संदर्भ:
महासागर पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वे अर्थव्यवस्थाओं को सहारा देते हैं, जलवायु को संतुलित रखते हैं और खासकर भारत जैसे तटीय देशों में लाखों लोगों की आजीविका चलाते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अत्यधिक दोहन के कारण महासागर गंभीर पर्यावरणीय संकट से गुजर रहे हैं और इन संसाधनों के सतत उपयोग की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।
- तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3), जो नीस (फ्रांस) में हुआ, में भारत ने महासागरों की सततता पर तत्काल और समन्वित वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया है। भारत सरकार में पृथ्वी विज्ञान मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत की समुद्री पहलों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की एक व्यापक रूपरेखा प्रस्तुत की। यह सम्मेलन फ्रांस और कोस्टा रिका द्वारा “महासागर के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए सभी पक्षों को सक्रिय करना” थीम के तहत आयोजित किया गया था और SDG 14: "जल के नीचे जीवन" पर वैश्विक सहयोग को बढ़ाने का महत्वपूर्ण मंच बना।
क्यों महासागर पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं?
महासागर पृथ्वी की सतह के 70% से अधिक भाग को ढकते हैं और इसमें 97% जल संग्रहित है। ये लगभग 94% ज्ञात जीवों का घर हैं, जिससे ये पृथ्वी की सबसे बड़ी और जटिल पारिस्थितिकी प्रणाली बनते हैं।
महासागर:
- फाइटोप्लैंकटन जैसे सूक्ष्म समुद्री पौधों के जरिए 50% से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं।
- हर साल मानव गतिविधियों से उत्सर्जित CO₂ का लगभग 23% अवशोषित करते हैं।
- समुद्री धाराओं के ज़रिए जलवायु को नियंत्रित करते हैं।
- तेल और गैस से समृद्ध महाद्वीपीय शेल्फ रखते हैं जैसे पर्शियन गल्फ, मैक्सिको की खाड़ी और बॉम्बे हाई।
- मत्स्य पालन, पर्यटन, समुद्री परिवहन और ऊर्जा के माध्यम से आजीविका प्रदान करते हैं।
लेकिन आज महासागर गंभीर तनाव में हैं। बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण:
- वे अधिक गर्म हो रहे हैं: ग्लोबल वॉर्मिंग से उत्पन्न 90% अतिरिक्त गर्मी महासागर अवशोषित कर रहे हैं।
- अधिक अम्लीय हो रहे हैं: महासागर अब औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में 30% अधिक अम्लीय हो गए हैं।
- ऑक्सीजन की कमी हो रही है: गर्म पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है, जिससे समुद्री जैव विविधता खतरे में पड़ रही है।
इन बदलावों के गंभीर परिणाम हैं। उदाहरण के लिए, गर्म होते महासागर फाइटोप्लैंकटन की मात्रा घटा रहे हैं, जो समुद्री खाद्य श्रृंखला की नींव हैं। 2021 की IPCC रिपोर्ट में बताया गया कि 1950 के दशक से भारतीय महासागर सबसे तेज़ गर्म हो रहा है, जिससे केवल पश्चिमी भाग में ही फाइटोप्लैंकटन की मात्रा 20% तक घट गई है।
कोरल रीफ पर असर:
महासागर के गर्म होने का एक बड़ा असर कोरल ब्लीचिंग पर पड़ा है। कोरल, जिन्हें "समुद्र के वर्षावन" कहा जाता है, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी हैं। जब समुद्र का तापमान बढ़ता है, तो कोरल अपने अंदर रहने वाले शैवाल (zooxanthellae) को निकाल देते हैं, जिससे वे सफेद हो जाते हैं और बीमारियों और मृत्यु के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल (ICRI) के अनुसार, जनवरी 2023 से मार्च 2025 तक की अवधि में चौथी वैश्विक ब्लीचिंग घटना दर्ज की गई, जिसमें 82 देशों के 84% कोरल रीफ प्रभावित हुए। यह समुद्री जैव विविधता और उन करोड़ों लोगों के लिए खतरा है, जो कोरल पर भोजन, पर्यटन और तटीय सुरक्षा के लिए निर्भर हैं।
हिमनद पिघलना, समुद्र स्तर बढ़ना और तटीय खतरे:
ध्रुवीय क्षेत्रों में गर्म होते महासागर ग्लेशियरों के पिघलने और बर्फ की चट्टानों के टूटने को तेज कर रहे हैं, जिससे समुद्र स्तर बढ़ रहा है। भारत के लिए इसके विशेष गंभीर परिणाम हैं:
- मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहरों में बाढ़, समुद्री जल के घुसपैठ और ढांचे को नुकसान का खतरा बढ़ रहा है।
- भूमिगत पीने के जल स्रोतों में लवणता बढ़ने का खतरा है।
- तटीय आजीविका और व्यापार व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा बुनियादी ढांचा जलवायु जोखिम में आ रहा है।
भारतीय महासागर क्षेत्र:
भारत की समुद्री भौगोलिक स्थिति एक ताकत भी है और चुनौती भी।
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- भारत की तटरेखा 11,098 किमी लंबी है और 200 समुद्री मील तक फैला विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है।
- भारत की लगभग 30% जनसंख्या तटीय क्षेत्रों में रहती है।
- ब्लू इकोनॉमी भारत के GDP का लगभग 4% योगदान करती है।
- फिर भी, EEZ का बड़ा हिस्सा अभी भी अपर्याप्त रूप से खोजा गया और कम उपयोग किया गया है।
लेकिन जलवायु परिवर्तन पहले ही समुद्री संपदा को नुकसान पहुँचा रहा है। उदाहरण के लिए, केरल में तेल-सार्डीन मछली की पकड़ 2021 में 75% गिर गई, इसका कारण महासागर का गर्म होना, धाराओं का बदलना और प्लवक की कमी रहा।
इसी के साथ-साथ रणनीतिक चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति, भारतीय महासागर में समुद्री ढांचे का निर्माण, भारत की समुद्री प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश मानी जा रही है।
वैश्विक महासागर संरक्षण में भारत की बढ़ती भूमिका:
- गहरे समुद्र की खोज: भारत का "डीप ओशन मिशन", विशेष रूप से ‘समुद्रयान’ परियोजना—पहला मानव-संचालित पनडुब्बी मिशन—2026 तक लॉन्च किया जाएगा। यह 6,000 मीटर की गहराई तक जाकर समुद्र के अध्ययन में भारत की वैज्ञानिक भागीदारी को वैश्विक स्तर पर मजबूत करेगा।
- ब्लू इकोनॉमी: भारत की ब्लू इकोनॉमी पहल, सागरमाला कार्यक्रम और प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) द्वारा समुद्री बुनियादी ढांचे और आजीविकाओं को बदल रही है।
- 600 से अधिक बंदरगाह आधारित परियोजनाओं पर लगभग 80 अरब डॉलर खर्च किए गए हैं।
- मत्स्य क्षेत्र के आधुनिकीकरण में 2.5 अरब डॉलर का निवेश किया गया है, जिससे 2022 से मछली उत्पादन में 10% वृद्धि और 1,000 से अधिक फिश फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन बने हैं।
- समुद्री जैव विविधता: भारत ने अपने EEZ के 6.6% हिस्से को समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPAs) घोषित किया है। साथ ही 10,000 हेक्टेयर से अधिक मैंग्रोव वनों की बहाली की गई है, जो तटीय समुदायों की रक्षा के लिए प्रकृति आधारित समाधान हैं।
- प्लास्टिक और कचरा प्रबंधन: भारत 'स्वच्छ सागर, सुरक्षित सागर' अभियान के तहत समुद्री कचरे को संबोधित कर रहा है। 2022 से अब तक 1,000 किमी से अधिक तटरेखा को साफ किया गया है और 50,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा हटाया गया है। राष्ट्रीय समुद्री कचरा नीति का मसौदा तैयार किया गया है और भारत वैश्विक प्लास्टिक संधि और BBNJ (हाई सीज़) समझौते के शीघ्र अनुमोदन का समर्थन करता है।
- SAHAV पोर्टल का शुभारंभ: भारत ने SAHAV नामक नया डिजिटल महासागर डेटा पोर्टल लॉन्च किया है, जो वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और आम जनता को खुले और वैज्ञानिक डेटा उपलब्ध कराता है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत की वैश्विक समुद्री शासन में भूमिका फ्रांस और कोस्टा रिका के साथ ‘ब्लू टॉक्स’ के सह-नेतृत्व और भारत-नॉर्वे समुद्री स्थानिक योजना कार्यक्रम जैसे मंचों में सहभागिता के माध्यम से बढ़ रही है। ये प्रयास भारत के घरेलू प्रयासों से वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ते दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष:
महासागर जीवन को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में सहारा देते हैं। लेकिन आज, मानवीय गतिविधियों और लापरवाही के कारण महासागर संकट की स्थिति में हैं। जलवायु प्रभावों के बढ़ने से न केवल समुद्री जैव विविधता, बल्कि अरबों लोगों की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और जीवन भी खतरे में हैं। भारत के पास एक विशाल तटरेखा और रणनीतिक स्थिति है इसलिए उसे अपने महासागरों के स्वास्थ्य से बहुत कुछ हासिल हो सकता है और बहुत कुछ खो भी सकता है। अब कार्रवाई का समय है, ताकि हम समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा कर सकें और एक ऐसा समुद्री भविष्य बना सकें जो मनुष्य और प्रकृति दोनों को सहारा दे सके।
मुख्य प्रश्न: नीली अर्थव्यवस्था भारत की आर्थिक और पर्यावरण नीति का केंद्र है। सागरमाला कार्यक्रम के अंतर्गत बंदरगाह-आधारित विकास और मत्स्य पालन क्षेत्र में सुधार किस प्रकार एक स्थायी समुद्री रणनीति को प्रतिबिंबित करते हैं, इसका आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। |