सन्दर्भ:
16 अक्टूबर 2025 को, विश्व खाद्य दिवस मनाया जा रहा है, जिसका नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा किया जा रहा है, जो भूख समाप्त करने के अपने वैश्विक मिशन के 80 वर्ष पूरे कर रहा है। इस वर्ष की थीम “बेहतर भोजन और बेहतर भविष्य के लिए हाथ में हाथ” सहयोगात्मक प्रयासों पर केंद्रित है जो हैंड-इन-हैंड इनिशिएटिव (HIH) के माध्यम से वैश्विक खाद्य प्रणालियों को रूपांतरित करने का लक्ष्य रखता है। यह थीम इस बात की याद दिलाती है कि सरकारों, किसानों, व्यवसायों और समुदायों के बीच सामूहिक साझेदारी, विशेषकर जलवायु परिवर्तन, संघर्षों और आर्थिक अस्थिरता के दौर में, लचीली, न्यायसंगत और सतत खाद्य प्रणालियाँ बनाने के लिए आवश्यक है।
वैश्विक भूख: एक सतत चुनौती:
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- हालाँकि दुनिया की 8.2 अरब आबादी के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन किया जाता है, फिर भी भूख करोड़ों लोगों को प्रभावित करती है। वर्ष 2024 में लगभग 673 मिलियन लोग वर्ष के किसी न किसी समय भूख का सामना कर रहे थे। विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की रिपोर्ट के अनुसार, गाज़ा, सूडान और हैती जैसे क्षेत्रों में लगभग 1.9 मिलियन लोग विनाशकारी भूख झेल रहे हैं।
- वैश्विक स्तर पर 733 मिलियन लोग कुपोषित हैं, जबकि 2.8 अरब लोग बढ़ती खाद्य कीमतों और जीवन-यापन की लागत के कारण स्वस्थ आहार नहीं ले सकते। अफ्रीका और पश्चिम एशिया ने संघर्ष और चरम मौसमी घटनाओं के कारण बड़े प्रभाव पड़े हैं, जबकि यूक्रेन युद्ध और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान ने खाद्य कीमतों को 14 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है, जिससे 71 मिलियन लोग गरीबी में चले गए।
- हालाँकि दुनिया की 8.2 अरब आबादी के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन किया जाता है, फिर भी भूख करोड़ों लोगों को प्रभावित करती है। वर्ष 2024 में लगभग 673 मिलियन लोग वर्ष के किसी न किसी समय भूख का सामना कर रहे थे। विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की रिपोर्ट के अनुसार, गाज़ा, सूडान और हैती जैसे क्षेत्रों में लगभग 1.9 मिलियन लोग विनाशकारी भूख झेल रहे हैं।
खाद्य सुरक्षा की समझ:
खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, खाद्य सुरक्षा तब मौजूद होती है जब सभी लोगों को हर समय पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक भौतिक, सामाजिक और आर्थिक पहुँच हो, जिससे वे स्वस्थ जीवन के लिए अपनी आहार संबंधी आवश्यकताओं और पसंदों को पूरा कर सकें।
खाद्य सुरक्षा के चार प्रमुख स्तंभ हैं:
1. उपलब्धता (Availability) – भोजन की पर्याप्त मात्रा का लगातार उत्पादन और आपूर्ति होनी चाहिए।
2. पहुँच (Access) – लोगों के पास भोजन प्राप्त करने के लिए आर्थिक और भौतिक साधन होने चाहिए।
3. उपयोग (Utilization) – भोजन पौष्टिक, सुरक्षित और प्रभावी रूप से उपयोग किया जाना चाहिए, जिसका समर्थन स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा से हो।
4. स्थिरता (Stability) – पहुँच और उपलब्धता संकटों या मौसमी झटकों के कारण अस्थिर नहीं होनी चाहिए।
जब इनमें से किसी भी आयाम से समझौता होता है, तो खाद्य असुरक्षा उत्पन्न होती है। यह या तो दीर्घकालिक (chronic) हो सकती है (गरीबी) या कमजोर प्रणालियों के कारण, या अल्पकालिक (transitory) — सूखा, बाढ़, संघर्ष या मूल्य वृद्धि जैसे झटकों के कारण।
वैश्विक खाद्य प्रणालियाँ दबाव में:
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- कृषि-खाद्य प्रणालियाँ लगभग 1 अरब लोगों को आजीविका प्रदान करती हैं और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में एक-तिहाई योगदान देती हैं। जलवायु परिवर्तन, अस्थिर खेती और संसाधनों की कमी इन प्रणालियों पर तीव्र दबाव डाल रही है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) का कहना है कि बढ़ते तापमान और अनिश्चित वर्षा ने दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में फसल उत्पादन को पहले ही घटा दिया है। बुवाई चक्रों में बदलाव, कीट प्रकोप और जल की कमी कृषि को अधिक असुरक्षित बना रहे हैं।
- जलवायु के अतिरिक्त, आर्थिक झटके, महामारियाँ और व्यापारिक व्यवधान खाद्य स्थिरता को और खतरे में डाल रहे हैं। कोविड-19 संकट ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की नाजुकता को उजागर किया, जबकि युद्धों और संरक्षणवादी व्यापार नीतियों ने खाद्य पहुँच में असमानता को और बढ़ाया है।
- कृषि-खाद्य प्रणालियाँ लगभग 1 अरब लोगों को आजीविका प्रदान करती हैं और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में एक-तिहाई योगदान देती हैं। जलवायु परिवर्तन, अस्थिर खेती और संसाधनों की कमी इन प्रणालियों पर तीव्र दबाव डाल रही है।
सतत और पुनर्योजी (Regenerative) प्रथाएँ:
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- कृषि में स्थिरता अब विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुकी है। पुनर्योजी कृषि मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने, जैव विविधता को बढ़ाने और उत्पादकता में वृद्धि करने की अपनी क्षमता के कारण लोकप्रिय हो रही है, साथ ही यह उत्सर्जन को भी कम करती है।
- शोध यह भी दर्शाता है कि बहु-केन्द्रीय शासन (polycentric governance) जहाँ सार्वजनिक संस्थान, निजी उद्यम और स्थानीय समुदाय मिलकर कार्य करते हैं, अधिक लचीली और समावेशी खाद्य प्रणालियाँ बनाते हैं। 2024 की एक समीक्षा में पाया गया कि हाइब्रिड और सहभागी ढाँचे ऊपरी-से-नीचे (top-down) दृष्टिकोणों की तुलना में अधिक सफल होते हैं।
- इसके अलावा, 2025 में फ्रंटियर्स इन सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स में प्रकाशित एक अध्ययन ने सिस्टम्स-थिंकिंग दृष्टिकोण पर बल दिया जिसमें खाद्य प्रणालियों के आपसी संबंधों का मानचित्रण कर एग्रो-इकोलॉजिकल ट्रांजिशन जैसे लीवरेज पॉइंट्स की पहचान की जाती है, जो पोषण और जैव विविधता दोनों को बेहतर बनाते हैं।
- कृषि में स्थिरता अब विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुकी है। पुनर्योजी कृषि मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने, जैव विविधता को बढ़ाने और उत्पादकता में वृद्धि करने की अपनी क्षमता के कारण लोकप्रिय हो रही है, साथ ही यह उत्सर्जन को भी कम करती है।
खाद्य प्रणालियों में नवाचार और सहयोग:
तकनीकी और सहयोगात्मक नवाचार खाद्य प्रणालियों के कार्य करने के तरीके को बदल रहे हैं। सतत खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं पर 500 से अधिक शोध अध्ययनों की समीक्षा में पाया गया कि 2020 के बाद सहयोग, डिजिटल ट्रेसएबिलिटी और परिपत्र अर्थव्यवस्था मॉडल की दिशा में मजबूत प्रवृत्ति उभरी है।
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- ब्लॉकचेन और ट्रेसएबिलिटी टूल्स पारदर्शिता बढ़ाते हैं और खाद्य हानि को कम करते हैं।
- सर्कुलर इकॉनमी मॉडल्स कृषि अपशिष्ट को पशु चारे या बायोएनर्जी में पुनः उपयोग करते हैं।
- सह-निर्माण और फेयर-ट्रेड साझेदारी आय वितरण में सुधार करते हैं और स्थानीय उत्पादकों को सशक्त बनाते हैं।
- ब्लॉकचेन और ट्रेसएबिलिटी टूल्स पारदर्शिता बढ़ाते हैं और खाद्य हानि को कम करते हैं।
हालाँकि, ऐसे अधिकांश नवाचार उच्च-आय वाले क्षेत्रों तक सीमित हैं, जबकि विकासशील देश अभी भी भूख का सबसे बड़ा बोझ झेल रहे हैं। यह वैश्विक सहयोग और ग्लोबल साउथ में क्षमता निर्माण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
खाद्य एवं कृषि संगठन की हैंड-इन-हैंड पहल (HIH):
FAO की हैंड-इन-हैंड पहल, जो 2019 में शुरू हुई, इस वर्ष के विश्व खाद्य दिवस की थीम का मूर्त रूप है। इसका उद्देश्य समावेशी, जलवायु-लचीली और सतत कृषि-खाद्य प्रणालियों के रूपांतरण में तेजी लाना है।
यह पहल सीधे तौर पर निम्नलिखित SDGs में योगदान देती है:
• SDG 1 – गरीबी समाप्ति (No Poverty)
• SDG 2 – शून्य भूख (Zero Hunger)
• SDG 10 – असमानताओं में कमी (Reduced Inequalities)
• SDG 13 - जलवायु लचीलापन लक्ष्य (Climate Resilience Goals)
80 देशों में सक्रिय यह पहल उन्नत भौगोलिक-स्थानिक (geospatial) और सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के माध्यम से कृषि निवेश के लिए उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों की पहचान करती है।
अपने इन्वेस्टमेंट फोरम्स के माध्यम से, यह सार्वजनिक और निजी वित्त को जुटाकर मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करती है, पोषण में सुधार लाती है और जलवायु अनुकूलन को समर्थन देती है। पेरू, इथियोपिया और प्रशांत द्वीपों में परियोजनाओं ने महिलाओं और युवा किसानों को फसल विविधीकरण, आय वृद्धि और सतत बाजारों तक पहुँच में सक्षम बनाया है, साथ ही जैव विविधता संरक्षण और खाद्य हानि में कमी को भी प्रोत्साहित किया है।
भारत में खाद्य सुरक्षा: क्षेत्रीय दृष्टिकोण:
भारत एक विरोधाभास प्रस्तुत करता है- यह खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर है, फिर भी विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में खाद्य सुरक्षा असमान है। प्रमुख चुनौतियाँ उपलब्धता में नहीं बल्कि पहुँच, वितरण और पोषण में निहित हैं।
1. उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र
• राज्य: पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश
• उच्च उत्पादकता और मजबूत खरीद प्रणाली से खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित।
• चुनौतियाँ: मोनोक्रॉपिंग, मृदा क्षरण, और गिरते भूजल स्तर।
2. पूर्वी और मध्य भारत
• राज्य: बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल
• उच्च कृषि क्षमता लेकिन कमजोर अवसंरचना और बाज़ार।
• आदिवासी और ग्रामीण समुदाय उपजाऊ भूमि के बावजूद दीर्घकालिक कुपोषण झेलते हैं।
3. पश्चिमी और शुष्क क्षेत्र
• राज्य: राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र
• शुष्क परिस्थितियाँ और जल संकट खाद्य उपलब्धता को कम करते हैं।
• मौसमी प्रवासन और बार-बार आने वाले सूखे घरेलू खाद्य स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
4. दक्षिणी राज्य
• राज्य: तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश
• मजबूत शासन, विविधीकृत फसलें और बेहतर पोषण सूचकांक।
• केरल और तमिलनाडु पोषण-संवेदनशील नीतियों और प्रभावी पीडीएस में अग्रणी हैं।
5. पूर्वोत्तर भारत
• पहाड़ी भूभाग और कमजोर संपर्क से परिवहन लागत बढ़ती है।
• झूम खेती और जलवायु संवेदनशीलता से मौसमी खाद्य अभाव उत्पन्न होते हैं।
6. शहरी भारत
• बढ़ती शहरी गरीबी और अनौपचारिक बस्तियों में ‘फूड डेज़र्ट्स’।
• बाज़ारों पर निर्भरता से खाद्य पहुँच मुद्रास्फीति और रोजगार असुरक्षा के प्रति संवेदनशील।
आर्थिक और नीतिगत आयाम:
भारत की खाद्य सुरक्षा आर्थिक नीतियों से गहराई से जुड़ी है।
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- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को कवर करता है, जिससे 800 मिलियन से अधिक नागरिकों को सब्सिडी वाला अनाज मिलता है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) किसानों की आय और राष्ट्रीय भंडार को स्थिर करता है, परंतु यह चावल और गेहूं को मिलेट्स या दालों पर प्राथमिकता देकर क्षेत्रीय असंतुलन पैदा करता है।
- आय और रोजगार योजनाएँ जैसे मनरेगा और PM-किसान क्रय शक्ति को बढ़ाती हैं, जिससे खाद्य पहुँच सशक्त होती है।
- पोषण-केंद्रित कार्यक्रम जैसे पोषण अभियान, मिड-डे मील योजना, और आंगनवाड़ी/ICDS खाद्य पहुँच को स्वास्थ्य परिणामों से जोड़ते हैं।
फिर भी, अक्षमताएँ, लीकेज और क्षेत्रीय असमानताएँ बनी हुई हैं। अधिक विकेन्द्रीकृत, डेटा-आधारित और पोषण-संवेदनशील दृष्टिकोण से स्थानीय कमजोरियों का समाधान किया जा सकता है।
जलवायु, प्रौद्योगिकी और खाद्य लचीलापन:
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- भविष्य के लिए तैयार खाद्य प्रणालियों का निर्माण जलवायु-स्मार्ट कृषि, आपदा लचीलापन और तकनीकी एकीकरण पर निर्भर करता है।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ फसलों को बीमा सुरक्षा देती है।
- भौगोलिक-स्थानिक उपकरण (GIS, रिमोट सेंसिंग, GPS) संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान, उत्पादन निगरानी और योजना में मदद करते हैं।
- सिंचाई, कोल्ड चेन और डिजिटल मार्केटप्लेस (e-NAM) में निवेश हानियों को कम करता है और बाजार स्थिरता सुनिश्चित करता है।
- भविष्य के लिए तैयार खाद्य प्रणालियों का निर्माण जलवायु-स्मार्ट कृषि, आपदा लचीलापन और तकनीकी एकीकरण पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष:
UPSC/PSC मुख्य प्रश्न: वैश्विक खाद्य सुरक्षा का संकट केवल खाद्य उपलब्धता का नहीं बल्कि न्यायसंगत पहुँच, वहनीयता और पोषण गुणवत्ता का है। चर्चा कीजिए। साथ ही, सतत एवं लचीली खाद्य प्रणालियाँ इस चुनौती का समाधान किस प्रकार प्रदान कर सकती हैं? |