सन्दर्भ:
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने एशिया में जलवायु की स्थिति (State of the Climate in Asia) 2024 रिपोर्ट जारी की है, जो पूरे महाद्वीप में तीव्र होते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की एक गंभीर तस्वीर पेश करती है। एशिया अब वैश्विक औसत की लगभग दोगुनी दर से गर्म हो रहा है, जिसमें 1991–2024 की प्रवृत्ति 1961–1990 की तुलना में लगभग दोगुनी है। यह तीव्र गर्मी चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि का कारण बन रही है, जिससे जीवन, आजीविका, पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्थाओं पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है।
मुख्य बिंदु:
तेज़ गर्मी और रिकॉर्ड तापमान:
2024 में, एशिया का औसत तापमान 1991–2020 के आधार रेखा से 1.04°C अधिक रहा, जिससे यह अब तक का सबसे गर्म या दूसरा सबसे गर्म वर्ष बन गया, यह आंकड़ों पर निर्भर करता है। यह दीर्घकालिक प्रवृत्ति से मेल खाता है जिसमें स्थलीय क्षेत्र, विशेष रूप से एशिया जैसे बड़े महाद्वीपीय क्षेत्र, महासागरों की तुलना में तेज़ी से गर्म हो रहे हैं।
अप्रैल से नवंबर के बीच, पूर्वी एशिया में बार-बार और दीर्घकालिक हीटवेव देखी गईं। मासिक औसत तापमान के रिकॉर्ड कई बार टूटे:
• जापान में अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में,
• दक्षिण कोरिया में अप्रैल, जून, अगस्त और सितंबर में,
• चीन में अप्रैल, मई, अगस्त, सितंबर और नवंबर में।
दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया और मध्य पूर्व के कुछ हिस्से भी तीव्र हीटवेव की चपेट में आए। म्यांमार ने 2024 में 48.2°C का नया राष्ट्रीय तापमान रिकॉर्ड बनाया।
भारत पर प्रभाव:
भारत गंभीर रूप से प्रभावित हुआ। कई क्षेत्रों में घातक हीटवेव देखे गए जिनसे 450 से अधिक मौतें दर्ज की गईं। इसके अलावा कई चरम मौसम घटनाएँ दर्ज की गईं:
• केरल के वायनाड में भारी वर्षा के कारण भूस्खलन से 350 से अधिक मौतें।
• विभिन्न राज्यों में बिजली गिरने से लगभग 1300 मौतें।
हिंदू कुश हिमालय में ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना:
रिपोर्ट में एशिया के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में, विशेष रूप से हिंदू कुश हिमालय में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की चिंताजनक प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया है। यह क्षेत्र एशिया की प्रमुख नदियों सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थल है, जो विश्व की लगभग एक चौथाई जनसंख्या की जल आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
2023 से 2024 के बीच, इस क्षेत्र में निगरानी किए गए 24 में से 23 ग्लेशियरों में निरंतर बर्फ की हानि दर्ज की गई। मुख्य कारण थे:
• सर्दियों में बर्फबारी में कमी।
• गर्मियों में तेज़ गर्मी।
प्रमुख ग्लेशियर हानि दर्ज की गई:
• मध्य हिमालय – नेपाल, सिक्किम और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को कवर करता है।
• तियान शान श्रृंखला – चीन, किर्गिस्तान और कज़ाखस्तान में फैली हुई।
समुद्री हीटवेव और समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि:
एशिया के महासागर खतरनाक गति से गर्म हो रहे हैं। समुद्री सतह का तापमान (SST) हर दशक में 0.24°C की दर से बढ़ रहा है, जो वैश्विक औसत 0.13°C प्रति दशक से लगभग दोगुना है।
2024 में, उपग्रह रिकॉर्ड (1993 से) के अनुसार, महाद्वीप ने अब तक की सबसे व्यापक समुद्री हीटवेव दर्ज की:
• लगभग 1.5 करोड़ वर्ग किलोमीटर महासागर क्षेत्र प्रभावित – पृथ्वी की कुल महासागरीय सतह का लगभग एक-दसवां हिस्सा।
• तीव्र गर्मी मुख्य रूप से उत्तर भारतीय महासागर, येलो सी, ईस्ट चाइना सी और जापान के आसपास के जल में देखी गई।
उठता समुद्री स्तर – तटीय आबादी को खतरा:
एशिया के भारतीय और प्रशांत महासागरीय तटीय क्षेत्रों में समुद्री स्तर वैश्विक औसत से तेज़ बढ़ रहा है। इसके कारण निम्नलिखित ख़तरे बढ़ रहे हैं:
• तटीय बाढ़,
• मीठे जल स्रोतों में खारे पानी का प्रवेश,
• आवासीय भूमि की हानि और समुदायों का विस्थापन।
चरम मौसम:
2024 में एशिया में कई विध्वंसक मौसम की घटनाएँ दर्ज की गईं:
• भारी वर्षा के कारण कई देशों में बाढ़ और भूस्खलन से भारी जनहानि और विस्थापन।
• तटीय क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तबाही।
• गंभीर सूखे ने कृषि और जल आपूर्ति को प्रभावित किया, जिससे भारी आर्थिक नुकसान और खाद्य असुरक्षा बढ़ी।
भारत ने विशेष रूप से वर्षा-जनित आपदाओं, घातक हीटवेव और बिजली गिरने से होने वाली मौतों के समन्वित प्रभावों का अनुभव किया, जो मजबूत आपदा तैयारी और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता को दर्शाता है।
जलवायु पूर्व चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता:
रिपोर्ट जलवायु पूर्व चेतावनी प्रणाली और पूर्व अनुमान आधारित कार्रवाई की महत्ता को रेखांकित करती है। नेपाल से एक केस स्टडी में यह दिखाया गया है कि जिन समुदायों को मजबूत पूर्व चेतावनी प्रणालियों की पहुँच थी, वे चरम मौसम का बेहतर जवाब दे सके और जीवन व आजीविका की रक्षा कर सके।
जलवायु और मौसम जनित आपदाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
बाढ़, सूखा, तूफान और हीटवेव जैसी आपदाएँ व्यापक और परस्पर जुड़ी हुई सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न कर रही हैं:
• खाद्य असुरक्षा: चरम मौसम से फसलें नष्ट हो रही हैं और पशुधन की हानि हो रही है, जिससे यह आधुनिक इतिहास का सबसे गंभीर खाद्य संकट बनता जा रहा है।
• आबादी का विस्थापन: जलवायु घटनाएँ बड़े पैमाने पर विस्थापन का कारण बनती हैं, जिससे स्थानीय संसाधनों पर दबाव, आश्रय स्थलों में स्वास्थ्य जोखिम और सामाजिक अस्थिरता बढ़ती है।
• आर्थिक हानि: अधोसंरचना, कृषि और आजीविका पर गंभीर असर पड़ता है, जिससे आर्थिक पुनर्प्राप्ति धीमी हो जाती है और गरीब क्षेत्रों में गरीबी गहराती है।
• असमानता में वृद्धि: जलवायु झटके गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, जिससे विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों के लिए असमानताएँ और अधिक बढ़ जाती हैं (एसडीजी 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 और 10)।
• वैश्विक प्रभाव: आपदाएँ वैश्विक बाज़ारों को प्रभावित करती हैं – खाद्य कीमतों में वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा और मानवीय लागतों में वृद्धि से वैश्विक आर्थिक स्थिरता को ख़तरा उत्पन्न होता है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के बारे में:
WMO एक संयुक्त राष्ट्र की विशेषीकृत एजेंसी है, जो मौसम, जलवायु, जल और संबंधित भौगोलिक विज्ञानों के लिए उत्तरदायी है। इसकी स्थापना 23 मार्च 1950 को WMO कन्वेंशन के माध्यम से की गई थी और यह 1873 में स्थापित अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से विकसित हुआ है।
• मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
• सदस्य: 192 सदस्य देश और क्षेत्र (भारत सहित)
• कार्य: वैश्विक मौसम, जल विज्ञान और जलवायु से संबंधित गतिविधियों का समन्वय करना।
नीतिगत प्रासंगिकता और आगे की राह:
एशिया में जलवायु की स्थिति (State of the Climate in Asia) रिपोर्ट राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जलवायु नीतियों को दिशा देने के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े उपलब्ध कराती है। यह निम्नलिखित क्षेत्रों में तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है:
• पूर्व चेतावनी अधोसंरचना के माध्यम से जलवायु लचीलापन सुदृढ़ करना,
• हिमालयी नदियों के जल स्रोतों की रक्षा करना,
• समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को गर्म होते महासागरों से सुरक्षित रखना,
• शहरी गर्मी के जोखिमों को कम करना, विशेष रूप से संवेदनशील आबादी के लिए,
• कृषि, अधोसंरचना और आपदा प्रबंधन में अनुकूलन रणनीतियों में तेजी लाना।
चूंकि एशिया विश्व की आधी से अधिक आबादी का घर है, इसलिए इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का वैश्विक स्तर पर असर पड़ेगा। यह रिपोर्ट सरकारों, समुदायों और हितधारकों के लिए सतर्कता का संकेत है कि अब तेज़ और निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है।
निष्कर्ष:
वर्ष 2024 ने एशिया के जलवायु परिदृश्य में एक मोड़ का संकेत दिया है। रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी, व्यापक ग्लेशियर हानि, समुद्री हीटवेव और चरम मौसम आपदाओं के साथ, यह क्षेत्र जबरदस्त दबाव में है। यदि वर्तमान प्रवृत्तियाँ जारी रहती हैं, तो खाद्य सुरक्षा, जल आपूर्ति, सार्वजनिक स्वास्थ्य और जैव विविधता पर इसके प्रभाव गहरे होंगे।
WMO की रिपोर्ट एक स्पष्ट संदेश देती है कि जलवायु परिवर्तन कोई दूर की चिंता नहीं, बल्कि एक वर्तमान और बढ़ता हुआ संकट है। एशिया, जो दुनिया के सबसे अधिक आबादी और जलवायु के लिहाज़ से संवेदनशील देशों का घर है, को अब जलवायु अनुकूलन, शमन और लचीलापन निर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी होगी।
मुख्य प्रश्न: चरम मौसम की घटनाएँ विकासशील देशों में खाद्य असुरक्षा, आर्थिक नुकसान और सामाजिक असमानताओं को कैसे बढ़ा रही हैं, चर्चा करें। इन प्रभावों को कम करने हेतु नीति उपायों का सुझाव दें। |