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Daily-current-affairs / 02 Sep 2025

भारत में कैंसर का बढ़ता बोझ: आँकड़े, चुनौतियाँ और नीतिगत पहल

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परिचय:

धीरे-धीरे कैंसर भारत में रोग भार और मृत्यु-दर दोनों ही दृष्टियों से प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं में से एक बन गया है। पूर्व में अपेक्षाकृत दुर्लभ मानी जाने वाली यह स्थिति अब हर साल लाखों परिवारों को प्रभावित करने वाली आम चुनौती बन चुकी है। हाल ही में आईसीएमआरनेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (NCDIR) द्वारा समन्वित 43 जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में कैंसर विकसित होने का जीवनकाल जोखिम 11% है। केवल 2024 में ही देश में 15.6 लाख नए कैंसर मामले और 8.74 लाख मौतें दर्ज की गईं।

    • इस संकट को समझने का महत्व रजिस्ट्रियों द्वारा एकत्र किए गए व्यवस्थित आंकड़ों में निहित है, जो घटना पैटर्न, लैंगिक अंतर, क्षेत्रीय विषमताओं और जोखिम कारकों पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। ये रजिस्ट्रियां भारत की आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को कवर करती हैं और नीति-निर्माताओं को प्रभावी प्रतिक्रिया तैयार करने में मदद करती हैं। साथ ही, निष्कर्ष यह भी रेखांकित करता हैं कि जागरूकता, बुनियादी ढांचा और वहनीयता में मौजूद खामियां इसे और भी चुनौतीपूर्ण बनाती है।
      इसलिए भारत की कैंसर प्रतिक्रिया केवल उपचार तक सीमित नहीं रह सकती। इसमें रोकथाम, शुरुआती पहचान, वित्तीय सुरक्षा, उन्नत चिकित्सा और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता का समग्र दृष्टिकोण शामिल होना चाहिए। इस संदर्भ में, रजिस्ट्रियों के आंकड़ों और भारत की नीतिगत पहलों को साथ-साथ देखने से समस्या के पैमाने और समाधान की दिशा का स्पष्ट चित्र मिलता है।

कैंसर रजिस्ट्रियों से मुख्य निष्कर्ष:

1.        कैंसर बोझ में लैंगिक पैटर्न
महिलाएं कैंसर मामलों का 51.1% हिस्सा बनाती हैं लेकिन कैंसर मौतों का केवल 45%, मुख्यतः इसलिए कि स्तन और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर जो महिलाओं में कुल कैंसर का 40% हैं। यदि समय पर पहचाने जाएं तो इनका पता लगाना और इलाज करना आसान होता है।
पुरुषों को उच्च मृत्यु-दर का सामना करना पड़ता है क्योंकि फेफड़ों और जठर (पेट) का कैंसर प्रमुख हैं, जिनमें देर से पहचान और आक्रामक रोग प्रगति के कारण जीवित रहने की संभावना कम होती है।

2.      पुरुषों में मौखिक कैंसर का बढ़ना
भारत में पुरुषों के बीच मौखिक कैंसर ने फेफड़ों के कैंसर को पीछे छोड़ सबसे आम कैंसर का स्थान ले लिया है।
यह वृद्धि विरोधाभासी है, क्योंकि तंबाकू का उपयोग घटा है (2009–10 में 34.6%
2016–17 में 28.6%)
संभावित कारण:
o तंबाकू-संबंधी कैंसर की लंबी विलंब अवधि (प्रभाव वर्षों बाद दिखाई देना),
o शराब का सेवन,
o शराब-तंबाकू दोनों का संयुक्त प्रभाव।

3.      क्षेत्रीय विषमताएं पूर्वोत्तर सबसे अधिक प्रभावित
भारत में जीवनकाल कैंसर जोखिम मिज़ोरम में सबसे अधिक है: पुरुषों के लिए 21.1% और महिलाओं के लिए 18.9% (राष्ट्रीय औसत 11% की तुलना में)।
पूर्वोत्तर में समग्र रूप से गर्भाशय ग्रीवा, फेफड़े और मौखिक कैंसर की दरें ऊंची हैं, जो निम्न कारणों से प्रेरित हैं:
o बहुत अधिक तंबाकू का सेवन,
o किण्वित पोर्क फैट, धुआं-सूखा मांस/मछली और अत्यधिक मसालेदार भोजन जैसी आहार आदतें,
o बहुत गर्म पेय पदार्थों का सेवन,
o कार्सिनोजेनिक संक्रमण जैसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी, हेपेटाइटिस वायरस, एचपीवी और टायफॉयड।

4.     भारत में सामान्य कैंसर स्थल
महिलाएं: स्तन और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर प्रमुख बने हुए हैं।
पुरुष: मौखिक कैंसर सबसे आम है, इसके बाद फेफड़े और जठर कैंसर आते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर शहरी और वृद्ध होती आबादी में उभरता हुआ बोझ बन रहा है।

निष्कर्षों का महत्व:

रजिस्ट्री के निष्कर्ष क्षेत्र-विशिष्ट हस्तक्षेपों की तात्कालिकता पर जोर देते हैं। व्यापक राष्ट्रीय योजनाएं उपयोगी हैं, लेकिन रणनीतियों को स्थानीय वास्तविकताओं के अनुसार ढालना होगा। मुख्य निष्कर्षों में शामिल हैं:

      • प्राथमिक देखभाल स्तर पर स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मौखिक कैंसर के लिए स्क्रीनिंग कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
      • तृतीयक देखभाल बुनियादी ढांचे का विस्तार किया जाना चाहिए, विशेष रूप से पूर्वोत्तर जैसे अविकसित क्षेत्रों में।
      • जागरूकता अभियानों को जीवनशैली (आहार, तंबाकू, शराब), संक्रमण और कैंसर जोखिम को जोड़ने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
      • आयुष्मान भारत जैसी बड़ी योजनाओं में कैंसर सेवाओं का एकीकरण देखभाल को अधिक सुलभ और किफायती बनाएगा।

कैंसर से लड़ने के लिए भारत की बहुआयामी रणनीति:

भारत की प्रतिक्रिया में रोकथाम, उपचार, वित्तीय सहायता, बुनियादी ढांचा सुदृढ़ीकरण, शोध और सार्वजनिक जागरूकता का समावेश है।

1.        राष्ट्रीय-स्तरीय कार्यक्रम
कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और आघात की रोकथाम और नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS): मौखिक, स्तन और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की शुरुआती पहचान पर केंद्रित, स्क्रीनिंग, जागरूकता और प्राथमिक देखभाल सुदृढ़ीकरण पर जोर।
कैंसर के लिए तृतीयक देखभाल सुदृढ़ीकरण योजना: उन्नत उपचार को विकेंद्रीकृत करने हेतु 19 राज्य कैंसर संस्थान और 20 तृतीयक कैंसर केंद्रों का समर्थन।
आयुष्मान भारत योजना (PM-JAY): गरीब परिवारों को मुफ्त कैंसर उपचार (कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, सर्जरी) प्रदान करती है। पंजीकृत कैंसर रोगियों में से 90% से अधिक इस योजना के अंतर्गत आते हैं।
स्वास्थ्य मंत्री कैंसर रोगी कोष (HMCPF): 27 क्षेत्रीय कैंसर केंद्रों में प्रत्येक रोगी को ₹15 लाख तक की वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
नेशनल कैंसर ग्रिड (NCG): दुनिया का सबसे बड़ा कैंसर देखभाल नेटवर्क, जिसमें 287 केंद्र प्रतिवर्ष 7.5 लाख नए रोगियों का इलाज करते हैं और मानकीकृत, साक्ष्य-आधारित उपचार प्रोटोकॉल सुनिश्चित करते हैं।

2.      बजट और बुनियादी ढांचा समर्थन
केंद्रीय बजट 2025–26 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए लगभग ₹1 लाख करोड़ आवंटित किए गए, जिसमें हर जिले में डे केयर कैंसर केंद्र स्थापित करने की योजना शामिल है।
रोगियों के लिए उपचार लागत कम करने हेतु 36 जीवनरक्षक कैंसर दवाओं पर सीमा शुल्क छूट।

3.      अनुसंधान और नवाचार
• NexCAR19 CAR-T सेल थेरेपी (2024): रक्त कैंसर के लिए भारत की पहली स्वदेशी जीन थेरेपी, जिसे आईआईटी बॉम्बे, टाटा मेमोरियल सेंटर और इम्यूनोACT ने विकसित किया।
क्वाड कैंसर मूनशॉट (2024): भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का सहयोग एचपीवी टीकाकरण और उन्नत स्क्रीनिंग के जरिए गर्भाशय ग्रीवा कैंसर को खत्म करने के लिए।
• ACTREC विस्तार (2025): कैंसर के उपचार, अनुसंधान और शिक्षा हेतु उन्नत केंद्र में बड़ा उन्नयन, अनुसंधान और प्रशिक्षण को सुदृढ़ करने के लिए।

4.     जागरूकता और जीवनशैली हस्तक्षेप
अभियान: ईट राइट इंडिया, फिट इंडिया मूवमेंट और योग-आधारित पहल जीवनशैली में बदलाव को प्रोत्साहित करती हैं ताकि कैंसर का जोखिम कम हो सके।
जन-जागरूकता दिवस: राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस और विश्व कैंसर दिवस का उपयोग जनता को जोड़ने और रोकथाम पर मुख्य संदेश फैलाने के लिए किया जाता है।

भारत में कैंसर से निपटने की चुनौतियां:

      • कम रजिस्ट्री कवरेज (केवल 18% आबादी को कवर किया गया है)।
      • कम जागरूकता और अपर्याप्त स्क्रीनिंग के कारण देर से पहचान।
      • ग्रामीण क्षेत्रों और पूर्वोत्तर में स्वास्थ्य देखभाल पहुंच की विषमता।
      • सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं, जिनमें कलंक, वर्जनाएं और कम स्वास्थ्य साक्षरता शामिल हैं।
      • उच्च वित्तीय बोझ: आयुष्मान भारत के बावजूद, नैदानिक परीक्षण, दवाओं और दीर्घकालिक देखभाल पर जेब से होने वाला खर्च महत्वपूर्ण बना रहता है।

आगे की राह:

·        कैंसर रजिस्ट्री का विस्तार करना: वास्तविक समय की ट्रैकिंग के लिए डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड एकीकृत करके राष्ट्रीय कवरेज की ओर बढ़ना।

·        प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करना: स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में कैंसर स्क्रीनिंग को शामिल करना।

·        एचपीवी टीकाकरण का विस्तार करना: किशोर लड़कियों का सार्वभौमिक टीकाकरण प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

·        जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन: तंबाकू, शराब, आहार और संक्रमण पर केंद्रित क्षेत्रीय रूप से अनुकूलित अभियान शुरू करना।

·        किफायती उपचार: क्षेत्रीय कैंसर केंद्रों का विस्तार करें, नैदानिक लागत कम करें और PM-JAY कवरेज को व्यापक बनाएं।

·        अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना: स्वदेशी कम-लागत वाले नैदानिक परीक्षण, व्यक्तिगत उपचार और अभिनव उपचार मॉडलों में निवेश करना।

निष्कर्ष:
भारत की कैंसर रजिस्ट्री दोहरी चुनौती को उजागर करती है: 11% जीवनकाल जोखिम के साथ बढ़ता राष्ट्रीय बोझ और विशेष रूप से पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय विषमता। फिर भी, नीतिगत प्रतिक्रिया बहुआयामी रही है—NPCDCS और आयुष्मान भारत से लेकर CAR-T थेरेपी और एचपीवी टीकाकरण अभियानों तक। चूंकि 30–50% कैंसर रोके जा सकते हैं, वास्तविक ध्यान रोकथाम, शुरुआती पहचान और उपचार तक समान पहुंच पर होना चाहिए। यदि भारत मौजूदा गति को बनाए रखता है और मौजूदा खामियों को दूर करता है, तो यह कैंसर को एक विनाशकारी स्वास्थ्य संकट से एक प्रबंधनीय सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती में बदल सकता है।

मुख्य प्रश्न: भारत में कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। एनपीसीडीसीएस, आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड जैसे कार्यक्रम इस समस्या से निपटने का प्रयास कर रहे हैं। फिर भी, देर से पता लगना, असमान पहुँच और उच्च लागत प्रमुख समस्याएँ बनी हुई हैं। इन कार्यक्रमों की उपलब्धियों और कमियों पर चर्चा करें।