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Daily-current-affairs / 10 Feb 2024

भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन का अध्ययन: अवसर और चुनौतियाँ

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संदर्भ:

तेजी से जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए इस बार के अंतरिम बजट में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की घोषणा की गई है। यह घोषणा भारत के भविष्य के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को आकार देने की दिशा में सरकार का एक सराहनीय प्रयास है। परिवार नियोजन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक-आर्थिक विकास सहित जनसंख्या प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को शामिल करने वाले जनादेश के साथ, यह समिति भारत के विकास पथ के लिए महत्वपूर्ण नीतियां और रणनीतियां तैयार करने की क्षमता रखती है। इन जटिल मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए जनसांख्यिकी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और शासन जैसे क्षेत्रों से विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए एक अंतःविषय दृष्टिकोण को अपनाना अनिवार्य है।

भारत की जनसांख्यिकीय गतिशीलता को समझना:

  • भारत की जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल पिछले कुछ वर्षों में अवसरों और चुनौतियों का समावेशन करते हुए विकसित हुई है। इससे पहले 1970 के दशक तक देश में तेजी से जनसंख्या वृद्धि हुई थी, लेकिन लगभग उसी समय से प्रजनन दर में गिरावट भी देस्खी गई है, जिससे इसके जनसांख्यिकीय प्रक्षेपवक्र में बदलाव आया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार भारत की जनसंख्या का वर्ष 2030 तक 1.46 बिलियन तक पहुंचने की प्रबल संभावना है, यह वैश्विक जनसंख्या को भी प्रभावित करेगा। इसके विपरीत प्रजनन दर में गिरावट, जो कुल प्रजनन दर (TFR) में परिलक्षित होती है, एक जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकेत देती है, जो शिशु आबादी के घटते अनुपात और बढ़ती कामकाजी उम्र की आबादी की विशेषता है।

कुल प्रजनन दर (TFR)  क्या है?

 कुल प्रजनन दर (TFR) आमतौर पर एक महिला द्वारा उसके प्रजनन जीवन काल के दौरान जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या को दर्शाती है, जिसे आमतौर पर 15 से 49 वर्ष की आयु के बीच परिभाषित किया जाता है। यह मीट्रिक प्रणालीदेश की जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय संतुलन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन:

  • घटती प्रजनन दर और बढ़ती कामकाजी आयु वाली आबादी के परिणामस्वरूप होने वाला जनसांख्यिकीय लाभांश भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है। हालाँकि, इस क्षमता को समझने के लिए जनसांख्यिकीय लाभांश का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास में निवेश की आवश्यकता है। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और कामकाजी उम्र की बढ़ती आबादी का संकेत देने वाले अनुमानों के साथ, भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभ के दोहन हेतु प्रयासरत है। इस संबंध में अनुकूल आयु वितरण के लाभों को अधिकतम करने के लिए रोजगार सृजन, अनौपचारिक क्षेत्र का एकीकरण और महिला कार्यबल के सशक्तिकरण सहित मानव पूंजी विकास में निवेश आवश्यक है।

स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार में चुनौतियाँ:

  • भारत की आबादी के सभी वर्गों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करना इसके जनसांख्यिकीय परिदृश्य के लिए एक चुनौती है। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने की पहल के बावजूद, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, स्वास्थ्य पर देश का खर्च अपेक्षाकृत कम है, जो सकल घरेलू उत्पाद के 1% के लगभग है। यह उन नीतियों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो स्वास्थ्य संवर्धन को प्राथमिकता देती हैं और स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे के लिए अधिक आवश्यक संसाधन आवंटित करती हैं।
  • यद्यपि बाल और मातृ स्वास्थ्य देखभाल में सुधार और जीवन प्रत्याशा दर की वृद्धि में प्रगति हुई है, तथापि बचपन में कुपोषण जैसी चुनौतियाँ देश के समग्र विकास में व्यवधान उत्पन्न कर रही हैं। इससे केवल खाद्य असुरक्षा की संभवना बढ़ती है, बल्कि शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास भी बाधित होता है। इन बाधाओं को दूर करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है, जिसमें आदर्श जीवन जीने हेतु आवश्यक वस्तुओं तक पहुंच सुनिश्चित करना, कमजोर समूहों के लिए लक्षित पोषण कार्यक्रम लागू करना और पानी एवं स्वच्छता सुविधाओं को बढ़ावा देना शामिल है।
  • इसी तरह, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने के लिए शिक्षा और कौशल विकास में निवेश अनिवार्य है। यूनिसेफ का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत के लगभग आधे युवाओं के पास रोजगार के लिए आवश्यक शिक्षा और कौशल की कमी हो सकती है। COVID-19 महामारी के कारण हुए व्यवधानों ने इन समस्याओं को और भी बढ़ा दिया है, लाखों बच्चे स्कूल से बाहर हैं, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षण एवं सीखने के परिणामों में लगातार कमी देखी गई है।
  • इन चुनौतियों से निजात पाने के लिए, प्रारंभिक बचपन की शिक्षा और पोषण में निवेश बढ़ाना आवश्यक है। इस हेतु पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को शिक्षा के अधिकार अधिनियम में एकीकृत करना, खेल पर आधारित लचीला पाठ्यक्रम विकसित करना और प्रारंभिक बचपन की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए माता-पिता, समुदायों और हितधारकों को शामिल करना एक महत्वपूर्ण प्रयास हो सकता है। इसके अतिरिक्त, बेरोजगारी को कम करने और उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योग की जरूरतों के साथ संरेखित करना भी आवश्यक हैं।

साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने को बढ़ावा देना:

  • भारत को अपनी जनसंख्या संबंधी वर्तमान और विश्वसनीय आंकड़ा प्राप्त करने हेतु इस समय कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को कमजोर करता है। इस चुनौतियों के समाधान के लिए, जनसंख्या समिति के लिए डेटा संग्रह पद्धतियों को प्रोत्साहित करने, तकनीकी प्रगति को अपनाने, क्षमता निर्माण और हितधारकों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य है। इसके लिए भारत के डेटा बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण सर्वोपरि है, जिसमें डेटा संग्रह, प्रबंधन और विश्लेषण के लिए मजबूत प्रणालियों की स्थापना सहित डेटा संग्रह तकनीकों को उन्नत करना, प्रसंस्करण के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करना और डेटा सुरक्षा एवंर गोपनीयता सुनिश्चित करना भी शामिल है।
  • राष्ट्रीय जनगणनाओं और सर्वेक्षणों का -समय और सटीक निष्पादन महत्वपूर्ण है, जिसमें हाशिए पर रहने वाले और पहुंच से बाहर रहने वाले समूहों सहित सभी आबादी क्षेत्रों के व्यापक कवरेज पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जनसंख्या डेटा की विश्वसनीयता और सटीकता की गारंटी के लिए सत्यापन और गुणवत्ता आश्वासन उपायों को लागू करना आवश्यक है। स्वतंत्र ऑडिट, सत्यापन अभ्यास और सहकर्मी समीक्षाएँ डेटा त्रुटियों और विसंगतियों को पहचानने और सुधारने में मदद कर सकती हैं, जिससे सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़ सकती है।
  • मुक्त डेटा संग्रहण का प्रोत्साहन और डेटा साझाकरण में पारदर्शिता को बढ़ावा देना विभिन्न हितधारकों के लिए जनसंख्या डेटा तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए एक आशाजनक दृष्टिकोण हैं। मानकीकृत प्रारूपों में जनसंख्या डेटा को स्वतंत्र रूप से सुलभ बनाना; पारदर्शिता, जवाबदेही और जनसांख्यिकी आंकड़ों के पुन: उपयोग को बढ़ावा देता है।
  • इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग, विश्व बैंक और शैक्षणिक संस्थानों जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग जनसंख्या डेटा संग्रह और विश्लेषण के लिए वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं, तकनीकी विशेषज्ञता और वित्त पोषण के अवसरों तक मूल्यवान पहुंच प्रदान कर सकता है।

निष्कर्ष:

भारत का जनसांख्यिकीय परिदृश्य अवसरों और चुनौतियों का एक जटिल अंतर्संबंध प्रस्तुत करता है, जिसे प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए एक व्यापक और अंतःविषय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार में निवेश के माध्यम से जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करके, भारत समावेशी और सतत विकास के लिए अपनी क्षमता का उपयोग कर सकता है। साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को प्राथमिकता देना, डेटा बुनियादी ढांचे को मजबूत करना और हितधारकों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने की दिशा में एक सराहनीय प्रयास हैं। रणनीतिक योजना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ, भारत आने वाली पीढ़ियों के लिए समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करते हुए खुद को समावेशी विकास में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।

  

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.       देश की जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय संतुलन को आकार देने में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) के महत्व का आकलन करें। प्रभावी जनसंख्या प्रबंधन नीतियों को तैयार करने में टीएफआर को समझने से कैसे मदद मिलती है? (10 अंक, 150 शब्द)

2.       घटती प्रजनन दर और बढ़ती कामकाजी आयु वाली आबादी के परिणामस्वरूप भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश की संभावना पर चर्चा करें। इस जनसांख्यिकीय लाभ के प्रभावी दोहन में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, और उन्हें कैसे संबोधित किया जा सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- हिंदू

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