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Daily-current-affairs / 30 Mar 2024

भारत की पनडुब्बी रणनीति - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ :

एक हालिया अभियान में, भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर में अपनी सोलह पारंपरिक पनडुब्बियों में से ग्यारह को एक साथ तैनात कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया।  हालांकि, इस नौसेनिक क्षमता के प्रदर्शन ने भारत के पनडुब्बी बेड़े की घटती संख्या पर भी ध्यान आकर्षित किया है।  कई पनडुब्बियों के रखरखाव या आधुनिकीकरण से गुजरने के कारण संचालन संबंधी चुनौतियां स्पष्ट हैं जो पूरे बेड़े की क्षमता को प्रभावित करती हैं।

भारत के पनडुब्बी बेड़े का संचालन ढांचा

भारतीय पनडुब्बी बेड़े में विभिन्न श्रेणियां शामिल हैं, जिनमें कलवरी श्रेणी (फ्रांसीसी स्कॉर्पीन), शिशुमार श्रेणी (जर्मन टाइप-209), और सिंधुघोष श्रेणी (रूसी किलो) पनडुब्बियां शामिल हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज की मिलिट्री बैलेंस 2024 रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्तमान में 16 चालू पनडुब्बियों का संचालन करता है, जिसमें जल्द ही एक और कलवरी श्रेणी की पनडुब्बी को शामिल करने की योजना है  जिससे कुल संख्या 17 हो जाएगी।

  • कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां: 5 चालू हैं, और एक और को शामिल किया जाना है।
  • शिशुमार श्रेणी की पनडुब्बियां: 4 चालू हैं, जिन्हें उनकी विश्वसनीयता और प्रदर्शन के लिए जाना जाता है।
  • सिंधुघोष श्रेणी की पनडुब्बियां: 7 चालू हैं, जिन्हें संचालन उपलब्धता के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

पनडुब्बी का वर्गीकरण

पनडुब्बी का वर्गीकरण

विवरण

उदाहरण

डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी (एसएसके)

डीजल इंजनों द्वारा चार्ज किए गए विद्युत मोटरों का उपयोग करती है। हवा और ईंधन के लिए बार-बार सतह पर आने की आवश्यकता होती है।

शिशुमार श्रेणी (जर्मनी के सहयोग से निर्मित), किलो श्रेणी (रूस से), कलवरी श्रेणी (पी-75)

परमाणु ऊर्जा से चलने वाली आक्रमणकारी पनडुब्बी (एसएसएन)

पानी के नीचे लगभग अनिश्चित काल तक कार्य कर सकती है। सामरिक हथियारों से लैस।

आईएनएस चक्र 2 (रूस से लीज पर ली गई)

परमाणु ऊर्जा से चलने वाली बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन)

परमाणु हथियारों के लिए गुप्त लॉन्च प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करती है। सामरिक बल कमान का हिस्सा।

अरिहंत, तीन और एसएसबीएन निर्माणाधीन हैं

बेड़े की उपलब्धता संबंधी चुनौतियां

नई  पनडुब्बियां जैसे कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां उच्च उपलब्धता का प्रदर्शन करती हैं, जबकि पुरानी   पनडुब्बियां जैसे रूसी किलो-श्रेणी की पनडुब्बियां अपने अपेक्षाकृत प्राचीन स्वरूप (vintage) के कारण कम उपलब्ध रहती हैं। 1980 के दशक से परिचालन में रहीं रूसी किलो-श्रेणी की पनडुब्बियां अब लगभग सेवामुक्त होने वाली हैं, जैसा कि 2022 में आईएनएस सिंधुध्वज की सेवामुक्ति और 2013 में एक अन्य पनडुब्बी के क्षतिग्रस्त होने (loss) से स्पष्ट है। यद्यपि आधुनिकीकरण प्रयासों के माध्यम से इनके सेवा काल  बढ़ाने के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं, रूसी पनडुब्बियों की संचालन उपलब्धता एक प्रमुख चिंता का विषय बनी हुई है।

प्राप्ति में देरी और भविष्य की योजनाएं

भारतीय नौसेना के पनडुब्बी बेड़े के विस्तार की योजनाओं को उल्लेखनीय विलंब का सामना करना पड़ रहा है।  उन्नत पनडुब्बियों के प्रस्तावों को दस वर्ष तक की देरी का सामना करना पड़ रहा है। जर्मनी और स्पेन के साथ अंतर-सरकारी समझौतों के माध्यम से नई पनडुब्बियों के अधिप्राप्ति (acquisition) के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय नौसेना की पी-75आई पनडुब्बियों के लिए चयन मानदंड वायु-स्वतंत्र प्रणोदन (एआईपी) जैसी अग्रिम विशेषताओं को प्राथमिकता दे रही है  जिसका लक्ष्य संचालन क्षमताओं को संवर्धित (augment) करना है।

  • 6 उन्नत पनडुब्बियों के प्रस्ताव में एक दशक से अधिक की देरी का सामना करना पड़ रहा है।
  • 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के सौदे के लिए जर्मनी और स्पेन के बीच प्रतिस्पर्धा है
  • चयन मानदंडों में विस्तारित अवधि तक जलमग्न रहने के लिए एआईपी जैसी उन्नत विशेषताएं शामिल हैं।

प्राप्ति की संभावनाएं और तकनीकी विचार

नई पनडुब्बियों के अधिप्राप्ति की प्रक्रिया में तकनीकी क्षमताओं का मूल्यांकन और रणनीतिक उद्देश्यों के अनुपालन को सुनिश्चित करना शामिल है। जर्मनी और स्पेन के बीच इस आकर्षक पनडुब्बी सौदे के लिए प्रतिस्पर्धा में, निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, एआईपी मॉड्यूल की दक्षता और सरकारी आश्वासन जैसे विचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जर्मनी और स्पेन के प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव

जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस) और स्पेन की नवैंटिया, अपने-अपने भारतीय सहयोगियों के साथ, पनडुब्बी अनुबंध के लिए प्रयत्न कर रही हैं। दोनों ही प्रस्ताव उन्नत पनडुब्बी डिजाइन से संबंधित हैं, नवैंटिया का समझौता संपूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के प्रस्ताव पर आधारित है और इसे सरकारी गारंटी द्वारा समर्थित किया गया है जो भारतीय अधिकारियों को अधिक आश्वस्त करता है।

  • नवैंटिया के एआईपी मॉड्यूल की दक्षता संचालन क्षमताओं को बढ़ाती है।
  • भारतीय कंपनी लार्सन एंड टुब्रो के साथ स्पेन की साझेदारी स्वदेशी क्षमताओं को सुदृढ़ करती है।

संवर्धित क्षमताओं के लिए तकनीकी विचार

भारत की रणनीतिक आवश्यकताओं के लिए लंबे समय तक जलमग्न रहने में सक्षम पनडुब्बियों की आवश्यकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एआईपी तकनीक को अपनाना सर्वोपरि है। नवंटिया का एआईपी मॉड्यूल, इस दक्षता के लिए जाना जाता है यह भारत की विस्तारित पानी के नीचे की सहनशक्ति आवश्यकताओं के अनुरूप है।

भविष्य का नौसेना विस्तार और रणनीतिक अनिवार्यताएं

  • हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में समुद्री सुरक्षा और विकसित होते भू-राजनीतिक परिदृश्य सहित रणनीतिक अनिवार्यताओं से भारत की एक मजबूत नौसेना के लिए आकांक्षाएं प्रेरित हैं।
  • हालांकि, 2030 और उसके बाद तक महत्वाकांक्षी बेड़े के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बजटीय बाधाओं, विस्तार के मुद्दों और परिचालन चुनौतियों से पार पाना आवश्यक है।
  • भारत का लक्ष्य 2030 तक पनडुब्बियों, विमानवाहक पोतों, विध्वंसक पोतों, फ्रिगेटों और अन्य जहाजों सहित लगभग 155-160 युद्धपोतों के साथ अपने नौसेना बेड़े को मजबूत करना है। यह विस्तार व्यापक समुद्री रणनीतियों के अनुरूप है जिसका लक्ष्य नौसेना क्षमताओं को बढ़ाना और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

अवरोध और चुनौतियां

महत्वाकांक्षी विस्तार योजनाओं के बावजूद, भारत को बजटीय सीमाओं और विस्तार के मुद्दों सहित कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। खरीद प्रक्रिया प्रायः  विलंबित रहती है, जबकि स्वदेशी उत्पादन क्षमता नौसेना की आवश्यकताओं को पूरा करने में पिछड़ रही है।  इसके अतिरिक्त, विकसित होती भू-राजनीतिक परिदृश्य, विशेष रूप से चीन की बढ़ती समुद्री शक्ति, नौसैन्य क्षमताओं को सुदृढ़ करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

दीर्घकालिक दृष्टि और अनुकूलन

2035 और उसके बाद भारत कम से कम 175 युद्धपोतों के बेड़े के आकार की परिकल्पना कर रहा है, जिसमें 200 जहाजों तक की संभावित वृद्धि शामिल है। यह दीर्घकालिक दृष्टि हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे विश्वसनीय रणनीतिक पहुंच, गतिशीलता तथा लचीलेपन को सुनिश्चित करने के लिए नौसेना के बुनियादी ढांचे, तकनीकी प्रगति और रणनीतिक साझेदारी में निरंतर निवेश की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

निष्कर्ष

भारत की पनडुब्बी गाथा उसके नौ-सैन्य  विस्तार के प्रयासों के सामने आने वाली चुनौतियों और अनिवार्यताओं को प्रकट करती है। हालिया शक्ति प्रदर्शन के बावजूद, घटता हुआ पनडुब्बी बेड़ा परिचालन संबंधी बाधाओं को दूर करने और खरीद प्रक्रियाओं में तेजी लाने की तात्कालिकता को स्पष्ट  करता है। पनडुब्बी सौदे के लिए जर्मनी और स्पेन के बीच की प्रतिस्पर्धा तकनीकी विचारों और रणनीतिक साझेदारी के महत्व को रेखांकित करती है। जैसा कि भारत बजटीय सीमाओं और भू-राजनीतिक जटिलताओं से जूझ रहा है, हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे अपने समुद्री हितों की रक्षा करने में सक्षम एक मजबूत नौसेना बेड़े के लिए दीर्घकालिक दृष्टि और निरंतर निवेश आवश्यक हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

1.      भारत के पनडुब्बी बेड़े के समक्ष आने वाली खरीद में देरी और परिचालन संबंधी चुनौतियाँ हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बनाए रखने की क्षमता को कैसे प्रभावित करती हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

2.      भारत 2030 और उससे आगे तक अपने महत्वाकांक्षी बेड़े विस्तार लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बजटीय बाधाओं और स्केलिंग मुद्दों को दूर करने के लिए कौन सी रणनीतियां अपना सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

Source- ORF

 

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