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Daily-current-affairs / 09 Feb 2024

डिजिटल युग में बाल संरक्षण हेतु कानूनी और मनोवैज्ञानिक आयाम

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संदर्भ:


हालिया एक फैसले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने एस. हरीश बनाम पुलिस निरीक्षक वाद में न्यायिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया, कि बाल पोर्नोग्राफी या बाल अश्लीलता डाउनलोड करना सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 की धारा 67बी के तहत अपराध नहीं है। इस फैसले से ऑनलाइन शोषण से संबंधित कानूनों की व्याख्या और प्रवर्तन से सम्बन्धित कई सवाल उठाते हैं, विशेष रूप से यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा के संबंध में।

 

·        चाइल्ड पोर्नोग्राफी/बाल अश्लीलता:

o   परिभाषा

§  बाल पोर्नोग्राफी नाबालिगों से जुड़ी यौन सामग्री के निर्माण, वितरण या भंडारण से संबंधित है। भारत और विश्व दोनों में, इसे गंभीर निहितार्थ के साथ एक जघन्य अपराध माना जाता है, जो बच्चों के यौन शोषण और दुर्व्यवहार का एक महत्वपूर्ण कारण भीं है।

o   ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी;

§  ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी इस शोषण की डिजिटल अभिव्यक्ति है। इसमें डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से नाबालिगों से जुड़ी यौन उन्मुख सामग्री का उत्पादन, वितरण या भंडारण शामिल है।

o   कानूनी ढांचा (भारतीय परिदृश्य)

§  भारत में, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019 चाइल्ड पोर्नोग्राफी को एक बच्चे से जुड़े यौन उन्मुख आचरण के किसी भी दृश्य चित्रण के रूप में परिभाषित करता है। इसमें तस्वीरें, वीडियो, डिजिटल या कंप्यूटर द्वारा निर्माण की जाने वाली छवियां भी शामिल हैं

o   वर्तमान स्थिति:

§  चाइल्ड पोर्नोग्राफी के संदर्भ में तीव्र वृद्धि भारत में ऑनलाइन बाल यौन शोषण की गंभीर वास्तविकता को दर्शाती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में बाल यौन अपराध के मामले 738 से बढ़कर 2021 में 969 हो गए हैं।

·        चाइल्ड पोर्नोग्राफी के प्रभाव:

o   मनोवैज्ञानिक प्रभाव

§  पोर्नोग्राफी के संपर्क में आने से बच्चों पर व्यापक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, जिससे अवसाद, क्रोध, चिंता और मानसिक परेशानी हो सकती है। यह बच्चों के दैनिक कार्यप्रणाली को बाधित कर सकता है, साथ ही उनके जैविक विकास और सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है।

o   लैंगिकता पर प्रभाव

§  चाइल्ड पोर्नोग्राफी के नियमित संपर्क में आने से बच्चों में यौन उन्मुखीकरण की भावना को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे संभावित रूप से वास्तविक जीवन में उनके इसी तरह के व्यवहार में शामिल होने की इच्छा उत्पन्न हो सकती है।

o   यौन आदतें:

§  कई विशेषज्ञ पोर्नोग्राफी की तुलना नशे की लत से करते हैं, क्योंकि यह मस्तिष्क पर मादक द्रव्यों के सेवन के समान प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। इस लत का व्यक्तियों के मानसिक और भावनात्मक कल्याण पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

o   व्यवहार संबंधी प्रभाव

§  चाइल्ड पोर्नोग्राफी का उपयोग विशेष रूप से पुरुषों के बीच लिंग रूढ़िवादिता की मजबूत मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। जो लोग अक्सर पोर्नोग्राफी का प्रयोग करते हैं, वे महिलाओं को यौन वस्तुओं के रूप में देखने और यौन हिंसा एवं महिलाओं के खिलाफ हिंसा के समर्थन में अपना दृष्टिकोण प्रदर्शित करने की अधिक संभावना रखते हैं।

कानूनी प्रावधानों की व्याख्या:

·        इस संदर्भ में उच्च न्यायालय का निर्णय आईटी अधिनियम की धारा 67 बी (बी) की अपनी व्याख्या पर निर्भर है, जो कानून के तहत दंडनीय कार्यों को रेखांकित करता है। इसमें बच्चों को अश्लील या यौन संबंधी सामग्री बनाना, एकत्र करना, खोजना, ब्राउज़ करना, डाउनलोड करना, विज्ञापन करना, बढ़ावा देना, आदान-प्रदान करना या वितरित करना आदि सभी शामिल है। वर्तमान कई मामलों में अभियुक्त ने अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड की थी, अदालत ने एक क़ानून के तहत इसके अभियोजन योग्य होने के लिए ऐसी सामग्री के प्रकाशन, प्रसारण या निर्माण को शामिल करना आवश्यक माना है।

·        इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 292 की व्याख्या के संबंध में केरल उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय और उच्च न्यायालय की निर्भरता ने इस संबंध में कुछ अन्य समस्याओं को भी जन्म दिया है केरल उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया ताब था, कि निजी स्थानों पर पोर्नोग्राफी देखना आईपीसी की धारा 292 के तहत अपराध नहीं है, जबकि चाइल्ड पोर्नोग्राफी के संदर्भ में इस निर्णय से काफी अंतर है, क्योंकि इसमें नाबालिगों का शोषण और दुर्व्यवहार शामिल है।

न्यायिक निर्णय का विश्लेषण:

·        दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत न्यायिक कार्यवाही को रद्द करने के मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले ने बाल संरक्षण कानूनों पर इसके संभावित प्रभावों के लिए आलोचना की है। अभियुक्त के उपकरण पर डाउनलोड की गई चाइल्ड पोर्नोग्राफी की उपस्थिति को स्वीकार करने के बावजूद, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अपराध आईटी अधिनियम की धारा 67बी (बी) के तहत अभियोजन योग्य नहीं था। हालाँकि, यह व्याख्या क़ानून की स्पष्ट भाषा की अनदेखी करती है, जिसमें ऐसी सामग्री को डाउनलोड करने का कार्य दंडनीय अपराध के रूप में शामिल है।

·        इसके अलावा, विशेष रूप से बच्चों के ऑनलाइन शोषण से निपटने के लिए चल रहे प्रयासों के आलोक में, अपने निर्णय के व्यापक निहितार्थ पर विचार करने में अदालत की विफलता, मौजूदा कानूनी ढांचे की प्रभावशीलता के बारे में चिंतनीय है। कानून के मूल इरादे पर प्रक्रियात्मक तकनीकीताओं को प्राथमिकता देकर, अदालत का निर्णय एक परेशान करने वाली मिसाल स्थापित करता है जो बाल यौन शोषण के अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के प्रयासों को कमजोर कर सकता है।

कानूनी सुधार के लिए सिफारिशें:

·        मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले से उजागर विसंगतियों को दूर करने के लिए, बच्चों के ऑनलाइन शोषण का मुकाबला करने के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत करने के उद्देश्य से विधायी सुधारों पर विचार करना अनिवार्य है। एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम में संशोधन करना आवश्यक है, ताकि बाल यौन शोषण सामग्री (सीएसएएम) को आईटी अधिनियम के प्रावधानों के साथ संरेखित करने को स्पष्ट रूप से अपराध घोषित किया जा सके।

·        इसके अतिरिक्त, भारतीय कानूनों में "बाल पोर्नोग्राफी" शब्द को "सीएसएएम" से बदलना ऐसी सामग्री की प्रकृति की अधिक सटीकता को दर्शाता है और इसके उत्पादन और वितरण की गैर-सहमति एवं शोषणकारी प्रकृति को रेखांकित करता है। पॉक्सो अधिनियम और आई. टी. अधिनियम के प्रावधानों को सुसंगत बनाकर, कानून निर्माता ऑनलाइन बाल शोषण का मुकाबला करने के लिए एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और प्रभावी दृष्टिकोण सुनिश्चित कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

·        एस. हरीश बनाम पुलिस निरीक्षक माले में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय ने बच्चों के ऑनलाइन शोषण से संबंधित कानूनों की व्याख्या और प्रवर्तन को लेकर एक बहस छेड़ दी है। जबकि अदालत के निर्णय ने मौजूदा कानूनी ढांचे की पर्याप्तता के बारे में चिंता जताई, इसने विसंगतियों को दूर करने और कमजोर नाबालिगों के लिए सुरक्षा को मजबूत करने के लिए विधायी सुधारों की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

·        इस संबंध में अन्य बातों के अलावा, नीति निर्माताओं के लिए यह भी आवश्यक है, कि वे ऑनलाइन शोषण को नियंत्रित करने वाले कानूनों के सामंजस्य को प्राथमिकता दें और ऐसे उपायों को लागू करें जो बच्चों के लिए डिजिटल खतरों की विकसित प्रकृति को दर्शाते हैं। साथ ही एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर जो कानूनी सुधारों को बेहतर प्रवर्तन तंत्र के साथ जोड़ता है, भारत अपने युवाओं को ऑनलाइन यौन शोषण और शोषण के अभिशाप से बेहतर तरीके से बचा सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.       भारत में बच्चों के ऑनलाइन शोषण के खिलाफ कानूनों को लागू करने पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन करते हुए एस. हरीश बनाम पुलिस निरीक्षक में मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले पर चर्चा करें। आईटी अधिनियम की धारा 67बी (बी) और बाल संरक्षण कानूनों की अदालत की व्याख्या के बीच विसंगतियों पर प्रकाश डालें और इन विसंगतियों को दूर करने के लिए सुधारों का प्रस्ताव दें। (10 marks, 150 Words)

2.       नाबालिगों पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के सेवन के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण करें। आईटी अधिनियम की धारा 67बी (बी) के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करने के लिए व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने पर मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के प्रभावों का आकलन करें और डिजिटल क्षेत्र में कमजोर बच्चों के लिए सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नीतिगत उपायों का सुझाव दें। (15 marks, 150 words)

 

स्रोत: हिन्दू

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