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Daily-current-affairs / 24 Oct 2025

आयुष्मान भारत: भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त करने की चुनौती

आयुष्मान भारत: भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त करने की चुनौती

सन्दर्भ:

2018 में प्रारंभ आयुष्मान भारतप्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) भारत की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना है, जिसका उद्देश्य सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना और गरीब व असुरक्षित परिवारों पर अस्पताल में भर्ती होने के आर्थिक बोझ को कम करना है। पिछले सात वर्षों में इसने भारत के स्वास्थ्य परिदृश्य को बदल दिया है, जिससे द्वितीयक और तृतीयक स्तर की चिकित्सा सुविधाएं अधिक सुलभ हुई हैं। हालांकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट (2025) एक महत्वपूर्ण विरोधाभास को उजागर करती है यद्यपि सूचीबद्ध अस्पतालों में सरकारी अस्पतालों की संख्या अधिक है, फिर भी निजी अस्पताल इस योजना के प्रमुख लाभार्थी बने हुए हैं। यह प्रवृत्ति भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में निजी क्षेत्र के निरंतर प्रभुत्व को दर्शाती है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना और वित्तपोषण पर प्रश्न उठाती है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

1. निजी क्षेत्र का प्रभुत्व

AB-PMJAY के तहत सूचीबद्ध 31,005 अस्पतालों में से केवल 45% निजी हैं। फिर भी, ये अस्पताल कुल 52% अस्पताल में भर्ती मामलों अर्थात् 9.19 करोड़ से अधिक उपचार के लिए उत्तरदायी हैं और योजना के तहत कुल ₹1.29 लाख करोड़ के व्यय का 66% प्राप्त करते हैं।

इसका अर्थ है कि यद्यपि सरकारी अस्पतालों की संख्या अधिक है, अधिकांश मरीज अब भी निजी संस्थानों को प्राथमिकता देते हैं, संभवतः बेहतर अवसंरचना, कम प्रतीक्षा समय, और उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल की धारणा के कारण।

2. उपचार प्रवृत्तियाँ

आयुष्मान भारत के अंतर्गत सबसे अधिक लिया जाने वाला उपचार हीमोडायलिसिस है, जो 2018 से अब तक किए गए सभी उपचारों का 14% है। इसके बाद बुखार (4%), जठरांत्रशोथ (3%) और पशु काटने (3%) जैसे सामान्य रोग आते हैं।

2024–25 में, योजना के अंतर्गत सर्वाधिक उपयोग किए गए तीन विशिष्ट क्षेत्र जनरल मेडिसिन, नेत्र विज्ञान (Ophthalmology) और जनरल सर्जरी रहे। हीमोडायलिसिस का उच्च अनुपात भारत में क्रोनिक किडनी रोग के बढ़ते बोझ और उपचार की बार-बार आवश्यकता को दर्शाता है मरीजों को अक्सर सप्ताह में दो से तीन बार डायलिसिस की आवश्यकता होती है।

3. अंतर-राज्यीय रोगी गतिशीलता

आयुष्मान भारत की एक प्रमुख विशेषता इसकी पोर्टेबिलिटी है, जो लाभार्थियों को उनके कार्ड के निर्गमन राज्य की परवाह किए बिना किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में उपचार प्राप्त करने की अनुमति देती है।

प्रमुख इन-माइग्रेशन राज्य:

चंडीगढ़ सभी पोर्टेबिलिटी मामलों का 19%
o उत्तर प्रदेश – 13%
o गुजरात – 11%
o उत्तराखंड और पंजाब प्रत्येक 8%

प्रमुख आउट-माइग्रेशन राज्य:

उत्तर प्रदेश कुल बाहरी मामलों का 24%
o मध्य प्रदेश – 17%
o बिहार – 16%
o पंजाब और हिमाचल प्रदेश प्रत्येक 7%

ये आँकड़े दर्शाते हैं कि पोर्टेबिलिटी से अविकसित क्षेत्रों के मरीज बेहतर सुसज्जित राज्यों में उपचार प्राप्त कर पा रहे हैं, विशेष रूप से वहाँ जहाँ निजी या तृतीयक देखभाल अस्पताल केंद्रित हैं।

4. डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी: आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट और एकीकरण

रिपोर्ट आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के अंतर्गत हुई प्रगति पर भी प्रकाश डालती है, जिसका उद्देश्य एक एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना तैयार करना है।

      • 50 करोड़ स्वास्थ्य अभिलेख डिजिटल रूप से जोड़े गए हैं।
        लगभग 60% भारतीयों के पास अब ABHA (आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट) नंबर है एक 14 अंकों की आईडी जो व्यक्तियों को अपने चिकित्सा डेटा को सुरक्षित रूप से संग्रहीत और साझा करने में सक्षम बनाती है।
        अब तक 3.8 लाख स्वास्थ्य सुविधाएं (कुल का 38%) और 5.8 लाख स्वास्थ्य पेशेवर (26%) इस प्लेटफ़ॉर्म पर पंजीकृत हैं।
      • यह बढ़ता हुआ डिजिटल नेटवर्क डेटा साझा को सरल बनाएगा, जांचों की पुनरावृत्ति को कम करेगा और सार्वजनिक व निजी संस्थानों के बीच उपचार की निरंतरता में सुधार करेगा।

आयुष्मान भारत–PMJAY के बारे में:

आयुष्मान भारत पहल को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने के लिए दो-आयामी दृष्टिकोण के रूप में परिकल्पित किया गया था:

1.        आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAMs):
o 1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित करने का लक्ष्य, जो निःशुल्क और व्यापक प्राथमिक देखभाल प्रदान करें, जिसमें गैर-संचारी रोग, मानसिक स्वास्थ्य, उपशामक और पुनर्वास सेवाएं और बुनियादी निदान शामिल हैं।

2.      प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY):
o प्रत्येक परिवार के लिए प्रति वर्ष ₹5 लाख का स्वास्थ्य बीमा, जो द्वितीयक और तृतीयक अस्पताल उपचार को कवर करता है।
o 12 करोड़ परिवारों (लगभग 55 करोड़ लोगों) को कवर करता है, जो भारत की सबसे गरीब 40% आबादी को लक्षित करता है।
o लाभार्थियों की पहचान सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) 2011 और पूर्व RSBY सूचियों के माध्यम से की जाती है।

यह योजना पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्तपोषित है, जिसमें केंद्र और राज्य के बीच लागत साझेदारी इस प्रकार है
60:40 (अधिकांश राज्यों के लिए), 90:10 (पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए) और 100% केंद्रीय वित्तपोषण विधानसभा रहित केंद्रशासित प्रदेशों के लिए।

अब तक की उपलब्धियाँ:

    • 2018 से अब तक 9 करोड़ से अधिक उपचार, ₹1.29 लाख करोड़ मूल्य के, प्रदान किए गए।
    • 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 35 करोड़ आयुष्मान कार्ड जारी किए गए।
    • 49% कार्डधारक महिलाएं हैं जो लैंगिक समावेशन की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रगति है।
    • आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) में 21% की कमी आई है और स्वास्थ्य-संबंधी ऋणों में 8% की कमी यह दर्शाता है कि परिवारों पर वित्तीय दबाव कम हुआ है।
    • जिला अस्पतालों ने सकारात्मक वित्तीय लाभ दर्ज किए हैं, जिससे उनकी सेवा क्षमता में सुधार हुआ है।

कुल मिलाकर, आयुष्मान भारत ने उन लाखों लोगों के लिए वित्तीय सुरक्षा जाल को मजबूत किया है, जो पहले विनाशकारी स्वास्थ्य खर्चों का सामना करते थे।

चुनौतियाँ और संरचनात्मक अंतराल:

1.        सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में कमी:
भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय GDP का केवल 1.84% है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के 2.5% लक्ष्य से काफी कम है। इससे सरकारी अस्पतालों में अवसंरचना, मानव संसाधन और गुणवत्तापूर्ण देखभाल में निवेश सीमित हो जाता है।

2.      अस्पताल केंद्रित संरचना:
AB-PMJAY मुख्यतः अस्पताल-आधारित द्वितीयक और तृतीयक देखभाल पर केंद्रित है, जबकि प्राथमिक और बाह्य रोगी देखभाल जो अधिकांश आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च का कारण है, अभी भी शामिल नहीं है।

3.      मिसिंग मिडिलकी समस्या:
भारत की एक बड़ी आबादी न तो इतनी गरीब है कि सरकारी सब्सिडी पा सके, न इतनी संपन्न कि निजी बीमा ले सके परिणामस्वरूप वे किसी भी वित्तीय सुरक्षा कवच से वंचित रहते हैं।

4.     ग्रामीणशहरी असंतुलन:
अधिकांश डॉक्टर और स्वास्थ्य पेशेवर शहरी क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में गंभीर जनशक्ति की कमी है। यह कमी ग्रामीण मरीजों को बुनियादी सेवाओं के लिए भी लंबी दूरी तय करने को बाध्य करती है।

5.      निजी क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता:
आयुष्मान भारत की दो-तिहाई निधि निजी अस्पतालों को जाने से यह योजना अनजाने में निजी क्षेत्र को और सशक्त कर रही है, बजाय सार्वजनिक क्षमता निर्माण के।

6.     नियामक चुनौतियाँ:
निजी क्षेत्र में गुणवत्ता मानकों, मूल्य विनियमन और जवाबदेही की एकरूपता की कमी के कारण अधिक शुल्क, असमान गुणवत्ता और नैतिक चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।

आगे की राह:

1.        सार्वजनिक स्वास्थ्य वित्तपोषण में वृद्धि करें:
सरकारी व्यय को GDP के 2.5% तक बढ़ाया जाए और आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल तथा रोकथाम सेवाओं को सशक्त किया जाए।

2.      बीमा कवरेज का विस्तार करें:
PM-JAY के लाभ मिसिंग मिडिलवर्ग तक बढ़ाए जाएं और बाह्य रोगी देखभाल, जांच तथा दवाइयों को बीमा कवरेज के तहत शामिल किया जाए।

3.      स्वास्थ्य कार्यबल का निर्माण और संरक्षण करें:
अविकसित क्षेत्रों में चिकित्सा और नर्सिंग संस्थान बढ़ाए जाएं, ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत कर्मियों को प्रोत्साहन दिया जाए, और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा पैरामेडिकल प्रशिक्षण में निवेश बढ़ाया जाए।

4.     तकनीक का प्रभावी उपयोग करें:
टेलीमेडिसिन और ABHA-आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म को एकीकृत कर दूरस्थ विशेषज्ञ परामर्श उपलब्ध कराएं और डेटा-आधारित स्वास्थ्य योजना को सुदृढ़ करें।

5.      नियमन और शासन को सशक्त करें:
क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स एक्ट, 2010 को सख्ती से लागू करें ताकि निजी अस्पतालों में गुणवत्ता, मानकीकृत उपचार और पारदर्शी मूल्य सुनिश्चित हो सकें।
मजबूत स्वास्थ्य डेटा प्रणाली विकसित की जाए ताकि निगरानी, मूल्यांकन और जवाबदेही में सुधार हो सके।

निष्कर्ष:

आयुष्मान भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में एक परिवर्तनकारी नीति कदम के रूप में उभरा है, जिसने लाखों लोगों को आर्थिक संकट से बचाया है और अस्पताल देखभाल की पहुंच को विस्तारित किया है। फिर भी, योजना में निजी अस्पतालों के बढ़ते प्रभुत्व से यह स्पष्ट होता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में विश्वास को पुनर्स्थापित करना अब अनिवार्य है। दीर्घकालिक स्थिरता के लिए भारत को सार्वजनिक अवसंरचना को सशक्त करना, निजी क्षेत्र की भागीदारी को विनियमित करना और ग्रामीणशहरी विभाजन को पाटना होगा।

 

UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न:  आयुष्मान भारत योजना ने स्वास्थ्य सेवाओं की वित्तीय पहुँच को बढ़ाया है, किंतु प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और मिसिंग मिडिल वर्ग की उपेक्षा इसके समावेशी उद्देश्य को सीमित करती है। चर्चा कीजिए।