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Daily-current-affairs / 04 Oct 2023

सहकारिता: भारत के आर्थिक परिदृश्य को बदलने का केंद्रीय तत्व - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 05-10-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3 - अर्थव्यवस्था - सहकारिता

की-वर्ड: आरबीआई, शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी), वित्तीय और गैर वित्तीय सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ)

सन्दर्भ:

  • वर्तमान समय में, सहकारी बैंकों पर दोहरे नियंत्रण की प्रचलित नवीनतम प्रणाली के साथ कुछ ऐसे मुद्दे भी शामिल हैं, जिसके कारण क्षेत्राधिकार संबंधी विवाद उत्पन्न हो गए हैं, इससे उनके व्यवस्थित विकास में बाधा उत्पन्न हुई । इसके बावजूद, सहकारी समितियां भारत के आर्थिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण केन्द्रीय तत्व बनी हुई हैं और गरीबों के जीवन स्तर में सुधार के लिए एक अनिवार्य उपकरण के रूप में कार्य करती हैं।

पृष्ठभूमि

  • भारत में सहकारी समितियों का एक समृद्ध एवं गौरवशाली इतिहास रहा है और आजादी के बाद से यह देश के विकास का एक अभिन्न अंग भी रही हैं । वर्तमान में मौजूद 10 लाख से अधिक सहकारी समितियों में, (जिनमें से 1.05 लाख वित्तीय सहकारी समितियां हैं) भारत के सहकारी आंदोलन के विकास को बढ़ावा देने, अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने एवं असमानता को कम करने की अपार क्षमता है।
  • यद्यपि प्रतिस्पर्धी परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिए, सहकारी बैंकों को अपने प्रशासन में सुधार करने की आवश्यकता है। वैकल्पिक रूप से, राज्य सरकारों को वित्तीय सहकारी समितियों पर विवादों में शामिल होने के बजाय गैर-वित्तीय सहकारी समितियों का समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत में वित्तीय सहकारी समितियों के साथ क्या चुनौतियां हैं?

विनियमन और पर्यवेक्षण:

  • इस समय भारत में वित्तीय सहकारी समितियों के लिए विनियामक और पर्यवेक्षी ढांचा खंडित है, विभिन्न प्रकार की सहकारी समितियों को विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा शासित किया जाता है।
  • इससे विनियमन और पर्यवेक्षण में विसंगतियां और अंतराल उत्पन्न हो सकता है, जो वित्तीय प्रणाली में कमजोर नियामक तंत्र का कारण बन सकता है।
  • जब सहकारी बैंकों (शहरी और ग्रामीण दोनों) की बात आती है, तो दोहरे नियंत्रण के कारण क्षेत्राधिकार संबंधी विवाद सामने आते हैं।
  • हालांकि निगमन, प्रबंधन, ऑडिट, बोर्ड का अधिक्रमण और परिसमापन जैसे कार्य सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा प्रशासित किये जाते हैं। साथ ही बैंकिंग लाइसेंस, विवेकपूर्ण विनियमन, पूंजी पर्याप्तता, आदि आरबीआई द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

शासन और प्रबंधन:

  • भारत में कई वित्तीय सहकारी समितियां खराब प्रशासन और प्रबंधन से त्रस्त हैं, जिससे कुप्रबंधन, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां खराब प्रशासन के कारण सहकारी समितियां विफल हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप जमाकर्ताओं को नुकसान हुआ है।
  • 2004-05 से अब तक गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के 145 विलय हो चुके हैं, जिनमें से नौ का विलय वर्ष 2021-22 में हुआ है।
  • 2019 में पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (पीएमसी) बैंक का वित्तीय अनियमितताओं, आंतरिक नियंत्रण की विफलता और एक्सपोज़र की कम रिपोर्टिंग के कारण पतन हो गया।

पूंजी पर्याप्तता:

  • भारत में वित्तीय सहकारी समितियां अक्सर पूंजी के पर्याप्त स्तर को बनाए रखने के लिए संघर्ष करती हैं।
  • यह उनके घाटे को कम करने और वित्तीय तनाव की अवधि के दौरान संचालन जारी रखने की उनकी क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इससे उनके परिचालन का विस्तार करने और नए उत्पादों और सेवाओं की उपलब्धता क्षमता भी सीमित हो सकती है।

क्रेडिट जोखिम प्रबंधन:

  • भारत में वित्तीय सहकारी समितियां आम तौर पर छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (एसएमई) तथा ऐसे व्यक्तियों को ऋण देती हैं जिनका क्रेडिट इतिहास या संपार्श्विक सीमित हो सकता है।
  • यह ऋण जोखिम प्रबंधन को सहकारी समितियों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती का कारण बनता है, क्योंकि चूक और ऋण हानि उनकी वित्तीय स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

प्रौद्योगिकी और नवाचार:

  • भारत में कई वित्तीय सहकारी समितियां प्रौद्योगिकी और नवाचार के मामले में पीछे हैं, जिससे बड़े बैंकों और फिनटेक फर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • सहकारी समितियों को अपनी परिचालन दक्षता बढ़ाने और अपने ग्राहकों को नए उत्पाद एवं सेवाएं प्रदान करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी और डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश करने की आवश्यकता है।

प्रतिस्पर्धा:

  • भारत में वित्तीय सहकारी समितियों को वाणिज्यिक बैंकों, लघु वित्त बैंकों और फिनटेक कंपनियों सहित अन्य वित्तीय संस्थानों से तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
  • इससे सहकारी समितियों के लिए ग्राहकों को आकर्षित करना और बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, खासकर उन लोगों के लिए जो अधिक उन्नत और परिष्कृत वित्तीय सेवाओं की तलाश में हैं।

गैर-वित्तीय सहकारी समितियों पर ध्यान देने की आवश्यकता क्यों है?

समानता और लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा देना:

  • गैर-वित्तीय सहकारी समितियां "एक सदस्य, एक वोट" के सिद्धांत पर आधारित हैं, जिसका अर्थ है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी सदस्यों का समान अधिकार है।
  • यह लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा देता है और यह सुनिश्चित करने में भी मदद करता है कि सभी को अपने वित्तीय संसाधनों की परवाह किए बिना समान अवसर मिले।

सामुदायिक विकास को प्रोत्साहित करना:

  • गैर-वित्तीय सहकारी समितियां अक्सर विशिष्ट समुदायों या लोगों के समूहों, जैसे स्थानीय किसानों या छोटे व्यवसाय स्वामियों की सेवा करती हैं।
  • इन समुदायों को वस्तु या सेवाएँ प्रदान करके, गैर-वित्तीय सहकारी समितियां स्थानीय आर्थिक विकास का समर्थन करने और मजबूत समुदायों के निर्माण में मदद कर सकती हैं।

सतत प्रथाओं को बढ़ावा देना:

  • गैर-वित्तीय सहकारी समितियां अक्सर निष्पक्ष व्यापार या जैविक खेती जैसी सतत प्रथाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित होती हैं।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक स्थिरता को प्राथमिकता देकर, गैर-वित्तीय सहकारी समितियाँ अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज बनाने में मदद कर सकती हैं।

श्रमिकों और उपभोक्ताओं को सशक्त बनाना:

  • गैर-वित्तीय सहकारी समितियों का स्वामित्व और नियंत्रण अक्सर श्रमिकों या उपभोक्ताओं के पास होता है, जिससे उन्हें अपने काम या उपभोग पर स्वामित्व और नियंत्रण की अधिक समझ मिलती है।
  • इससे श्रमिक सशक्तिकरण और उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, जिससे एक अधिक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो सकता है।

सरकार गैर-वित्तीय सहकारी समितियों को विकसित करने के लिए किस प्रकार की योजना बना रही है?

  • सरकार ने हाल ही में देश में सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए एक अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया है। मंत्रालय को सहकारी समितियों के लिए एक सहायक नीति और नियामक वातावरण प्रदान करने, सहकारी आंदोलन को मजबूत करने और देश भर में उनकी पहुंच बढ़ाने का दायित्व सौंपा गया है।
  • सरकार किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के लिए कर छूट, क्रेडिट गारंटी योजनाएं और सब्सिडी जैसे वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • सरकार ने हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र को बढ़ावा देने तथा उन्हें विकसित करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जो ग्रामीण कारीगरों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
  • इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम) के बाद, सरकार का इलेक्ट्रॉनिक मार्केटप्लेस (जीईएम) संस्करण-4, एमएसएमई और गैर-वित्तीय सहकारी समितियों द्वारा उत्पादित कई वस्तुओं और सेवाओं के विपणन के लिए समर्पित एक सफल अभिनव ऑनलाइन मंच है। अब तक, इस प्लेटफॉर्म पर 62,000 से अधिक सरकारी खरीदार, 49 लाख विक्रेता, 10,000 उत्पाद और 290 सेवाएँ पंजीकृत हो चुके हैं।
  • एक-जिला-एक-उत्पाद योजना का लक्ष्य देश के प्रत्येक जिले के अनोखे उत्पादों को बढ़ावा देना और उन्हें ब्रांड के रूप में विकसित करना है।
  • सरकार ने डेयरी विकास और मत्स्य पालन के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, जो ग्रामीण परिवारों के लिए आजीविका के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। उदाहरण स्वरूप भारत में दुग्ध सहकारी समितियां सरकार के प्रयास की एक बड़ी सफलता हैं।
  • फसल कटाई के बाद खाद्य प्रसंस्करण, भंडारण और पैकेजिंग जैसे कई क्षेत्रों में सहकारी समितियों को एक व्यवसाय मॉडल के रूप में अपनाया जा सकता है।
  • सरकार का दृष्टिकोण डिजिटल इंडिया, भारतनेट और ई-गवर्नेंस जैसी कई योजनाओं के तहत ग्रामीण विकास के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप के अवसर बढ़ रहे हैं, जिन्हें गैर-वित्तीय सहकारी समितियों के तहत आगे बढ़ाया जा सकता है।

भावी रणनीति

अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना:

  • आज के डिजिटल युग में, वित्तीय सहकारी समितियों के लिए प्रौद्योगिकी रुझानों के साथ बने रहना और मोबाइल बैंकिंग, ऑनलाइन खाता खोलने तथा दूरस्थ जमा सेवाओं जैसी डिजिटल सेवाएं प्रदान करना आवश्यक है। इससे नए सदस्यों को आकर्षित करने और मौजूदा सदस्यों को बनाए रखने में मदद मिल सकती है, विशेषकर युवा पीढ़ी जो अधिक तकनीक-प्रेमी हैं।

सेवाओं का विस्तार करना:

  • वित्तीय सहकारी समितियां निवेश उत्पादों, बीमा और वित्तीय शिक्षा को शामिल करने के लिए पारंपरिक बचत और ऋण से परे अपनी सेवाओं का विस्तार कर सकती हैं। इससे सदस्यों को अपने वित्तीय लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सकती है और सहकारी समिति के प्रति उनकी निष्ठा मजबूत हो सकती है।

अन्य सहकारी समितियों के साथ सहयोग करना:

  • वित्तीय सहकारी समितियां संसाधनों, विशेषज्ञता और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए क्रेडिट यूनियनों सहित अन्य सहकारी समितियों के साथ सहयोग कर सकती हैं। इससे दक्षता में सुधार और संसाधन लागत को कम करने में मदद मिल सकती है।

गैर-वित्तीय सहकारी समितियों पर ध्यान देना:

  • गैर-वित्तीय सहकारी समितियों के संभावित लाभों को देखते हुए, भारत में राज्य सरकारों के लिए वित्तीय सहकारी समितियों पर विवादों में शामिल होने के बजाय इस प्रकार के संगठनों का समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करना अधिक उत्पादक हो सकता है।
  • इसमें गैर-वित्तीय सहकारी समितियों की स्थापना और विकास में सहायता के लिए धन तथा तकनीकी सहायता प्रदान करना, साथ ही सार्वजनिक शिक्षा और आउटरीच अभियानों के माध्यम से इन संगठनों को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।

निष्कर्ष

  • निष्कर्षतः, भारत का सहकारी आंदोलन वृद्धि और विकास के लिए तैयार है, लेकिन इसमें समावेशी और सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक सुधारों, निवेश और गैर-वित्तीय सहकारी समितियों की ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सरकारी एजेंसियों, सहकारी समितियों और अन्य हितधारकों के बीच सहयोग अनिवार्य होगा।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. भारत में वित्तीय सहकारी समितियों के सामने मुख्य चुनौतियां क्या हैं, विशेष रूप से विनियमन, शासन और प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में। साथ ही ये चुनौतियां अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका को कैसे प्रभावित करती हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. भारत सरकार गैर-वित्तीय सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए कैसे काम कर रही है, और ये सहकारी समितियां देश में लोकतांत्रिक भागीदारी, सामुदायिक विकास और सतत प्रथाओं को बढ़ावा देने में किस प्रकार की भूमिका निभाती हैं? (15 अंक,250 शब्द)

स्रोत - ओआरएफ/द हिंदू

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