परिचय:
हाल ही में 22 जुलाई, 2025 को भारतीय थलसेना के एविएशन कॉर्प्स को अमेरिका से एएच-64ई अपाचे गार्जियन अटैक हेलीकॉप्टरों की पहली खेप प्राप्त हुई। यह घटना भारत की दीर्घकालीन सैन्य आधुनिकीकरण यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जा रही है। अपाचे का शामिल होना भारत की रोटरी-विंग (हेलीकॉप्टर आधारित) युद्ध क्षमता को मजबूत करता है और थलसेना को प्रिसीजन स्ट्राइक और निगरानी के लिए अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म देता है। लेकिन इसके साथ ही एक गंभीर प्रश्न भी उठता है: क्या भारत आत्मनिर्भर भारत के रक्षा उत्पादन अभियान के दौर में विदेशी प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर रहना जारी रख सकता है?
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इसका समय भी महत्वपूर्ण है। यह ऐसे समय में आया है जब भारत की पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर तनाव बढ़ रहा है। पाकिस्तान ने चीनी ज़ेड-10एमई अटैक हेलीकॉप्टर शामिल किए हैं, जबकि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर विभिन्न उन्नत हेलीकॉप्टर तैनात किए हैं। ऐसे परिदृश्य में भारत द्वारा अपाचे का अधिग्रहण उसके वायु युद्ध और निगरानी क्षमता की मौजूदा खाइयों को भरने की तात्कालिक आवश्यकता को दर्शाता है।
क्यों अपाचे महत्वपूर्ण है?
एएच-64 अपाचे दुनिया के सबसे उन्नत और युद्ध-प्रमाणित अटैक हेलीकॉप्टरों में से एक है। इसे 17 देश संचालित करते हैं और इसका लंबा युद्ध इतिहास है।
भारत की रक्षा खरीद कहानी
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2020 में भारत ने बोइंग के साथ 5,691 करोड़ रुपये (लगभग 681 मिलियन डॉलर) का सौदा किया था, जिसके तहत थलसेना के लिए छह अपाचे खरीदे गए।
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इससे पहले, 2015 में, भारत ने 2.5 बिलियन डॉलर का समझौता किया था जिसके अंतर्गत वायुसेना के लिए 22 अपाचे और 15 चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टर खरीदे गए।
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आज भारतीय वायुसेना सभी 22 अपाचे संचालित कर रही है, जबकि थलसेना ने तीन को शामिल किया है। शेष तीन नवंबर 2025 तक आ जाएंगे।
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युद्ध इतिहास
अपाचे केवल एक और उन्नत प्लेटफॉर्म नहीं है; यह युद्ध में परखा गया है:
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पहली बार 1989 में पनामा में ऑपरेशन जस्ट कॉज़ के दौरान रात में फायर सपोर्ट के लिए इसका उपयोग हुआ।
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बाद में इसे आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया, खासकर अफगानिस्तान और इराक में। कठिन इलाकों में ऑपरेट करने, प्रिसीजन स्ट्राइक करने और नजदीकी वायु समर्थन प्रदान करने की क्षमता ने इसे अनिवार्य बना दिया।
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अपाचे की अत्याधुनिक विशेषताएँ:
एएच-64ई अपाचे गार्जियन दुनिया के सबसे उन्नत सिस्टम्स से लैस है:
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एएन/एपीजी-78 लॉन्गबो फायर-कंट्रोल राडार: रोटर के ऊपर लगा होता है और एक साथ 256 लक्ष्यों का पता लगा सकता है, वर्गीकृत कर सकता है और प्राथमिकता दे सकता है।
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गति और रेंज: अधिकतम गति 293 किमी/घंटा और 480 किमी से अधिक की संचालन रेंज।
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सर्वाइवेबिलिटी: उन्नत एवियोनिक्स और काउंटर-मेजर्स से लैस, जो इसे शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों में जीवित रहने योग्य बनाते हैं।
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सभी मौसम संचालन: दिन-रात, रेगिस्तान, मैदान या उच्च ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों (लद्दाख, कश्मीर) में भी ऑपरेट कर सकता है।
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मल्टी-रोल क्षमता: नजदीकी वायु समर्थन, दुश्मन की वायु रक्षा को दबाना (SEAD), आईएसआर (खुफिया, निगरानी, टोही) और एस्कॉर्ट मिशनों में दक्ष।
एडीजी पीआई–भारतीय थलसेना ने यह भी बताया कि अपाचे केवल फायरपावर ही नहीं बढ़ाता बल्कि कॉम्बैट इंटेलिजेंस साइकिल को भी मजबूत करता है, जिससे यह संयुक्त अभियानों में फोर्स मल्टीप्लायर साबित होता है।
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भारत के लिए सैद्धांतिक महत्व
थलसेना द्वारा अपाचे को शामिल करना भारत की सैन्य सोच में एक सैद्धांतिक बदलाव को दर्शाता है।
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थलसेना अपने अटैक हेलीकॉप्टर चाहती थी ताकि वायुसेना पर पूरी तरह निर्भर न रहना पड़े।
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यह एकीकृत बैटल ग्रुप्स (IBGs) की अवधारणा के अनुरूप है, जिनमें थलसेना इकाइयों को स्वतंत्र कॉम्बैट सपोर्ट चाहिए।
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अपाचे भारत की विकसित होती इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड्स (ITC) रणनीति में फिट बैठता है, जिसका जोर गति, गतिशीलता और प्रिसीजन पर है।
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ऐसी संरचना में अपाचे:
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सीमा संघर्षों के दौरान तेज़ एस्केलेशन डॉमिनेंस देगा।
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एयरबोर्न असॉल्ट ऑपरेशंस को सपोर्ट करेगा।
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पारंपरिक युद्ध में दुश्मन की वायु रक्षा को निष्क्रिय करेगा।
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स्वदेशी विकल्प: रुद्र और प्रचंड
भारत ने स्वदेशी कॉम्बैट हेलीकॉप्टर विकसित करने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
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एचएएल रुद्र: ध्रुव हेलीकॉप्टर का शस्त्रयुक्त संस्करण, सीमित सेवा में।
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एलसीएच प्रचंड: विशेष रूप से उच्च ऊंचाई युद्ध के लिए डिजाइन, अब वायुसेना और थलसेना में शामिल।
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एएलएच ध्रुव: यूटिलिटी हेलीकॉप्टर प्लेटफॉर्म, कई अनुप्रयोगों के साथ।
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चुनौतियाँ:
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इंजन निर्भरता: भारत अब भी शक्ति (टर्बोमेका) जैसे आयातित इंजनों पर निर्भर है।
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आरएंडडी में देरी: प्रोजेक्ट अक्सर नौकरशाही और तकनीकी देरी से ग्रस्त होते हैं।
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युद्ध इतिहास की कमी: स्वदेशी हेलीकॉप्टरों के पास वह युद्ध अनुभव नहीं है जो विदेशी प्लेटफॉर्म को आकर्षक बनाता है।
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क्षेत्रीय रोटर दौड़: पाकिस्तान और चीन
अपाचे का महत्व क्षेत्रीय घटनाक्रमों को देखते हुए और स्पष्ट हो जाता है।
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पाकिस्तान ने ज़ेड-10एमई, एक उन्नत चीनी अटैक हेलीकॉप्टर, शामिल किया है। 2021 में शुरुआती ट्रायल बहुत सफल नहीं रहे, फिर भी पाकिस्तान ने नया संस्करण शामिल किया। लेकिन इसका युद्ध रिकॉर्ड अपाचे जैसा नहीं है।
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चीन ने एलएसी पर ज़ेड-19, ज़ेड-10 और ज़ेड-20 जैसे हेलीकॉप्टर तैनात किए हैं। इन्हें तिब्बत और शिनजियांग में तेज़ अवसंरचना निर्माण का समर्थन मिला है, जिससे पीएलए को उच्च ऊंचाई वाली गतिशीलता में बढ़त मिलती है।
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भारत दो मोर्चे की चुनौती का सामना करता है और अपाचे एक सिद्ध, उच्च-प्रदर्शन क्षमता देकर निवारण शक्ति को मजबूत करता है।
बजटीय और रणनीतिक चिंताएँ:
2025–26 के लिए भारत का रक्षा बजट 6.81 ट्रिलियन रुपये है, जिसमें से 1.49 ट्रिलियन रुपये अधिग्रहण के लिए रखे गए हैं। लेकिन रक्षा बलों की प्रतिस्पर्धी मांगें हैं:
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पैदल सेना का आधुनिकीकरण।
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पनडुब्बी और नौसेना की खरीद।
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लड़ाकू विमान खरीद (एमआरएफए सौदा लंबित)।
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अपाचे जैसे बड़े सौदे बजट पर दबाव डालते हैं, जिससे कभी-कभी स्वदेशी खरीद में देरी होती है।
एसआईपीआरआई (2024) के अनुसार, भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक है। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक आयात को कुल अधिग्रहण का 30% से कम किया जाए। इसलिए रणनीतिक स्वायत्तता और परिचालन तत्परता के बीच खिंचाव बना हुआ है।
आगे की राह:
विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 3–4 वर्षों में थलसेना को 11 और अपाचे और चिनूक की आवश्यकता होगी। लेकिन भविष्य की योजना दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता पर केंद्रित होनी चाहिए।
आगे के कदम:
1. स्वदेशी हेलीकॉप्टर नवाचार में तेजी लाना।
2. विदेशी निर्भरता घटाने के लिए भारतीय इंजन विकसित करना।
3. विदेशी निर्माताओं के साथ सार्वजनिक–निजी भागीदारी और संयुक्त उपक्रम।
4. अनुसंधान एवं विकास चक्र को तेज और सुचारु बनाने के लिए खरीद सुधार।
5. युद्ध भूमिकाओं में स्वदेशी हेलीकॉप्टरों को साबित कर निर्यात क्षमता बनाना।
निष्कर्ष:
एएच-64ई अपाचे गार्जियन का शामिल होना भारत की वायु युद्ध शक्ति को मजबूत करने की प्रतिबद्धता दिखाता है। यह हेलीकॉप्टर उच्च ऊंचाई और बहु-क्षेत्रीय अभियानों में सिद्ध क्षमताएँ लाता है और क्षेत्रीय अस्थिरता के समय भारत को युद्धक बढ़त देता है।
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