संदर्भ:
बाल श्रम विश्व स्तर पर एक जटिल सामाजिक समस्या है, जो बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र विकास को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। यह एक वैश्विक पहल है जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के नेतृत्व में चलाया जाता है। इसका उद्देश्य बाल श्रम को समाप्त करने के लिए वैश्विक, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाना और प्रयासों को प्रोत्साहित करना है। हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोध दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह दिवस और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सतत विकास लक्ष्य (SDG) के लक्ष्य 8.7 के तहत बाल श्रम को समाप्त करने की समयसीमा का वर्ष है। हालांकि, महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद यह लक्ष्य अभी भी अधूरा है।
वर्ष 2025 की थीम ‘प्रगति स्पष्ट है, लेकिन अभी और करना है: चलिए प्रयास तेज़ करें!’ है जो इस सच्चाई को दर्शाती है कि भले ही कई देशों में बाल श्रम के मामले घटे हैं, फिर भी दुनिया भर में लाखों बच्चे अब भी शोषण और खतरनाक परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। अकेले प्रयास काफी नहीं हैं; बच्चों को शिक्षा, खेल और शोषण से सुरक्षा का अधिकार दिलाने के लिए समन्वित, लगातार और बड़े पैमाने पर कार्रवाई की आवश्यकता है।
इस दिवस की शुरुआत और महत्व:
विश्व बाल श्रम विरोध दिवस की शुरुआत ILO ने 2002 में की थी, जिसका उद्देश्य दुनिया से बाल श्रम का उन्मूलन है। समय के साथ, यह दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर बन गया है:
• इस मुद्दे पर वैश्विक जागरूकता फैलाने के लिए
• नीतिगत सुधार और बेहतर क्रियान्वयन को प्रोत्साहित करने के लिए
• सरकारों, नागरिक समाज, नियोक्ताओं और समुदायों को एकजुट करने के लिए
• बच्चों के अधिकारों, सुरक्षा और गरिमा पर केंद्रित वकालत को बढ़ावा देने के लिए
• वैश्विक प्रगति को ट्रैक करने और SDG 8.7 जैसे अंतरराष्ट्रीय ढाँचों से तालमेल बैठाने के लिए
इस अभियान को समर्थन देने वाले प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) कन्वेंशन:
• ILO कन्वेंशन संख्या 138: रोजगार के लिए न्यूनतम आयु तय करता है।
• ILO कन्वेंशन संख्या 182: बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों जैसे गुलामी, जबरन मजदूरी, और ऐसे काम जो बच्चों के स्वास्थ्य या नैतिकता को नुकसान पहुंचाते हैं, को प्रतिबंधित करता है।
बाल श्रम का वैश्विक संकट
UNICEF और ILO के अनुसार, वर्ष 2024 तक:
• दुनिया भर में 13.8 करोड़ बच्चे बाल श्रम में लगे हुए हैं।
• इनमें से 5.4 करोड़ बच्चे ऐसे खतरनाक काम कर रहे हैं जो उनके स्वास्थ्य और विकास के लिए घातक हैं।
• कुल अनुमान 16 करोड़ तक जाता है, यानी लगभग हर 10वां बच्चा बाल श्रमिक है।
अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र लगभग 90% बाल श्रमिकों के लिए ज़िम्मेदार हैं।
COVID-19 महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया — स्कूलों के बंद होने और आर्थिक संकट के कारण कई बच्चे काम पर लग गए और कई वापस स्कूल नहीं जा पाए।
भारत में बाल श्रम: आँकड़े और चुनौतियाँ
भारत में कृषि, निर्माण, खनन, कालीन बुनाई और खाद्य सेवा जैसे क्षेत्रों में बाल श्रम का पुराना इतिहास रहा है। जनगणना 2011 के अनुसार:
• 5 से 14 वर्ष की आयु के 43.53 लाख से अधिक बच्चे बाल श्रम में संलग्न थे।
• 5 से 17 वर्ष की आयु के समूह में यह संख्या 1.18 करोड़ तक पहुँचती है।
इसके पीछे मुख्य कारण हैं: गरीबी, अशिक्षा, कर्ज का बोझ और शिक्षा प्रणाली की कमजोरियाँ। कई प्रयासों के बावजूद, क्रियान्वयन में खामियाँ और सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताएँ बच्चों को मजदूरी करने के लिए मजबूर करती हैं।
भारत का विधिक और नीतिगत ढाँचा
भारत ने बाल श्रम को समाप्त करने के लिए कई कानूनी और नीतिगत कदम उठाए हैं:
• बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 (2016 में संशोधित):
o 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को काम पर रखने पर प्रतिबंध लगाता है।
o 14–18 वर्ष के किशोरों को खतरनाक व्यवसायों में काम करने से रोकता है।
• शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009:
o 6–14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है।
• राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP):
o बचाए गए बाल श्रमिकों के लिए ब्रिज स्कूल और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करता है।
• राष्ट्रीय बाल श्रम नीति (1987):
o चरणबद्ध तरीके से बाल श्रम को समाप्त करने और पुनर्वास को बढ़ावा देती है।
• जिला परियोजना समितियाँ (DPS):
o जिला स्तर पर क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती हैं।
• डर्बन कॉल टू एक्शन, SDGs और NGO भागीदारी (जैसे सेव द चिल्ड्रन, वर्ल्ड विजन, बचपन बचाओ आंदोलन) में सक्रिय भागीदारी।
वैश्विक लक्ष्य अधूरा
नीतिगत प्रयासों के बावजूद, भारत और वैश्विक समुदाय दोनों ही 2025 तक बाल श्रम समाप्त करने का लक्ष्य पूरा नहीं कर सके हैं। ILO-UNICEF की रिपोर्ट, जो विश्व बाल श्रम विरोध दिवस 2025 की पूर्व संध्या पर जारी की गई, बताती है कि कम से कम 13.8 करोड़ बच्चे अभी भी काम कर रहे हैं, जिनमें से 5.4 करोड़ खतरनाक परिस्थितियों में हैं।
वेलपुर मॉडल: समुदाय आधारित सफलता
एक प्रभावशाली उदाहरण तेलंगाना के निज़ामाबाद ज़िले के वेलपुर मंडल से सामने आता है, जो कभी बाल श्रम के लिए कुख्यात था, लेकिन अब समुदाय-आधारित कार्रवाई का आदर्श बन गया है।
वेलपुर अभियान की प्रमुख बातें (2001):
• 100 दिन की मुहिम में 5–15 आयु वर्ग के सभी बच्चों को स्कूल में दाखिल किया गया।
• दुकानों और खेतों में काम कर रहे बच्चों को ब्रिज स्कूल में भेजा गया।
• सार्वजनिक बैठकों से माता-पिता, नियोक्ताओं और स्थानीय नेताओं के बीच सहमति बनी।
• परिवारों द्वारा लिए गए ₹35 लाख के कर्ज को नियोक्ताओं ने स्वेच्छा से माफ किया।
• गाँवों में बोर्ड लगाए गए: "हमारे गाँव में कोई बाल श्रमिक नहीं है"।
सभी सरपंचों ने जिला प्रशासन के साथ मिलकर यह आश्वासन दिया कि कोई भी बच्चा स्कूल से बाहर नहीं रहेगा। बदले में सरकार ने शिक्षकों और आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था की। 2 अक्टूबर 2001 को वेलपुर को बाल श्रम मुक्त मंडल घोषित किया गया।
मान्यता:
• वेलपुर की सफलता को वी.वी. गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान ने दस्तावेज़ीकृत किया।
• आज़ादी का अमृत महोत्सव (2021) के दौरान सम्मान मिला।
• पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रशंसा की।
• 2022 में संसदीय स्थायी समिति ने अभियान का नेतृत्व करने वाले कलेक्टर को इसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनाने के लिए आमंत्रित किया।
24 साल बाद भी, वेलपुर बाल श्रम मुक्त बना हुआ है, यह सामुदायिक भागीदारी और राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रमाण है।
आगे की राह-
वेलपुर का अनुभव सार्थक कार्रवाई के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करता है। भारत और वैश्विक स्तर पर आवश्यक मुख्य कदम:
1. समुदाय की भागीदारी: दीर्घकालिक समाधान के लिए समुदाय की स्वामित्व भावना ज़रूरी है।
2. कठोर कानून लागू करना: नीतियों को ज़मीन पर उतारना ज़रूरी है।
3. हर बच्चे को शिक्षा: सरकारी शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना और सुनिश्चित करना कि हर बच्चा स्कूल में हो।
4. परिवारों को आर्थिक सहायता: गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रम बच्चों को काम पर जाने से रोक सकते हैं।
5. निगरानी और डेटा संग्रहण: नियमित आँकड़ों के ज़रिए प्रगति को मापा जाए।
6. बहु-हितधारक सहयोग: सरकारें, समाज, नियोक्ता और अंतरराष्ट्रीय संगठन एक साथ काम करें।
निष्कर्ष
कानूनों और जागरूकता में हुई प्रगति के बावजूद, बाल श्रम अभी भी भारत और दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती है। वेलपुर मॉडल दिखाता है कि सतत बदलाव संभव है लेकिन तभी जब प्रयास केवल नीति तक सीमित न होकर जन आंदोलन बन जाएँ।
बचपन, श्रम के लिए नहीं होता। यह सीखने, बढ़ने और सपने देखने के लिए होता है। भविष्य यही मांग करता है कि सरकारें, समुदाय और हर नागरिक मिलकर तुरंत और संकल्प के साथ काम करें क्योंकि हर बच्चे को एक सुरक्षित, स्वतंत्र और गरिमापूर्ण भविष्य का अधिकार है।
मुख्य प्रश्न: कानूनी और नीतिगत पहलों के बावजूद भारत में बाल श्रम बना हुआ है। बाल श्रम उन्मूलन में क्रियान्वयन से जुड़ी चुनौतियों की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए। |