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Daily-current-affairs / 01 Apr 2024

आर्कटिक चुनौतियां: भारत की भूमिका और भू-राजनीतिक प्रभाव - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -
आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक जलवायु परिवर्तन के एक महत्वपूर्ण संकेतक के रूप में कार्य करता है, इस क्षेत्र में तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है। आर्कटिक क्षेत्र में स्थित अनुसंधान केंद्र, जैसे इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर टेरेस्ट्रियल रिसर्च एंड मॉनिटरिंग (आई. एन. टी. आर. . सी. टी.) पर्यावरण स्थितियों से संबंधित जानकारी इकठ्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के पश्चात रूसी फील्ड स्टेशनों से डेटा पहुंच बाधित हुई है, परिणामस्वरूप आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन का सटीक आकलन करने में वैज्ञानिकों के लिए नवीन चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं।

आर्कटिक क्षेत्र
 पृथ्वी के भू-भाग के लगभग छठे हिस्से को कवर करने वाले उत्तरी ध्रुव के आसपास के एक विशाल क्षेत्र को आर्कटिक नाम से जाना जाता है।  तेजी से बढ़ते तापमान का अन्य क्षेत्रों की तुलना में यहाँ ज्यादा गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरणीय परिवर्तनों से लेकर वाणिज्यिक और रणनीतिक हितों तक के मामलों में आर्कटिक क्षेत्र में होने वाला यह परिवर्तन सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करेगा।

 

इंटरैक्ट क्या हैं?

  • इंटरैक्ट स्कैनेट के तत्वावधान में एक बुनियादी ढांचा परियोजना है, जो उत्तरी यूरोप, अमेरिका, कनाडा, ग्रीनलैंड, आइसलैंड, फरो आइलैंड्स और स्कॉटलैंड के साथ-साथ उत्तरी अल्पाइन क्षेत्रों में 74 स्थलीय फील्ड बेस (जिसमें रूस के अतिरिक्त 21 अनुसंधान स्टेशनों भी शामिल है ) का एक आर्कटिक नेटवर्क है। 
  • इंटरैक्ट एक बहु-विषयक अनुसंधान केंद्र है। जिसमें एक साथ, दुनिया भर के हजारों वैज्ञानिकों कार्य कर रहे हैं जो ग्लेशियोलॉजी, पर्माफ्रॉस्ट, जलवायु, पारिस्थितिकी, जैव विविधता और जैव-भूरासायनिक साइक्लिंग के क्षेत्र में विभिन्न परियोजनाओं पर काम करते हैं। इंटरैक्ट स्टेशन कई अंतरराष्ट्रीय एकल-अनुशासन नेटवर्क की मेजबानी करता है और इन्हे आपसी समन्वय की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  •  एक अध्ययन के अनुसार, तापमान वृद्धि के कारण पिछले चार दशकों में लगभग 1,000 बिलियन टन से अधिक बर्फ नष्ट हो गई है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि आर्कटिक क्षेत्र दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में लगभग चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है। इस परिवर्तन के गहरे परिणाम हैं, जिसमें पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना और समुद्र का बढ़ता स्तर आदि शामिल है, यह परिवर्तन स्थानीय पारिस्थितिकी प्रणालियों को तबाह कर सकता है और जलवायु परिवर्तन को बढ़ा सकता है।

डेटा पहुँच पर रूस के आक्रमण का प्रभाव

  • रूस के आक्रमण ने वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण जलवायु डेटा एकत्र करने की क्षमता को बाधित कर दिया है, परिणामस्वरूप आर्कटिक अनुसंधान में इन वैज्ञानिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रूसी फील्ड स्टेशनों तक बाधित पहुंच के कारण डेटा प्रवाह में एक ब्लाइंड स्पॉट निर्मित हुआ है, जिससे वैश्विक सहयोग और जलवायु डेटा विश्लेषण में बाधा आई है। ध्यातव्य हो कि आर्कटिक में स्थलीय अनुसंधान और निगरानी के लिए अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क (इंटरैक्ट) महत्वपूर्ण योगदान देता है।

भविष्य के परिवर्तनों का अनुमान

  • ईएसएम का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने 2100 शताब्दी में पारिस्थितिकी तंत्र चर की स्थिति का अनुमान लगाया है , इन वैज्ञानिकों ने पाया कि इन चर के अनुमान में वर्तमान पूर्वाग्रह, 80 वर्षों के जलवायु परिवर्तन के बाद अनअपेक्षित परिवर्तन होंगे ध्यातव्य हो कि इसमें रूसी डेटा शामिल नहीं है।  यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के खिलाफ प्रबंधन, संरक्षण रणनीतियों और शमन प्रयासों को सूचित करने में रूसी डेटा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
  • रूसी डेटा तक पहुंच की कमी के कारण वैज्ञानिकों की प्रबंधन और संरक्षण रणनीतियों को प्रभावी ढंग से सूचित करने और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक परिणामों को कम करने की क्षमता में गिरावट आई है। यह स्थिति चुनौतीपूर्ण भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच निरंतर अवलोकन नेटवर्क की सुरक्षा और वैज्ञानिक डेटा के साझाकरण को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित करती है।

पूर्वाग्रहों को कम करना और डेटा निरंतरता सुनिश्चित करना

  • रूसी डेटा की अनुपस्थिति में, शोधकर्ताओं ने उत्तरी स्कैंडिनेविया और कनाडा के कुछ हिस्सों जैसे समान पर्यावरणीय स्थितियों वाले अन्य क्षेत्रों से डेटा लेने का सुझाव दिया। हालांकि, यह समाधान अस्थायी है और वर्तमान आर्कटिक स्थितियों को बेहतर ढंग से समझने और भविष्य के परिवर्तनों के लिए तैयार करने के लिए वैश्विक समन्वय, निगरानी विधियों के मानकीकरण और ओपन-सोर्स डेटा साझाकरण की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • आर्कटिक में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक पहले से ही कठोर मौसम की स्थिति और ध्रुवीय भालूओं के हमले जैसी चिंताओं से जूझते हैं, जो अनजाने में उपकरणों को नुकसान पहुंचाते हैं। भू-राजनीतिक संघर्षों के कारण आंकड़ों की कमी उनके प्रयासों को और जटिल बनाता है, यह वैज्ञानिक प्रयासों और ज्ञान अधिग्रहण पर संघर्षों के व्यापक प्रभाव को उजागर करती है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान की अखंडता की रक्षा करने और एक व्यापक अवलोकन नेटवर्क बनाए रखने के लिए संघर्षों के दौरान भी निरंतर डेटा साझाकरण महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संबोधित करने में विभिन्न देशों के परस्पर जुड़ाव को देखते हुए महत्वपूर्ण वैज्ञानिक डेटा के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए प्रोटोकॉल को लागू करना आवश्यक है।

भारत के लिए आर्कटिक का पर्यावरणीय महत्व

  •  आर्कटिक-हिमालय लिंकः अपनी भौगोलिक दूरी के बावजूद, आर्कटिक और हिमालय आपस में जुड़े हुए हैं और समान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। आर्कटिक का पिघलना हिमालय में हिमनदों के पिघलने को समझने में सहायता कर सकता है। हिमालय अक्सर 'तीसरा ध्रुव' कहा जाता है, यहाँ उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के बाद सबसे बड़े ताजे जल के भंडार हैं। आर्कटिक में भारत की वैज्ञानिक रुचि 2007 में अपने उद्घाटन अभियान और स्वालबार्ड द्वीपसमूह (नॉर्वे) में हिमाद्री अनुसंधान आधार की स्थापना के माध्यम से स्पष्ट है जो आर्कटिक अनुसंधान में सक्रिय भागीदारी का प्रदर्शन करता है।

आर्कटिक क्षेत्र से संबंधित हालिया चुनौतियां:

  • आर्कटिक प्रवर्धनः आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन दर वैश्विक औसत कि तुलना में अधिक है परिणामस्वरूप इसके तेजी से गर्म होने के कारण पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से कार्बन और मीथेन की का निष्कर्षण बढ़ रहा है, इससे पुनः बर्फ पिघलती है और आर्कटिक वार्मिंग में और अधिक तेजी आती है।
  • समुद्र के बढ़ते स्तर की चिंताः आर्कटिक की बर्फ पिघलने से समुद्र का स्तर और  तटीय कटाव बढ़ रहा है जिससे विभिन्न देशों की व्यापक तटरेखा और बंदरगाह शहरों के लिए महत्वपूर्ण खतरा पैदा हो रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की 2021 की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है, कि भारतीय तट पर समुद्र का स्तर वैश्विक औसत की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है।
  • इमर्जिंग रेस कोर्सः आर्कटिक शिपिंग मार्गों के खुलने से संसाधन निष्कर्षण की दौड़ को बढ़ावा मिला है, जिसमें अमेरिका, चीन और रूस जैसी भू-राजनीतिक शक्तियां इस क्षेत्र में प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।
  • टुंड्रा क्षरणः बढ़ते तूफान और जंगल की आग टुंड्रा पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर कर रही है, विशेष रूप से कनाडा और रूस में, जिससे टुंड्रा का दलदली इलाके में परिवर्तन और पर्माफ्रॉस्ट को नुकसान हो रहा है।
  • जैव विविधता के लिए खतराः कम हो रही समुद्री बर्फ और बढ़ते तापमान ने ध्रुवीय भालू और मछली की प्रजातियों सहित आर्कटिक वन्यजीवों के समक्ष अस्तित्व की चुनौती खड़ी कर दी है, जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप आर्कटिक खाद्य जाल में बदलाव आया है और विविध पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गए हैं।

आगे का रास्ता

  • वैश्विक महासागर संधि की ओरः वैश्विक महासागर शासन को जांच के दायरे में रखना और ध्रुवीय क्षेत्रों एवं संबंधित समुद्र के स्तर में वृद्धि की चुनौतियों पर विशेष ध्यान देने के साथ एक सहयोगी वैश्विक महासागर संधि की दिशा में प्रगति करना महत्वपूर्ण है।
  • सुरक्षित और सतत अन्वेषणः आर्कटिक क्षेत्र में संचयी पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए कुशल बहुपक्षीय कार्यों के साथ सुरक्षित और टिकाऊ संसाधन अन्वेषण और विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष
रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण ने आर्कटिक में वैज्ञानिक अनुसंधान को काफी बाधित कर दिया है, विशेष रूप से रूसी फील्ड स्टेशनों से महत्वपूर्ण जलवायु डेटा तक पहुँचने में। इस व्यवधान ने जलवायु डेटा में पूर्वाग्रह पैदा किया है, जिससे वैज्ञानिकों की आर्कटिक परिवर्तनों को सटीक रूप से ट्रैक करने और उनका वर्णन करने की क्षमता में बाधा आई है। इन चुनौतियों को दूर करने और आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिए सहयोगात्मक प्रयास, निगरानी विधियों का मानकीकरण और निरंतर डेटा साझाकरण आवश्यक है। इन मुद्दों को हल करने में विफलता के पारिस्थितिकी तंत्र, समुदायों और वैश्विक जलवायु स्थिरता के लिए दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    भारत जैसे राष्ट्रों के लिए आर्कटिक के पर्यावरणीय महत्व, हिमालय और आर्कटिक प्रवर्धन, समुद्र के बढ़ते स्तर, और संसाधन निष्कर्षण प्रतियोगिता की चुनौतियों पर विचार करें अपने तटीय क्षेत्रों की रक्षा करते हुए इन मुद्दों को हल करने में भारत के संभावित योगदान पर चर्चा करें। (10 Marks, 150 Words)

2.    भू-राजनीतिक संघर्ष, जैसे यूक्रेन पर रूस का आक्रमण, आर्कटिक अनुसंधान को बाधित करते हैं, और वैश्विक सहयोग और जलवायु डेटा विश्लेषण को प्रभावित करते हैं।स्पष्ट करें।  ऐसी चुनौतियों के बावजूद डेटा निरंतरता बनाए रखने के लिए रणनीतियों का प्रस्ताव करें। (15 Marks, 250 Words)

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