साथ चिकित्सा शिक्षा को एकीकृत करने से मेडिकल छात्रों के बीच सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिल सकता है। इससे विभिन्न समुदायों के मध्य स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करने हेतु सहानुभूति और सेवा करने की प्रतिबद्धता को बढ़ावा मिल सकता है।

o   डिजिटल शिक्षा प्लेटफ़ॉर्म: चिकित्सा शिक्षा के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, दूरदराज के क्षेत्रों में अपनी पहुंच का विस्तार कर सकती है। ऑनलाइन पाठ्यक्रम, वर्चुअल सिमुलेशन और टेलीमेडिसिन प्रशिक्षण पारंपरिक कक्षा शिक्षण को पूरक बना सकते हैं, जिससे सभी इच्छुक चिकित्सा पेशेवरों के लिए एक सर्वांगीण शिक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।

निष्कर्ष

  • वर्तमान में भारतीय चिकित्सा शिक्षा में चल रही समावेशिता और पहुंच एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। नए सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की स्थापना और सीटों में वृद्धि केवल शैक्षिक अवसर को बढ़ाती है, बल्कि चिकित्सा सेवाओं को जरूरतमंद समुदायों के करीब भी लाती है। भारत अपने कई कार्यक्रमों और विकासपरक पहलों के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल संबंधी असमानताओं को दूर करने का प्रयास कर रहा है। सरकार का यह प्रयास देश के सभी नागरिकों के लिए अधिक लचीला, अभिनव और सुलभ स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को एक नया आकार दे सकता है। इस प्रकार चिकित्सा शिक्षा का लोकतंत्रीकरण सिर्फ एक नीतिगत बदलाव ही नहीं है; बल्कि यह राष्ट्र की भलाई और विकास के लिए एक प्रतिबद्धता भी है। 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.     सामाजिक-आर्थिक बाधाओं पर चिकित्सा शिक्षा में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के हालिया विस्तार के प्रभाव की जांच करें। चर्चा करें कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों का विकास, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल संबंधी असमानताओं को कम करने में कैसे योगदान दे रहा है। (10 अंक, 150 शब्द)

2.     सामाजिक रूप से जिम्मेदार स्वास्थ्य देखभाल कार्यबल को आकार देने में डिजिटल शिक्षा, सामुदायिक जुड़ाव और विशेष प्रशिक्षण की भूमिका का मूल्यांकन करें। ये तत्व सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने और भारत में समान स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने में कैसे योगदान दे सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत - हिंदू

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