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Daily-current-affairs / 27 Jan 2024

भारत में संसदीय व्यवधान और विपक्ष की भूमिका का विश्लेषण

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संदर्भ:

वर्ष 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान, सदन के संचालन में व्यवधान उत्पन्न करने वाले 100 से अधिक विपक्षी संसद सदस्यों (सांसदों) को निलंबित कर दिया गया। इस घटना ने सदन में विधायी बहस को प्रभावित करने और प्रशासन को जिम्मेदार बनाए रखने में विपक्षी सांसदों की महत्वपूर्ण भूमिका को चिन्हित किया।

 

पृष्ठभूमि:निलंबन की घटना

उक्त निलंबन की घटना में लोकसभा के 95 सदस्य और राज्यसभा के 46 सदस्य उन 141 सांसदों में शामिल थे, जिन्हें 13 दिसंबर, 2023 को संसद में हुए सुरक्षा उल्लंघन को सन्दर्भ बनाते हुए  निलंबित कर दिया गया था। इस मामले का मुख्य कारण अज्ञात लोगों द्वारा पेट्रोल कनस्तरों का उपयोग तथा संसदीय सुरक्षा और व्यापक जांच की आवश्यकता से सम्बंधित प्रश्नों का जवाब देना माना जाता है। हालांकि, सरकार की इन मांगों पर प्रतिक्रिया से व्यवधान पैदा हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अंततः इन सांसदों को निलंबित कर दिया गया।

विपक्ष की भूमिका का महत्व

सरकार में विपक्ष की सहयोगी भूमिका पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दृष्टिकोण लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर रचनात्मक असहमति और बहस के महत्व को रेखांकित करता है। इस सन्दर्भ में विपक्ष विधायी प्रक्रिया में  पारदर्शिता, जवाबदेही और विविध दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के साथ-साथ सरकार की गतिविधियों की जाँच भी करता है।

यद्यपि भारत के संसदीय परिदृश्य को कई निलंबित सांसदों के प्रयासों से बहुत लाभ हुआ है, जो उनके निर्वाचन क्षेत्रों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और नीति-निर्माण में सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है, जैसे;

शशि थरूर (कांग्रेस, लोकसभा):

केरल के तिरुवनंतपुरम से तीन बार के इस संसद सदस्य की उपस्थिति सदन में 94% है। उन्होंने 99 बहसों में सक्रिय रूप से भाग लिया और 13 निजी सदस्य विधेयक पेश किए। शशि थरूर संसदीय कर्तव्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उनको प्राप्त 2020 के संसद रत्न पुरस्कार से  स्पष्टतः  परिलक्षित होती है।

एस. जोथिमनी (कांग्रेस, लोकसभा):

तमिलनाडु के करूर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली जोथिमनी ने रोजगार योजनाओं, बुनियादी ढांचे के विकास और बाढ़ राहत जैसे विभिन्न मुद्दों को सक्रिय रूप से संबोधित किया है। सामाजिक कल्याण के प्रति उनकी निष्ठा निजी सदस्य विधेयकों के माध्यम से मासिक धर्म स्वच्छता और पितृत्व लाभ सहित महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनकी सक्रिय भूमिका से प्रदर्शित होती है।

मनोज कुमार झा (राष्ट्रीय जनता दल, राज्यसभा):

बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाले मनोज झा की उपस्थिति सदन में 97% है, जो उनके उच्च स्तर की लोकतान्त्रिक प्रतिबद्धता का संकेतक है। उन्होंने अत्याचार निवारण विधेयक, 2022 सहित अन्य विधायी कार्य कार्रवाईयों का समर्थन करके महत्वपूर्ण राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान हेतु  अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है।

सुप्रिया सुले (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, लोकसभा सदस्य):

महाराष्ट्र में बारामती निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में, सुले ने चर्चाओं में सक्रिय भाग लिया है और विधवाओं सहित एकल महिलाओं के अधिकारों एवं जनगणना में बदलाव जैसे विभिन्न विषयों से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे हैं। उनके कई निजी सदस्य विधेयक दर्शाते हैं कि कानून की वकालत करते समय वह सक्रिय रुख अपनाती हैं।

गौरव गोगोई (कांग्रेस, लोकसभा):

ऊर्जा संरक्षण और वायु गुणवत्ता नियंत्रण जैसे मामलों पर गोगोई की प्रतिक्रिया पर्यावरणीय स्थिरता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति उनके समर्पण का संकेत है। विधायी विमर्श में उनके अमूल्य  योगदान को उनके 2018 के सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार की प्राप्ति से समझा जा सकता है।

वंदना हेमंत चव्हाण (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राज्यसभा):

विविध सामाजिक मुद्दों में चव्हाण की भागीदारी और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने की दिशा में उनके प्रयास, विधायी कार्यवाही में उनके सक्रिय योगदान को दर्शाती है। इसके लिए उन्हें लोकमत पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ महिला सांसद के रूप में सम्मानित किया जा चुका है।

डेरेक 'ब्रायन (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, राज्यसभा सदस्य):

सामाजिक कल्याण और शैक्षिक सुधार के प्रति 'ब्रायन का समर्पण बहसों में उनकी सक्रिय भागीदारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा पर केंद्रित विधेयकों को प्रस्तुत करने से स्पष्ट होता है। उन्हें मिला लोकमत संसदीय पुरस्कार विधायी मामलों में उनकी उल्लेखनीय भागीदारी का प्रमाण है।

कुँवर दानिश अली (बहुजन समाज पार्टी, लोकसभा):

हाल ही में पार्टी से निलंबन के बावजूद, अली ने सदन में उल्लेखनीय उपस्थिति बनाए रखा है और सक्रिय रूप से बहस एवं पूछताछ में लगे हुए हैं। चुनावी सुधारों और संवैधानिक संशोधनों पर उनका ध्यान लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने की उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

प्रासंगिकता और परिणाम

उपर्युक्त निलंबित सांसदों का योगदान भारत के विधायी विमर्श को आकार देने एवं संसदीय प्रणाली के भीतर जवाबदेही को बढ़ावा देने में विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है। हालाँकि, इन सांसदों के निलंबन से असहमति को दबाने और लोकतांत्रिक शासन पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित करती हैं। यह लोकतांत्रिक मानदंडों के पुनर्मूल्यांकन का आह्वान करता है और प्रभावी शासन एवं समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिए सरकार तथा  विपक्ष के बीच एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता को चिन्हित करता है।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः, संसद के शीतकालीन सत्र 2023 के दौरान विपक्षी सांसदों का निलंबन भारतीय राजनीति की जटिल गतिशीलता और एक जीवंत लोकतंत्र को बनाए रखने में निहित चुनौतियों को दर्शाता है। संसद के निलंबित सदस्यों द्वारा किए गए योगदान को स्वीकार करना विधायी चर्चाओं के दौरान विभिन्न दृष्टिकोणों के महत्व पर प्रकाश डालता है। भविष्य में, भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना और समावेशी शासन सुनिश्चित करने के लिए सरकार और विपक्ष के बीच आपसी सम्मान, संवाद और सहयोग का माहौल बनाना आवश्यक है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.    2023 के शीतकालीन सत्र के दौरान कई विपक्षी सांसदों के निलंबन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत के संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका का आकलन करें। निलंबन लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को कैसे प्रभावित करता है, और असहमति और शासन को प्रभावी ढंग से संतुलित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

2.    भारत में विधायी चर्चा और शासन में शशि थरूर, मनोज कुमार झा और सुप्रिया सुले जैसे निलंबित सांसदों के योगदान का मूल्यांकन करें। उनकी सक्रिय भागीदारी और निजी सदस्य विधेयकों को पेश करना पार्टी की सीमाओं से परे कैसे जाता है, और संसदीय बहस और लोकतांत्रिक जवाबदेही पर उनके निलंबन का क्या प्रभाव पड़ता है? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्त्रोत: हिन्दू

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